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संकटमोचक अध्याय 24

Sankat Mochak
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खाने के बाद सब औरतें एक कमरे में चलीं गयीं। प्रधान जी अभी राजकुमार से कोई बात करने ही वाले थे कि हनी की आवाज़ आयी।

पापा अब सुनाओ न बाकी की कहानी। हनी ने एक बार फिर वही बात पकड़ ली।

कौन सी कहानी पुत्तर। प्रधान जी ने हनी की ओर देखते हुये पूछा। कमरे में बैठे पुन्नु के चेहरे पर भी उत्सुकुता के भाव आ गये थे।

आपकी और पापा की कहानी, प्रधान अंकल। हनी ने मासूमियत से कहा।

मेरी और तेरे पापा की तो बहुत सी कहानियां हैं इस शहर में, पुत्तर। तू किस कहानी की बात कर रहा है। प्रधान जी ने मुस्कुराते हुये कहा।

वो चमन शर्मा वाली कहानी, वो हरपाल सिंह वाली कहानी, वो……………… कहता ही जा रहा था मासूम स्वर में हनी।

अच्छा वो कहानी, वो कहानी तो पापा भी मुझे सुनाते हैं। बड़ी मजेदार कहानी है। किसी के बोलने से पहले ही पुन्नु ने कहा।

तो फिर हो जाये एक बार फिर वो कहानी, पुत्तर जी। हनी के साथ साथ हम भी सुन लेंगे अपने लेखक बेटे के मुंह से वो कहानी। प्रधान जी के कहते ही राजकुमार ने कहानी फिर से शुरु कर दी।

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक अध्याय 23

Sankat Mochak
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सुल्ताना डाकू घर पर है?……… राजकुमार ने घर में प्रवेश करते ही ज़ोर का नारा लगा दिया था। उसे पता था कि प्रधान जी कभी कभी अकबर की तरह सुल्ताना डाकू के किरदार में भी आ जाते थे।

ओ मेरा पुत्तर आ गया, ओ मेरा राजकुमार आ गया। अंदर से ही प्रधान जी की ज़ोरदार आवाज़ आयी तो हनी ने राजकुमार की ओर देखा और दोनो ही मुस्कुरा दिये।

ओ बड़ी देर लगा दी यार जी आने में। बड़ी देर से इंतजार कर रहे हैं सब। प्रधान जी ने पास आते आते कहा। चंद्रिका के चरण स्पर्श का जवाब देने के बाद जैसे ही उनकी नज़र हनी पर पड़ी, एक दम से उनके मुंह से निकल पड़ा।

ओ मेरा छोटा राजकुमार, ओ मेरा छोटा युवराज। कहते हुये जब प्रधान जी ने हनी को गले से लगाया तो राजकुमार और हनी दोनो ही ज़ोर से हंस दिये।

ओये ऐसे क्यों हंस रहे हो दोनो……………………अच्छा अब समझा। इस कंजर ने आज फिर मेरी नकल उतार कर तुझे बताया होगा कि प्रधान अंकल तुझे और इसे देखकर क्या क्या कहेंगे। प्रधान जी ने ठहाका लगाते हुये कहा।

आपने बिल्कुल ठीक समझा प्रधान जी। हुबहु नकल करता है ये आपके अंदाज़ की।

छोटी सी उम्र में ही पूरा शैतान है ये। प्रधान जी ने हनी को अपने गले से और भी ज़ोर के साथ भींचते हुये कहा।

आखिर बेटा किसका है, पापा। राजकुमार भईया का बेटा और शैतान न हो। ऐसा कैसे हो सकता है। पास आ चुकी मीनू के इन शब्दों ने एक बार फिर सबको मुस्कुराने का कारण दे दिया था।  

कैसी हो चंद्रिका। मीनू ने चंद्रिका की ओर बढ़ते हुये कहा।

मैं ठीक हूं दीदी, आप कैसी हैं। चंद्रिका ने आगे बढ़कर मीनू को गले लगाते हुये कहा।

अब वहीं पर सारी बातें कर लोगे या अंदर भी आओगे। रानी की आवाज़ ने सबको चौंकाया तो सब कमरे की ओर चल दिये।

पुन्नु कहां है प्रधान जी। राजकुमार ने इधर उधर देखते हुये कहा।

गुलाब जामुन लेने गया है, यहीं तक। आता ही होगा। प्रधान जी ने जवाब दिया।

आता ही होगा नहीं पापा, आ गया। पुनर्वसु की इस आवाज़ को सुनते ही राजकुमार ने पलट कर देखा तो पुन्नु अपने हाथ में पकड़ा हुआ कुछ सामान मीनू को पकड़ा रहा था।

ओ मेरा पुन्नु पुत्तर आ गया। राजकुमार के प्रधान जी के अंदाज़ में नारा लगाते ही कमरे में सब ज़ोर से हंस दिये।

लगभग बीस वर्ष का पुन्नु अब भरपूर जवान हो चुका था। कसरत करने के कारण तगड़ा शरीर बनाया था उसने, और देखने में प्रधान जी का ही रूप लगता था।

कैसे हैं भईया, इस बार बड़ी देर बाद आये आप। कहते हुये पुन्नु ने राजकुमार के चरण स्पर्श किये।

अरे चंडीगढ़ जाकर सैट हो गया है अब ये कंजर। अब इसे हमारी याद कहां से आयेगी। किसी के कुछ समझने से पहले ही प्रधान जी का छेड़ने वाला स्वर कमरे में गूंज गया।

और आप तो जैसे रोज़ चंडीगढ़ आते हैं मुझे मिलने। पिछले पांच साल में एक बार भी आयें हैं चंडीगढ़। मैं तो फिर भी साल में दो से चार बार आ जाता हूं आपसे मिलने जांलधर। राजकुमार ने पुन्नु को गले से लगाते हुये कहा।

आपके अलावा आज भी इन्हें कोई चुप नहीं करवा सकता भईया। प्रधान जी को कोई जवाब न सूझता देखकर मीनू ने हंसते हुये कहा।

इससे तो हार जाने में भी मुझे मज़ा आता है। मेरी जान है ये कंजर। इतना प्यार डाल के पता नहीं क्यों इतनी दूर जाकर बैठ गया है अब। प्रधान जी की आवाज़ में भारीपन आ गया था।

और सुनाईये प्रधान जी, न्याय सेना का काम कैसे चल रहा है। राजकुमार ने विषय बदलने के लिये कहा। प्रधान जी के स्वर में छिपी उदासी को पूरी तरह से भांप गया था वो।

काम तो अभी भी कोई नहीं रुकता तेरे प्रधान का, पुत्तर। पर अब वो मज़ा नहीं आता जो पहले आता था। तू क्या गया, जैसे मेरा दिल ही निकाल के ले गया कोई। सब बहुत याद करते हैं तुझे संगठन में। तेरा सैक्रटरी जनरल का पद आज भी न्याय सेना में तेरे नाम पर ही है। कोई दूसरा नहीं ले पाया आज तक उसे। प्रधान जी के स्वर में उदासी बढ़ती ही जा रही थी।

और कोई ले भी नहीं पायेगा, प्रधान जी। राजकुमार कोई रोज रोज थोड़े पैदा होते हैं। राजकुमार ने सीना फुलाते हुये कहा। सब उसकी इस बात पर मुस्कुरा दिये, पर प्रधान जी अभी भी गंभीर ही थे।

तू आजा यार वापिस, तेरे बिना वो मज़ा नहीं आता किसी काम में। तेरे बिना आज तक किसी ने हिम्मत नहीं की मेरा हाथ पकड़ कर दबाने की। कई बार बड़ा दिल करता है कि कोई मेरा हाथ दबा कर मुझे चुप करा दे। प्रधान जी के स्वर में उदासी के साथ साथ प्रेम भी गहरा होता जा रहा था।

ये बात सच है भईया। पापा को एक बार गुस्सा चढ़ जाये तो फिर कोई इन्हें पकड़ कर शांत करने की हिम्मत नहीं कर सकता। उस समय सब आपको याद करते हैं। आप कैसे शांत कर लेते थे इन्हें, जब ये पूरे क्रोध में भी होते थे। पुन्नु ने हैरान होते हुये पूछा।

ये प्यार की बात है पुन्नु। वो प्यार जो मेरे दिल की गहरायी से निकलता है और प्रधान जी के दिल की गहरायी तक जाता है। प्रधान जी जानते हैं कि मैं जब भी इन्हें रोकता हूं, अपने उसी प्यार के हक से रोकता हूं, और इसीलिये ये रुक जाते हैं। राजकुमार के स्वर में भी अब प्रेम उमड़ आया था।

बिल्कुल ठीक कह रहा है ये कंजर, आज तक इसने जब भी मुझे रोका या टोका, सिर्फ मेरे फायदे के लिये। कभी अपना फायदा नहीं देखा इसने। इसीलिये इसकी कोई भी बात आज भी बिना सोचे ही मान लेता हूं मैं। मुझसे कहीं ज्यादा परवाह है इसे मेरी। प्रधान जी के स्वर में प्रेम बढ़ता जा रहा था।

और आपने भी तो हमेशा अपने फायदे से पहले मेरा फायदा सोचा है, प्रधान जी। इसी का नाम तो प्यार है। लेना और देना तो व्यापार है। देते रहना और देकर खुश होते रहना ही प्यार है। राजकुमार ने अपने आप को संभाल लिया था।

लो हो गयी इनकी फिलासफी शुरु। चंद्रिका की इस आवाज़ ने बातचीत का सिलसिला तोड़ा तो सब लोग हस पड़े।

ओ यार, सचमुच बहुत बड़ा फिलासफर बन गया है तू। इतनी किताबें भी लिख दी हैं तूने। तुझे एक सफल लेखक देखकर गर्व होता है पुत्तर जी। पर इतना बड़ा बदलाव आया कहां से तेरे अंदर। प्रधान जी का मूड अब कुछ ठीक हो गया था।

मैं तो वैसा ही हूं प्रधान जी, बिल्कुल नहीं बदला। आपने क्या बदलाव देख लिया। राजकुमार ने प्रधान जी को छेड़ते हुये कहा।

हर समय आग में कूदने को तैयार रहता था तू, और अब लोगों को सच और धर्म कर्म का उपदेश देता है। सुना है लोग तुझे पंडित जी कहकर तेरे पैरों को हाथ लगाते हैं अब। प्रधान जी ने मज़ा लेते हुये कहा।

मेरा रास्ता तब भी सच का था प्रधान जी, और आज भी सच का ही है। केवल तरीका बदला है। राजकुमार ने मुस्कुराते हुये कहा।

इनकी बातें तो चलती ही रहेंगी चंद्रिका, आओ हम खाने का प्रबंध करें। कहती हुयी मीनू ने चंद्रिका का हाथ पकड़ा और दोनो हंसती हुयीं रसोई की ओर चल दीं।

हनी, आओ हम चाकलेट लेने चलते हैं। पुन्नु ने हनी की ओर देखते हुये प्यार से कहा।

पुन्नु भईया, आप मुझे बहुत चाकलेट लेकर देते हो। हनी ने एक दम से खुश होते हुये कहा।

तेरे बाप की खिलायी हुई ढेर सारी चाकलेटों का कर्ज उतार रहा है, पुत्तर। तू खाता जा। कहते हुये प्रधान जी ने हनी को गले से लगाया तो राजकुमार और पुन्नु एक बार फिर हंसने लगे।

सोनिका और निशा कैसी हैं, प्रधान जी। राजकुमार ने पुन्नु और हनी के जाते ही पूछा।

दोनों अपने अपने घर सुखी हैं। प्रधान जी ने खुश होते हुये कहा। सोनिका और निशा की शादी हो चुकी थी।

खाना तैयार है। इतने में मीनू की आवाज़ आयी।

तो ले आओ फिर, बहुत भूख लगी है। प्रधान जी ने जल्दी से कहा।

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक अध्याय 21

Sankat Mochak
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दूसरे दिन सुबह आठ बजे के करीब सौरव कुमार अपने आधिकारिक निवास में ही बने ऑफिस के एक कमरे में तेजी से चहलकदमी कर रहे थे। साथ में एक टेबल पर ढेर सारी अखबारें पड़ीं थीं, जो शायद उनकी चिंता का कारण थीं।

जय हिंद सर। इतने में दरवाजे से एस पी रमन दुग्गल की आवाज़ आयी।

आईये आईये दुग्गल साहिब। मैं आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा था। कहते हुये सौरव कुमार अपनी आधिकारिक कुर्सी पर बैठे और रमन दुग्गल उनके सामने पड़ी एक कुर्सी पर बैठ गये।

आज के अखबार देखे आपने। अर्दली को चाय का प्रबंध करने के आदेश देने के बाद सौरव कुमार ने कहा। उनकी आवाज़ में परेशानी साफ झलक रही थी।

जी सर, देखे हैं। जम कर लिखा है सबने पुलिस के खिलाफ। रमन दुग्गल का स्वर सहानुभूति से भरपूर था।

पुलिस के खिलाफ या मेरे खिलाफ। मुस्कुराते हुये कहा सौरव कुमार ने। इस विकट स्थिति में भी उन्होने अपना धैर्य नहीं खोया था।

जी सर…………………कुछ कहते कहते रुक गये रमन दुग्गल। शायद उन्हें समझ नहीं आ रहा था क्या कहें ऐसी परिस्थिति में।

लगभग हर अखबार नें ही सीधा मुझे ही टारगेट किया है……………… शहर के पुलिस चीफ भू माफिया को संरक्षण दे रहे हैं…………………… एस एस पी जालंधर पर भू माफिया के साथ सांठ गांठ के गंभीर आरोप……………… और इस अमर प्रकाश ने तो हद ही पार कर दी है।

रमन दुग्गल चुपचाप सुने जा रहे थे।

सीधे तौर से मेरा नाम ही लिख दिया है। देखा आपने, दुग्गल साहिब। कहते हुये सौरव कुमार ने अमर प्रकाश का उनसे संबंधित खबर वाला पेज रमन दुग्गल के सामने रख दिया।

रमन दुग्गल हालांकि इसे पहले से ही पढ़ चुके थे। फिर भी उन्होने एक बार फिर सामने पड़े अमर प्रकाश के पेज पर नज़र डाली।

एस एस पी सौरव कुमार भू माफिया के साथ मिले हुये हैंवरुण शर्मा। ये था शीर्षक उस खबर का।

एक संवाददाता सम्मेलन में आज न्याय सेना के अध्यक्ष वरुण शर्मा ने जालंधर के एस एस पी सौरव कुमार पर भू माफिया के साथ सांठ गांठ के संगीन आरोप लगाये हैं। सौरव कुमार के साथ ही साथ उन्होने प्रदेश के कैबिनेट मंत्री और मुख्यमंत्री के खास कहे जाने वाले राजनेता अवतार सिंह पर भी इस रैकेट में शामिल होने के आरोप लगाये हैं। रमन दुग्ग्ल एक बार फिर से ये खबर पढ़ते जा रहे थे।

अपने आरोपों के पक्ष में उन्होने पिछले आठ दिनों में पुलिस को चमन शर्मा द्वारा ठेकेदार हरपाल सिंह के खिलाफ दी गयीं कई शिकायतें दिखायीं, जिन पर कभी कोई कार्यवाही नहीं हुयी। हरपाल सिंह प्रदेश के कैबिनेट मंत्री अवतार सिंह के करीबी बताये जाते हैं और सौरव कुमार के साथ भी उनके घनिष्ट संबंध बताये जाते हैं, जिसके चलते पुलिस ने आज तक न तो कभी चमन शर्मा के गोदाम का दौरा किया और न ही कभी उसका कोई बयान दर्ज किया। रमन दुग्गल बीच बीच से खबर को छोड़ कर जरूरी हिस्से पढ़ते जा रहे थे।

न्याय सेना की ओर से लगाये गये इन सारे आरोपों से और उनके द्वारा पेश किये गये सबूतों से एक बात तो साफ जाहिर है, कि पुलिस अपना काम ठीक से नहीं कर रही है। चाहे सौरव कुमार की भू माफिया से कोई सांठ गांठ हो या न हो, पर पुलिस के इस मामले में कोई कार्यवाही न करने की जिम्मेवारी तो शहर का पुलिस चीफ होने के कारण उन्हें ही उठानी होगी। अखबार की ओर से विशेष टिप्पणी थी ये।

अमर प्रकाश के संवाददाता ने जब सौरव कुमार से उनका पक्ष जानने के लिये संपर्क किया तो उन्होने इन सारे आरोपों को झुठला दिया। उन्होने कहा कि पुलिस अपना काम ठीक ढंग से कर रही है। इस मामले की जांच सीनीयर एस पी मोहम्मद सिद्दीकी कर रहे हैं, और उनकी जांच पूरी होने पर इस केस में उचित कार्यवाही की जायेगी। खबर के एक ओर एक छोटी सी डिब्बी में सौरव कुमार का ये बयान लगा था।

देखिये मेरे खिलाफ लगाये गये आरोपों को कितना हाईलाईट करके लिखा है और मेरे बयान को कैसे छोटे से एक कोने में एक तरफ करके लगा दिया है, ताकि किसी की नज़र ही न पड़े उसपर। रमन दुग्गल के सिर ऊपर करते ही सौरव कुमार ने एक बार फिर से मुस्कुराते हुये कहा।

जाने दीजिये न सर, आपको तो पता ही है। ये अमर प्रकाश वाले तो वैसे ही पुलिस और प्रशासन के खिलाफ चलते हैं। और फिर आज़ाद ने खबर लिखी है, आग तो उगलेगा ही। उसकी कलम से तो हमेशा आग ही निकलती है। किसको छोड़ा है उसने शहर में। आप चाय लीजिये। रमन दुग्गल ने बात बदलने की कोशिश करते हुये टेबल पर आ चुकी चाय की ओर संकेत किया।

मुझे इन खबरों की कोई खास चिंता नहीं है, दुग्गल साहिब। हमारी नौकरी में तो ये सब चलता ही रहता है। लोगों को बस मौका चाहिये पत्थर उछालने का। सौरव कुमार की निरंतर बनी हुई मुस्कुराहट को देखकर रमन दुग्गल मन ही मन में उनकी प्रशंसा कर रहे थे कि कैसे उन्होंने इतनी विकट स्थिति में भी संयम बनाया हुआ है।

तो क्या है आपकी चिंता का विषय सर। रमन दुग्गल ने चाय का कप उठाते हुये कहा।

आई जी साहिब का फोन आया था थोड़ी देर पहले। उनकी सलाह थी कि पुलिस को इस मामले में अब और बदनामी नहीं करवानी चाहिये और हरपाल सिंह के खिलाफ कार्यवाही कर देनी चाहिये। सौरव कुमार ने चाय का घूंट भरते हुये कहा।

ठीक ही तो कहते हैं आई जी साहिब, सर। आखिर पुलिस को लेना देना ही क्या है उस हरपाल सिंह से। क्यों बेकार में ही हम अपनी बदनामी करवा रहे हैं। रमन दुग्गल ने तीखे स्वर में कहा।

ये मामला इतना आसान नहीं है दुग्गल साहिब। जब तक हरपाल सिंह के सिर से मंत्री जी का हाथ नहीं उठता, उसके खिलाफ कार्यवाही करने से ये मामला उलझ भी सकता है। सौरव कुमार ने कुछ सोचते हुये कहा।

मंत्री जी इस केस की जांच के लिये हरपाल सिंह के द्वारा ए डी जी साहिब या डी जी पी साहिब को अर्ज़ी दिलवाकर अपनी पसंद के किसी उच्च पुलिस अधिकारी को ये जांच दिलवा सकते हैं। जो जांच के बाद ये रिपोर्ट दे देगा कि हरपाल सिंह इस मामले में निर्दोष है। ऐसा होने पर हमारी स्थिति नाज़ुक हो सकती है। सौरव कुमार ने रमन दुग्गल को समझाने वाले अंदाज़ में कहा।

मैं समझ गया सर, पुलिस पर ये इल्जाम आ जायेगा कि हमने कुछ प्रदर्शनकारियों के दबाव में आकर अपनी जान बचाने के लिये जल्दबाजी में बिना किसी ठोस सुबूत के एक सम्मानित नागरिक के खिलाफ कार्यवाही कर दी। और फिर बाद में कुछ पुलिस अफसरों पर गाज भी गिर सकती है। रमन दुग्गल सब समझ गये थे।

यही है मेरी चिंता का कारण। सौरव कुमार ने लंबी सांस छोड़ते हुये कहा।

इसका तो फिर एक ही उपाय है सर………… रमन दुग्गल कहते कहते रुक गये, जैसे अपनी बात को तोल रहे हों।

आप ये सारा मामला माननीय मुख्यमंत्री साहिब की जानकारी में दे दीजिये और इस मामले में कार्यवाही करने के लिये सीधे उनसे दिशा निर्देश प्राप्त कर लीजिये। फिर तो ये सारा सिरदर्द ही मिट जायेगा सर। रमन दुग्गल ने एक एक शब्द को तोलते हुये कहा।

लगता है अब कुछ ऐसा ही करना पड़ेगा। आप अपने काम संभालिये अब, मैं करता हूं कुछ इस बारे में। चाय खत्म करते हुये सौरव कुमार ने कहा।

जी बिल्कुल ठीक है सर, जय हिन्द। और रमन दुग्गल वहां से विदा हो गये।

उनके जाने के बाद सौरव कुमार ने कुछ सोचते हुये अपने मोबाइल से एक नंबर डायल किया और घंटी बजने पर दूसरी ओर से किसी के बोलने की प्रतीक्षा करने लगे।

कैसे हैं एस एस पी साहिब। दूसरी ओर से आवाज़ आयी।

जय हिन्द मंत्री जी। सौरव कुमार ने उत्तर दिया। दूसरी ओर से मंत्री अवतार सिंह बोल रहा था।

सुबह सुबह कैसे फोन किया आज, सब ठीक तो है। अवतार सिंह के स्वर में कुछ शंका थी।

कुछ ठीक नहीं है मंत्री जी, हरपाल सिंह वाले मामले को लेकर सारे शहर में बवाल मचा हुआ है। आज सारे अखबार मेरे नाम से भरे पड़े हैं। आपका नाम भी छपा है। भू माफिया की सरपरस्ती का आरोप लगा है मुझ पर और आप पर। सौरव कुमार ने कहा।

ऐसे आरोप तो हम राजनेताओं पर लगते ही रहते हैं एस एस पी साहिब, आप चिंता न करें। एक दो दिन शोर मचा कर अपने आप ही चुप कर जायेंगे, ये अखबार। हरपाल सिंह मेरे बहुत खास हैं। आप किसी भी तरह से उनका कोई नुकसान मत होने देना। अवतार सिंह के स्वर में पुरज़ोर सिफारिश थी।

मामला अब इतना सीधा नहीं रह गया है मंत्री जी। एक बहुत बड़े स्थानीय संगठन ने तीन दिन में कार्यवाही न करने पर मेरे ऑफिस पर प्रदर्शन करने की चेतावनी दी है आज सारे अखबारों में। बहुत पकड़ है इस संगठन की इस शहर में। पुलिस की बहुत बदनामी हो रही है। इस मामले को हम अब अधिक देर लटका नहीं सकते। सौरव कुमार ने मजबूरी जताने वाले स्वर में कहा।

चाहे कुछ भी हो जाये, आपको ये मामला कम से कम पंद्रह बीस दिन तो लटकाना ही होगा। इतनी देर में मैं कुछ न कुछ इंतजाम कर लूंगा हरपाल सिंह को बचाने का। अवतार सिंह अभी भी अपनी ज़िद पर अड़ा हुआ था।

ये संभव नहीं हो पायेगा मंत्री जी……………… सौरव कुमार की बात बीच में ही काट दी अवतार सिंह ने।

आपके लिये सब संभव है। सारे शहर की पुलिस आपकी जेब में है, आप कुछ भी कर सकते हैं। अच्छा अब मैं रखता हूं, आज कैबिनेट मीटिंग पर जाना है। अवतार सिंह ने जान छुड़ाने वाले अंदाज़ में कहा।

जय हिन्द मंत्री जी। सौरव कुमार के इतना कहते ही दूसरी ओर से फोन काट दिया गया।

अवतार सिंह से अपनी बातचीत का कोई सकारात्मक नतीजा न निकलता देखकर सौरव कुमार फिर से सोच में पड़ गये। हरपाल सिंह के खिलाफ कार्यवाही न करने के कारण शहर में पुलिस की बदनामी हो रही थी और अवतार सिंह किसी भी सूरत में हरपाल सिंह के खिलाफ कार्यवाही करने को सहमति नहीं दे रहा था।

सोचों के इस बवंडर में कुछ देर फंसे रहे सौरव कुमार, फिर अपने आधिकारिक फोन से एक नंबर डायल कर दिया। दो बार घंटी बजने के बाद दूसरी ओर से आवाज़ आयी।

माननीय मुख्यमंत्री पंजाब के निवास से बोल रहा हूं, कहिए मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूं।

राजेंद्र, मैं सौरव कुमार बोल रहा हूं। सी एम साहिब घर पर हैं क्या। सौरव कुमार दूसरी ओर से बोलने वाले की आवाज़ पहचान गये थे।

जय हिन्द सर। जी, सी एम साहिब घर पर ही हैं। राजेंद्र ने सौरव कुमार को पहचाने हुये आदरपूर्वक कहा।

मेरी बात हो सकती है क्या उनसे। सौरव कुमार ने पूछा।

मैं अभी पता कर के बताता हूं सर, आप लाईन होल्ड कीजिये प्लीज़। कहते हुये राजेंद्र ने सौरव कुमार को होल्ड पर डाल दिया।

लगभग 30-40 सैकेंड के बाद राजेंद्र की आवाज़ एक बार फिर से आयी।

सी एम साहिब आपसे बात करेंगे, सर। मैं लाईन ट्रांसफर कर रहा हूं।

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक अध्याय 20

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शाम के लगभग आठ बजते बजते जब प्रधान जी और राजकुमार उनके घर पहुंचे तो सब उनका इंतज़ार कर रहे थे।

नानू आ गये, मामू आ गये। बालक गतिक सारे घर में शोर मचाता हुआ भागता फिर रहा था। गतिक मीनू के छोटे बेटे का नाम था और उसके बड़े बेटे का नाम साहिल था।

ओ मेरा मीनू पुत्तर आ गया। प्रधान जी ने कहते हुये अपने ओर आती मीनू को गले लगाते हुये कहा।

आप कैसे हैं भईया। मीनू ने प्रधान जी के गले लगे हुये ही साथ में खड़े राजकुमार से पूछा।

मैं बिल्कुल ठीक हूं मीनू। तुम सुनाओ सब कैसे है। कुनाल कहां है। राजकुमार ने मीनू की ओर देखते हुये पूछा। कुनाल मीनू के पति का नाम था।

वो किसी काम के सिलसिले में शहर से बाहर गये हैं, भईया। आइये अंदर चलते हैं। मीनू के इतना कहते ही सब तेजी से उस कमरे की ओर चल दिये जहां सब लोग उनका इंतजार कर रहे थे।

और सुनाईये, चंद्रिका भाभी का क्या हाल है। आपकी शादी में हमने बहुत मज़ा किया था भईया। मीनू ने उल्लास भरे स्वर में कहा। राजकुमार की शादी हुये अभी कुछ समय ही हुआ था और चंद्रिका उसकी पत्नी का नाम था।

वो भी एकदम ठीक है, मीनू। राजकुमार ने मुस्कुराते हुये कहा।

चंद्रिका का नाम आते ही देखो इस कंजर का मुंह कैसे लाल हो गया है। प्रधान जी ने राजकुमार को छेड़ते हुये कहा।

मुंह तो अब आपका भी लाल ही होने वाला है प्रधान जी। राजकुमार की बात का अर्थ समझने से पहले ही प्रधान जी के कानों में रानी का स्वर पड़ा।

आप तो सात बजे आने वाले थे। उनके बिल्कुल पीछे खड़ी उनकी पत्नी रानी उन्हें घूर घूर कर देख रही थी।

वो रानी मैं………………बाऊ जी ने बुला लिया था एकदम से। इसलिये लेट हो गया था। पूछ ले राजकुमार से। प्रधान जी ने जान बचाने के लिये एकदम कोरा झूठ बोल दिया था। वो जानते थे कि रानी बाऊ जी का बहुत आदर करती थी।

बिल्कुल झूठ बोल रहे हैं ये, भाभी। बाऊ जी तो शहर में ही नहीं हैं। हम तो सात बजे ही फ्री हो गये थे पर प्रधान जी पर तो मुगलआज़म बनने का भूत सवार हो गया था। सारा दरबार लगा कर एक्टिंग कर रहे थे अब तक। मैने तो इन्हें याद भी करवाया था पर इन्होंने मुझे अकबर के अंदाज़ मेंख़ामोश ग़ुस्ताखकहकर चुप करा दिया। राजकुमार मज़ा ले रहा था।

ओये कंजर, कब कहा था मैने ऐसे। प्रधान जी ने खा जानी वाली नज़रों से राजकुमार की ओर देखा।

हां हां बोलो झूठ, सारी दुनिया में तो खूब सच का साथ देने की बात करते हो, और मेरे साथ झूठ बोलते रहते हो। रानी के स्वर में तीखापन था।

हे हे हे………वो रानी मैं………………………… प्रधान जी को कोई शब्द नहीं सूझ रहा था इससे आगे। सब उनकी इस हालत का मज़ा ले रहे थे।

करो अपनी मनमर्जी, हमारी क्या पड़ी है आपको। कहते हुये रानी रसोई की ओर चल दी और मीनू भी उनके पीछे पीछे हो ली।

क्यों प्रधान जी, अब पता चला, मुंह कैसे लाल होता है पत्नी का नाम सुनके। देखिये, आपका तो सारा शरीर ही लाल हुआ पड़ा है। राजकुमार ने प्रधान जी को चिढ़ाने वाले अंदाज़ में कहा।

तू तो किसी को भी नहीं बख्शता कंजर, अपने प्रधान की ही बैंड बजवा दी। प्रधान जी ने नकली गुस्से से राजकुमार की ओर देखा।

आपसे ही सीखा है, प्रधान जी। सामने वाले को अपने ऊपर हावी होने का कोई मौका मत दो। आप ही ने सिखाया था।

अच्छा बच्चू, हमारा दांव उल्टा हमीं पर। प्रधान जी ने आंखें निकालते हुये कहा। सोना और निशा उनकी इस नोंक झोक का आनंद ले रही थीं।

मामू हमारी चाकलेट कहां है। छोटा गतिक राजकुमार की पैंट पकड़ कर खींच रहा था।

अरे वो तो मैं भूल ही गया था, ये रही तुम्हारी चाकलेट। ये तुम्हारी, ये साहिल की, ये निशा की, ये सोना की और ये पुन्नु……………अरे पुन्नु कहां है। राजकुमार ने कहा तो प्रधान जी ने भी नोट किया कि इस सारे मेल मिलाप में वो पुन्नु को तो भूल ही गये थे।

रानी, पुन्नु कहां है। प्रधान जी ने वहीं से चिल्ला कर पूछा।

बाहर कहीं खेल रहा है अपने दोस्तों के साथ, अभी आ जायेगा। रसोई से रानी की आवाज़ आयी।

साहिल, जा जल्दी से अपने पुन्नु मामू को ढूंढ के ला। प्रधान जी ने कहते हुये साहिल को गली में भगा दिया।

आज के सारे काम तो ठीक से निपट गये पुत्तर जी, अब कल सुबह के अखबारों का इंतजार करते हैं। प्रधान जी ने पास ही पड़ी कुर्सी पर बैठते हुये कहा।

सुबह की बात सुबह देखेंगे प्रधान जी, अभी तो बहुत भूख लगी है। कुछ पेट पूजा कर ली……………… राजकुमार के शब्द पुन्नु की पुरज़ोर आवाज़ के कारण अधूरे ही रह गये।

मुझे खेलने भी नहीं दिया ढंग से, अभी अभी मेरी बारी आयी थी। क्यों बुला लिया बीच में से ही। प्रधान जी की ओर आता हुआ पुन्नु पूरे गुस्से से बोल रहा था।

रात के समय तुझे खाने की बजाय खेल सूझ रहा है बदमाश, जा चुप करके बैठ जा वहां पर। प्रधान जी ने पुन्नु को डराने के इरादे से ज़ोरदार आवाज़ में कहा।

मैं नहीं बैठता, मैं नहीं बैठता। छोटा पुन्नु तुनक कर बोला और प्रधान जी के एकदम आगे आकर अड़कर खड़ा हो गया, जैसे उन्हें चुनौती दे रहा हो।

पुन्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्नु…………बैठेगा कि नहीं। प्रधान जी नें उसे डराने की लिये क्रोध भरी मुद्रा बनाते हुये कान फाड़ू आवाज़ में कहा।

नहीं बैठूंगा, नहीं बैठूंगा, नहीं बैठंगा। प्रधान जी के हर हथियार को फेल करते हुये पुन्नु ने भी मोर्चा संभाल लिया।

हा हा हा……… ये भी शेर है प्रधान जी, ऐसे नहीं डरने वाला। ज्यादा ज़ोर मत लगाओ, गला बैठ जायेगा। राजकुमार ने प्रधान जी को छेड़ते हुये कहा।

पुन्नु, मेरे शेर, ओ मेरी डार्लिंग, ओ आजा यार मेरे पास। हथियार डालते हुये प्रधान जी ने पुन्नु को गोद में उठा लिया और वो उनसे छूटने के लिये उनके शरीर पर अपने छोटे छोटे हाथों से घूंसे बरसाने लगा। बाकी के बच्चे अपने अपने खेल में मस्त थे, जैसे ये सब उनके लिये कोई मोल ही न रखता हो।

खाना लग गया है टेबल पर। रानी की इस आवाज़ को सुनते ही प्रधान जी और राजकुमार खाने की टेबल की ओर लपक पड़े। पुन्नु अभी भी प्रधान जी के शरीर पर छूटने के लिये घूंसे बरसा रहा था।

दस बजे के करीब राजकुमार ने प्रधान जी से और बाकी सबसे विदा ली और अपने घर की ओर चल दिया।

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक अध्याय 19

Sankat Mochak
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उसी दिन शाम के लगभग 7 बजे प्रधान जी और राजकुमार न्याय सेना के कार्यालय में चमन शर्मा, जग्गू, राजू और न्याय सेना के अन्य कई पदाधिकारियों के साथ बैठे थे।

प्रैस कांफ्रैंस तो जबरदस्त रही, पुत्तर जी। क्या लगता है, कल सुबह पटाखे फूटेंगें। प्रधान जी ने चुटकी लेते हुये राजकुमार की ओर देखा।

पटाखे तो अभी से फूटने शुरू हो गये होंगें, प्रधान जी। पत्रकारों ने अब तक पुलिस अधिकारियों से इस सारे मामले में उनका पक्ष मांगना शुरू कर दिया होगा। जैसे इल्जाम लगें हैं पुलिस पर इस केस में, आला अधिकारियों को आज रात नींद नहीं आयेगी। राजकुमार ने भी मुस्कुरा कर कहा।

क्या लगता है तुम्हे, सब बड़ी अखबारें छाप पायेंगी इतने विस्फोटक इल्जाम, इतने प्रभावशाली लोगों के खिलाफ। प्रधान जी ने राजकुमार की राय जानने के लिये कहा।

सारा नहीं तो आधा अधूरा तो हर कोई छापेगा ही, और इसमें से कुछ भी छपने का मतलब बम विस्फोट ही है। कहते हुये राजकुमार ने चमन शर्मा की ओर देखा जो बड़े कृतज्ञ भाव से प्रधान जी की ओर देख रहा था।

आज का कार्यक्रम हमारी सोच के अनुसार ही अच्छा रहा चमन जी। आपने अपना पार्ट बहुत अच्छे से प्ले किया, मीडिया को अपने केस की सच्चाई बता कर। शिव कृपा से आगे भी सब अच्छा ही होगा। अब आप चाहें तो जा सकते हैं। राजकुमार ने दीवार पर लगी घड़ी की ओर देखते हुये कहा।

मुझे समझ नहीं आता, मैं आप लोगों का किस प्रकार शुक्रिया अदा करुं। आप लोगों ने एक पराये आदमी के लिये इतने बड़े लोगों से वैर ले लिया। कहां मिलते हैं आजकल ऐसे लोग। चमन शर्मा के स्वर में श्रद्दा झलक रही थी।

न्याय सेना के कार्यालय में मिलते हैं ऐसे लोग। राजकुमार के कहते ही सबने ठहाका लगाया तो चमन शर्मा भी मुस्कुराये बगैर न रह सका।

जी आपसे एक और बात करनी थी, प्रधान जी। अगर आप बुरा न मानें तो। चमन शर्मा ने डरते डरते कहा।

बेखौफ होकर कहो चमन जी, जान की अमान होगी। प्रधान जी ने मुगलआज़म के अकबर की नकल उतारते हुये कहा तो सब मुस्कुरा पड़े।

आप लोगों का इस काम में समय के साथ साथ धन भी खर्च हो रहा है। अगर इसमें से कुछ योगदान मैं भी दे दूं तो, आखिर ये सब मेरे लिये ही तो कर रहे हैं आप लोग। चमन शर्मा ने फिर डरते डरते कहा।

किस गुस्ताख ने कहा हम ये आप के लिये कर रहे हैं। शंहशाह अकबर तो ये सब इंसाफ के लिये कर रहे हैं। प्रधान जी पर एक बार फिर अकबर का बुखार चढ़ चुका था, जो उनके बहुत प्रिय फिल्मी किरदारों में से एक था।

शहजादा सलीईईम…………। प्रधान जी ने राजकुमार की ओर देखते हुये कहा।

जी शहंशाहजांलंधर। राजकुमार भी उनकी इस एक्टिंग में शामिल हो गया था।

इस ग़ुस्ताख चमन शर्मा को हमारी रियासत के कायदे कानून से वाकिफ करवाया जाये। प्रधान जी की भाषा में एक दम से उर्दू के भारी भरकम शब्द शामिल हो गये थे।

जो हुक्म आलम पनाह। प्रधान जी को आदाब ठोकते हुये राजकुमार ने चमन शर्मा की ओर देखा, जिसे अभी भी समझ नहीं आ रहा था कि ये लोग उससे नाराज़ हैं या नहीं।

शहंशाहजालंधर के हुक्म से आपको इतला दी जाती है कि हमारी रियासत में इंसाफ की मांग करने वाले फरियादी से कोई नज़राना लेना कानूनन जुर्म है। राजकुमार ने फिल्मी अंदाज़ में कहा।

सरासर जुर्म है। प्रधान जी की आवाज़ पृथ्वी राज कपूर की तरह भारी भरकम बनी हुई थी।

शहंशाह का कोई भी राज दरबारी अगर ये जुर्म करता हुआ पकड़ा जाये तो उसे अनारकली की तरह दीवार में जिंदा चिनवा दिया जाता है। कहकर राजकुमार ने एकबार फिर प्रधान जी की ओर देखा।

यानि कि उस ग़ुस्ताख को न्याय सेना से देश निकाला दे दिया जाता है। प्रधान जी ने फिर उसी स्वर में कहा।

इंसाफ मिलने के बाद फरियादी अगर अपनी इच्छा से कोई नज़राना देना चाहे, तो चाहे वो छोटा हो या बड़ा, उसे कुबूल करके शाही खजाने में जमा कर दिया जाता है। राजकुमार ने अपनी बात पूरी की।

राजकुमार भाई के कहने का अर्थ ये है चमन जी, कि न्याय सेना के नियमों के अनुसार जब तक हम आपके केस पर काम कर रहे हैं, संगठन का कोई भी पदाधिकारी आपसे एक पैसा भी नहीं ले सकता। चमन शर्मा को दुविधा में फंसे देखकर राजू ने उसके पास जाकर कहा।

ऐसा न्याय सेना की कार्यप्रणाली को पारदर्शी बनाने के लिये किया गया है। इससे हमारे संगठन में भ्रष्टाचार नहीं फैल पायेगा। हां जब आपका कार्य समाप्त हो जाये और आप अपनी खुशी से कुछ देना चाहें, तो उसे स्वीकार करके संगठन के खाते में डाल दिया जाता है। ये धन फिर आप जैसे लोगों की सहायता करने के काम ही आता है। राजू ने बात पूरी की तो चमन शर्मा को सब साफ साफ समझ आ गया।

कौन है ये गुस्ताख…………जिसने शहंशाह और सलीम की गुफ्तग़ू में दखल अंदाज़ी करने की हिमाकत की है। प्रधान जी क्रोध भरी नजरों से राजू की ओर देख रहे थे।

जान की सलामती हो शहंशाह, बंदा अपनी कम अक्ली पर शर्मिंदा है। राजू ने भी एक्टिंग करते हुये कहा।

आलम पनाह, अब इस फरियादी को इजाज़त दीजिये। चमन शर्मा ने भी अपना पार्ट प्ले करते हुये कहा।

इजाज़त है। प्रधान जी के इतना कहते ही चमन शर्मा प्रधान जी के चरणों को स्पर्श करके और बाकी सब लोगों से विदा लेकर कार्यालय से चला गया।

आलम पनाह, अब आपके शाही महल में चला जाये, मल्लिका जोधा बाई आपका इंतज़ार कर रहीं होंगीं। याद है न आज शाम का अपना वादा। राजकुमार ने प्रधान जी के सिर से अकबर का बुखार उतारने के लिये कहा।

ओ तेरी की पुत्तर जी। मैं तो भूल ही गया था। आज तो मीनू आने वाली है। प्रधान जी एक पल में ही अपने असली रूप में आ गये थे।

आने वाली नहीं है प्रधान जी, आ चुकी है मीनू बहन अपने बच्चों के साथ। मैसेज आया है उसका। हमारी वेट हो रही है। राजकुमार ने चुटकी लेते हुये कहा।

तो जल्दी करो फिर। राजू, जग्गू, कार्यालय को बंद कर देना ध्यान से। कहते कहते प्रधान जी दरवाजे की ओर भागने वाले अंदाज़ में चल रहे थे।

पुत्तर जी याद रखना, रास्ते से गुलाब जामुन लेकर जाने हैं, तेरी भाभी ने कहा था। प्रधान जी ने राजकुमार को बिना देखे ही कहा।

जी प्रधान जी, आपको गुलाब जामुन और मुझे चाकलेट लेकर जाने हैं, सब बच्चों के लिये। कहता कहता राजकुमार भी सबसे विदा लेता हुआ प्रधान जी की पीछे तेजी से निकल गया।

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक अध्याय 18

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लगभग पंद्रह मिनट बाद प्रधान जी और राजकुमार न्याय सेना के कार्यालय में प्रधान जी के निजी केबिन में बैठे हुये थे। प्रधान जी ने राजू को हिदायत दे दी थी कि जब तक वो न कहें, किसी को अंदर न आने दिया जाये। राजू समझ चुका था कि प्रधान जी और राजकुमार अब अंदर बैठ कर आगे की रणनीति बनायेंगे।

तो पुत्तर जी, अब आगे क्या करना है। प्रधान जी ने बात शुरु करते हुये कहा।

करना क्या है प्रधान जी, अब आपने जंग का ऐलान कर दिया है तो जंग ही करनी होगी। राजकुमार ने मुस्कुराते हुये कहा।

वो तो ठीक है पर दुग्गल साहिब का फोन उठाने से पहले तूने मेरे कान में ये क्यों कहा था कि अगर वो मुझे अपने ऑफिस में बुलायें तो कोई बहाना बना कर मना कर दूं। तुझे तो पता है कि दुग्गल साहिब मेरे खास यार हैं। उन्हें यूं मना करके आ जाना मुझे अच्छा नहीं लगा, पुत्तर जी। प्रधान जी ने उत्तर की अपेक्षा से राजकुमार की ओर देखा।

वो इसलिये प्रधान जी, कि मैं समझ गया था कि इस समय दुग्गल साहिब का फोन आने का एक ही मतलब होगा। सौरव कुमार ने हमारे निकलते ही उन्हें सारी बात बतायी होगी और बात को और बिगड़ने से पहले ही संभालने के लिये कहा होगा। राजकुमार के स्वर में कुछ समझाने वाले भाव थे।

पर पुत्तर जी, दुग्गल साहिब तो एस पी सिटी वन हैं जबकि ये मामला तो एस पी सिटी टू के कार्यक्षेत्र में आता है, जो अपने रहल साहिब हैं। प्रधान जी ने सिर खुजाते हुये कहा।

इस समय बात क्षेत्र की नहीं है प्रधान जी, जिस तरह से आपकी सौरव कुमार के साथ तीखी झड़प हुई थी, उसके पश्चात उन्हें कोई ऐसा अफसर चाहिये था, जो आपको शांत कर सकें। राजकुमार कहता जा रहा था।

आप जानते हैं कि इस समय शहर की पुलिस के आला अधिकारियों में आपके संबध सौरव कुमार के साथ इतने अच्छे हैं कि उनसे अधिक अच्छे संबंध आपके केवल एक ही पुलिस अफसर के साथ हैं। राजकुमार ने मुस्कुरा कर अपनी बात को विराम दिया।

और वो अफसर है अपने दुग्गल साहिब। ओ तेरे बच्चे जीन, बिल्कुल ठीक जगह पहुंच गया है तू। प्रधान जी ने एकदम खुश होते हुये कहा।

जाहिर सी बात है, जब इतने अच्छे संबंध होने के बाद भी सौरव कुमार बात को नहीं संभाल सके तो वो केवल उसी व्यक्ति को आपसे बात करने के लिये बोल सकते हैं जिनके आपके साथ संबंध उनसे भी अधिक गहरे हों।

और सौरव कुमार ये बात भली भांति जानते हैं कि आपके और दुग्गल साहिब के संबंध सालों पुराने हैं। तबसे जब वो इसी शहर में डी एस पी के रूप में कार्यरत थे। दुग्गल साहिब इस समय पुलिस के अकेले अफसर हैं जो आपको वरुण या फिर तू कहकर भी बोल सकते हैं। राजकुमार ने अपनी बात पूरी की।

हे हे हे पुत्तर जी, दुग्गल साहिब अपने यार हैं। वो चाहे कुछ भी कहकर बोल सकते हैं मुझे। प्रधान जी के स्वर में एक बार फिर प्रेम उमड़ आया था दुग्गल साहिब के लिये।

इसी प्रेम के कारण आपको उनके पास जाने से रोका था मैने। राजकुमार ने मुस्कुराते हुये कहा।

अब ये क्या नयीं पहेली है। प्रधान जी एक बार फिर सिर खुजा रहे थे।

आपके जाने पर दुग्गल साहिब आपसे केवल एक और एक बात ही कहने वाले थे। राजकुमार ने सस्पैंस बनाते हुये कहा।

वो क्या पुत्तर जी। प्रधान जी के स्वर में उतावलापन था।

यही कि आप इस मामले में दी गयी न्याय सेना के प्रदर्शन की बात को या तो वापिस ले लें, या फिर कम से कम कुछ दिनों के लिये टाल ही दें। क्या इन दोनों में से कोई भी बात संभव है, प्रधान जी। राजकुमार एक बार फिर मुस्कुरा रहा था।

सवाल ही पैदा नहीं होता। वरुण शर्मा ने जब कह दिया कि तीन दिन बाद प्रदर्शन होगा, तो प्रदर्शन होगा। इस प्रदर्शन को अब केवल एक ही सूरत में रोका जा सकता है, अगर पुलिस इस मामले में उचित कार्यवाही करे तो। प्रधान जी ने तैश में आते हुये कहा।

ये बात जितनी अच्छी तरह से आप जानते हैं, उतनी अच्छी तरह से मैं भी जानता हूं। इसीलिये आपको जाने से रोक दिया। इसमें आपकी दोस्ती का नुकसान हो सकता था। राजकुमार फिर जारी हो गया था।

दुग्गल साहिब के पूरा मनाने के बाद भी अगर आप उन्हे दोनों में से एक बात पर भी अपनी सहमति नहीं देते तो उन्हें ठेस पहुंच सकती थी। फिर सारे ऑफिस को तमाशे की जानकारी भी हो चुकी थी, जिसके कारण आपका उनके कार्यालय में जाकर भी उनकी बात माने बिना आ जाना उनकी निजी प्रतिष्ठा के लिये भी बुरा साबित हो सकता था। राजकुमार ने अपनी बात पूरी कर दी।

इसीलिये तो मैं तेरी हर बात पहले मान लेता हूं और सवाल बाद में पूछता हूं, मेरे युवराज। मुझसे कहीं अधिक मेरी और मेरी प्रतिष्ठा की चिंता रहती है तुझे। कहते हुये प्रधान जी ने राजकुमार को अपने गले से लगा लिया।

दोस्ती की है प्रधान जी, निभानी तो पड़ेगी ही। राजकुमार की इस फिल्मी बात पर उसके साथ साथ प्रधान जी भी हंस पड़े थे।

तो अब आगे क्या करना है। प्रधान जी ने राजकुमार से हटकर बैठते हुये अपना प्रश्न दोहरा दिया था।

करना वही है प्रधान जी, जो ऐसी किसी स्थिति के पैदा होने के केस में हमने सुबह ही तय कर लिया था। राजकुमार की मुस्कुराहट गहरी हो गयी थी।

तो फिर देर किस बात की मेरे युवराज, हो जा शुरू। प्रधान जी के कहते कहते ही राजकुमार ने अपने मोबाइल से कोई नंबर डायल करना शुरु कर दिया था और प्रधान जी भी केबिन के एक कोने में किसी से बात करने लग गये थे। लगभग पंद्रह मिनट तक दोनों अपने अपने मोबाइलस पर अलग अलग लोगों से बात करते रहे और फिर एक साथ आ कर बैठ गये।

लो प्रधान जी, मैने अपने हिस्से में आये सारे न्यूज़ रिपोर्टर्स को बोल दिया है कि न्याय सेना एक बड़े मुद्दे को लेकर आज शाम चार बजे अपने कार्यालय में प्रैस कांफ्रैंस करेगी। सबने आने के लिये हां कर दी है। राजकुमार ने अपनी बात कहते हुये प्रधान जी की ओर देखा।

और मेरी बात भी मेरे हिस्से में आये हुये पत्रकारों से हो गयी है। सब पहुंच जायेंगे। अब प्रैस नोट बना लें, शाम के लिये। प्रधान जी राजकुमार की ओर देखते हुये कहा।

चलिये अब ये काम ही निपटा लेते हैं। कहते हुये राजकुमार ने न्याय सेना का आधिकारिक राईटिंग पैड उठाया और उस पर कुछ लिखने लगा। प्रधान जी साथ साथ ही उसे पढ़ते जा रहे थे और बीच बीच में राजकुमार को कुछ समझाते जा रहे थे। करीब बीस मिनट के बाद राजकुमार ने प्रैस नोट पूरा करके एक बार प्रधान जी को सुनाया, ताकि अगर किसी संशोधन की जरुरत हो, तो कर लिया जाये।

एकदम एटम बम बना है, पुत्तर जी। पत्रकारों की तो बांछे खिल जायेंगीं आज इसे पढ़कर। प्रधान जी ने प्रफुल्लित स्वर में कहा।

हां, रोज रोज उन्हें बड़े लोगों से ये पूछने को थोड़े मिलता है कि किसी ने आपको कटघरे में खड़ा किया है सबूतों के साथ। आपकी क्या प्रतिक्रिया है इसपर। राजकुमार ने प्रधान जी के मन के भावों को जैसे शब्द दे दिये हों।

ठीक कहा पुत्तर जी, पत्रकार पूरा मज़ा लेंगे उनके साथ, और कुछ लोग तो अपना बकाया हिसाब भी चुकता करेंगे, इनमें से किसी न किसी के साथ। प्रधान जी की इस बात पर दोनों ही ठहाका लगा कर हंस दिये थे।

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक अध्याय 17

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दूसरे दिन सुबह ठीक दस बजे राजकुमार प्रधान जी के घर पहुंचा तो प्रधान जी नाश्ता कर रहे थे। बच्चे स्कूल जा चुके थे और उनकी पत्नी रानी भी उनके पास ही बैठी हुयी थी।

चरण स्पर्श करता हूं भाभी जी। राजकुमार ने रानी के पैरों को हाथ लगाते हुये कहा।

जीते रहो राजकुमार। नाश्ता लगाऊं। रानी के स्वर में ममता सपष्ट झलक रही थी।

जी आपको तो पता ही है, मैं नाश्ता करके ही आता हूं। राजकुमार ने कहा।

हमेशा नाश्ता करके ही आते हो। कभी यहां भी कर लिया करो। रानी ने प्यार भरे स्वर में शिकायत की।

ये क्या बात कह दी आपने। चलिये आज रात का खाना यहीं खा कर जाऊंगा।

फिर तो बहुत अच्छा है क्योंकि शाम को मीना भी आ रही है। रानी ने खुश होते हुये कहा। मीना प्रधान जी की सबसे बड़ी बेटी का नाम था जो राजकुमार से एक वर्ष छोटी थी और जिसकी शादी हो चुकी थी।

अब तो ये कंजर जरूर खाना खायेगा यहां। देखो तो मीना का नाम सुनकर ही इसके चेहरे पर कैसे रौनक आ गयी है। प्रधान जी ने नाश्ता करते करते चुटकी ली। वो जानते थे कि मीना और राजकुमार के बीच सगे भाई बहन की तरह अथाह प्रेम था और एक उम्र के होने के कारण दोनों में बनती भी खूब थी।

ये क्या आप मेरे बच्चे को कंजर कहते रहते हो, समय समय पर। कोई अच्छी बात नहीं आती आपको। आपकी जबान दिन प्रतिदिन गंदी ही होती जा रही है। रानी की तोप का मुंह अपनी तरफ घूमते देखकर प्रधान जी ने चुपचाप सिर नीचे करके एक बार फिर नाश्ता करना शुरु कर दिया।

कहने दीजिये, कहने दीजिये। इनके शब्दों की गंदगी को नहीं बल्कि उनके पीछे छिपे प्यार को देखिये। राजकुमार ने मुस्कुराते हुये कहा।

आखिर मैं किसी की भी तरफदारी कर लूं, तुम दोनों भाई रहोगे एक दूसरे के सगे ही। हंसती हुई रानी रसोई की ओर चल दी।

तो आज का क्या प्रोग्राम है, पुत्तर जी। प्रधान जी ने नाश्ते का आनंद लेते हुये कहा।

आज नाश्ता जरा तगड़ा कर लीजिये प्रधान जी, और गला भी अच्छे से तर कर लीजिये। आज किसी से जम कर झगड़ा करना है आपको। चटखारा लेते हुये राजकुमार ने कहा।

ओये तू कहे तो सारे जमाने से झगड़ा कर लूं, पुत्तर। पर ये तो बता आज किससे झगड़ा होने वाला है हमारा। आलू के परांठे का आनंद लेते हुये कहा प्रधान जी ने।

वो सब गाड़ी में बताऊंगा। चमन शर्मा ठीक साढ़े दस बजे एस एस पी कार्यालय पहुंच जायेगा। दस बजकर दस मिनट हो चुके हैं। जल्दी कीजिये अब।

जैसी युवराज की आज्ञा। कहते हुये प्रधान जी बचे हुये आलू के परांठे को भी जल्दी से चट करने में लग गये।

दस बजकर पैंतीस मिनट पर जब उनकी गाड़ी एस एस पी कार्यालय पहुंची तो चमन शर्मा वहीं खड़ा उनकी वेट कर रहा था। आज उसके साथ सुशील कुमार नहीं था। शायद उसे ये पता लग चुका था कि प्रधान जी अब इस केस को छोड़ने वाले नहीं है। इसीलिये उसने सुशील कुमार को तंग नहीं किया होगा।

कैसे हो चमन जी, प्रधान जी ने पास आते हुये पूछा। उनके पीछे पीछे राजकुमार के साथ साथ जग्गू और राजू भी थे। इन दोनों को उन्होने रास्ते में न्याय सेना के कार्यालय से साथ ले लिया था।

आपका आशिर्वाद है, प्रधान जी। चमन शर्मा ने प्रधान जी के चरण स्पर्श करते हुये कहा।

जीते रहो। कहते हुये प्रधान जी तेजी से एस एस पी कार्यालय के दरवाजे की ओर बढ़ गये।

राजकुमार के कार्ड देते ही संतरी प्रधान जी को अभिवादन करके अंदर चला गया और जल्दी ही वापिस आकर बोला। प्रधान जी, साहिब ने आपको अंदर बुलाया है।

आओ पुत्तर जी, चलते हैं। प्रधान जी ने अर्थ भरी दृष्टि से राजकुमार की ओर देखते हुये कहा तो दोनों की आंखों मे एक विशेष प्रकार की चमक थी, जिसे चमन शर्मा भांप नही पाया था।

हमारे एस एस पी साहिब की जय हो। प्रधान जी ने सौरव कुमार के कार्यालय में घुसते ही नारा छोड़ दिया।

कार्यालय के दैनिक कार्यों में व्यस्त सौरव कुमार ने प्रधान जी की आवाज़ सुनकर उनके और राजकुमार के अभिवादन का उत्तर देते हुये उन्हें बैठने को कहा तो सब लोग उनके सामने लगी कुर्सियों पर बैठ गये। अपनी शिकायतों की सुनवायी के लिये आए हुये कुछ लोग और उनके साथ शहर के कुछ नेता और समाज सेवक भी कार्यालय में बैठे थे, जिनके अभिवादन का जवाब प्रधान जी ने अपने ही अंदाज़ में दिया।

जी, प्रधान जी। सौरव कुमार ने अपने हाथ में पकड़ी एक शिकायत पर कार्यवाही करके उसे निपटाते हुये कहा।

आप तो जानी जान हैं सर, बंदे के दिल का हाल जानते हैं। प्रधान जी ने मज़ा लिया।

मैने थाना प्रभारी से सारी रिपोर्ट मंगवा ली है प्रधान जी। मुस्कुराते हुये सौरव कुमार ने कहा।

……………………बिना कुछ कहे प्रधान जी का और राजकुमार का पूरा ध्यान सौरव कुमार पर ही केंद्रित था।

किंतु इस मामले में एक नयी पेचीदगी आ गयी है। शब्दों को बहुत संभालकर इस्तेमाल किया सौरव कुमार ने।

अब क्या पेचीदगी आ गयी, सर। प्रधान जी के स्वर में कुछ तल्खी आ गयी थी।

हरपाल सिंह ने मेरे पास एक अर्ज़ी दी है कि इस मामले में वो निर्दोष है और थाने की जांच पर उसे विश्वास नहीं है। इसलिये इस मामले की जांच किसी उच्च अधिकारी से करवायी जाये। सौरव कुमार का एक एक शब्द सधा हुआ था और उनका पूरा ध्यान प्रधान जी के चेहरे पर ही केंद्रित था, जैसे उनके चेहरे का एक एक भाव पड़ रहे हों।

तो…………………………… बात को अधूरा ही छोड़ दिया प्रधान जी ने। उनकी मुद्रा कुछ और गंभीर हो गयी थी।

जैसा कि आप जानते ही हैं कि इस तरह की जांच किसी उच्च अधिकारी से करवाये जाने की मांग करना हर नागरिक का अधिकार है, हम इससे इंकार नहीं कर सकते। सौरव कुमार के शब्द तर्क से भरपूर थे।

बिल्कुल ठीक कह रहें हैं आप। कानून सबके लिये बराबर है। हमें कोई एतराज़ नहीं है इस जांच में। आप अवश्य करवाईये ये जांच। प्रधान जी की मुद्रा में गंभीरता अभी भी बनी हुयी थी।

इसीलिये मैने ये जांच एस पी सिद्दिकी साहिब को देने का फैसला किया है। सौरव कुमार के चेहरे पर प्रधान जी का जवाब सुनने के बाद संतोष के भाव थे।

अरे वाह सर, एस पी सिद्दिकी तो पुलिस के बहुत अच्छे अफसरों में से एक हैं। वे तो अवश्य ही दूध का दूध और पानी का पानी कर देंगे। प्रधान जी के चेहरे पर तनाव कम होता जा रहा था और उसके स्थान पर खुशी आती जा रही थी।

उनके साथ बैठा राजकुमार अभी भी सौरव कुमार के तरकश से निकलने वाले किसी ऐसे तीर की प्रतीक्षा कर रहा था, जो हरपाल सिंह के पक्ष में चलाया गया हो। इतने बड़े मामले में सब कुछ इतनी आसानी से उनके पक्ष में हो जाना उसकी समझ में नहीं आ रहा था।

तो फिर तय रहा। सिद्दिकी साहिब इस केस की जांच करेंगे और उनकी जांच रिपोर्ट के आधार पर ही पुलिस इस मामले में बनती कार्यवाही करेगी। सौरव कुमार ने जैसे जल्दी से बात खत्म करने वाले अंदाज़ में कहा।

बिल्कुल ठीक है………………………… प्रधान जी के शब्द अधूरे ही रह गये।

और कितने दिनों में हो जायेगी पूरी ये जांच, सर। राजकुमार जैसे कुछ समझ गया था।

राजकुमार की इस आवाज़ ने सौरव कुमार के चेहरे पर चिंता की लकीरें पैदा कर दीं और प्रधान जी उसकी बात का अर्थ समझते ही एक बार फिर से सतर्क हो गये।

हां सर, कितने दिनों में पूरी हो जायेगी ये जांच। प्रधान जी की स्वर में उतावलापन था।

अब ये कैसे बताया जा सकता है प्रधान जी। ये तो केवल सिद्दिकी साहिब ही बता सकते हैं। सौरव कुमार के स्वर में बेचैनी का हल्का सा मिश्रण आ गया था, जैसी बनी बनाई बात बिगड़ने की दिशा की ओर जा रही हो।

ये तो कोई बात नहीं हुयी सर। आपको इस जांच के लिये समय तो निर्धारित करना ही होगा। अगर जांच करवाना हरपाल सिंह का अधिकार है तो इस जांच के लिये समय सीमा तय करने की मांग करना हमारा अधिकार है। अगर आप उसे उसका अधिकार देना चाहते हैं, तो हमें हमारा अधिकार भी दीजिये फिर। प्रधान जी की बात में ठोस तर्क था।

तो क्या चाहते हैं आप, प्रधान जी। सौरव कुमार के चेहरे की लकीरें और गहरी हो गयीं थी, जैसे प्रधान जी के इस तर्क का कोई तोड़ नहीं था उनके पास।

अधिक से अधिक तीन दिन दिये जायें इस जांच के लिये। केवल मौके की जांच करनी है और कुछ लोगों से पूछताछ। इसके लिये तीन दिन बहुत होंगे। पहले ही इस मामले में बहुत देर हो चुकी है, सर। प्रधान जी के स्वर में शिकायत थी।

तीन दिन तो बहुत कम हैं प्रधान जी। मैं ऐसा कोई वायदा तो नहीं कर सकता पर इस जांच को जल्द से जल्द पूरी करवाने की कोशिश करूंगा। सौरव कुमार ने एक बार फिर बड़े सधे हुये स्वर में कहा।

नहीं सर, बिल्कुल नहीं। तीन दिन से अधिक एक दिन भी मंजूर नहीं हमें इस जांच के लिये। इससे अधिक समय इस जांच को देने का तो कोई तुक ही नहीं बनता। प्रधान जी के स्वर में एक निर्णायक भाव था।

पुलिस आपके तुक से नहीं चलती प्रधान जी। और भी सैंकड़ों काम रहते हैं हमारे पास। केवल एक ये जांच ही नहीं है। इस लिये मैं इस जांच के लिये समय सीमा निर्धारित नहीं कर सकता। पहली बार सौरव कुमार के स्वर में तल्खी आयी थी।

जी हां सर, पुलिस मेरे तुक से नहीं चलती। पुलिस तो पीड़ितों की शिकायतों को रद्दी की टोकरी में डालकर प्रभावशाली लोगों की गुलामी करने से चलती है। तभी तो आपकी पुलिस ने आज इतने दिनों में चमन शर्मा के गोदाम का दौरा तक नहीं किया, इतनी शिकायतें देने के बाद भी। प्रधान जी ने सीधा हमला बोल दिया था तैश में आकर।

मेरी पुलिस से क्या मतलब है आपका, प्रधान जी। पुलिस कोई मेरे घर की नहीं है। इसमें कई तरह के अफसर काम करते हैं और वो सारे मेरे नौकर नहीं हैं। सरकार तन्खवाह देती है उन्हें। इसलिये आप अपने शब्दों का चुनाव ठीक से करें। मेरी पुलिस कहने का कोई हक नहीं है आपको। सौरव कुमार के शब्दों में भी अब कड़वाहट आ गयी थी।

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक होने के नाते इस शहर की पुलिस के किसी भी कर्मचारी द्वारा किये गये किसी भी अच्छे या बुरे काम का नैतिक दायित्व तो आप पर ही आता है, सर। इसलिये मैं तो इसे आपकी पुलिस ही कहूंगा। प्रधान जी ने एक और हमला बोल दिया था।

तो आप कहना क्या चाहते हैं, प्रधान जी। क्या मैने करवाया है ये सब कुछ। क्या आप मेरे ऊपर भ्रष्ट होने का इल्ज़ाम लगा रहे हैं। सौरव कुमार अब तैश में आ चुके थे और माहौल में गर्मी बढ़ती ही जा रही थी।

चमन शर्मा के साथ साथ कार्यालय में बैठे बाकी लोग भी सांस रोककर इस वार्तालाप को सुन रहे थे जबकि राजकुमार के चेहरे पर कोई विशेष भाव नहीं था। जैसे उसके लिये इसमें कुछ भी नया न हो, और ऐसी नोंक झोंक देखने की आदत हो उसे।

आप पर इल्ज़ाम लगाने का कोई इरादा नहीं मेरा, एस एस पी साहिब। मैं तो केवल इतना कहना चाहता हूं कि हम इस जांच को तीन दिन से अधिक समय देना गंवारा नहीं कर सकते। देर से मिला हुआ इंसाफ न मिलने के बराबर ही होता है। प्रधान जी ने एक और तर्क से हमला किया सौरव कुमार पर।

मैं ऐसा कोई वायदा नहीं कर सकता प्रधान जी। सौरव कुमार के सब्र का बांध अब टूट रहा था।

पर मैं कर सकता हूं, एस एस पी साहिब। तीन दिन के अंदर अगर ये जांच पूरी नहीं हुयी तो न्याय सेना आपके कार्यलय के बाहर इतना भीषण प्रदर्शन करेगी कि सारा शहर देखेगा। न कोई कार्यलय के अंदर आ पायेगा और न कोई बाहर जा पायेगा। अपना सारा धैर्य एक ओर फेंक कर प्रधान जी ने अपने सबसे बड़ा हथियार चला दिया था। उनके चेहरे पर एक बड़ी लड़ाई लड़ने के लक्ष्ण स्पष्ट झलक रहे थे।

कमरे में बैठे चमन शर्मा सहित दूसरे सामान्य लोग अपनी अपनी कुर्सियों से इस तरह चिपक गये थे जैसे उनसे उठते ही कोई भूचाल आ जायेगा। और भूचाल आ भी तो गया था कमरे में, प्रधान जी के इस बम विस्फोट से।

ऐसे कैसे रास्ता रोक देंगे आप हमारे कार्यालय का। शहर में कानून व्यवस्था नाम की भी कोई चीज़ है। अगर आप कानून व्यवस्था को भंग करेंगे, तो मजबूरन हमें आप पर लाठीचार्ज करना होगा। सौरव कुमार के शब्दों की कठोरता बता रही थी कि वो अपने हर एक शब्द को पूरा करेंगे।

हाहाहा…… प्रधान जी का एक ज़ोरदार ठहाका कमरे में गूंज गया। किसी कि समझ में कुछ आया हो न हो, पर राजकुमार समझ चुका था कि प्रधान जी के इस ठहाके का कारण क्या है।

लाठीचार्ज……………………लाठीचार्ज से कुछ नहीं होगा एस एस पी साहिब। कुछ बड़ा सोचिये। गोली चलाने का हुक्म दीजियेगा अपनी पुलिस को। हम क्रांतिकारी हैं, क्रांतिकारी। गोली से कम में काम नहीं चलेगा हमारा। प्रधान जी के स्वर का उन्माद बढ़ता ही जा रहा था।

इससे पहले सौरव कुमार कुछ बोलें, कमरे मे एक बार फिर मेघ गर्जा।

तो फिर तय रहा एस एस पी साहिब। तीन दिन के बाद हम बारात लेकर आयेंगे आपके दरवाजे पर। आपके पास जितने भी पटाखे हों, फोड़ लीजियेगा। वरुण शर्मा ने अगर अपना एक भी कदम पीछे हटाया तो मेरे मुंह पर थूक देना। कहते हुये प्रधान जी ने राजकुमार का हाथ पकड़ा और इससे पहले सौरव कुमार कोई भी प्रतिक्रिया दे पाते, प्रधान जी का उन्मादी स्वर एक बार फिर कमरे में गूंज उठा।

चलो पुत्तर जी, अब आर पार की लड़ाई करने का समय आ गया है………… सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ुकातिल में है। उन्माद में भरे किसी दीवाने की तरह कहा प्रधान जी ने और राजकुमार का हाथ पकड़े तेजी से सौरव कुमार के कार्यलय से बाहर निकल गये। उनके पीछे पीछे चमन शर्मा भी लगभग भागता हुआ हो लिया, जैसे डरता हो कि कमरे में रहने से कहीं इसी समय उस पर लाठीचार्ज न हो जाये।

कमरे में श्मशान की तरह सन्नाटा छा चुका था। कार्यालय में बैठे किसी भी व्यक्ति को कोई बात नहीं सूझ रही थी और सौरव कुमार के चेहरे पर चिंता अब सावन के काले बादलों की तरह डेरा जमा चुकी थी।

दस सेंकेंड से भी कम समय कुछ सोचने के बाद उन्होंने कोई निर्णय लिया, सामने बैठे लोगों को पांच मिनट बाहर जाने के लिये कहा और उनके जाते ही फोन का रिसीवर उठा कर कोई नंबर डायल कर दिया।

एस एस पी सौरव कुमार के कार्यालय से निकलते ही प्रधान जी और राजकुमार तेजी से बाहर की ओर चल दिये। चमन शर्मा भी लगभग दौड़ता हुआ उनके पीछे चल रहा था। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे किसी ने उसका बहुत बड़ा नुकसान कर दिया हो।

कार्यालय के बाहर खड़ा दरबान और कुछ अन्य कर्मचारी जल्दी से एक ओर होकर रास्ता छोड़ रहे थे। शायद अंदर के हंगामे की कुछ आवाज़ें बाहर तक भी आ गयीं थीं।

उनमे से कुछ कर्मचारियों के अभिवादन का संक्षेप में जवाब देते हुये प्रधान जी और राजकुमार तेजी से उस जगह पहुंचे जहां राजू और जग्गू उनका इंतज़ार कर रहे थे।

जंग का नगाड़ा बज गया है मेरे शेरो, तैयारी कर लो पूरी। इस बार सारे शहर को ये दिखाना है कि न्याय सेना के पास कितना बल है। तुम्हारे प्रधान पर लाठीचार्ज करने की धमकी दी है, एस एस पी साहिब ने। प्रधान जी का स्वर जोश में भरा हुआ था।

आपके शरीर पर लगने वाली हर लाठी इस शहर की पुलिस के ताबूत में आखिरी कील होगी, प्रधान जी। राजकुमार ने भारतीय इतिहास की ये प्रसिद्ध पंक्तियां जब उंचे स्वर में और नाटकीय अंदाज़ में कहीं तो ऐसी विकट स्थिति में भी प्रधान जी मुस्कुराये बिना नहीं रह सके।

ओये कंजर, तुझे इस मौके पर भी मज़ाक सूझ रहा है। प्रधान जी ने राजकुमार को प्रेम भरा उलाहना देते हुये कहा।

ऐसा हमारे साथ कोई पहली बार तो नहीं हो रहा, प्रधान जी। इससे पहले भी समय समय पर पुलिस और प्रशासन हमें प्रदर्शन से रोकने के लिये ऐसी धमकियां देता रहा है। ये तो अपने काम का एक हिस्सा है, प्रधान जी। इसलिये शांत हो जाईये। राजकुमार ने प्रधान जी के कंधे पर अपने हाथ से दबाव बनाते हुये कहा।

हमने अंदर वही किया जो हमें करना चाहिये था और एस एस पी साहिब ने वही किया जो शहर का पुलिस चीफ होने के नाते उन्हें करना चाहिये था। इट्स आल बिज़नेस प्रधान जी, नथिंग पर्सनल। सो रिलैक्स। राजकुमार ने प्रधान जी के कंधे पर दबाव बनाये रखते हुये कहा।

ये लो अब इसकी अंग्रेजी शुरु हो गयी। अब ये अंग्रेजी में ये भी कहेगा कि ये दुनिया एक रंगमंच है और हम सब कठपुतलियां हैं। प्रधान जी का क्रोध पहले से कुछ कम हो गया था और उनके स्वर में अपना स्वभाविक मज़ाक झलक आया था।

ऐसे नहीं प्रधान जी। आल द वर्ल्ड इज़ अ स्टेज, ऐंड आल द मैन ऐंड विमेन मियरली प्लेयरस। ऐसा कहा है शेक्सपीयर ने। राजकुमार ने प्रधान जी को चिढ़ाने वाले अंदाज़ में कहा। उसे पता था कि प्रधान जी को ज्यादा इंगलिश झाड़ने वाले लोग पसंद नहीं आते थे।

ओये चुप कर शेक्सपीयर दे पुत्तर। अब तू मेरे दिमाग की बैंड मत बजा अपनी अंग्रेजी से। पहले से ही बहुत खराब है, मेरा दिमाग। प्रधान जी का गुस्सा अब लगभग खत्म हो चुका था।

पर आपका नाम तो वरुण शर्मा है प्रधान जी, और मैं तो आप ही का पुत्तर हूं। ये आपने अपना नाम शेक्सपीयर कब से रख लिया। कहीं कोई गोरी भाभी भी तो नहीं रख ली। रानी भाभी को बताऊं अभी। शरारती अंदाज़ में कहते हुये राजकुमार ने अपना मोबाइल फोन निकाल लिया और कोई नंबर ढूंढने की एक्टिंग करने लगा।

ओये कंजर मरवायेगा क्या, इधर ला फोन। प्रधान जी ने कहते हुये तेजी से राजकुमार के हाथों से फोन छीन लिया। राजकुमार ने उनकी दुखती रग पर हाथ जो रख दिया था।

क्यों प्रधान जी, भाभी से बात करने से डर लगता है। राजकुमार ने फिर प्रधान जी को छेड़ते हुये कहा।

बातों में तुझसे कोई नहीं जीत सकता, शैतान। सबकी कमज़ोर नस पहचानता है तू और एकदम मौके पर दबाता है। ओये, पुलिस की लाठियां तो मैं झेल लूंगा, पर तेरी भाभी का गुस्सा…………हे हे हे। कहते हुये प्रधान जी हंसने लगे थे। उनका गुस्सा अब कहीं दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रहा था।

जग्गू और राजू जहां प्रधान जी और राजकुमार की इस नोंक झोंक का आनंद ले रहे थे, वहीं चमन शर्मा उन्हें ऐसे देख रहा था जैसे किसी और दुनिया से आये हों।

पांच मिनट पहले जो आदमी मरने मारने पर तुला हुआ था, अब ऐसे मज़ा कर रहा था जैसे कोई बात ही न हो। चमन शर्मा समझ नहीं पा रहा था कि उसने अपना केस न्याय सेना को देकर सही फैसला किया है या गलत।

अब क्या होगा, प्रधान जी। डरते डरते चमन शर्मा ने पूछा।

वही होगा जो मंजूर-ए-ख़ुदा होगा। प्रधान जी अब फिर से अपने स्वभाविक रंग में आ चुके थे।

आप चिंता मत कीजिये चमन जी, न्याय सेना के लिये ये कोई नयी बात नहीं है। इस तरह की चीज़ें तो हमारे काम में चलती ही रहती हैं। आपका काम अवश्य होगा, आप निश्चिंत रहें। लुटे पिटे से खड़े चमन शर्मा के कानों में जब राजकुमार के ये आश्वासन से भरपूर शब्द पड़े तो उसने चैन की सांस ली।

पर कैसे होगा, राजकुमार जी। एस एस पी साहिब तो बहुत उखड़े हुये थे आज। चमन शर्मा ने फिर शंका भरे स्वर में कहा।

इस कैसे का जवाब हम आपको अभी नहीं दे सकते, पर जल्दी ही मिल जायेगा ये जवाब आपको। फिलहाल आप अपने काम पर जाइये और ठीक साढ़े तीन बजे हमारे कार्यालय पहुंचिये। बाकी बातें वहीं पर होंगीं। इतना कहकर राजकुमार ने चमन शर्मा को विदा दी।

आईये प्रधान जी, गाड़ी निकालते हैं। राजकुमार के इतना कहते ही वे चारों पार्किंग में खड़ी प्रधान जी की गाड़ी की ओर चल दिये।

ड्राइविंग सीट पर बैठ कर अभी राजू ने गाड़ी स्टार्ट की ही थी कि प्रधान जी के मोबाइल की घंटी बजी। प्रधान जी ने फोन की स्क्रीन देखते ही राजकुमार को एक ओर आने का इशारा किया और बोले। दुग्गल साहिब का फोन है।

राजकुमार ने तेजी से प्रधान जी के कानों में कुछ कहा और फिर प्रधान जी के फोन रिसीव करते ही उसने अपना कान मोबाइल के साथ चिपका दिया।

ओये तूने मेरे साहिब को धमकी देने की हिम्मत कैसे की। दूसरी ओर से एकदम गुस्से से भरा स्वर आया।

अब कर दी तो कर दी, फांसी पर चढाओगे क्या। प्रधान जी ने चिढ़ाने वाले स्वर में कहा।

ज्यादा बातें मत कर और जल्दी से आजा मेरे ऑफिस, तुझसे कुछ जरूरी बात करनी है। दुग्गल साहिब के स्वर में प्यार से भरा आदेश था।

जाओ नहीं आता फिर, क्या कर लोगे। प्रधान जी ने नाटकीय अंदाज़ में कहा।

मज़ाक का समय नहीं ये वरुण, तू आजा मेरे पास जल्दी। तेरी पसंद के बिस्किट मंगवाये हैं मैने चाय के साथ। दूसरी ओर से मनाने वाले स्वर में कहा गया।

और मेरे पसंद की लाठियां भी मंगवायीं हैं क्या। प्रधान जी के स्वर में एकदम तीखा व्यंग्य था।

बेवकूफों जैसी बातें मत कर और सीधा हो के आजा मेरे पास अभी। दुग्गल साहिब के स्वर में एक बार फिर आदेश था। उनके अंदाज़ से स्पष्ट जाहिर था कि लाठी वाली बात पता चल गयी है उनको।

अभी तो मैं किसी बहुत जरूरी काम से जा रहा हूं, दुग्गल साहिब। कल आकर आपसे मिलता हूं। प्रधान जी ने प्रेम भरे स्वर में कहा।

इतना बड़ा प्रधान कब से बन गया तू जो मेरे लिये दो मिनट भी नहीं निकाल सकता। दुग्गल साहिब के स्वर में डांट के साथ साथ शिकायत भी शामिल थी।

आपके एक इशारे पर तो मेरी जान भी हाज़िर है, मेरे दुग्गल साहिब। पर अभी मुझे कहीं जाना है जल्दी, मैं आपसे कल आकर मिलता हूं। अब आज्ञा दो मेरे प्रभु। कहते हुये प्रधान जी ने दुग्गल साहिब की किसी प्रतिक्रिया का जवाब देने से पहले ही फोन काट दिया और राजकुमार की ओर मुड़ कर कहा।

जल्दी यहां से निकलो, पुत्तर जी। इससे पहले कि दुग्गल साहिब का कोई अंगरक्षक हमें खुद लेने आ जाये। प्रधान जी के इतना कहते ही सब लोग फौरन गाड़ी में बैठे और चंद ही पलों में गाड़ी एस एस पी कार्यालय से निकल कर न्याय सेना के कार्यालय की ओर भागी जा रही थी। गाड़ी में बैठा राजकुमार दुग्गल साहिब के बारे में ही सोच रहा था।

रमन दुग्गल था पूरा नाम उनका, एस पी सिटी वन। शरीर से थोड़े भारी और शानदार व्यक्तित्व के स्वामी। गुरु नानक के भक्त थे और ओशो की फिलासफी सुनने का शौक रखते थे। सबको साथ लेकर चलने की सोच रखते थे जिसके कारण शहर के अधिकतर महत्वपूर्ण लोगों के साथ उनके संबंध बहुत अच्छे थे।

राजनेताओं से लेकर गुंडे तक भी इनका सम्मान करते थे और इनकी किसी बात को टाल देना किसी के लिये भी आसान नहीं था। बातचीत के माध्यम से हर मसले को सुलझा लेने की इतनी जबरदस्त प्रतिभा थी इनके पास कि सारे शहर में ये समझौता एक्सप्रैस के नाम से जाने जाते थे।

जिस मामले को बड़े से बड़े राजनेता भी नहीं सुलझा पाते थे, उसे चुटकियों में हल कर देते थे रमन दुग्गल। इसी कारण सौरव कुमार की पुलिस टीम का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा थे वो, और सौरव कुमार के बहुत विश्वासपात्र भी।

डी एस पी के रुप में भी इन्होंने जालंधर में कई वर्षों तक कार्य किया था और उसी समय से प्रधान जी के साथ इनकी दोस्ती थी। शहर की पुलिस में रमन दुग्गल अकेले ऐसे अधिकारी थे जो प्रधान जी को सीधे उनका नाम लेकर बुलाते थे और उनके साथ किसी भी तरह का मज़ाक कर लेते थे।

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक अध्याय 16

Sankat Mochak
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पापा आ गये, पापा आ गये। प्रधान जी के घर के भीतर घुसते ही उनका सात साल का बेटा पुनर्वसु दौड़ता हुआ उनकी ओर आया और उनकी टांगों से लिपट गया।

ओ मेरा पुन्नु पुत्तर, ओ मेरा शेर। कहते हुये प्रधान जी ने जब उसे गोद में उठा कर गले से लगाया तो मानों उनकी सारी थकान गायब हो चुकी थी। प्रधान जी पुनर्वसु को प्यार से पुन्नु ही कहते थे।

नमस्ते भईया, नमस्ते भईया कहते हुये प्रधान जी की बेटियां सोनिका और निशा तेज़ चलती हुईं उनकी ओर आयीं।

नमस्ते सोना, नमस्ते निशा। कहते हुये राजकुमार ने प्रधान जी पीछे पीछे ही घर के अंदर कदम रखा।

इतनी देर क्यों कर दी, इतनी देर क्यों कर दी। बालक पुन्नु प्रधान जी की छाती पर अपने छोटे छोटे हाथों से घूंसे बरसाते हुये कह रहा था।

ओ बस कर मेरे पुन्नु, मेरे शेरु। पापा आज कहीं जरूरी काम में फंस गये थे, मेरी डार्लिंग। प्रधान जी ने जैसे रूठे हुये पुन्नु को मनाने की कोशिश की।

इनको तो रोज ही कोई जरूरी काम पड़ जाता है बेटा। सारी दुनिया के काम संवारते रहते हैं, बस एक अपने घर का ही पता नहीं। प्रधान जी के कानों में उनकी ओर आती हुई उनकी पत्नी रमा रानी की आवाज़ पड़ी तो वो समझ गये कि आज उनकी खैर नहीं।

क्यों गुस्सा करती है मेरी रानी, तेरे लिये तो मेरी जिंद जान हाज़िर है। बता तेरा कौन सा काम रुक गया, अभी कर देता हूं। प्रधान जी के स्वर में चापलूसी स्पष्ट झलक रही थी।

तीन दिन से बोल रही हूं कि गैस का सिलेंडर खत्म होने वाला है, पर आपके कानों पर तो जूं ही नहीं रेंगती। आज शाम एक दम से बंद हो गया। साथ वाली उषा जी से लेकर लगाया है अब। वापिस कब करना है, उन्हें भी जरूरत पड़ सकती है। शिकायत भरे स्वर में रानी ने कहा।

उस कंजर काले को बोला भी था मैने, लगता है आज इसकी शामत आयी है। कहते कहते प्रधान जी ने अपने मोबाइल से एक नंबर मिला दिया।

ओये पैरी पौना दे लगदे, तुझे मैने घर में एक भरा हुआ सिलेंडर देने को कहा था, देकर क्यों नहीं गया अभी तक। शहर के सबसे बड़े प्रधान की नाक तूने एक सिलेंडर के कारण कटवा दी खोते। अब जल्दी कर और सिलेंडर लेकर आजा। पांच मिनट से पहले सिलेंडर घर में होना चाहिये, नहीं तो तेरी खैर नहीं। प्रधान जी ने दूसरी ओर से बोलने वाले की कोई बात सुने बिना ही फोन काट दिया और फिर अपनी पत्नी की ओर देखकर मुस्कुराने लगे।

लो मेरी रानी, अभी आ जायेगा सिलेंडर। अब तो गुस्सा थूक दे। रानी को मनाने वाले स्वर में कहा प्रधान जी ने।

राजकुमार और सारे बच्चे उनकी इस नोंक झोंक का आनंद ले रहे थे। राजकुमार जानता था कि प्रधान जी ने अब से पहले किसी को सिलेंडर के लिये कहा ही नहीं था, और काला तो केवल बलि का बकरा बना था।

मेरे गुस्से से यहां फर्क ही किसे पड़ता है। आपको तो दुनियादारी के दुखड़े सुनने से ही फुर्सत नहीं। कहते हुये रानी रसोई की ओर चल दी तो प्रधान जी ने चैन की सांस ली।

चलो पुन्नु, हम चाकलेट लेकर आते हैं। राजकुमार ने कहा तो पुन्नु एकदम से प्रधान जी की गोद से उछल कर राजकुमार की गोद में आ गया। राजकुमार और प्रधान जी ने अपनी दोस्ती को पारिवारिक संबंधों का रूप दे दिया था और अब इन दोनों के परिवारों में प्रेम बहुत गहरा था। प्रधान जी की तीनों बेटियां और उनका बेटा राजकुमार को भईया कह कर बुलाते थे, और छोटा पुन्नु तो खास तौर से राजकुमार के साथ बहुत हिला मिला हुआ था।

भईया हमारे लिये भी चाकलेट लेकर आना। दरवाजे की ओर जाते हुये राजकुमार के कानों में 13 साल की निशा की आवाज़ पड़ी तो उसने मुड़कर पीछे देखा।

ऐसा कभी हुआ है भला कि तुम्हारा भाई चाकलेट लेने गया हो और तुम्हारे लिये न लेकर आये। राजकुमार के स्वर में अपार स्नेह भरा हुआ था। अपने कंधे से लिपटे पुन्नु को लेकर वो पास ही में पड़ती चाकलेट की दुकान की ओर बढ़ता जा रहा था। 

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक अध्याय 15

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ये लो आज का चौथा मोर्चा भी फतह हो गया, पुत्तर जी। आकाश जी ने इतना व्यस्त होने के बावजूद भी कितनी जल्दी समय दे दिया हमें, कितना प्यार करते हैं वो हमें। लगभग पांच मिनट के बाद प्रधान जी ने गाड़ी में बैठते हुये कहा।

बिल्कुल ठीक कहा आपने प्रधान जी, उनकी आंखों मे मैने सदा आपके लिये अपनापन देखा है। राजकुमार ने प्रधान जी की बात का समर्थन करते हुये कहा।

आज का दिन तो बहुत अच्छा रहा पुत्तर जी, सबसे मुलाकात हो गयी। प्रधान जी ने प्रसन्न स्वर में कहा।

ये बहुत बड़ा काम कर लिया है आज हमने, प्रधान जी। सब बड़ी अखबारों से सहायता का वचन ले लिया है। जब तक दूसरी ओर से कोई इन्हें अप्रोच करेगा, देर हो चुकी होगी। राजकुमार ने कहा।

देर तो हो ही गयी है पुत्तर जी। उनको भी और हमें भी। प्रधान जी की इस बात को सुनकर राजकुमार ने घड़ी की ओर देखा तो वाकयी में देर हो चुकी थी।

तो फिर घर चला जाये प्रधान जी। राजकुमार ने जैसे जानते हुये भी पूछा।

फौरन चला जाये पुत्तर जी। प्रधान जी के कहते ही राजकुमार ने गाड़ी प्रधान जी के घर की ओर बढ़ा दी जो पास ही में था।

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक अध्याय 14

Sankat Mochak
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आकाश कुमार पंजाब ग्लोरी के संपादक थे। पंजाब ग्लोरी क्षेत्र के सबसे अधिक बिकने वाले समचार पत्रों में से एक था और विशेष तौर से पंजाब के लोगों के एक बहुत बड़े वर्ग में इसकी जबरदस्त पकड़ थी। बहुत से लोगों को इसकी लत इस तरह से लग गयी थी कि अगर ये समाचार पत्र न मिले तो उनकी सुबह शुरु नहीं होती थी। इसी से इस समाचार पत्र की लोकप्रियता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

अखबार के मुख्य संपादक अजय कुमार के बड़े सुपुत्र थे आकाश कुमार। युवा उम्र में ही उन्होंने अखबार के कार्य में अपने पिता का हाथ बंटाना शुरु कर दिया था और इस समय वह अखबार में संपादक के रूप में कार्यरत थे। युवा उम्र के साथ साथ नयी सोच का मिश्रण भी था आकाश कुमार के अंदाज़ में, जिसके चलते उन्होंने अखबार को कई मामलों में नये स्तरों पर पहुंचाया था।

आकाश कुमार का व्यक्तित्व मोहक था और विशेष रूप से उनकी मुस्कुराहट और उनकी मीठी वाणी सबका मन मोह लेती थी। यही कारण था कि संपादक बनने के कुछ ही वर्षों में उन्होने न केवल राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच, बल्कि आम जनता के बीच भी अपनी एक विशेष छवि बना ली थी।

किसी सामाजिक कार्यक्रम से लौटकर आकाश कुमार जब कार्यालय वापिस आये तो नित्य की तरह मिलने वालों का तांता लगा हुआ था। इस समय आकाश कुमार बड़ी तेजी से लोगों को निपटाने में लगे हुये थे ताकि कार्यालय के अंदर और बाहर लगे जमावड़े को कम किया जा सके।

जनाब, प्रधान जी मिलना चाहते हैं। दरबान की आवाज़ आई।

उन्हें फौरन अंदर भेज दो। कहते हुये आकाश कुमार एक बार फिर से भीड़ निपटाने में जुट गये।

हमारे आकाश जी की जय हो, आकाश जी की जय हो। प्रधान जी का ये जाना पहचाना नारा सुनते ही न चाहते हुये भी आकाश कुमार के चेहरे पर मुस्कान आ गयी और उन्होंने आवाज़ की दिशा में मुंह घुमा कर प्रधान जी और राजकुमार के अभिवादन का सिर हिला कर जवाब दिया।

आईये आईये वरुण जी, कैसे हैं आप। और राजकुमार सब ठीक है। आकाश कुमार ने दोनों को सामने पड़ी कुर्सियों पर बैठने को कहा और कर्मचारी को चाय लाने का आदेश दिया।

आज चाय ऐसे नहीं पी जायेगी, आकाश जी। आज तो स्पेशल वाली चाय पीयेंगे। प्रधान जी ने आकाश कुमार की वयस्तता को नज़र अंदाज़ करते हुये अपने ही स्टाइल में कहा।

प्रधान जी के ये शब्द सुनते ही आकाश कुमार के मुख पर मुस्कुराहट आ गयी। वो समझ गये थे कि वरुण निजी रूप से कोई बात करना चाहते हैं।

तो फिर आप लोग मेरे निजी केबिन में चलिये और मुझे केवल पांच मिनट दीजिये। फिर वहीं बैठकर चाय पीते हैं। आकाश कुमार ने मुस्कुरा कर कहा और फिर जल्दी से लोगों को निपटाने में लग गये।

केबिन में करीब दस मिनट वेट करने के बाद आकाश कुमार अंदर आये और उनके साथ ही चाय और बिस्किट भी आ गये।

कहिये वरुण जी, आज इस स्पेशल चाय की क्या जरुरत आन पड़ी। प्रधान जी को छेड़ते हुये आकाश कुमार ने कहा।

हे हे हे………आकाश जी, आप तो जानी जान हैं, आप तो अंतरयामी हैं, आप तो महापुरुष हैं। आपसे भला क्या छिपा है। आकाश कुमार की शान में कसीदे पढ़ते हुये प्रधान जी ने कहा।

ह्म्म्म्म……तो इसका मतलब कोई विशेष ही काम है जो इतनी तारीफ की जा रही है। बेझिझक होकर बोलिये वरुण जी, जो भी काम है। आकाश कुमार ने पूर्ण आश्वासान देने वाले स्वर में कहा।

वो बात ये है आकाश जी……………………और फिर संक्षेप में प्रधान जी ने आकाश कुमार को सारी बात बता दी।

तो ये बात है…………ये मामला तो लगता है तूल पकड़ेगा, क्योंकि हरपाल सिंह को उच्च स्तरीय राजनैतिक संरक्षण प्राप्त है। इसलिये पुलिस इस मामले में जल्दी कुछ कर नहीं पायेगी। आकाश कुमार के मुख से निकला।

अरे अगर उसे राजनैतिक संरक्षण प्राप्त है तो हमें भी आपका संरक्षण प्राप्त है। और जिसके सिर पर आकाश जी का हाथ हो, उसका काम सारे पंजाब में कौन रोक सकता है भला। प्रधान जी ने एक बार फिर नारा लगाया।

तारीफ करके किसी के दिल में अंदर तक उतर जाने की कला तो कोई आपसे सीखे वरुण जी। पर यहां इस कला का प्रदर्शन करने की जरूरत नहीं है आपको। हम तो पहले से ही आपके साथ हैं। आकाश कुमार ने प्रधान जी के हाथ पर हाथ रखकर मुस्कुराते हुये कहा।

जब आप हमारे साथ है तो फिर सामने से चाहे जो भी आ जाये, उसकी खैर नहीं। आप बस तैयार हो जाईये। बहुत जल्द ही आपकी अखबार के लिये आतिशबाजी भेज रहे हैं हम। प्रधान जी ने आकाश कुमार की ओर पहेली उछालते हुये कहा।

ये तो बहुत खूब कही आपने वरुण जी, हमें भी ढंग से दीवाली मनाये बहुत समय हो गया है। लगता है इस बार खूब मज़ा आयेगा। आकाश जी समझ चुके थे कि न्याय सेना निकट भविष्य में ही कोई बड़ा धमाका करने वाली है।

तो फिर तय रहा आकाश जी, ये दीवाली धूम धाम के साथ मनायेंगे। प्रधान जी ने भी आकाश कुमार के स्वर में स्वर मिलाते हुये कहा।

अवश्य वरुण जी, अवश्य। बस थोड़ा ध्यान से चलियेगा क्योंकि ये मामला बहुत संवेदनशील है। प्रदेश का एक बहुत बड़ा मंत्री शामिल है इसमे। आकाश कुमार ने बड़े अपनत्व से सुझाव दिया।

मैं आपकी सलाह का ध्यान रखूंगा आकाश जी। अब आज्ञा चाहूंगा। आपके पास पहले से ही बहुत भीड़ है, और फिर आज बाऊ जी भी नहीं हैं। अखबार के भी बहुत से काम देखने होंगें आपको। कहते कहते प्रधान जी और उनके साथ राजकुमार भी उठ कर खड़े हो गये।

भीड़ चाहे जितनी भी हो वरुण जी, आपके लिये हमारे अखबार में और दिल में सदा विशेष जगह रहती है। कहते हुये आकाश कुमार ने प्रधान जी से हाथ मिलाते हुये विदा दी।

हिमांशु शंगारी