संकटमोचक अध्याय 20

Sankat Mochak
Book Your Consultation at AstrologerPanditji.com
Buy This Book in India!
Buy This Book in USA!
Buy This Book in UK and Europe!

दूसरे अध्याय पढ़ने के लिये यहां क्लिक कीजिये।

शाम के लगभग आठ बजते बजते जब प्रधान जी और राजकुमार उनके घर पहुंचे तो सब उनका इंतज़ार कर रहे थे।

नानू आ गये, मामू आ गये। बालक गतिक सारे घर में शोर मचाता हुआ भागता फिर रहा था। गतिक मीनू के छोटे बेटे का नाम था और उसके बड़े बेटे का नाम साहिल था।

ओ मेरा मीनू पुत्तर आ गया। प्रधान जी ने कहते हुये अपने ओर आती मीनू को गले लगाते हुये कहा।

आप कैसे हैं भईया। मीनू ने प्रधान जी के गले लगे हुये ही साथ में खड़े राजकुमार से पूछा।

मैं बिल्कुल ठीक हूं मीनू। तुम सुनाओ सब कैसे है। कुनाल कहां है। राजकुमार ने मीनू की ओर देखते हुये पूछा। कुनाल मीनू के पति का नाम था।

वो किसी काम के सिलसिले में शहर से बाहर गये हैं, भईया। आइये अंदर चलते हैं। मीनू के इतना कहते ही सब तेजी से उस कमरे की ओर चल दिये जहां सब लोग उनका इंतजार कर रहे थे।

और सुनाईये, चंद्रिका भाभी का क्या हाल है। आपकी शादी में हमने बहुत मज़ा किया था भईया। मीनू ने उल्लास भरे स्वर में कहा। राजकुमार की शादी हुये अभी कुछ समय ही हुआ था और चंद्रिका उसकी पत्नी का नाम था।

वो भी एकदम ठीक है, मीनू। राजकुमार ने मुस्कुराते हुये कहा।

चंद्रिका का नाम आते ही देखो इस कंजर का मुंह कैसे लाल हो गया है। प्रधान जी ने राजकुमार को छेड़ते हुये कहा।

मुंह तो अब आपका भी लाल ही होने वाला है प्रधान जी। राजकुमार की बात का अर्थ समझने से पहले ही प्रधान जी के कानों में रानी का स्वर पड़ा।

आप तो सात बजे आने वाले थे। उनके बिल्कुल पीछे खड़ी उनकी पत्नी रानी उन्हें घूर घूर कर देख रही थी।

वो रानी मैं………………बाऊ जी ने बुला लिया था एकदम से। इसलिये लेट हो गया था। पूछ ले राजकुमार से। प्रधान जी ने जान बचाने के लिये एकदम कोरा झूठ बोल दिया था। वो जानते थे कि रानी बाऊ जी का बहुत आदर करती थी।

बिल्कुल झूठ बोल रहे हैं ये, भाभी। बाऊ जी तो शहर में ही नहीं हैं। हम तो सात बजे ही फ्री हो गये थे पर प्रधान जी पर तो मुगलआज़म बनने का भूत सवार हो गया था। सारा दरबार लगा कर एक्टिंग कर रहे थे अब तक। मैने तो इन्हें याद भी करवाया था पर इन्होंने मुझे अकबर के अंदाज़ मेंख़ामोश ग़ुस्ताखकहकर चुप करा दिया। राजकुमार मज़ा ले रहा था।

ओये कंजर, कब कहा था मैने ऐसे। प्रधान जी ने खा जानी वाली नज़रों से राजकुमार की ओर देखा।

हां हां बोलो झूठ, सारी दुनिया में तो खूब सच का साथ देने की बात करते हो, और मेरे साथ झूठ बोलते रहते हो। रानी के स्वर में तीखापन था।

हे हे हे………वो रानी मैं………………………… प्रधान जी को कोई शब्द नहीं सूझ रहा था इससे आगे। सब उनकी इस हालत का मज़ा ले रहे थे।

करो अपनी मनमर्जी, हमारी क्या पड़ी है आपको। कहते हुये रानी रसोई की ओर चल दी और मीनू भी उनके पीछे पीछे हो ली।

क्यों प्रधान जी, अब पता चला, मुंह कैसे लाल होता है पत्नी का नाम सुनके। देखिये, आपका तो सारा शरीर ही लाल हुआ पड़ा है। राजकुमार ने प्रधान जी को चिढ़ाने वाले अंदाज़ में कहा।

तू तो किसी को भी नहीं बख्शता कंजर, अपने प्रधान की ही बैंड बजवा दी। प्रधान जी ने नकली गुस्से से राजकुमार की ओर देखा।

आपसे ही सीखा है, प्रधान जी। सामने वाले को अपने ऊपर हावी होने का कोई मौका मत दो। आप ही ने सिखाया था।

अच्छा बच्चू, हमारा दांव उल्टा हमीं पर। प्रधान जी ने आंखें निकालते हुये कहा। सोना और निशा उनकी इस नोंक झोक का आनंद ले रही थीं।

मामू हमारी चाकलेट कहां है। छोटा गतिक राजकुमार की पैंट पकड़ कर खींच रहा था।

अरे वो तो मैं भूल ही गया था, ये रही तुम्हारी चाकलेट। ये तुम्हारी, ये साहिल की, ये निशा की, ये सोना की और ये पुन्नु……………अरे पुन्नु कहां है। राजकुमार ने कहा तो प्रधान जी ने भी नोट किया कि इस सारे मेल मिलाप में वो पुन्नु को तो भूल ही गये थे।

रानी, पुन्नु कहां है। प्रधान जी ने वहीं से चिल्ला कर पूछा।

बाहर कहीं खेल रहा है अपने दोस्तों के साथ, अभी आ जायेगा। रसोई से रानी की आवाज़ आयी।

साहिल, जा जल्दी से अपने पुन्नु मामू को ढूंढ के ला। प्रधान जी ने कहते हुये साहिल को गली में भगा दिया।

आज के सारे काम तो ठीक से निपट गये पुत्तर जी, अब कल सुबह के अखबारों का इंतजार करते हैं। प्रधान जी ने पास ही पड़ी कुर्सी पर बैठते हुये कहा।

सुबह की बात सुबह देखेंगे प्रधान जी, अभी तो बहुत भूख लगी है। कुछ पेट पूजा कर ली……………… राजकुमार के शब्द पुन्नु की पुरज़ोर आवाज़ के कारण अधूरे ही रह गये।

मुझे खेलने भी नहीं दिया ढंग से, अभी अभी मेरी बारी आयी थी। क्यों बुला लिया बीच में से ही। प्रधान जी की ओर आता हुआ पुन्नु पूरे गुस्से से बोल रहा था।

रात के समय तुझे खाने की बजाय खेल सूझ रहा है बदमाश, जा चुप करके बैठ जा वहां पर। प्रधान जी ने पुन्नु को डराने के इरादे से ज़ोरदार आवाज़ में कहा।

मैं नहीं बैठता, मैं नहीं बैठता। छोटा पुन्नु तुनक कर बोला और प्रधान जी के एकदम आगे आकर अड़कर खड़ा हो गया, जैसे उन्हें चुनौती दे रहा हो।

पुन्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्नु…………बैठेगा कि नहीं। प्रधान जी नें उसे डराने की लिये क्रोध भरी मुद्रा बनाते हुये कान फाड़ू आवाज़ में कहा।

नहीं बैठूंगा, नहीं बैठूंगा, नहीं बैठंगा। प्रधान जी के हर हथियार को फेल करते हुये पुन्नु ने भी मोर्चा संभाल लिया।

हा हा हा……… ये भी शेर है प्रधान जी, ऐसे नहीं डरने वाला। ज्यादा ज़ोर मत लगाओ, गला बैठ जायेगा। राजकुमार ने प्रधान जी को छेड़ते हुये कहा।

पुन्नु, मेरे शेर, ओ मेरी डार्लिंग, ओ आजा यार मेरे पास। हथियार डालते हुये प्रधान जी ने पुन्नु को गोद में उठा लिया और वो उनसे छूटने के लिये उनके शरीर पर अपने छोटे छोटे हाथों से घूंसे बरसाने लगा। बाकी के बच्चे अपने अपने खेल में मस्त थे, जैसे ये सब उनके लिये कोई मोल ही न रखता हो।

खाना लग गया है टेबल पर। रानी की इस आवाज़ को सुनते ही प्रधान जी और राजकुमार खाने की टेबल की ओर लपक पड़े। पुन्नु अभी भी प्रधान जी के शरीर पर छूटने के लिये घूंसे बरसा रहा था।

दस बजे के करीब राजकुमार ने प्रधान जी से और बाकी सबसे विदा ली और अपने घर की ओर चल दिया।

हिमांशु शंगारी