संकटमोचक अध्याय 04

Sankat Mochak
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दस बजने में लगभग बीस मिनट शेष थे और चमन शर्मा मिलाप चौक पहुंच चुका था। उत्सुकुता के कारण वो 15 मिनट जल्दी ही घर से निकल गया था।

आस पास देखने पर जब उसे ऑफिस ही ऑफिस दिखाई दिये तो उसने किसी से पूछ लेना ही उचित समझा।

भाई, यहां पर न्याय सेना पंजाब का कार्यालय कहां है, मुझे वरूण शर्मा जी से मिलना है। चाय की एक दुकान पर जाकर चमन शर्मा ने पूछा क्योंकि उसका अंदाज़ा था कि चाय वाले को ज़रुर पता होगा।

श्रीमान जी, प्रधान जी का नाम नहीं लेता कोई, उन्हें केवल प्रधान जी ही कहते हैं सब। चाय वाले के स्वर में आदर एकदम स्पष्ट झलक रहा था।

गल्ती हो गई भाई, चमन शर्मा को एकदम से लगा जैसे उसने इस चाय वाले के सामने प्रधान जी का नाम लेकर कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो।

अरे ऐसी कोई बात नहीं, मैं तो आपको एक सामान्य बात बता रहा था। वो सामने सीढियां दिखाइ दे रहीं हैं न, ऊपर चढ़कर पहली मंजिल पर है उनका कार्यालय। वो देखिये सामने बोर्ड भी लगा हुआ है। चाय वाले ने इस बार बहुत मित्रता भरी आवाज़ में कहा।

बहुत बहुत धन्यवाद भाई। कहते हुये चमन शर्मा ने चाय वाले की बताई दिशा में देखा तो उसे कार्यालय का बोर्ड दिखायी दे गया।

बेझिझक जाईए श्रीमान जी, अगर आपका कार्य सही होगा तो प्रधान जी आपकी सहायता अवश्य करेंगे। और एक बार उन्होंने आपकी सहायता का वचन दे दिया तो फिर आपका काम होने से कोई नहीं रोक सकता। बजरंग बली की अपार कृपा है हमारे प्रधान जी पर। चाय वाले के स्वर में एक बार फिर आदर उमड़ आया था।

आपका बहुत बहुत धन्यवाद, भाई। इतना कहकर चमन शर्मा न्याय सेना के कार्यालय की ओर चल दिया। सुशील कुमार और चाय वाले ने जिस प्रकार प्रधान जी में आस्था और आदर दर्शाया था, उससे चमन शर्मा को विश्वास हो चला था कि आज प्रधान जी के कार्यालय से वो खाली हाथ नहीं जायेगा।

इन्हीं विचारों में डूबा हुआ चमन शर्मा न्याय सेना के कार्यालय को जाने वाली सीढियां चढ़ गया और कार्यालय के भीतर पहुंच गया।

मुझे प्रधान जी से मिलना है, कार्यालय में बैठे एक युवा दिखने वाले लड़के से चमन शर्मा ने कहा। देखने में ये लडका 20-22 साल का लगता था, जिसका कद करीब 6 फीट और शरीर तगड़ा था।

जी कहिये आपको क्या काम है, क्या आपने मिलने का समय लिया हुआ है ? सामने से उस लड़के ने पूछा।

ये अपने ही साथ हैं राजू भाई । चमन शर्मा अभी कोई जवाब सोच ही रहा था कि पीछे से सुशील कुमार की आवाज़ सुनाई दी। चमन शर्मा ने मुड़ कर देखा तो पाया कि सुशील कुमार कार्यालाय के भीतर प्रवेश कर चुका था।

कैसे हैं सुशील भाई, बहुत दिनों बाद दर्शन हुये हैं आपके। राजू नाम के उस लड़के ने बहुत आत्मीयता के साथ पूछा।

बस ठीक हूं राजू भाई, ये अपने चमन शर्मा जी हैं। बहुत संकट में हैं। मैने प्रधान जी से सुबह इनके बारे में बात की थी और उन्होने दस बजे कार्यालय आने के लिये कहा था। सुशील कुमार ने जवाब दिया।

तब तो आप प्रधान जी के कार्यालय में ही बैठ जाईये, वो किसी भी समय आते ही होंगे। कहते कहते राजू ने भीतर के एक केबिन का दरवाजा खोल दिया।

धन्यवाद राजू भाई। चमन भाई, ये हमारे हरजीत सिंह राजू भाई हैं। न्याय सेना के सचिव और प्रधान जी के बहुत करीबी लोगों में से एक। सुशील कुमार ने चमन शर्मा का परिचय राजू से करवाते हुये कहा।

चमन शर्मा ने दोनो हाथ जोड़ कर राजू को नमस्कार किया और कहा। राजू भाई, बहुत बड़े संकट में हूं। अब तो केवल आप लोगों का ही सहारा है।

चिंता मत कीजिये चमन जी, आपका संकट तो इस कार्यालय के बाहर ही रह गया। यहां कोई संकट नहीं आता, यहां तो केवल समाधान आते हैं। हमारे प्रधान जी पर साक्षात संकटमोचक भगवान की कृपा है। आप निश्चिंत हो जायें। राजू के स्वर में भी वही आत्मविश्वास और आदर था जो चमन शर्मा ने सुशील कुमार और चाय वाले की आवाज़ों मे महसूस किया था।

राजू ने कार्यालय का दरवाजा खोल कर उन्हें एक बड़े टेबल के एक ओर पड़ी कुर्सियों पर बैठा दिया। टेबल के दूसरी ओर एक बड़ी रिवाल्विंग कुर्सी लगी हुई थी जो निश्चित रूप से ही प्रधान जी के बैठने के लिये ही थी।

आप लोग बैठिये, मैं चाय का इंतजाम करता हूं। कहते हुये राजू कार्यालय से बाहर निकल गया।

चमन शर्मा ने नज़र घुमा कर देखा तो पाया कि कार्यालय के एक कोने में एक छोटा सा मंदिर बना हुआ था जिसमें भगवान शिव, मां जगदंबा और संकटमोचक भगवान बजरंग बली की तस्वीरें रखी हुईं थीं।

संकटमोचक के चित्र पर दृष्टि पड़ते ही चमन शर्मा का मन आदर और श्रद्धा से भर गया। भगवान ने इतने कम समय में ही उसे उसकी समस्या के समाधान के इतना करीब पहुंचा दिया था।

भक्ति भाव से भरे चमन शर्मा के मन में अक्समात ही श्री हनुमान चालीसा का स्तोत्र फूट पड़ा।

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुं लोक उजागर। राम दूत अतुलित बल धामा, अंजनि पुत्र पवन सुत नामा………………………………

टीटू, काले, तारी, जल्दी से सब सामान ठीक कर लो। प्रधान जी घर से निकल चुके हैं और किसी भी समय कार्यालय पहुंचने वाले हैं। माहौल में राजू की आवाज़ गूंजी और साथ ही चमन शर्मा ने नज़र घुमा कर देखा कि चार पांच युवा लड़के कार्यालय में आ चुके थे और सामान को ठीक जगह पर रख रहे थे।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा, विकट रूप धरि लंक जरावा, भीम रूप धरि असुर संहारे, राम चंद्र के काज संवारे…………………………………… चमन शर्मा निरंतर हनुमान चालीसा का पाठ करता जा रहा था।

ये सब लड़के न्याय सेना के सदस्य एवम पदाधिकारी हैं, चमन भाई। सुशील कुमार की आवाज़ चमन शर्मा के कानों में पड़ी, जो अपना पाठ जारी रखे हुए था।

……………………………और देवता चित्त न धरहिं, हनुमत से ही सर्व सुख करहिं। संकट कटे मिटे सब पीड़ा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।

प्रधान जी आ गये, प्रधान जी आ गये। बाहर से कार्यालय में प्रवेश करते हुये एक युवा लड़के ने जैसे ही कहा, राजू सहित सारे लड़के एक दम सावधान मुद्रा में खड़े हो गये।

चमन शर्मा ने आवाज़ की दिशा में नज़र घुमायी तो देखा कि प्रधान जी कार्यालय के प्रवेश द्वार से अंदर आ रहे थे।

ये हनुमान चालीसा का असर था या चमन शर्मा के मन के भाव, प्रधान जी को देखते ही उसे एक बार तो ऐसा लगा कि जैसे साक्षात बजरंग बली का ही कोई रूप देख लिया हो उसने।

40-45 की उम्र, मध्यम कद, तगड़ा कसरती शरीर, सिर पर छोटे बाल और चेहरे पर एक अदभुत तेज। एक बार चमन शर्मा की नज़र जो प्रधान जी के चेहरे पर पड़ी तो फिर वहां से हट न सकी।

चरण स्पर्श प्रधान जी, चरण स्पर्श प्रधान जी। राजू सहित कई स्वर एक साथ वातावरण में गूंज उठे जो चमन शर्मा को कहीं दूर से आते हुये प्रतीत हो रहे थे क्योंकि वो तो प्रधान जी के व्यक्तित्व के प्रभाव में ही खोया हुआ था।

जीते रहो पुत जी, जीते रहो मेरे शेर। वर्षा के मेघ जैसी वही पहचानी हुई आवाज़ जब चमन शर्मा के कानों में पड़ी तो उसकी तन्द्रा टूटी और उसने एक बार फिर से माहौल का जायज़ा लिया।

प्रधान जी भीतरी केबिन के दरवाजे से अंदर आ रहे थे और सुशील कुमार अपनी कुर्सी से उठकर उनके चरण स्पर्श करने के लिये आगे बढ़ रहा था।

पैरी पौना प्रधान जी। चरण स्पर्श करते हुये सुशील कुमार ने कहा।

ओ जीते रहो मेरे शेरू। मेघ ने जैसे एक बार फिर से नाद किया।

नमस्कार राजकुमार भाई, कैसे हैं आप। चमन शर्मा के कानों में सुशील कुमार का ये स्वर पड़ा तो उसकी नज़र प्रधान जी के बिल्कुल साथ चल रहे एक युवा लड़के पर पड़ी।

भगवान शिव की कृपा से सब ठीक है, सुशील भाई। लड़के की आवाज़ में जबरदस्त आत्मविश्वास और अपनापन था।

देखने में 22-23 वर्ष का ये लड़का मध्यम कद का था, मज़बूत शरीर, प्रधान जी की तरह ही छोटे बाल और चाल में गज़ब का आत्मविश्वास। एक बार तो चमन शर्मा को लगा जैसे प्रधान जी का अपना बेटा ही हो।

प्रधान जी, ये हैं मेरे मित्र चमन शर्मा। सुशील कुमार की आवाज़ सुनकर चमन शर्मा की विचार धारा को विराम लगा तो उसने देखा कि स्वत: ही वो अपनी कुर्सी से उठ चुका था और उसके हाथ अपने आप ही जुड़ चुके थे।

नमस्कार प्रधान जी, जुड़े हुये हाथों के साथ पूरे आदर के साथ चमन शर्मा ने कहा।

कैसे हैं चमन जी, मेघ के गर्जन में बहुत आत्मीयता थी।

बस मुझे दो मिनट दीजिये, फिर आपसे बात करता हूं। कहते हुये प्रधान जी कोने में लगे हुये मंदिर की ओर चल दिये और उनके पीछे पीछे राजकुमार नाम का वह लड़का भी चल पड़ा।

चमन शर्मा के देखते ही देखते प्रधान जी ने मंदिर में धूप जलायी, फिर पूजा करनी शुरू कर दी। राजकुमार नाम का वह लड़का भी साथ साथ ही पूजा कर रहा था।

ये लड़का कौन है, सुशील भाई। प्रधान जी का कोई विशेष आत्मीय लगता है। साये की तरह उनके साथ है। चमन शर्मा के स्वर में उत्सुकुता थी।

आपने ठीक पहचाना चमन भाई। ये प्रधान जी का साया ही है। नाम राजकुमार है, उम्र 25 वर्ष और ये न्याय सेना के सैक्रटरी जनरल हैं, अर्थात सब महासचिवों में सबसे बड़े। इनके लिये ये पद प्रधान जी ने विशेष रूप से बनाया है। सुशील कुमार ने कहा।

इसकी उम्र पर मत जाईएगा, इसके कारनामे बहुत बड़े हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त है, धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलता है, दिमाग कंप्यूटर की तरह चलता है और गजब का साहसी है। भगवान शिव का भक्त है, और इस पर उनकी विशेष कृपा है। सुशील कुमार बोलता जा रहा था।

प्रधान जी का दांया हाथ है ये। वे इसे अपने बेटे की तरह मानते हैं। संगठन को आधुनिक रूप देने में इसका बहुत बड़ा योगदान है, सारे कागज़ी काम यही देखता है और प्रधान जी संगठन का कोई भी विशेष निर्णय इसकी सलाह के बिना नहीं लेते। कई लोग तो इसे प्रधान जी का उत्तराधिकारी भी कहते हैं। सुशील कुमार ने अपनी बात पूरी की।

और सुनाईये सुशील जी, पुन: मेघ गर्जना हुई तो चमन शर्मा ने देखा कि प्रधान जी पूजा करके अपनी कुर्सी की ओर बढ़ रहे थे और साथ साथ राजकुमार भी था।

आपके आशिर्वाद से सब ठीक है प्रधान जी, ये हैं मेरे मित्र चमन शर्मा जी, जिनके बारे में आपसे बात की थी। सुशील कुमार ने कहा।

चमन जी, आप कैसे हैं। मेघ का गर्जन इस बार बहुत सौम्य और आत्मीय था। प्रधान जी कुर्सी पर बैठ चुके थे और राजकुमार उनकी कुर्सी के पीछे ही खड़ा हो गया था।

बहुत सताया हुआ हूं प्रधान जी, बस अब आपका ही सहारा है। चमन शर्मा के अंदर के दर्द का बांध जैसे टूट गया था, प्रधान जी के इन आत्मीय शब्दों को सुनकर।

चिंता मत कीजिये, चाय आ गयी है। चाय पीजिये और आराम से सारी बात बताईये। भगवान संकटमोचक की कृपा से आपकी समस्या का कोई न कोई हल अवश्य निकल आयेगा। प्रधान जी के इन ढाढस बंधाते शब्दों के साथ ही चमन शर्मा ने देखा कि एक लड़का सबके सामने चाय के कप रख रहा था।

प्रधान जी, मैं माडल टाऊन में फास्ट फूड की एक दुकान चलाता हूं। पास ही में मेरा गोदाम है, जिसमें हम सारा सामान तैयार करके दुकान पर ले जाते हैं। कहते कहते चमन शर्मा ने नोट किया कि प्रधान जी तो बहुत सामान्य होकर उसकी बातें सुन रहे थे किंतु राजकुमार उसे बहुत गौर से देख रहा था।

पहली बार चमन शर्मा ने नोट किया कि राजकुमार की दृष्टि में गजब का पैनापन था। ऐसा लग रहा था जैसे उसकी नज़र चमन शर्मा के भीतर तक जाकर सच निकाल लायेगी।

मेरे साथ वाली इमारत में हरपाल सिंह नाम के एक ठेकेदार का ऑफिस है। चमन शर्मा कहता जा रहा था………………………………………………………………………

और इस तरह आज उस घटना को सातवां दिन हो गया है, पर कोई भी मेरा साथ देने को राज़ी नहीं। सब अफसरों के पास जा चुका हूं, राजनेताओं को भी मिल चुका हूं, पर हरपाल सिंह का नाम सुनकर सब बहाना बना देते हैं। चमन शर्मा ने अपनी बात पूरी की।

क्या आपने आधिकारिक रूप से इस सारी घटना की शिकायत दर्ज करवा के कार्यवाही की मांग की है। प्रधान जी की बजाये राजकुमार का सधा हुआ स्वर चमन शर्मा के कानों में पड़ा तो उसने एक बार फिर पाया कि प्रधान जी बहुत सहज भाव में बैठे थे, जबकि राजकुमार का शत प्रतिशत ध्यान चमन शर्मा की एक एक बात पर केंद्रित था।

मैने आपसे कहा था न चमन भाई, संगठन के कागज़ात से संबधित सारे काम राजकुमार ही देखते हैं। ये आपसे जो भी प्रश्न पूछते हैं, उनका ठीक ठीक उत्तर देते जाईये। सुशील कुमार का स्वर चमन शर्मा के कानों में पड़ा।

जी बिल्कुल की है, थाने से लेकर एस एस पी कार्यालय तक सब जगह की है। चमन शर्मा ने कहा।

क्या आप वो सारे पेपर्स साथ लाये हैं। राजकुमार के स्वर में फिर वही सधापन था।

जी हां, ये रहे वो सारे पेपर्स। कहते हुये चमन शर्मा ने एक फाईल राजकुमार की तरफ बढा दी।

फाईल लेकर राजकुमार ने उसमें से कुछ पढ़ना शुरू कर दिया और माहौल में एक मिनट के लिये शांति कायम हो गयी, जिसे एक बार फिर मेघ की गर्जना ने तोड़ा।

आप चाय पीजिये चमन जी, तब तक राजकुमार आपकी फाईल को स्टडी कर लेंगे।

चमन शर्मा ने चाय का कप उठाया और चुस्की लेने लगा। बाकी सब लोग भी अपनी अपनी चाय पीने लगे।

लगभग पांच मिनट तक माहौल में सन्नाटा कायम रहा, जिसे तोड़ा चमन शर्मा की फाईल के टेबल पर गिरने की आवाज़ ने, जो राजकुमार ने पढ़ने के बाद टेबल पर रखी थी।

चमन शर्मा ने देखा कि राजकुमार प्रधान जी के कान में कुछ कह रहा था, बदले में प्रधान जी ने उसके कान में कुछ कहा और फिर राजकुमार ने उनके कान में कुछ कहा।

संगठन आपका केस लेगा या नहीं, इसका फैसला अभी हो जायेगा चमन भाई। राजकुमार और प्रधान जी आपके केस के बारे में सलाह कर रहे हैं और इसके तुरंत बाद आपको निर्णय सुना दिया जायेगा। सुशील कुमार की ये आवाज़ चमन शर्मा के कानों में पड़ी तो उसका दिल जैसे उछल कर उसके गले में फंस गया।

मन ही मन भगवान संकटमोचक को याद करते हुये उसने प्रधान जी और राजकुमार की ओर देखा जो लगातार कानाफूसी करते जा रहे थे। माहौल में गजब की शांति थी जैसे सबको पता था कि कुछ बहुत महत्वपूर्ण हो रहा है।

लगभग दो मिनट की कानाफूसी के बाद राजकुमार एक बार फिर सीधा खड़ा हो गया और प्रधान जी ने चमन शर्मा की ओर देखा, जिसका दिल अभी भी ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था।

आपका केस हमें सच्चा लग रहा है चमन जी, न्याय सेना ने इसे हाथ में लेने का निर्णय लिया है। मेघ की इस गर्जना में इस बार वो सारा अमृत रूपी जल भी था, जिसने चमन शर्मा के मन की सूखी हुई ज़मीन को जैसे पूरी तरह से भिगो दिया था।

आपका बहुत बहुत धन्यवाद प्रधान जी, मैं इस सहायता के लिये सदा आपका आभारी रहूंगा। प्रसन्नता से भरी आवाज़ के साथ चमन शर्मा ने कहा।

इसमें धन्यवाद जैसी कोई बात नहीं चमन जी, हमारा ये संगठन पीड़ितों की सहायता करने का ही काम करता है। अब आप आराम से अपना काम कीजिये और कल सुबह दस बजे हमारे कार्यालय दोबारा आ जाईये। तब तक हमारा संगठन आपके केस को डील करने की रणनीति बना लेगा। प्रधान जी के स्वर में पूर्ण आश्वासन था।

और हां, अपना मोबाइल नंबर नोट करवाते जाईएगा ताकि आवश्यकता पड़ने पर हम आपसे बात कर सकें। कहते हुये प्रधान जी ने अपनी बात समाप्त की।

बिलकुल ठीक है प्रधान जी, पर मेरे मन में बस एक ही भय है। डरते डरते चमन शर्मा ने कहा।

नि:संकोच होकर कहिये चमन जी, जो भी आपके मन में है। एक बार फिर प्रधान जी का आत्मीय स्वर चमन शर्मा के कानों में पड़ा।

हरपाल सिंह ने मुझे 15 दिन दिये थे जिसमें से सात दिन आज पूरे हो गये हैं। अगर हम लोगों ने बचे हुये आठ दिनों में कुछ नहीं किया तो उसने मेरे गोदाम की सारी इमारत गिरा देने की धमकी दी है। क्या अगले सात दिन में हमारा काम हो जायेगा। चमन शर्मा की आवाज़ में बहुत ही भोलापन था।

इतना सुनते ही एक साथ कई ठहाके माहौल में गूंज उठे जिसमे सुशील कुमार का ठहाका भी था। कुछ भी न समझने वाले अंदाज़ में चमन शर्मा ने प्रधान जी की ओर देखा तो पाया कि वो मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।

आपके काम को चाहे एक महीना भी लग जाये चमन जी, अब कोई माई का लाल आपकी इमारत की एक ईंट पर भी नज़र नहीं डाल सकता। न्याय सेना का पूरा बल अब आपके साथ है और हमारे संगठन में ऐसे हज़ारों भाई बहन हैं, जो प्रधान जी के एक इशारे पर अपनी जान की बाज़ी लगा सकते हैं……………… ये आवाज़ राजू के मुंह से निकली थी जो बड़े ही आत्मविश्वास से भरपूर लग रहा था।

अब आज्ञा दीजिये प्रधान जी, सुशील कुमार ने जब कह कर चमन शर्मा को इशारा किया तो उसने भी हाथ जोड़कर प्रधान जी से आज्ञा ली और बाहर के केबिन में जाकर वहां बैठे एक लड़के को अपना मोबाइल नंबर नोट करवा दिया।

अब चिंता छोड़ दो चमन भाई, अब आपका गोदाम आपसे कोई नहीं छीन सकता। सीढियां उतरते हुये चमन शर्मा के कानों में सुशील कुमार के शब्द जैसे भगवान की आवाज़ की तरह पड़ रहे थे।

हिमांशु शंगारी