संकटमोचक 02 अध्याय 10

Sankat Mochak 02
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“आपने इतनी बड़ी बात कह दी अनिल खन्ना से, प्रधान जी? ऐसे कब परख लिया आपने मुझे?” राजकुमार अभी भी प्रधान जी की उस बात के बारे में ही सोच रहा था। अनिल खन्ना अभी अभी कार्यालय से निकला ही था।

“ओये तेरी तरह मैं लोगों को सवाल पूछ पूछ कर नहीं परखता, कंजरा। मेरा अपना तरीका है लोगों को परखने का। मैं लोगों को दिमाग से नहीं, दिल से परखता हूं। तुझे पहले दिन मिलने के बाद ही मेरे दिल ने बता दिया था मुझे कि तेरी मेरी खूब जमने वाली है”। प्रधान जी ने राजकुमार को छेड़ते हुये कहा। वो जानते थे कि राजकुमार जल्दी किसी पर विश्वास नहीं करता था और किसी भी आदमी के साथ काम करने से पहले उसके बारे में बहुत जांच पड़ताल करने की आदत थी उसे।

“पर दिल तो दिल है प्रधान जी, धोखा भी तो दे सकता है। आखिर भगवान ने भी दिमाग को दिल से उपर जगह दी है शरीर में, कोई तो कारण होगा न?” राजकुमार ने भी शरारत का जवाब शरारत से ही दिया।

“इसीलिये तो दिमाग सबसे अलग थलग पड़ा रहता है शरीर में, जबकि दिल सारे शरीर के साथ मिलजुल कर रहता है। दिमाग हमें लोगों पर शक करवा के उनसे दूर करवाता है जबकि दिल हमें उनके साथ प्यार करवा के उनसे जोड़ देता है”। प्रधान जी ने साधारण स्वर में ही बहुत गहरी फिलॉस्फी की बात कह दी थी। अधिकतर समय हर बात का जवाब तुरंत दे देने वाले हाजिर जवाब राजकुमार को भी प्रधान जी की इस बात का कोई उचित जवाब नहीं सूझ रहा था और वो मन ही मन प्रधान जी की इस बात की गहरायी तक पहुंचने की कोशिश कर रहा था।

“मेरी एक बात याद रखना पुत्तर जी, दिल से चलने वाले आदमी पर सब लोग आसानी से विश्वास कर लेते हैं जबकि केवल दिमाग से काम लेने वाले लोग अक्सर अकेले रह जाते हैं, बिल्कुल दिमाग की तरह ही। दिमाग शरीर में सबसे उपर रहकर सारे शरीर को नियंत्रित करने की कोशिश करता है जबकि दिल शरीर के साथ रहकर उसे लगातार रक्त और अन्य पोषक तत्व प्रदान करके उसका पोषण करता है। दोनों में फर्क बिल्कुल साफ है पुत्तर जी, दिमाग नियंत्रित करना चाहता है और दिल प्यार तथा सेवा करना चाहता है”। प्रधान जी ने एक पल सांस ली और वहीं से शुरू हो गये।

“इसलिये अगर दुनिया में सचमुच कुछ बड़ा करना चाहते हो तो दिमाग के साथ साथ दिल की ताकत को भी पहचानो, पुत्तर जी। लोगों के दिल से लेकर तुम्हारे भगवान शिव तक जाने का रास्ता दिल ही निकालता है, दिमाग नहीं”। प्रधान जी ने मुस्कुराते हुये अपनी बात पूरी की। उन्हें पता था कि राजकुमार की भगवान शिव पर अपार श्रद्धा थी।

“ऐसे तो मैने कभी सोचा ही नहीं, प्रधान जी। हालांकि मै दिमाग का प्रयोग करने का ही समर्थक हूं, पर आपकी बातों में जबरदस्त तथ्य हैं, जिन्हें खुद मेरा दिमाग भी सहमति दे रहा है”। राजकुमार के चेहरे पर ऐसा आश्चर्य नज़र आ रहा था जैसे उसे आज ही पता चला हो कि सारी दुनिया को जल देने वाली वर्षा भी ये सारा जल सागर से ही लेती है।

“दिमाग के बिना भी दिल सारी दुनिया को प्रेम से जीत सकता है पुत्तर जी, पर दिल के बिना दिमाग दुनिया के एक भी आदमी को नहीं जीत सकता। इसलिये मैं दिमाग पर अधिक जोर न देकर दिल से ही काम लेता हूं”। प्रधान जी अभी भी राजकुमार की ओर देखकर मुस्कुराते जा रहे थे।

“ये तो बहुत बड़ा सबक सिखा दिया आपने मुझे आज, प्रधान जी। मैने तो सोचा ही नहीं था कि दिल के पास इतनी जबरदस्त ताकत होती है”। राजकुमार का आश्चर्य अभी भी वैसे का वैसे ही बना हुआ था।

“और दिल की इसी जबरदस्त ताकत ने मुझे पहली ही मुलाकात में बता दिया था कि तुझसे मेरा कुछ विशेष रिश्ता बनने वाला है। मैने तुझे आज से पहले कभी नहीं बताया पुत्तर, पर तेरे आस पास होने पर मेरा दिल सदा मुझसे कहता है कि तुझसे पिछले जन्म का कोई बहुत आत्मीय संबंध है मेरा। ये है तुझ पर इतने कम समय में मेरे इतने अधिक विश्वास करने का कारण”। प्रधान जी ने जैसे राजकुमार को आश्चर्य के सागर में ही डुबो देने का फैसला कर लिया था आज।

“ये तो बड़ी अदभुत बात कही आपने, प्रधान जी। आश्चर्य है कि मैं आज तक अपने आपके साथ इस तरह के संबंध को महसूस नहीं कर पाया, हालांकि मैं आपका बहुत आदर करता हूं और आपके साथ काम करना मुझे बहुत अच्छा लगता है”। आश्चर्यचकित राजकुमार के मुंह से जैसे खुद ब खुद निकल गयें हों ये शब्द।

“वो इसलिये पुत्तर जी, कि तुमने सदा अपने दिमाग को ही पुकारा है हर काम के लिये, दिल को मौका ही कब दिया है तुमसे बात करने का, अपनी ताकत दिखाने का? एक बार देकर देखो अपने दिल को ये मौका, मेरे साथ ही नहीं, और भी बहुत लोगों के साथ आत्मीय संबंध होने के बारे में बता देगा तुम्हें”। कहते हुये प्रधान जी ने अपनी बात को विराम दिया।

राजकुमार साफ साफ महसूस कर रहा था कि प्रधान जी की एक एक बात आज उसके दिमाग में नहीं बल्कि सीधी दिल की गहराईयों में उतरती जा रही थी। एक अदभुत रोमांच का अहसास हो रहा था उसे और ऐसा लग रहा था जैसे जीवन में पहली बार वो अपने दिल की धड़कन इतने साफ तौर पर सुन पा रहा था।

“अवश्य ही भगवान शिव की विशेष कृपा हुयी है आज मुझपर प्रधान जी, जो आपके मुख से जीवन के इतने अमूल्य सत्य जान पाया हूं मैं। आपसे वादा करता हूं कि आज के बाद अपने दिमाग के साथ साथ अपने दिल को भी पूरा मौका दूंगा अपनी उपस्थिति बताने का और अपनी ताकत दिखाने का”। आश्चर्य और प्रसन्नता से मिश्रित स्वर में कहा राजकुमार ने।

“यानि कि अपने दिमाग का इस्तेमाल करना फिर भी नहीं छोड़ेगा तू, कंजर”। प्रधान जी ने एक बार फिर चुटकी लेते हुये कहा।

“वो तो हो ही नहीं सकता, प्रधान जी। दिमाग से तो मेरा बचपन का प्यार है, इतनी जल्दी थोड़े चले जायेगा”। राजकुमार के ये कहते ही दोनो हंस दिये।

“अब काम की बात पर आ जाते हैं। ये सारे पेपर्स तुम्हें अपने पास रखने हैं पुत्तर जी, इन्हें न्याय सेना के कार्यालय में या मेरे घर पर नहीं रखा जा सकता। दोनों ही जगह आने जाने वालों का तांता लगा रहता है”। प्रधान जी ने अनिल खन्ना के दिये हुये पेपर्स की ओर देखते हुये कहा।

“यानि कि आपका घर दिल की तरह भरा भरा और मेरा घर दिमाग की तरह अकेला अकेला है, प्रधान जी”। राजकुमार ने शरारत करते हुये कहा। उसे खुद ही अपनी ये बात ठीक लग रही थी और एक बार फिर उसका ध्यान प्रधान जी की बातों पर चला गया था। इस बार उसने प्रधान जी से इतना विश्वास करने का कारण नहीं पूछा था, क्योंकि उसके दिल ने उसे ये कारण बता दिया था।

“बातें बनाने में उस्ताद है तू, चल अब आगे की रणनिति बना लेते हैं”। प्रधान जी के इतना कहते ही राजकुमार सिर हिला कर गंभीर हो गया। इस तरह के बड़े मामले को उसने इससे पहले कभी डील नहीं किया था, इसलिये वो प्रधान जी की ओर उनकी रणनीति जानने के लिये देख रहा था।

“सबसे पहले हमें इस मामले में एक प्रैस कांफ्रैंस करनी होगी। इस प्रैस कांफ्रैस में जालंधर दूरदर्शन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये जायेंगे और केंद्र सरकार से पंद्रह दिन के अंदर जांच करवाने की मांग की जायेगी। जांच न करवाये जाने पर न्याय सेना द्वारा प्रैस कांफ्रैंस से पंद्रह दिन बाद जालंधर दूरदर्शन के बाहर जबरदस्त प्रदर्शन करने की बात कही जायेगी”। प्रधान जी ने अपनी बात पूरी करते हुये कहा।

“पंद्रह दिन क्या बहुत अधिक नहीं हो जायेंगे, प्रधान जी? आमतौर पर तो आप किसी मामले में इतना समय देने का समर्थन नहीं करते। तो फिर इस मामले में क्यों?” राजकुमार ने शंकित स्वर में पूछा।

“हर मामला एक तरह का नहीं होता पुत्तर जी, इस बात को अच्छी प्रकार से समझ लो। आम तौर पर हमारा वास्ता शहर की पुलिस, प्रशासन या अन्य किसी डिपार्टमैंट से पड़ता है। ऐसी स्थिति में तीन से सात दिन देना बहुत होता है क्योंकि हमारे प्रैस कांफ्रैंस करते ही संबंधित डिपार्टमैंट को तुरंत पता चल जाता है”। प्रधान जी ने राजकुमार को समझाते हुये कहा।

“किन्तु इस मामले में जांच केवल केंद्र सरकार करवा सकती है। तीन चार दिन में तो ये खबर भली प्रकार से पहुंच भी नहीं पायेगी सूचना एवम प्रसारण मंत्रालय में। फिर और भी बहुत काम रहते हैं उनके पास देश भर से। इसलिये इस मामले में पंद्रह दिन का समय देना ही ठीक है, जिससे कि मंत्रालय को इस मामले को समझने और कार्यवाही करने का उचित समय मिल जाये”। अपनी बात कहकर प्रधान जी मुस्कुराने लगे। उन्हें पता था कि राजकुमार उनके हर छोटे बड़े पैंतरे को बहुत ध्यान से सीख रहा था और जो समझ में नहीं आता था, तुरंत पूछ लेता था।

“ये बात तो बिल्कुल ठीक कही आपने, प्रधान जी”। राजकुमार ने जैसे सब कुछ समझते हुये कहा। इन छोटे-बड़े फैसलों से पिछले चार महीनों में राजकुमार ये समझ चुका था कि प्रधान जी के पास व्यवहारिक ज्ञान और अनुभव बहुत अधिक था। इसका कारण स्पष्ट रूप से उनके द्वारा पिछले कई वर्षों से समाज सेवा के लिये इस प्रकार के काम करते रहना था, जिससे अलग अलग तरह की स्थितियों से उनका वास्ता पड़ता रहता था और अनुभव प्राप्त होता रहता था।

“लेकिन प्रैस कांफ्रैंस से भी पहले हमें एक और काम करना होगा, पुत्तर जी। हमें हर बड़े अखबार के संचालक से मिलना होगा और उनसे सहायता मांगनी होगी”। प्रधान जी ने एक और खुलासा किया, उन्हें पता था अब राजकुमार का अगला प्रश्न क्या होगा।

“पर वो क्यों प्रधान जी, आम तौर पर तो आप ऐसा नहीं करते?” आशानुसार ही राजकुमार का ये प्रश्न सुनकर प्रधान जी मुस्कुरा दिये।

“वो इसलिये पुत्तर जी, कि इन चार महीनों में तुमने न्याय सेना को केवल सामान्य या मध्यम स्तर के मामले डील करते हुये देखा है। ये मामला बहुत बड़ा है, इसलिये इसकी रणनीति भी अलग ही होगी। दूरदर्शन अपने आप में ही मीडिया का एक बहुत बड़ा हिस्सा है, इसलिये लगभग सारे बड़े अखबारों के साथ बहुत अच्छे संबंध होंगें इसके उच्च अधिकारियों के”। प्रधान जी ने बात को विराम देते हुये राजकुमार की ओर भेदभरी दृष्टि से देखा।

“और वो अधिकारी इस मामले में अखबारों को कवरेज दबाने के लिये बोल सकते हैं। इसलिये हमें पहले हर बड़े अखबार के संचालक से इस मामले में बात करके उसका रुख देखना होगा, ताकि हमें ये पता चल सके कि इस मामले में हम अखबारों से कितने सहयोग की अपेक्षा कर सकते हैं”। राजकुमार ने सबकुछ समझ जाने वाले भाव में कहा।

“ओ तेरे बच्चे जीन, बड़ा तेज़ दिमाग है तेरा। एक सिरा हाथ में आते ही पूरी पहेली हल कर देता है तू”। प्रधान जी ने राजकुमार की प्रशंसा करते हुये कहा और अपनी बात को आगे बढ़ाया।

“इस तरह के बड़े मामलों में अखबारों का योगदान बहुत महत्वपूर्ण होता है पुत्तर जी, जिसके चलते सबसे पहले हमें इस मोर्चे पर अपनी ताकत को तोल लेना चाहिये। इससे हमें पता चल जायेगा कि बाकी बचे मोर्चों पर कितनी ताकत लगानी होगी हमें इस लड़ाई को जीतने के लिये”। प्रधान जी ने अपनी बात पूरी की तो राजकुमार एक बार फिर सवाल पूछने वाली नज़र से उनकी ओर देख रहा था।

“किसी किसी मामले में विभन्न कारणों के चलते अखबार खुल कर हमारा साथ नहीं दे पाते, पुत्तर जी। फिर ऐसे मामलों में हम हज़ारों पोस्टर्स बनवा कर शहर के कोने कोने में लगवाते हैं जिससे कि हमारा मुद्दा लोगों की दृष्टि में आ सके और चर्चा का विषय बन सके। इस तरह के मामलों में अधिक से अधिक चर्चा बहुत सहायता करती है हमारी, क्योंकि इससे संबंधित डिपार्टमैंट के अधिकारियों पर बहुत मनोवैज्ञानिक दबाव बनता है”। राजकुमार ध्यान से प्रधान जी की सारी बातें सुनता और समझता जा रहा था।

“किसी भी प्रकार की लड़ाई सबसे अधिक मनोवैज्ञानिक स्तर पर ही लड़ी जाती है, पुत्तर जी। अगर आपने मनोवैज्ञानिक स्तर पर सामने वाले को विचलित कर दिया या डरा दिया तो फिर आपकी जीत की संभावना बहुत बढ़ जाती है क्योंकि सामने वाले की हिम्मत टूट जाती है”। प्रधान जी एक बार राजकुमार की ओर देखकर मुस्कुराये।

“और हिम्मत टूटने के बाद कोई भी लड़ाई जीती नहीं जा सकती”। राजकुमार ने प्रधान जी की बात पूरी करते हुये कहा।

“आज तुम्हें एक और बहुत महत्वपूर्ण बात बताता हूं, पुत्तर जी। इसे ध्यान से सुनो और समझो”। राजकुमार का पूरा ध्यान प्रधान जी के चेहरे पर ही केंद्रित था।

“तुम्हें याद है पहली बार कार्यालय आने पर मैने तुम पर बहुत जोर से बनावटी क्रोध का प्रदर्शन किया था। वो केवल तुम्हारा मनोवैज्ञानिक स्तर देखने के लिये था। अधिकतर लोग मेरे इस क्रोध वाले रूप को देखकर या तो बिल्कुल ही डर जाते हैं या फिर विचलित हो जाते हैं। इससे मुझे पता चल जाता है कि इस आदमी को हराने में अधिक मुश्किल नहीं होगी”। प्रधान जी ने एक और रहस्य खोला।

“ओह, तो इसीलिये आपने कहा था कि मैं तो तुझे परख रहा था। आप केवल मनोवैज्ञानिक स्तर पर मेरी मजबूती या कमज़ोरी को देखना चाहते थे”। राजकुमार ने एक बार फिर सब समझ जाने वाले अंदाज़ में कहा।

“बिल्कुल ठीक जगह पहुंच गया है तू, यही कारण था तुझपर क्रोध करने का। तेरे विचलित न होने पर मैं समझ गया था कि तू कोई बड़ा कंजर है, तुझसे दुश्मनी करने में नहीं, दोस्ती करनें में ही लाभ है”। प्रधान जी राजकुमार की ओर देख कर हंस दिये।

“और इसीलिये आपने मुझे संगठन में शामिल कर लिया”। राजकुमार ने भी मुस्कुराते हुये कहा।

“ये अकेला कारण तो नहीं था, पर ये भी एक महत्वपूर्ण कारण था। तेरे प्रधान के गुस्से को बिना विचलित हुये झेल जायें, ऐसे बहुत कम लोग हैं इस शहर में। बड़े बड़े अधिकारी भी झेल नहीं पाते मेरा वो रूप। जब तू मेरे उस रुप से भी नहीं डरा और अपनी बात पर अड़ा रहा तो मैं समझ गया कि तुझे जल्दी कोई डरा नहीं सकता, और एक निडर योद्धा तो किसी भी सेना की शान ही बनता है”। प्रधान जी के इन शब्दों के साथ ही साथ राजकुमार सोच रहा था कि उपर से भोला दिखने वाले इस आदमी के पास कितना जबरदस्त व्यवहारिक ज्ञान है कई मामलों में।

“ये बात तो मेरी मां भी कहती है प्रधान जी, कि एक बार ये किसी ज़िद पर अड़ जाये तो फिर इसे किसी भी तरह से डरा कर या दबा कर उस ज़िद से हटाया नहीं जा सकता, केवल प्यार से समझा कर ही मनाया जा सकता है। मुझे ढ़ीठ कहकर बुलाती हैं वो, कि एक बार अड़ गया तो अड़ गया”। राजकुमार को समझ नहीं आ रहा था कि वो अपनी खूबी बता रहा है या खामी।

“और लड़ाई में तो केवल अड़े रहने वाले लोग ही जीत हासिल करते हैं। हर तरह के दबाव को झेलकर भी लड़ते रहना ही योद्धा होने की निशानी है”। प्रधान जी एक के बाद एक सबक देते जा रहे थे राजकुमार को।

“समझ गया प्रधान जी, तो फिर कहां से शुरू किया जाये, अखबार संचालकों से मिलने का ये अभियान”। राजकुमार सबकुछ समझ कर एक बार फिर मुद्दे की बात पर आ गया था।

“बाऊ जी या भाजी को तो चार बजे के बाद ही मिला जा सकता है, क्यों न अपने क्रांतिदूत भाई को मिल लिया जाये?” कहते कहते प्रधान जी ने अपना मोबाइल फोन निकाला और एक नंबर डायल कर दिया।

“ओ नमस्कार मेरे पंडित जी, मेरे ब्राहमण देवता……… ओ सब ठीक है जी। बस आपके दर्शन करने का मन किया तो फोन कर लिया……… आ जायें फिर………… दस मिनट में पहुंच गये जी”। प्रधान जी के फोन बंद करते करते राजकुमार ने गाड़ी की चाबी उठा ली थी। वो समझ चुका था कि अब उन्हें क्रांतिदूत के पास जाना है।

 

हिमांशु शंगारी