संकटमोचक 02 अध्याय 05

Sankat Mochak 02
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“मां, आज मैं एक अदभुत व्यक्ति से मिला। महानता के स्पष्ट लक्षण थे उनमें”। दोपहर के खाने के समय राजकुमार अपनी मां स्नेह लता से कह रहा था।

“ऐसा क्या देख लिया तूने जो इतनी तारीफ कर रहा है?” स्नेह लता जानती थी कि राजकुमार बहुत कम ही किसी की इस प्रकार प्रशंसा करता था। शुरू से ही प्रतिभाशाली होने के कारण वो लोगों की खूबियों और कमियों को तेजी से पहचान लेता था। अधिकतर लोगों की कमियां जल्द ही नज़र आ जाने के कारण उसके मुख से इस प्रकार की तारीफ कम ही निकलती थी किसी के लिये।

“क्या बताऊं उनके बारे में, मां। एक सच्चा शूरवीर, एक बहुत ही विनम्र इंसान, न्याय के लिये लड़ने वाला और प्रेम से भरपूर, कहां मिलते हैं इतने सारे लक्ष्ण एक ही व्यक्ति में आज के युग में”। राजकुमार के हाव भाव से स्पष्ट जाहिर था कि वो प्रधान जी के व्यक्तिव से बहुत प्रभावित हुआ था।

“अगर सच में ये सारी खूबियां हैं उनमें, तो निश्चित रूप से कोई महान व्यक्ति ही होंगे। इतने सारे अच्छे लक्ष्ण और वो भी एक साथ तो केवल महान लोगों में ही होते हैं”। स्नेह लता ने भी प्रधान जी से प्रभावित होते हुये कहा।

“हां मां, न्याय सेना के नाम से एक बड़ा संगठन चलाते हैं वो। ये संगठन पीड़ितों की सहायता के लिये काम करता है। बहुत बड़ी बड़ी लड़ाईयां लड़ी हैं उन्होंने इस शहर में पीड़ितों को न्याय दिलवाने के लिये। इससे उनके सच्चे वीर होने का पता चलता है”। राजकुमार ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये कहा।

“इतना प्रभाव होने के बाद भी अपनी कुर्सी पर संगठन के दूसरे पदाधिकारियों को बैठने देते हैं, इससे उनके विनम्र होने का पता चलता है। राजीव के मामले में आज उनसे मिलने गया था मैं। हालांकि दूसरे पक्ष की सहायता कर रहे थे वो, फिर भी हमें भरोसा दिलवाया है कि अगर हमारा पक्ष सत्य हुआ तो वे न्याय का ही साथ देंगें। इससे उनके न्याय पसंद होने का पता चलता है”। अपनी ही धुन में कहता चला जा रहा था राजकुमार। स्नेह लता ध्यान से उसकी बातें सुनती जा रही थी।

“छोटे बड़े सब लोगों से इस प्रकार स्नेह से बात करते हैं कि किसी को भी एक पल में अपना बना लें। मुझसे भी ऐसे बात की जैसे कोई बड़ा भाई या पिता स्नेहपूर्वक अपने छोटे भाई या पुत्र से बात करता है। इससे उनके भीतर उमड़ रहे प्रेम के सागर की कल्पना की जा सकती है, मां”। राजकुमार ने अपनी बात को पूरा करते हुये कहा।

“तब तो अवश्य ही कोई सदपुरुष होंगे, किसी दिन घर आने के लिये निवेदन करना उनसे। ऐसे लोग जिस स्थान पर भी जाते हैं, उसे पवित्र कर देते हैं”। स्नेह लता ने प्रेम भरे स्वर में कहा।

“अवश्य कहूंगा मां, पर मुझे आपसे एक और बात भी करनी है”। राजकुमार ने एक बार फिर स्नेह लता की ओर देखते हुये कहा।

“बस अब खाना भी खायेगा या बातें ही करता रहेगा। एक तो तेरी ये बातें नहीं खत्म होतीं कभी। कितना बोलता है तू, पता नहीं आगे चलकर क्या काम करेगा तू?” स्नेह लता ने प्रेम भरे स्वर में राजकुमार को डांटते हुये कहा।

“देखना मां, शिव कृपा से एक दिन तेरे इस बेटे की बातें सुनने के लिये ही लोग उसे पैसे देंगे। अपनी बातों से ही कमायेगा तेरा ये बेटा। बस ये आखिरी बात है मां, इसके बाद केवल खाना”। राजकुमार ने स्नेह लता को मनाने वाले स्वर में कहा।

“अच्छा बोल फिर जल्दी से”। स्नेह लता जानती थी कि राजकुमार के मन में एक बार कोई बात आ गयी तो फिर कहे बिना चैन नहीं आता था उसे। बहुत स्पष्ट स्वभाव था उसका, अच्छी बुरी हर बात मुंह पर ही बोल देता था, और वो भी सामान्य भाव से ही।

“मां, आज उनसे हुयी बातचीत के दौरान मुझे ये लगा कि वो मुझे अपने संगठन में काम करने का प्रस्ताव देंगे। बहुत अच्छा संगठन है मां, पीडितों की सहायता के लिये काम करता है। अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं अपनी पढ़ाई के बाद बचने वाला समय उनके साथ लगा दूं?” राजकुमार ने आशा भरी नज़रों से स्नेह लता की ओर देखते हुये कहा।

“अगर तुझे लगता है कि इतना अच्छा संगठन है, तो अवश्य लगा अपना समय इस संगठन के कार्यों में। अच्छे कामों में लगाया गया समय ही इंसान के काम आता है बस, बाकी सारा समय तो व्यर्थ ही जाता है”। स्नेह लता ने राजकुमार को प्रोत्साहित करते हुये कहा। उसे पता था कि चारों भाईयों में से राजकुमार अलग ही तरह का था। उसे अधिकतर क्षेत्रों से जुड़े विषयों के बारे में ज्यादा से ज्यादा ज्ञान जुटाने का और भलाई के काम करने का बहुत शौक था।

“ये तो आपने बहुत अच्छी बात कही मां, बस अब केवल खाना और खाने के अलावा कुछ नहीं”। कहने के साथ ही राजकुमार ने अपना पूरा ध्यान खाने पर लगा दिया। स्नेह लता के चेहरे पर राजकुमार की खुशी देखकर मुस्कुराहट आ गयी थी। राजकुमार की 9 वर्ष की आयु में ही उसके पिता का देहांत हो जाने के बाद उसने ही इन चारों भाईयों की परवरिश की थी। इसलिये माता और पिता दोनों का कार्य वो ही करती थी। राजकुमार चारों भाईयों में दूसरे नंबर पर था और बाकी सब भाईयों से कई मायनों में अलग भी था।

 

हिमांशु शंगारी