संकटमोचक अध्याय 23

Sankat Mochak
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सुल्ताना डाकू घर पर है?……… राजकुमार ने घर में प्रवेश करते ही ज़ोर का नारा लगा दिया था। उसे पता था कि प्रधान जी कभी कभी अकबर की तरह सुल्ताना डाकू के किरदार में भी आ जाते थे।

ओ मेरा पुत्तर आ गया, ओ मेरा राजकुमार आ गया। अंदर से ही प्रधान जी की ज़ोरदार आवाज़ आयी तो हनी ने राजकुमार की ओर देखा और दोनो ही मुस्कुरा दिये।

ओ बड़ी देर लगा दी यार जी आने में। बड़ी देर से इंतजार कर रहे हैं सब। प्रधान जी ने पास आते आते कहा। चंद्रिका के चरण स्पर्श का जवाब देने के बाद जैसे ही उनकी नज़र हनी पर पड़ी, एक दम से उनके मुंह से निकल पड़ा।

ओ मेरा छोटा राजकुमार, ओ मेरा छोटा युवराज। कहते हुये जब प्रधान जी ने हनी को गले से लगाया तो राजकुमार और हनी दोनो ही ज़ोर से हंस दिये।

ओये ऐसे क्यों हंस रहे हो दोनो……………………अच्छा अब समझा। इस कंजर ने आज फिर मेरी नकल उतार कर तुझे बताया होगा कि प्रधान अंकल तुझे और इसे देखकर क्या क्या कहेंगे। प्रधान जी ने ठहाका लगाते हुये कहा।

आपने बिल्कुल ठीक समझा प्रधान जी। हुबहु नकल करता है ये आपके अंदाज़ की।

छोटी सी उम्र में ही पूरा शैतान है ये। प्रधान जी ने हनी को अपने गले से और भी ज़ोर के साथ भींचते हुये कहा।

आखिर बेटा किसका है, पापा। राजकुमार भईया का बेटा और शैतान न हो। ऐसा कैसे हो सकता है। पास आ चुकी मीनू के इन शब्दों ने एक बार फिर सबको मुस्कुराने का कारण दे दिया था।  

कैसी हो चंद्रिका। मीनू ने चंद्रिका की ओर बढ़ते हुये कहा।

मैं ठीक हूं दीदी, आप कैसी हैं। चंद्रिका ने आगे बढ़कर मीनू को गले लगाते हुये कहा।

अब वहीं पर सारी बातें कर लोगे या अंदर भी आओगे। रानी की आवाज़ ने सबको चौंकाया तो सब कमरे की ओर चल दिये।

पुन्नु कहां है प्रधान जी। राजकुमार ने इधर उधर देखते हुये कहा।

गुलाब जामुन लेने गया है, यहीं तक। आता ही होगा। प्रधान जी ने जवाब दिया।

आता ही होगा नहीं पापा, आ गया। पुनर्वसु की इस आवाज़ को सुनते ही राजकुमार ने पलट कर देखा तो पुन्नु अपने हाथ में पकड़ा हुआ कुछ सामान मीनू को पकड़ा रहा था।

ओ मेरा पुन्नु पुत्तर आ गया। राजकुमार के प्रधान जी के अंदाज़ में नारा लगाते ही कमरे में सब ज़ोर से हंस दिये।

लगभग बीस वर्ष का पुन्नु अब भरपूर जवान हो चुका था। कसरत करने के कारण तगड़ा शरीर बनाया था उसने, और देखने में प्रधान जी का ही रूप लगता था।

कैसे हैं भईया, इस बार बड़ी देर बाद आये आप। कहते हुये पुन्नु ने राजकुमार के चरण स्पर्श किये।

अरे चंडीगढ़ जाकर सैट हो गया है अब ये कंजर। अब इसे हमारी याद कहां से आयेगी। किसी के कुछ समझने से पहले ही प्रधान जी का छेड़ने वाला स्वर कमरे में गूंज गया।

और आप तो जैसे रोज़ चंडीगढ़ आते हैं मुझे मिलने। पिछले पांच साल में एक बार भी आयें हैं चंडीगढ़। मैं तो फिर भी साल में दो से चार बार आ जाता हूं आपसे मिलने जांलधर। राजकुमार ने पुन्नु को गले से लगाते हुये कहा।

आपके अलावा आज भी इन्हें कोई चुप नहीं करवा सकता भईया। प्रधान जी को कोई जवाब न सूझता देखकर मीनू ने हंसते हुये कहा।

इससे तो हार जाने में भी मुझे मज़ा आता है। मेरी जान है ये कंजर। इतना प्यार डाल के पता नहीं क्यों इतनी दूर जाकर बैठ गया है अब। प्रधान जी की आवाज़ में भारीपन आ गया था।

और सुनाईये प्रधान जी, न्याय सेना का काम कैसे चल रहा है। राजकुमार ने विषय बदलने के लिये कहा। प्रधान जी के स्वर में छिपी उदासी को पूरी तरह से भांप गया था वो।

काम तो अभी भी कोई नहीं रुकता तेरे प्रधान का, पुत्तर। पर अब वो मज़ा नहीं आता जो पहले आता था। तू क्या गया, जैसे मेरा दिल ही निकाल के ले गया कोई। सब बहुत याद करते हैं तुझे संगठन में। तेरा सैक्रटरी जनरल का पद आज भी न्याय सेना में तेरे नाम पर ही है। कोई दूसरा नहीं ले पाया आज तक उसे। प्रधान जी के स्वर में उदासी बढ़ती ही जा रही थी।

और कोई ले भी नहीं पायेगा, प्रधान जी। राजकुमार कोई रोज रोज थोड़े पैदा होते हैं। राजकुमार ने सीना फुलाते हुये कहा। सब उसकी इस बात पर मुस्कुरा दिये, पर प्रधान जी अभी भी गंभीर ही थे।

तू आजा यार वापिस, तेरे बिना वो मज़ा नहीं आता किसी काम में। तेरे बिना आज तक किसी ने हिम्मत नहीं की मेरा हाथ पकड़ कर दबाने की। कई बार बड़ा दिल करता है कि कोई मेरा हाथ दबा कर मुझे चुप करा दे। प्रधान जी के स्वर में उदासी के साथ साथ प्रेम भी गहरा होता जा रहा था।

ये बात सच है भईया। पापा को एक बार गुस्सा चढ़ जाये तो फिर कोई इन्हें पकड़ कर शांत करने की हिम्मत नहीं कर सकता। उस समय सब आपको याद करते हैं। आप कैसे शांत कर लेते थे इन्हें, जब ये पूरे क्रोध में भी होते थे। पुन्नु ने हैरान होते हुये पूछा।

ये प्यार की बात है पुन्नु। वो प्यार जो मेरे दिल की गहरायी से निकलता है और प्रधान जी के दिल की गहरायी तक जाता है। प्रधान जी जानते हैं कि मैं जब भी इन्हें रोकता हूं, अपने उसी प्यार के हक से रोकता हूं, और इसीलिये ये रुक जाते हैं। राजकुमार के स्वर में भी अब प्रेम उमड़ आया था।

बिल्कुल ठीक कह रहा है ये कंजर, आज तक इसने जब भी मुझे रोका या टोका, सिर्फ मेरे फायदे के लिये। कभी अपना फायदा नहीं देखा इसने। इसीलिये इसकी कोई भी बात आज भी बिना सोचे ही मान लेता हूं मैं। मुझसे कहीं ज्यादा परवाह है इसे मेरी। प्रधान जी के स्वर में प्रेम बढ़ता जा रहा था।

और आपने भी तो हमेशा अपने फायदे से पहले मेरा फायदा सोचा है, प्रधान जी। इसी का नाम तो प्यार है। लेना और देना तो व्यापार है। देते रहना और देकर खुश होते रहना ही प्यार है। राजकुमार ने अपने आप को संभाल लिया था।

लो हो गयी इनकी फिलासफी शुरु। चंद्रिका की इस आवाज़ ने बातचीत का सिलसिला तोड़ा तो सब लोग हस पड़े।

ओ यार, सचमुच बहुत बड़ा फिलासफर बन गया है तू। इतनी किताबें भी लिख दी हैं तूने। तुझे एक सफल लेखक देखकर गर्व होता है पुत्तर जी। पर इतना बड़ा बदलाव आया कहां से तेरे अंदर। प्रधान जी का मूड अब कुछ ठीक हो गया था।

मैं तो वैसा ही हूं प्रधान जी, बिल्कुल नहीं बदला। आपने क्या बदलाव देख लिया। राजकुमार ने प्रधान जी को छेड़ते हुये कहा।

हर समय आग में कूदने को तैयार रहता था तू, और अब लोगों को सच और धर्म कर्म का उपदेश देता है। सुना है लोग तुझे पंडित जी कहकर तेरे पैरों को हाथ लगाते हैं अब। प्रधान जी ने मज़ा लेते हुये कहा।

मेरा रास्ता तब भी सच का था प्रधान जी, और आज भी सच का ही है। केवल तरीका बदला है। राजकुमार ने मुस्कुराते हुये कहा।

इनकी बातें तो चलती ही रहेंगी चंद्रिका, आओ हम खाने का प्रबंध करें। कहती हुयी मीनू ने चंद्रिका का हाथ पकड़ा और दोनो हंसती हुयीं रसोई की ओर चल दीं।

हनी, आओ हम चाकलेट लेने चलते हैं। पुन्नु ने हनी की ओर देखते हुये प्यार से कहा।

पुन्नु भईया, आप मुझे बहुत चाकलेट लेकर देते हो। हनी ने एक दम से खुश होते हुये कहा।

तेरे बाप की खिलायी हुई ढेर सारी चाकलेटों का कर्ज उतार रहा है, पुत्तर। तू खाता जा। कहते हुये प्रधान जी ने हनी को गले से लगाया तो राजकुमार और पुन्नु एक बार फिर हंसने लगे।

सोनिका और निशा कैसी हैं, प्रधान जी। राजकुमार ने पुन्नु और हनी के जाते ही पूछा।

दोनों अपने अपने घर सुखी हैं। प्रधान जी ने खुश होते हुये कहा। सोनिका और निशा की शादी हो चुकी थी।

खाना तैयार है। इतने में मीनू की आवाज़ आयी।

तो ले आओ फिर, बहुत भूख लगी है। प्रधान जी ने जल्दी से कहा।

हिमांशु शंगारी