संकटमोचक अध्याय 16

Sankat Mochak
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पापा आ गये, पापा आ गये। प्रधान जी के घर के भीतर घुसते ही उनका सात साल का बेटा पुनर्वसु दौड़ता हुआ उनकी ओर आया और उनकी टांगों से लिपट गया।

ओ मेरा पुन्नु पुत्तर, ओ मेरा शेर। कहते हुये प्रधान जी ने जब उसे गोद में उठा कर गले से लगाया तो मानों उनकी सारी थकान गायब हो चुकी थी। प्रधान जी पुनर्वसु को प्यार से पुन्नु ही कहते थे।

नमस्ते भईया, नमस्ते भईया कहते हुये प्रधान जी की बेटियां सोनिका और निशा तेज़ चलती हुईं उनकी ओर आयीं।

नमस्ते सोना, नमस्ते निशा। कहते हुये राजकुमार ने प्रधान जी पीछे पीछे ही घर के अंदर कदम रखा।

इतनी देर क्यों कर दी, इतनी देर क्यों कर दी। बालक पुन्नु प्रधान जी की छाती पर अपने छोटे छोटे हाथों से घूंसे बरसाते हुये कह रहा था।

ओ बस कर मेरे पुन्नु, मेरे शेरु। पापा आज कहीं जरूरी काम में फंस गये थे, मेरी डार्लिंग। प्रधान जी ने जैसे रूठे हुये पुन्नु को मनाने की कोशिश की।

इनको तो रोज ही कोई जरूरी काम पड़ जाता है बेटा। सारी दुनिया के काम संवारते रहते हैं, बस एक अपने घर का ही पता नहीं। प्रधान जी के कानों में उनकी ओर आती हुई उनकी पत्नी रमा रानी की आवाज़ पड़ी तो वो समझ गये कि आज उनकी खैर नहीं।

क्यों गुस्सा करती है मेरी रानी, तेरे लिये तो मेरी जिंद जान हाज़िर है। बता तेरा कौन सा काम रुक गया, अभी कर देता हूं। प्रधान जी के स्वर में चापलूसी स्पष्ट झलक रही थी।

तीन दिन से बोल रही हूं कि गैस का सिलेंडर खत्म होने वाला है, पर आपके कानों पर तो जूं ही नहीं रेंगती। आज शाम एक दम से बंद हो गया। साथ वाली उषा जी से लेकर लगाया है अब। वापिस कब करना है, उन्हें भी जरूरत पड़ सकती है। शिकायत भरे स्वर में रानी ने कहा।

उस कंजर काले को बोला भी था मैने, लगता है आज इसकी शामत आयी है। कहते कहते प्रधान जी ने अपने मोबाइल से एक नंबर मिला दिया।

ओये पैरी पौना दे लगदे, तुझे मैने घर में एक भरा हुआ सिलेंडर देने को कहा था, देकर क्यों नहीं गया अभी तक। शहर के सबसे बड़े प्रधान की नाक तूने एक सिलेंडर के कारण कटवा दी खोते। अब जल्दी कर और सिलेंडर लेकर आजा। पांच मिनट से पहले सिलेंडर घर में होना चाहिये, नहीं तो तेरी खैर नहीं। प्रधान जी ने दूसरी ओर से बोलने वाले की कोई बात सुने बिना ही फोन काट दिया और फिर अपनी पत्नी की ओर देखकर मुस्कुराने लगे।

लो मेरी रानी, अभी आ जायेगा सिलेंडर। अब तो गुस्सा थूक दे। रानी को मनाने वाले स्वर में कहा प्रधान जी ने।

राजकुमार और सारे बच्चे उनकी इस नोंक झोंक का आनंद ले रहे थे। राजकुमार जानता था कि प्रधान जी ने अब से पहले किसी को सिलेंडर के लिये कहा ही नहीं था, और काला तो केवल बलि का बकरा बना था।

मेरे गुस्से से यहां फर्क ही किसे पड़ता है। आपको तो दुनियादारी के दुखड़े सुनने से ही फुर्सत नहीं। कहते हुये रानी रसोई की ओर चल दी तो प्रधान जी ने चैन की सांस ली।

चलो पुन्नु, हम चाकलेट लेकर आते हैं। राजकुमार ने कहा तो पुन्नु एकदम से प्रधान जी की गोद से उछल कर राजकुमार की गोद में आ गया। राजकुमार और प्रधान जी ने अपनी दोस्ती को पारिवारिक संबंधों का रूप दे दिया था और अब इन दोनों के परिवारों में प्रेम बहुत गहरा था। प्रधान जी की तीनों बेटियां और उनका बेटा राजकुमार को भईया कह कर बुलाते थे, और छोटा पुन्नु तो खास तौर से राजकुमार के साथ बहुत हिला मिला हुआ था।

भईया हमारे लिये भी चाकलेट लेकर आना। दरवाजे की ओर जाते हुये राजकुमार के कानों में 13 साल की निशा की आवाज़ पड़ी तो उसने मुड़कर पीछे देखा।

ऐसा कभी हुआ है भला कि तुम्हारा भाई चाकलेट लेने गया हो और तुम्हारे लिये न लेकर आये। राजकुमार के स्वर में अपार स्नेह भरा हुआ था। अपने कंधे से लिपटे पुन्नु को लेकर वो पास ही में पड़ती चाकलेट की दुकान की ओर बढ़ता जा रहा था। 

हिमांशु शंगारी