संकटमोचक अध्याय 13

Sankat Mochak
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शशी नागर दैनिक प्रसारण के ब्यूरो चीफ थे। दैनिक प्रसारण जालंधर से प्रसारित होने वाला हिंदी का एक और बड़ा दैनिक समाचार पत्र था जिसका मुख्यालय किसी और प्रदेश में था। ब्यूरो चीफ होने के कारण शशी नागर का खबरों पर पूरा नियंत्रण रहता था।

एक बहुत ही भले इंसान थे शशी नागर। पत्रकार होते हुये भी उनमें पत्रकारों जैसा स्वभाविक तीखापन न होते हुये अधिकतर लोगों का भला करने की भावना रहती थी। समाचार पत्र के स्टाफ में उनका बहुत आदर था और सबके साथ बहुत प्रेम से बोलते थे वे।

अपने कार्यालय में बैठे कुछ समाचारों को देख रहे थे शशी नागर कि इतने में प्रधान जी का विशेष अंदाज़ वाला स्वर उनके कानों में गूंजा।

ओ मेरे ब्राहमण देवता की जय हो। अंदर आते हुये प्रधान जी ने नारा लगाया। नागर ने प्रधान जी के फोन के बाद ही दरबान को बोल दिया था की प्रधान जी आयें तो उन्हें सीधा अंदर भेज दिया जाये।

आईये प्रधान जी, बड़े दिनों बाद मुलाकात हो रही है आज। कैसे हैं आप। नागर ने प्रधान जी और राजकुमार के अभिवादन का हाथ जोड़कर उत्तर देते हुये कहा।

सब कुशल मंगल है आपके राज में ब्राहमण देवता। बस एक छोटा सा काम है आपसे। प्रधान जी ने सीधे काम की बात पर आते हुये कहा।

आपका कोई काम रुका है आज तक दैनिक प्रसारण में, जो आज रुक जायेगा। हंसते हुये नागर ने कहा।

ओ मैं ताबेदार मेरे नागर साहिब। प्रधान जी ने एक और नारा लगाया।

काम तो होते रहेंगे, सबसे पहले आप इतमिनान से बैठ कर चाय पीजिये। देखिये आपकी पसंद के बिस्किट मंगवाये हैं मैने। नागर के इतना कहते कहते एक कर्मचारी चाय और बिस्किट रख चुका था। नागर ने शायद पहले से ही बोल कर रखा था इस बारे में।

ओ देखा पुत्तर जी, इसको कहते हैं भाई। मेरी पसंद के बिस्किट तक याद हैं नागर साहिब को। एकदम बच्चों जैसे खुश होते हुये कहा प्रधान जी ने राजकुमार की ओर देखते हुये, जो पहले से ही मुस्कुरा रहा था।

अब बताईये प्रधान जी, क्या सेवा है मेरे लिये। प्रधान जी ने जब चाय की कुछ चुस्किया और दो बिस्किट अंदर कर लिये तो नागर ने अपने शहर विख्यात विनम्र स्वभाव में पूछा।

काम आपको राजकुमार बतायेंगे, मैं तो चाय और बिस्किट का मज़ा लूंगा ब्राहमण देवता, चाय तो बहुत आला बनी है। प्रधान जी की इस सरलता पर नागर और राजकुमार दोनो ही मुस्कुरा दिये।

राजकुमार के मुंह से सारी बात सुनने के बाद नागर ने प्रधान जी की ओर देखा जो अपनी चाय समाप्त करके उन दोनों की ओर ही देख रहे थे।

आप कोई चिंता मत कीजिये प्रधान जी, दैनिक प्रसारण पूरी तरह से आपका साथ देगा। आप सत्य के साथ हैं और हम आपके साथ हैं। निश्चिंत होकर लगाइये अपना मोर्चा। हम हर मोर्चे पर आपके साथ खड़े रहेंगे। नागर के स्वर में पूर्ण आश्वासन और अपनत्व था।

ओ बस तो फिर मेरी चिंता खत्म मेरे ब्राहमण देवता। बोलो नागर साहिब की………………जय । अपने ही अंदाज़ में जब प्रधान जी ने नारा लगाया तो राजकुमार और नागर, दोनों में से कोई भी ठहाका लगाये बिना न रह सका।

अजब था ये आदमी। प्यार से हर आदमी के सामने झुक जाता था, फिर चाहे इसकी जान ही ले लो। और एक बार किसी बात को लेकर अड़ गया तो फिर चाहे जान चली जाये, पर शान न जाये। इस समय प्रधान जी को एक बच्चे की तरह शशी नागर की जय जयकार करते देखकर कोई सोच भी नहीं सकता था कि ये वही वरुण शर्मा है जिसका नाम सुनते ही भ्रष्ट अधिकारियों और जालिमों के पैरों के नीचे से ज़मीन और सिर के ऊपर से आसमान गायब हो जाता है। सरलता और साहस का अदभुत मिश्रण था इस आदमी में। राजकुमार के दिमाग में एक बार फिर प्रधान जी हावी हो चुके थे।

लो पुत्तर जी, ये तीसरा मोर्चा भी फतह हो गया। प्रधान जी के इन शब्दों ने राजकुमार को चौंकाया तो उसने देखा कि सोचते सोचते ही वो प्रधान जी के साथ नागर साहब के कार्यलय से निकल कर कार पार्किंग तक आ गया था।

अब बचा केवल एक मोर्चा। कहते कहते ही प्रधान जी ने अपना मोबाइल निकाल कर कोई नंबर डायल किया तो राजकुमार समझ गया कि प्रधान जी ने पंजाब ग्लोरी का नंबर मिलाया है।

हैलो………मैं प्रधान बोल रहा हूं………………आकाश जी आ गये क्या……………ओके जी थैंक्यू। कहते हुये फोन बंद कर दिया प्रधान जी ने।

चलो पुत्तर जी, जल्दी से गाड़ी निकालो, आकाश जी आ गये हैं। प्रधान जी कहते हुये तेजी से गाड़ी में बैठ गये।

हिमांशु शंगारी