संकटमोचक अध्याय 03

Sankat Mochak
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हे बजरंग बली, अब तो आपका ही सहारा है। उस शैतान हरपाल सिंह का नाम सुनते ही शहर के सभी पुलिस अफसर तथा राजनेता मेरी सहायता करने से मना कर देते हैं। चमन शर्मा करुण स्वर में शहर के एक प्रसिद्ध मंदिर में भगवान हनुमान के स्वरूप के सामने बैठ कर याचना कर रहा था।

हे संकटमोचक, आपका ये भक्त सारी दुनिया से निराश होकर आपकी शरण में आया है प्रभु। अपने इस भक्त की रक्षा कीजिये प्रभु, रक्षा कीजिये हे संकटमोचक, रक्षा कीजिये। विनती करते हुये चमन शर्मा का गला अधिक से अधिक भारी होता जा रहा था।

चिंता न करो भक्त, संकटमोचक की शरण में सच्चे मन से आने वाले हर भक्त की रक्षा होती है। मन में विश्वास बनाये रहो। संकटमोचक अवश्य ही आपके संकट का निवारण करेंगे। चमन शर्मा ने सिर उठाया तो देखा कि मंदिर के मुख्य पुजारी उससे संबोधित थे।

अब तो केवल इनका ही सहारा है पंडित जी, दुनिया के बाकी सब सहारे तो इस संकट की घड़ी में मेरा साथ छोड़ चुके हैं। अब तो भगवान संकटमोचक ही अपने किसी दूत को भेजें तो मेरा कार्य सिद्ध हो। ये कहते हुये चमन शर्मा ने पुजारी जी के चरण स्पर्श किये और प्रसाद लेकर बाहर की ओर चल दिया।

अपने जूते पहन लेने के बाद चिंता में डूबा हुआ चमन शर्मा भारी कदमों से अभी मंदिर के निकास द्वार की ओर चला ही था कि उसके कानों में एक आवाज़ गूंजी।

अरे चमन भाई, बड़े दिनों के बाद आपके दर्शन हुये हैं आज तो, कहां रहते हो आजकल। चमन शर्मा ने आवाज़ की दिशा में देखा तो पाया कि उनके एक पुराने परिचित सुशील कुमार उनसे संबोधित थे।

क्या बताऊं सुशील भाई, बहुत भारी मुसीबत में फंस गया हूं। रोजी रोटी संकट में है और कहीं से आशा की कोई किरण नहीं दिखाई देती। भारी स्वर में चमन शर्मा ने कहा।

ऐसी कौन सी मुसीबत आ गई चमन भाई, जिसका हल संकटमोचक के इस दरबार में न हो सके। आप मुझे शीघ्र ही अपनी समस्या बतायें, शायद मैं कोई सहायता कर सकूं आपकी। आश्वासन भरे स्वर में सुशील कुमार ने कहा।

चमन शर्मा को हालांकि पता था कि सुशील कुमार एक बहुत ही सामान्य प्रोफाइल का व्यक्ति था और उसकी समस्या का हल उसकी सोच से भी बहुत आगे था, किंतु फिर भी न जाने किस शक्ति के प्रभाव में उसने सुशील कुमार को अपनी सारी व्यथा बता दी।

उस दिन के बाद आज सातवां दिन है, सुशील भाई। शहर के सारे बड़े अधिकारियों और राजनेताओं के पास जाकर अपना दुखड़ा रो चुका हूं, पर हरपाल सिंह का नाम सुनते ही सब कोई न कोई बहाना बना कर भाग जाते हैं। ऐसा लगता है इस शहर में उस शैतान के खिलाफ खड़ा होने वाला भगवान का कोई एक भी फरिशता नहीं है, जो मेरी सहायता कर सके। भरे गले से चमन शर्मा ने कहा।

इसीलिये आज सुबह सुबह ही संकटमोचक के दरबार में याचना करने चला आया, कि शायद भगवान संकटमोचक ही मेरी कुछ सहायता कर दें। इतना कहते हुये सुशील कुमार को हाथ जोड़ते हुये चमन शर्मा मंदिर के निकास द्वार की ओर चल दिया।

बस इतनी सी बात चमन भाई, तो समझो आपका काम हो गया। सुशील कुमार के ये शब्द जैसे चमन शर्मा के कानों में अमृत की तरह पड़े और उसने तेजी के साथ मुड़कर सुशील कुमार की ओर देखा जो उसके बिलकुल पीछे खड़ा मुस्कुरा रहा था।

भगवान संकटमोचक ने आपकी विनती स्वीकार कर ली है चमन भाई, और मुझे आपका कार्य करवाने के लिये साधन बना कर भेज दिया है। लगातार मुस्कुराता हुआ सुशील कुमार बोलता जा रहा था।

चलिये आज मैं आपको भगवान संकटमोचक के एक ऐसे दूत से मिलवाता हूं, जिन पर संकटमोचक की साक्षात कृपा है और जिनके सामने आने से बड़े से बड़े रावण भी डरते हैं। फिर ये हरपाल सिंह क्या चीज़ है। सुशील कुमार के स्वर में पूर्ण आत्मविश्वास था और चमन शर्मा को न जाने क्यों उसकी हर एक बात पर विश्वास होता जा रहा था।

परन्तु सुशील भाई, संकटमोचक भगवान का ऐसा कौन सा दूत है इस शहर में, जिसे मैं अभी तक नहीं जान पाया। चमन शर्मा की उत्सुकुता उसके प्राण लेने पर आयी हुई थी।

अवश्य है चमन भाई, अवश्य है। संकटमोचक के बहुत बड़े भक्त, पीड़ितों के मसीहा, बेसहारों के सहारे और ज़ालिमों के लिये काल हैं वो। सुशील कुमार की आवाज़ उसके हर एक शब्द के साथ तीखी होती जा रही थी और उसके चेहरे पर जीवन के भाव और भी प्रबल होते जा रहे थे, मानो इस व्यक्ति को याद करते ही उसके मन में अमृत वर्षा होने लग गयी थी।

इतना सस्पैस मत बनाइये सुशील भाई और जल्दी से मुझे बताइये, पीड़ितों के इस मसीहा का नाम। ये भी बताइये कि मैं उनसे कैसे और कहां मिल सकता हूं।

तो ठीक है चमन भाई, ये लीजिये मैं सारा सस्पैंस खत्म कर देता हूं और आपका बताता हूं उनके बारे में। सुशील कुमार जैसे सस्पैंस खत्म करने की बजाये बढ़ाता ही जा रहा था।

न्याय सेना पंजाब के नाम से एक संस्था चलाते हैं वो, और नाम है वरुण शर्मा। लेकिन कोई उनका नाम नहीं लेता और सारे क्षेत्र में वे प्रधान जी के नाम से विख्यात हैं। लोग उन्हें प्यार और आदर से प्रधान जी ही कहकर बुलाते हैं। अपनी ही धुन में खोया सुशील कुमार बोलता ही जा रहा था।

यूं तो इस शहर में सामाजिक सस्थाओं से लेकर राजनैतिक पार्टियों तक के सैंकड़ों प्रधान हैं, किंतु जब आपको बिना किसी संस्था या व्यक्ति के नाम के केवल प्रधान जी सुनने को मिले तो समझ जाईये कि वरुण शर्मा जी की ही बात हो रही है, ऐसा है उनका रुतबा। सुशील कुमार इस प्रकार खुश होकर ये सारी बातें बता रहा था जैसे प्रधान जी का कोई बहुत बड़ा भक्त हो।

बड़े से बड़ा अधिकारी, बड़े से बड़ा राजनेता और अखबारों को चलाने वाले भी उनका आदर करते हैं और उनके रास्ते में आने की इस शहर में जिसने भी हिम्मत की, वो इतिहास बन कर रह गया। लेकिन बस एक बात का ही ध्यान रखना पड़ता है उनके पास अपना काम लेकर जाने से पहले………………… बोलते बोलते सुशील कुमार एक दम से जैसे किसी सोच में पड़ गया और उसकी वाणी को भी इसके साथ ही विराम मिल गया।

वो क्या सुशील भाई, आशंकित मन के साथ चमन शर्मा ने पूछा। क्या बहुत पैसे देने पड़ेंगे उनसे काम करवाने के लिये?

पैसों का नाम भी मत लेना उनके सामने, एकदम फक्कड़ आदमी हैं इस मामले में प्रधान जी। पैसे को कोई अहमियत नहीं देते, बल्कि पैसे के बल पर मनमानी करने वालों से उनका 36 का आंकड़ा रहता है। सुशील कुमार एक बार फिर शुरु हो गया।

मैं तो ये कहना चाह रहा था कि प्रधान जी किसी भी काम को पकड़ने से पहले उसे भली प्रकार से परखते हैं। अगर वो काम ग़लत निकले तो फिर वो किसी भी कीमत पर सहायता नहीं करते। सुशील कुमार ने जल्दी से कहा।

पर मेरा काम तो बिल्कुल ठीक है सुशील भाई, और मैं तो बुरी तरह से सताया हुआ हूं। चैन की सांस लेते हुये चमन शर्मा ने कहा।

बस तो फिर कोई चिंता नहीं, प्रधान जी आपका काम अवश्य करेंगे। निर्णय देने वाले भाव में सुशील कुमार ने कहा।

पर मैं उनसे कहां और कैसे मिलूं, जल्दी बताईये सुशील भाई। चमन शर्मा की उत्कंठा एक बार फिर बढ़ने लगी थी।

इसका प्रबंध भी संकटमोचक के इस दरबार में ही हो जायेगा। कहते हुये सुशील कुमार ने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और ढूंढने के बाद एक नंबर मिला दिया।

किससे बात कर रहे हो सुशील………………, चमन शर्मा की बात को बीच में ही काट कर सुशील कुमार नें उसे चुप रहने का इशारा किया। ऐसा लग रहा था जैसे कॉल दूसरी तरफ जुड़ गयी थी।

चरण स्पर्श प्रधान जी, शास्त्री मार्किट वाला सुशील कुमार बोल रहा हूं। सुशील कुमार के ये शब्द सुनते ही चमन शर्मा के शरीर में रोमांच की एक लहर दौड़ गयी और वो एकदम सतर्क होकर सुशील कुमार के पास जाकर खड़ा हो गया ताकि बातचीत का कुछ हिस्सा सुन सके। उसे पता चल चुका था कि सुशील कुमार सीधा प्रधान जी से ही बात कर रहा था।

ओ जीते रहो पुत्तर जी। वर्षा ॠतु के मतवाले मेघ की गर्जना के समान एक आवाज़ सुशील कुमार के मोबाइल से निकल कर पास खड़े चमन शर्मा के कानों में पड़ी तो उसके सारे शरीर में कंपकंपी छूट गयी।

सामने से बोलने वाले की आवाज़ में इतनी अधिक उर्जा थी कि उसका प्रवाह चमन शर्मा को अपने शरीर की एक एक नस में होता प्रतीत हुआ।

प्रधान जी, मेरे एक मित्र हैं चमन शर्मा। इनके साथ बहुत ज़ुल्म हुआ है और कोई इनकी सहायता करने को तैयार नहीं। भगवान संकटमोचक के दरबार में अभी अभी मुझे मिले हैं और मैं इन्हें आपकी शरण में लाना चाहता हूं। चमन शर्मा का पूरा ध्यान इस वार्तालाप पर ही केंद्रित था जैसे उसका जीवन और मरण इसी वार्तालाप पर निर्भर करता हो।

क्या कहा, आप संकटमोचक के दरबार से बोल रहे हैं। तब तो ये संकटमोचक का ही आदेश होगा। इन्हें शीघ्र हमारे पास ले आयें, हम इनकी सहायता अवश्य करेंगे। सामने वाली आवाज़ में उतनी ही उर्जा थी, किंतु संकटमोचक का नाम सुनते ही उस आवाज़ में अपार श्रद्धा भी आ गयी थी।

मैं दस बजे न्याय सेना के कार्यालय पहुंच जाऊंगा, आप इन्हें लेकर दस बजे ही आ जायें। संकटमोचक के दरबार में सिर झुकाने वाले हर भक्त के लिये मेरा सर्वस्व हाज़िर है………… संकटमोचक के अन्य भक्त मंदिर में उनकी जय जयकार कर रहे थे और चमन शर्मा के शरीर में चेतना का प्रवाह बढ़ता ही जा रहा था।

ठीक है प्रधान जी, हम ठीक दस बजे न्याय सेना के कार्यालय पहुंच जायेंगे। आदर से भरपूर आवाज़ में सुशील कुमार ने कहा।

तो ठीक है फिर, दस बजे मिलते हैं। और हां, मेरी ओर से संकटमोचक के चरणों में प्रणाम अवश्य कर देना। इतना कहकर दूसरी ओर से कॉल काट दी गई, पर चमन शर्मा के शरीर में अभी भी जीवन उर्जा का संचार उतना ही प्रबल था।

लीजिये चमन भाई, आपका काम हो गया। मिलाप चौक में न्याय सेना का कार्यालय स्थित है और हमें ठीक दस बजे वहां पहुंचना है। आप अपने घर से इस मामले से संबंधित सारे कागज़ात लेकर ठीक दस बजे वहां पहुंचे और मैं आपको वहीं मिलता हूं। चमन शर्मा की ओर देखते हुये सुशील कुमार ने कहा।

और हां, अगर मिलाप चौक पहुंच कर उनका कार्यालय खोजने में कोई मुश्किल हो तो आस पास किसी से भी पूछ लेना। उन्हें सब जानते हैं। आईये अब संकटमोचक के दरबार में माथा टेकते हैं और घर चलते हैं। कहते हुये सुशील कुमार ने चमन शर्मा को पकड़ कर एक बार फिर संकटमोचक के स्वरूप की ओर खींच लिया।

हिमांशु शंगारी