संकटमोचक 02 अध्याय 24

Sankat Mochak 02
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दूसरे दिन सुबह लगभग दस बजे प्रधान जी अपने कार्यालय में बैठे हुये थे। उनके आगे विभिन्न समाचार पत्र पड़े थे और सामने की कुर्सियों पर न्याय सेना के बहुत से पदाधिकारी बैठे हुये थे।

“मेरे ख्याल से आप सब लोगों ने आज की अखबारें पढ़ लीं होंगीं। मीडिया ने पूरा साथ दिया है हमारा इस मामले में और सोमेश पुरी की प्रैस कांफ्रैंस की धज्जियां उडा कर रख दीं हैं”। कहते हुये बहुत प्रसन्न नज़र आ रहे थे, प्रधान जी। उनके पास ही बैठा राजकु्मार विभिन्न अखबारों को बार बार उठा कर अभी भी कुछ पढ़ता जा रहा था, जैसे हर खबर की तह तक पहुंचने का प्रयास कर रहा हो।

प्रधान जी के कहे अनुसार ही सब अखबारों ने न्याय सेना के पक्ष में और दूरदर्शन के खिलाफ जमकर छापा था। “दूरदर्शन अधिकारियों पर लगाये आरोपों की जांच होनी चाहिये : सोमेश पुरी”, ये था पंजाब ग्लोरी की खबर का शीर्षक। “कलाकारों ने की जस्सी के आरोपों की जांच करवाने की मांग”, दैनिक प्रसारण ने छापा था इस खबर को। “अगर चोर नहीं दूरदर्शन अधिकारी, तो जांच करवायें : सोमेश पुरी”, शिव वर्मा ने थोड़ा तोड़ मरोड़ दिया था सोमेश पुरी के बयान को, सत्यजीत समाचार में छपी इस खबर को सनसनीखेज बनाने के लिये।

लेकिन राजकुमार का सबसे अधिक ध्यान खींच रही थी अमर प्रकाश की वो खबर जिसे खुद आज़ाद ने अपने नाम से छापा था और जिसका शीर्षक था, “वरुण शर्मा ब्लैकमेलर, दूरदर्शन पर लगा रहे हैं झूठे आरोप : सोमेश पुरी”। सब अखबारों में से केवल अमर प्रकाश ने ही सोमेश पुरी का ये बयान छापा था कि वरुण शर्मा दूरदर्शन को ब्लैकमेल कर रहे हैं।

प्रधान जी का नाम सीधे तौर पर आरोपों में लिखने के कारण आज़ाद की इस खबर को उतना पसंद नहीं किया था उन्होंने, और राजकुमार को आज़ाद से बात करके इस प्रकार का नकारात्मक शीर्षक इस्तेमाल करने का कारण जानने के लिये कहा था। राजकुमार ने उन्हें थोड़ा संयम बरतने की सलाह देते हुये कहा था कि आज होने वाली न्याय सेना के पदाधिकारियों की इस मीटिंग के बाद इस बारे में आज़ाद से बात करेगा वो। राजकुमार एक बार फिर से इस खबर को बीच बीच में से पढ़ता जा रहा था।

“एक सामाजिक संगंठन चलाने का दावा करने वाले शहर के एक विवादस्पद और स्वयंभू नेता सोमेश पुरी ने आज एक प्रैस कांफ्रैंस में न्याय सेना के प्रधान वरुण शर्मा पर दूरदर्शन मामले में अधिकारियों को ब्लैकमेल करने के आरोप लगाये हैं। सोमेश ने कहा कि दूरदर्शन में कोई भ्रष्टाचार नहीं है और वरुण शर्मा ये सारा दबाव केवल दूरदर्शन अधिकारियों से पैसा ऐंठने के लिये बना रहे हैं, जिससे अधिकारी बदनामी के डर से उन्हें समझौता करने के लिये कहें”।

“सोमेश दूरदर्शन में कलाकारों से काम के बदले में पैसे की मांग करने के न्याय सेना के आरोप को झूठा साबित करने के लिये अपने साथ कुछ कलाकारों को भी लाये थे। सोमेश के अनुसार ये कलाकार मीडिया को बताने वाले थे कि ऐसे सभी आरोप झूठे हैं और इनमें कोई सच्चाई नहीं है। किन्तु रोचक बात ये है कि पत्रकारों के पूछे जाने पर इन कलाकारों ने एक मत से ये कह दिया कि दूरदर्शन अधिकारियों पर मशहूर गायक जस्सी द्वारा लगाये गये आरोपों की जांच अवश्य होनी चाहिये। इससे प्रैस कांफ्रैंस करने आये इन लोगों के आपसी मतभेद मीडिया के सामने ही जाहिर हो गये”।

“एक और विषय पर बात करते हुये सोमेश ने कहा कि मशीनों की खरीद में घोटाला करने का आरोप भी झूठा है न्याय सेना का, और ऐसा कोई घपला नहीं होता दूरदर्शन में। इस बयान के बाद के रोचक घटनाक्रम में पत्रकारों के कुछ प्रश्नों का जवाब देते हुये खुद सोमेश पुरी ने ही कहा कि यदि दूरदर्शन अधिकारी भ्रष्ट नहीं हैं तो उन्हें इस जांच से कोई ऐतराज़ नहीं होना चाहिये। एक ही मामले में दो बिल्कुल विरोधाभासी बयान देने से सोमेश पुरी ने इस मामले को जहां एक ओर रोचक बना दिया है, वहीं कुछ गंभीर प्रश्नों को भी जन्म दे दिया है”।

“आखिर किसने पैसा दिया इन लोगों को इतने महंगे होटेल में दूरदर्शन के पक्ष में और न्याय सेना के खिलाफ प्रैस कांफ्रैंस करने के लिये? क्यों प्रैस कांफ्रैंस करने वाले सभी लोगों के बीच तालमेल की कमी इस प्रकार दिखाई दे रही थी, जैसे इन लोगों ने इस विषय पर पहले से सहमति न बनायी हो और अलग अलग जगह से सीधे ही पहुंचे हों इस प्रैस कांफ्रैंस के लिये?”

“सारी प्रैस कांफ्रैंस के दौरान ये आभास क्यों होता रहा पत्रकारों को, कि ये लोग केवल किसी के कहने में आकर ऐसे बयान दे रहे हैं, जिनसे ये लोग खुद ही सहमत नहीं हैं? ऐसे और भी कई प्रश्न हैं जिनके जवाब शायद इस प्रैस कांफ्रैंस के पीछे छिपा मास्टरमाइंड ही दे सकता है, जो शायद इनमें से तो कोई भी नहीं है”।

“गौरतलब है कि सोमेश पुरी पिछले बहुत वर्षों से पैकेट वाला दूध बेचने की छोटी सी दुकान चलाते हैं। इसके अतिरिक्त उनकी आय का कोई साधन नहीं है और इस काम से बहुत कम आमदनी होने का हवाला देते हुये वो इन्कम टैक्स तक नहीं भरते कभी। इसके बावजूद भी उनके पास अपनी गाड़ी और मंहगा मोबाइल फोन होना तथा इतने महंगे होटेल में उनका यूं प्रैस कांफैंस करना एक ओर जहां उनकी ईमानदारी पर प्रश्न चिन्ह लगाता है, वहीं दूसरी इस प्रैस कांफ्रैंस के पीछे कुछ प्रभावशाली लोगों द्वारा की जा रही साजिश का संकेत भी देता है”। न्यूज़ के अंत में छापी गयी थी यूसुफ आज़ाद की ये विशेष टिप्पणी। राजकुमार के खबर पढ़ते पढ़ते प्रधान जी बोलते जा रहे थे।

 

“जांच के लिये दिये गये हमारे पंद्रह दिनों के समय में से नौ दिन निकल चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई जांच शुरू नहीं करवायी गयी। इसलिये अब हम लोगों को प्रदर्शन की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। सभी प्रमुख अखबारों ने जिस प्रकार से हमारा साथ दिया है इस मामले में, उससे बहुत बड़ा दायित्व आ गया है हमारे उपर। कहने का अर्थ ये है कि अब हमें इस प्रदर्शन में न्याय सेना का अधिक से अधिक बल लगाना होगा, जिससे हमारे पत्रकार भाईयों का सिर ऊंचा हो सके और भ्रष्टाचारियों की नींद हराम हो जाये”। प्रधान जी के इन जोशीले शब्दों ने राजकुमार का ध्यान आकर्षित किया।

“आप चिंता मत कीजिये प्रधान जी, मैने तो पहले ही दिन से तैयारी शुरू कर दी थी इस प्रदर्शन की। मेरी ओर से सैंकड़ों युवाओं का दल पहुंच जायेगा इस प्रदर्शन में”। सबसे पहले बोलते हुये कहा जगतप्रताप जग्गू ने। उसके चेहरे पर जोश की लहरें ठाठें मार रहीं थीं।

“और मेरे सारे भाई-मित्र भी तैयार हैं प्रधान जी, बस आपके हुक्म का ही इंतज़ार है”। अगली आवाज़ हरजीत राजू की थी।

“हमारे मजदूर भाईयों की क्या स्थिति है कमलकांत जी?” प्रधान जी ने मजदूर युनिट के प्रधान कमलकांत यादव की ओर देखते हुये कहा।

“केवल एक दिन पहले बता दीजियेगा प्रधान जी, आप जहां कहोगे सब लोग वहां पहुंच जायेंगे”। कमलकांत यादव भी किसी से पीछे रहने वाले नहीं थे।

“बुद्धिजीवी सदस्यों का समूह भी तैयार है प्रधान जी, आप चिंता मत कीजिये”। डॉक्टर पुनीत ने प्रधान जी को अपनी ओर देखता पाकर उनके पूछने से पहले ही जवाब दे दिया।

“बस तो फिर ठीक है सब। पुत्तर जी, तुम और मैं हमारे राजस्थानी भाईयों के समूह को, सफाई कर्मचारियों के समूह को और ऐसे ही अन्य कई समूहों को निर्देशित करेंगें, इस प्रदर्शन में आने के लिये”। प्रधान जी ने राजकुमार की ओर देखते हुये कहा तो उसने फौरन सिर हिला कर सहमति दी।

“अब अगर किसी को कुछ पूछना है इस मामले में, तो पूछ सकता है”। प्रधान जी ने एक बार फिर सब पदाधिकारियों की ओर देखते हुये कहा।

“हमें प्रदर्शन स्थल पर अपने मज़दूर भाईयों को लाने और वापिस ले जाने के लिये छोटे ट्रक जैसीं कम से कम दस गाड़ीयां चाहिये, प्रधान जी”। कमलकांत ने अपनी आवश्यकता की ओर ध्यान खींचते हुये कहा।

“आप चिंता न करें, आप लोगों को बारह ऐसी गाड़ियां दे दीं जायेंगी, जिनमे से हर गाड़ी में 70 से 100 लोग आ जायें। इस सारी व्यवस्था के बारे में आपको प्रदर्शन से एक दिन पहले सूचित कर दिया जायेगा। और किस किस को कितनी गाड़ियां चाहियें?” प्रधान जी ने सब लोगों की ओर देखा तो एक एक करके सब लोगों ने अपनी जरूरत के अनुसार गाड़ियों की संख्या बता दी जिसे राजकुमार ने ध्यान से नोट कर लिया।

“गाड़ियों वाला काम तो हो गया, कोई और बात कहनी हो किसी को?” प्रधान जी ने एक बार फिर सबको संबोधित करते हुये कहा।

“पिछली बार का प्रदर्शन कई घंटे तक चलने के कारण पीने के पानी और खाने की समस्या का सामना करना पड़ा था हमारे बहुत से भाई बहनों को, प्रधान जी”। पुनीत ने अपनी बात को अधूरा ही छोड़ते हुये कहा।

“मैं आपकी बात समझ गया डॉक्टर साहिब, इस बार के प्रदर्शन में दस हज़ार लोगों के लिये पीने के पानी का और पांच हज़ार लोगों के लिये खाने की ऐसी चीज़ों का प्रबंध किया जायेगा, जिससे दो चार घंटे आराम से निकल जायें। और कोई बात?” प्रधान जी ने पुनीत की बात का जवाब देते हुये कहा। लगभग आधे मिनट तक भी किसी की ओर से कोई प्रश्न नहीं किया गया।

“तो ठीक है फिर, अब आप लोग अपने अपने काम पर लग जाईये और अगले निर्देश की प्रतीक्षा कीजिये”। प्रधान जी के इतना कहने के बाद अन्य कई मामलों से संबंधित स्थानीय स्तर की अपनी अपनी कुछ समस्यायें शेयर करने के बाद लगभग एक घंटे में सभी पदाधिकारी चले गये। भीतर के कार्यालय में एक बार फिर राजकुमार और प्रधान जी ही रह गये थे।

“लो पुत्तर जी, सब लोगों की तैयारी तो तगड़ी है इस बार। पूरा जोर लगा देंगें इस प्रदर्शन में और दिखा देंगें इन लोगों को कि न्याय सेना पर ब्लैकमेलिंग का आरोप लगाने का अंजाम क्या है”। सोमेश पुरी के आरोप को याद करके एक बार फिर कुछ उत्तेजित हो गये थे प्रधान जी।

“तो वो बात अभी भी चल रही है आपके दिमाग में”। राजकुमार ने धीमी सी मुस्कुराहट के साथ कहा।

“और नहीं तो क्या, पुत्तर जी। मुझे एक बात समझ नहीं आ रही, सारी की सारी खबर हमारे पक्ष में लिखकर भी आज़ाद भाई ने शीर्षक मेरे खिलाफ क्यों लगा दिया है। आखिर क्या सोचा है उन्होंने, इस खबर को लगाते समय?” राजकुमार जानता था कि प्रधान जी को इस बात का उत्तर जाने बिना चैन नहीं आयेगा। किसी बात को लेकर एक बार भावुक हो जाने पर जल्दी सामान्य नहीं हो पाते थे प्रधान जी।

“मैं अभी पूछ लेता हूं कि क्या राज़ है उनकी इस खबर के पीछे, वो कार्यालय पहुंच गये होंगे अब तक?” कहने के साथ ही राजकुमार ने मुस्कुराते हुये आज़ाद का नंबर डायल कर दिया था अपने मोबाइल से।

“नमस्कार भाई साहिब, कैसे हैं आप?” राजकुमार ने दूसरी ओर से आज़ाद के फोन रिसीव करते ही औपचारिकतावश कहा था।

“सब ठीक है, आप सुनाईये क्या हाल हैं हमारे प्रधान जी के?” मसखरे अंदाज़ में कही गयी आज़ाद की इस बात को सुनते ही राजकुमार मुस्कुरा दिया था और उसके पास ही फोन को कान लगा चुके प्रधान जी कुछ असहज हो गये थे।

“जब सब जानते हैं आप तो फिर पूछते क्यों हैं, भाई साहिब?” राजकुमार ने शरारत के साथ कहा।

“प्रधान जी से कहिये, इस खबर से बहुत लाभ होगा उन्हें”। आज़ाद ने राजकुमार के पूछे बिना ही खबर को इस तरह लगाने का कारण बताना शुरू कर दिया था। शायद उन्हें यकीन था कि राजकुमार ने फोन इसीलिये किया है।

“ज़रा गौर कीजिये, आप लोगों की सहायता करने के चक्कर में न तो किसी अन्य अखबार ने ये छापा है कि सोमेश पुरी ने प्रधान जी पर इस मामले में ब्लैकमेल करने के आरोप लगाये हैं, और न ही ये कि उसने दूरदर्शन अधिकारियों के ईमानदार होने की बात की पुष्टि की है। सबने इसी प्रकार से खबर लगायी है जिससे ये लगे कि ये प्रैस कांफ्रैंस शायद आपके पक्ष में ही की गयी थी”। अपनी बात को कहते जा रहे थे आज़ाद।

“इन लोगों के बयानों का रिकार्ड पर आना बहुत ज़रूरी था, इससे आप को अनेक लाभ होंगें। एक तो अब इसके बाद प्रधान जी को कोई सिफारिश नहीं कर पायेगा इस मामले में, सीधा हमला जो बोल दिया है दूरदर्शन वालों ने उनपर। अर्थ ये कि इस खबर के साथ ही मैने समझौते के आसार समाप्त कर दिये हैं। दूसरी बात, इस मामले में जांच होने पर इस प्रकार का बयान दिलवाने के लिये भी जवाब मांगा जायेगा दूरदर्शन अधिकारियों से”।

इस प्रकार की साज़िशें करना अधिकारियों के चरित्र की कालिख को उजागर करता है और उनसे ज़रूर पूछा जायेगा इतने निचले स्तर पर उतर कर खेलने का कारण। तीसरी बात, जांच में अधिकारियों के दोषी साबित होने पर सोमेश पुरी का बचा खुचा करियर भी समाप्त हो जायेगा, आखिर उसी ने तो कहा है कि अधिकारी दोषी नहीं हैं इस मामले में”।

“इसीलिये पहले उसके सारे आरोपों को छापा है और फिर उनकी चीरफाड़ की है। उसे गंदा भी कर दिया और मामला रिकार्ड पर भी ले आया ताकि कल को कोई मुकर न सके आप पर लगाये गये आरोपों से”। अपनी बात को पूरी करते हुये कहा आज़ाद ने। राजकुमार के कोई जवाब देने से पहले ही प्रधान जी ने फोन उससे लगभग छीन ही लिया था।

“मैने आज तक के अपने समाज सेवा के कार्यकाल में एक से एक पत्रकार देखा है आज़ाद भाई, पर आपके जैसा कोई नहीं देखा। आपकी बात बिल्कुल ठीक है, अमर प्रकाश की इस खबर के अलावा कोई सुबूत नहीं है हमारे पास कि इस मामले में दूरदर्शन अधिकारियों ने ऐसी भी कोई साज़िश की है हमारे खिलाफ। सोमेश पुरी के आपके अखबार में छपे बयान ही बाद में इन सब लोगों की मुसीबत का कारण बन जायेंगे, और इस मामले में न्याय सेना की जीत के साथ ही बहुत बड़ी लानत लग जायेगी सोमेश पुरी के नाम पर”। आज़ाद के लिये प्रशंसा के ये शब्द उनके मुंह से नहीं, सीधे दिल से निकल रहे थे।

“अब तो आपको मुझसे कोई शिकायत नहीं, प्रधान जी?” आज़ाद ने हंसते हुये कहा।

“बिल्कुल नहीं आज़ाद भाई, बस अपना साथ बनाये रखियेगा, हमेशा के लिये”। प्रधान जी ने कृत्ज्ञता भरे स्वर में कहा।

“साथ बना रहेगा और काफिले आगे बढ़ते रहेंगे। चलिये अब रखता हूं, राजकुमार को मेरा सलाम दीजियेगा”। कहते ही एक बार फिर फोन डिस्कनैक्ट कर दिया था आज़ाद ने।

“क्या बात है प्रधान जी, दस मिनट पहले तक तो बड़ा गुस्सा था आज़ाद भाई पर, ये अचानक इतना प्यार क्यों आ रहा है अब?” राजकुमार ने प्रधान जी को छेड़ा।

“कमाल के पत्रकार हैं आज़ाद भाई, कितनी दूर की सोचते हैं। मैने आज तक ऐसा ज़बरदस्त पत्रकार और ऐसी कमाल की पत्रकारिता नहीं देखी, पुत्तर जी”। प्रधान जी पूरी तरह प्रभावित थे आज़ाद की कलम की ताकत से।

“इसमें तो कोई शक नहीं प्रधान जी, आज़ाद भाई गज़ब के पत्रकार हैं। चलिये अब आगे का प्लान बना लेते हैं। आपने वादे बहुत बड़े बड़े कर दिये हैं जनता से और खजाने का हाल इतना अच्छा नहीं है”। राजकुमार ने आज़ाद की प्रशंसा करने के बाद मुद्दे की बात पर आते हुये कहा, मुस्कुराते हुये।

“मैं तुम्हारा इशारा समझ गया पुत्तर जी, बहुत खर्च होने वाला है इस प्रदर्शन पर, और संगठन के पास इतना धन है नहीं। यही कहना चाहते हो न?” प्रधान जी ने राजकुमार के शब्दों का अर्थ निकालते हुये कहा।

“बिल्कुल ठीक समझा अपने प्रधान जी, खर्च बहुत अधिक है और पैसा कम है हमारे पास। कम से कम पच्चीस हज़ार और चाहिये होंगे, इस प्रदर्शन के लिये समुचित प्रबंध करने के लिये। इसलिये अपने मन का चिराग रगड़िये और कोई जिन्न निकालिये उसमें से, जो पैसों का प्रबंध कर सके”। राजकुमार ने मुस्कुराते हुये कहा।

“बस इतनी सी बात, तो ले अभी रगड़ देते हैं चिराग। इसमें से वो जिन्न निकलेगा जो आवश्यकता पड़ने पर इस सारे शहर को खाना खिला सकता है, फिर ये पांच हज़ार लोग क्या हैं?” कहने के साथ ही प्रधान जी ने अपने मोबाइल से कोई नंबर डायल कर दिया था। राजकुमार अपना दिमाग दौड़ा रहा था कि प्रधान जी ने किसको फोन किया है?

“नमस्ते भाई……………… कैसे हैं भाई………………बस आपके आशिर्वाद से सब ठीक है भाई, बस मिलना था आपसे ज़रा………………………अभी आ जाऊं, घर पर…………………………दस मिनट में आपके पास पहुंचा मैं”। प्रधान जी के फोन डिस्कनैकट करने तक राजकुमार समझ चुका था कि प्रधान जी ने जालंधर के बहुत बड़े धन कुबेर कहे जाने वाले अरबपति उद्योगपति हेतल विज को फोन लगाया था।

“चल जल्दी से गाड़ी निकाल पुत्तर, हेतल भाई घर पर ही हैं अभी”। प्रधान जी के कहते ही राजकुमार ने गाड़ी की चाबी उठायी और दोनों तेजी से कार्यालय से बाहर निकल गये।

 

हिमांशु शंगारी