संकटमोचक 02 अध्याय 23

Sankat Mochak 02
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“ये प्रैस कांफ्रैंस तो बिल्कुल उल्टी पड़ गयी, बहुत बुरा हाल किया है हमारे लोगों का पत्रकारों ने। एक अखबार से मेरे सूत्र ने बताया है कि कल की अखबारों में बहुत बुरा छपेगा हम लोगों के बारे में”। प्रैस कांफ्रैंस समाप्त होने के लगभग दो घंटे के बाद अडवानी अपने सामने बैठे उन्हीं तीन अधिकारियों से कह रहा था।

“जी मुझे भी यही पता चला है सर, पत्रकारों ने इसे अपनी निजी लड़ाई बना लिया है। वरुण शर्मा के खिलाफ एक भी शब्द सुनने के तैयार नहीं है कोई भी पत्रकार”। जौहल ने अडवानी की बात का समर्थन करते हुये बुझे स्वर में कहा।

“मेरी समझ में नहीं आता कि ऐसा क्या है इस वरुण शर्मा और उसकी इस न्याय सेना के पास? हमारे पास इतने साधन और प्रभाव होते हुये भी कोई सहायता नहीं कर रहा हमारी इस मामले में। उसका नाम सुनते ही हर कोई भाग जाता है”। खुद को संभालने की कोशिश करने के बावजूद भी झुंझलाहट के भाव आ गये थे अडवानी के चेहरे पर।

“उसने अपनी छवि ही कुछ इस तरह की बनायी है सर। मैं बहुत सालों से देख रहा हूं उसके काम करने के तरीके को। दोस्ती करने वाले का हाथ नहीं छोड़ता कभी और दुश्मनी करने वाले को पाताल में छिप जाने पर भी नहीं छोड़ता। इसलिये कोई दुश्मनी नहीं करना चाहता उससे, सब दोस्ती ही रखना चाहते हैं”। जौहल ने अपना अनुभव बताते हुये कहा।

“इसीलिये बंस भी शायद इस मामले में एक सीमा से अधिक दबाव नहीं बना पाया उसपर। उसे डर होगा कि कहीं अधिक दबाव बनाने की कोशिश में उसके ही खिलाफ न हो जायें ये लोग। बंस पर बहुत भरोसा था मुझे, और इसी चक्कर में हमने सात दिन भी बिना कुछ किये निकाल दिये। अब समय बहुत कम है हम लोगों के पास और काम बहुत अधिक। हमें कुछ भी करके इस प्रदर्शन को होने से रोकना है, आप लोग कोई तरीका सोचिये इस काम को करने का”। अडवानी ने चिंतामय आवाज़ में कहा।

“वैसे सर, मंत्रालय में बैठे उच्च अधिकारियों ने आपको आश्वासन तो दे ही दिया है कि वो इस मामले में हमारे साथ हैं। फिर इतनी चिंता क्यों करते हैं आप, आखिर कार्यवाही तो उन्हें ही करनी है”। बहल ने अपना पक्ष रखते हुये कहा।

“अभी तक हर मामले में हम लोगों से इक्कीस साबित हुआ है ये वरुण शर्मा और उसकी न्याय सेना। इसलिये ये मानकर चलना चाहिये कि समय आने पर ये लोग मंत्रालय में बैठे हमारे आकाओं पर भी भारी पड़ सकते हैं”। कठिन समय में भी मुस्कुराते हुये कहा अडवानी ने।

“लेकिन सर, आपकी बात तो मंत्रालय में बहुत उपर के अधिकारियों के साथ हुयी है। इसके बाद तो केवल माननीय मंत्री जी या प्रधानमंत्री जी ही बचते हैं। तो क्या ये लोग वहां तक भी पहुंच लगा सकते हैं?” सुरिंदर सिंह के स्वर में हैरानी भरी पड़ी थी।

“कुछ भी कर सकते हैं ये लोग, मेरे अनुमान से कहीं अधिक शक्तिशाली और प्रभावशाली हैं ये। इसलिये हमें जल्दी से जल्दी इस प्रदर्शन को रोकने की कोई तरकीब सोचनी होगी”। अडवानी ने एक बार फिर काम की बात पर आते हु्ये कहा।

“सर मेरे ख्याल में अब हम इन लोगों को प्रदर्शन करने से रोक नहीं पायेंगे। लालच, दबाव और डरावा सब कुछ इस्तेमाल करके देख लिया हम लोगों ने, पर इस वरुण शर्मा को कोई फर्क नहीं पड़ा। अब तो ये प्रदर्शन होना लगभग तय ही है। वैसे भी अपने इतने वर्षों के कार्यकाल में वरुण शर्मा ने आज तक एक बार भी प्रदर्शन करने की घोषणा करके उसे टाला नहीं है, बिना किसी उचित कारण के”। जौहल ने एक बार फिर शहर में बहुत सालों से होने के कारण अपना अनुभव बताया था।

“फिर तो एक ही रास्ता बचता है”। कहते हुये अडवानी कुछ इस तरह की मुद्रा में था जैसे अपने दिमाग के तराजू में किसी विचार का वज़न तोल रहा हो।

“ऐसा कौन सा रास्ता है सर?” बहल ने जैसे सबके मन की बात कह दी हो। हर कोई उत्सुक दिखाई दे रहा था इस रास्ते को जानने के लिये।

“वही बताने जा रहा हूं। जौहल साहिब, आप इस मामले में आज ही ‘अंग्रेज़’ के साथ मुलाकात कीजिये”। कहने के बाद रहस्यमय अंदाज़ में देखा था जौहल की ओर अडवानी ने। ‘अंग्रेज़’ शब्द को विशेष जोर देकर बोला था उसने

“जी बिल्कुल ठीक है सर, पर इस मामले में वो भला क्या काम आ सकता है हमारे? क्या आप उसके माध्यम से वही काम करवाना चाहते हैं जो हम अक्सर करवाते हैं? मुझे नहीं लगता सर कि इससे कुछ विशेष लाभ हो पायेगा हमें”। एक साथ कई प्रश्न कर दिये थे जौहल ने।

“इस बार उससे वो काम नहीं, कुछ और काम करवाना है जौहल साहिब। आप ध्यान से सुनिये मेरी योजना को, और इसपर अमल करना शुरू कर दीजिये”। और भी रहस्यमयी अंदाज़ में कहा अडवानी ने और फिर जौहल को कुछ समझाने लग गया। जौहल समेत सब लोगों की आंखें उसकी योजना सुनकर चमकने लगीं थीं।

“कमाल का प्लान बनाया है आपने सर, मैं फौरन लग जाता हूं इस पर और जल्दी ही आपको रिपोर्ट देता हूं”। जौहल ने बच्चों की तरह खुश होते हुये कहा।

“तो ठीक है फिर, अब आप लोग जा सकते हैं”। अडवानी के इतना कहते ही तीनों एक एक करके निकल गये उसके कार्यालय से और वो तेजी से कुछ सोचने में लगा हुआ था।

 

हिमांशु शंगारी