संकटमोचक 02 अध्याय 13

Sankat Mochak 02
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“हमारे आज़ाद भाई की जय हो”। प्रधान जी ने आज़ाद के कार्यालय में प्रवेश करते ही नारा लगा दिया था। किसी भी आदमी की तारीफ करके उसके दिल में तेजी से जगह बना लेने की खास प्रतिभा थी प्रधान जी में।

“आईये, आईये प्रधान जी, बैठिये”। आज़ाद ने प्रधान जी के संबोधन पर मुस्कुराते हुये कहा और फोन पर किसी को चाय भेजने का आदेश भी दे दिया।

“बहुत बड़ी बड़ी बातें सुनी हैं आपके बारे में आज़ाद भाई, सुना है बड़े बड़े धुरंधरों की छुट्टी की है आपने उत्तर प्रदेश और हरियाणा में”। प्रधान जी ने आज़ाद को प्रभावित करने के लिये राजकुमार की दी गयी जानकारी इस्तेमाल करते हुये कहा।

“सुना तो मैने भी बहुत है आपके और न्याय सेना के इस शहर पर प्रभाव के बारे में, लेकिन आपने तो हमारे पास आने में बहुत देर लगा दी। हम तो कब से आपका इंतज़ार कर रहे थे। कहीं जस्सी का बयान पढ़कर तो नहीं आये आप?” आज़ाद ने बेबाक स्वर में इस तरह से प्रधान जी को छेड़ते हुये कहा जैसे उन्हें शत प्रतिशत पता हो कि प्रधान जी दूरदर्शन वाले मामले में ही आये हैं।

“जी……आज़ाद भाई…”। इससे अधिक कुछ नहीं कह पाये थे प्रधान जी। आज़ाद ने पहले ही दांव में चारो खाने चित्त कर दिया था उन्हें। वो समझ नही पा रहे थे कि आखिर आज़ाद को कैसे पता चल गयी इतनी गोपनीय बात। राजकुमार का दिमाग भी सक्रिय हो चुका था और वो आज़ाद के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करने के साथ साथ ही बड़ी तेजी के साथ इस मामले से जुड़े तथ्यों के बारे में जोड़ तोड़ करता जा रहा था। यूसुफ आज़ाद को उनके आने की वजह पहले से ही पता होने की बात ने उसे भी एकदम से चौंका दिया था।

“सुना है न्याय सेना इस मामले को अपने हाथ में ले चुकी है। हमें तो ये भी पता चला है कि आप लोगों के पास इस मामले से संबंधित कुछ सुबूत भी आ चुके हैं”। आज़ाद ने एक और विस्फोट किया। प्रधान जी बिल्कुल अचंभे की स्थिति में थे और उन्हें लग रहा था आज़ाद जैसे कोई जादूगर हैं जो हर बात को जादू से जान लेते हैं।

“आपने बिल्कुल गलत सुना है भाई साहिब, ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला हमें”। बिल्कुल सधे हुये स्वर में और सपाट चेहरे के साथ कहने के साथ ही राजकुमार ने धीरे से प्रधान जी का हाथ दबा दिया था। प्रधान जी को पता था इस इशारे का अर्थ है कि राजकुमार इस स्थिति को खुद हैंडल करना चाहता है।

“अच्छा नहीं मिले, तो फिर वो बिल और तस्वीरें किसको मिल गयीं?” आज़ाद एक के बाद एक धमाका करते जा रहे थे। उनकी इस बात को सुनकर प्रधान जी के चेहरे का आश्चर्य जहां और गहरा गया था, वहीं राजकुमार के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी थी।

“आप इस शहर में नयें हैं भाई साहिब, ज़्यादा भरोसा मत कीजियेगा इन दूरदर्शन के अधिकारियों पर। अक्सर गलत सूचना देते हैं, अखबार वालों को”। राजकुमार ने अपनी मुस्कुराहट को और भी अधिक उजागर करते हुये कहा, जिससे आज़ाद इस मुस्कुराहट को भली भांति देख पायें। प्रधान जी अभी भी दोनों के बीच हो रहे वार्तालाप को ध्यान से सुनकर कुछ समझने की कोशिश कर रहे थे।

“तो आपको लगता है कि हमें ये सूचना दूरदर्शन के अधिकारियों ने दी है, कोई ठोस वज़ह इतने विश्वास की?” आज़ाद अब रिलैक्स होकर बैठ गये थे और मज़ा ले रहे थे राजकुमार के साथ बातचीत का। उनके चेहरे पर दिलचस्पी के भाव आ गये थे अब।

“सारा जादू आपको ही तो नहीं आता भाई साहिब, थोड़ा बहुत हमने भी सीख रखा है”। राजकुमार ने भी शरारती मुस्कान के बीच पहेली का जवाब पहेली से ही दिया।

“आप अवश्य ही राजकुमार हैं। आपकी भी बहुत तारीफ सुनी है मैने, चलिये आज मुलाकात भी हो गयी। आपकी और हमारी तो लगता है खूब जमेगी”। कहते कहते आज़ाद और राजकुमार दोनों ही हंस दिये।

“मुझे भी कुछ पता चलेगा यहां क्या पहेलियां बुझायी जा रहीं हैं?” मामला जब प्रधान जी की बर्दाशत से बाहर हो गया तो उन्होंने बीच में बोलते हुये कहा। उनकी आवाज़ में गहरी उत्सुकुता थी।

“वो सब तो मैं आपको बाद में बता दूंगा प्रधान जी, फिलहाल आप ये समझ लीजिये कि आज़ाद भाई इस मामले में हमारे साथ हैं। या फिर ये समझ लीजिये कि ये इस मामले पर हमसे भी पहले लगे हुये हैं”। राजकुमार ने कहने के साथ ही अपनी बात की पुष्टि करने की मंशा से आज़ाद की ओर देखा।

“आपके महासचिव बिल्कुल ठीक फरमा रहे हैं प्रधान जी, इस मामले में हम आपसे भी पहले मैदान में आ चुके हैं और आपका पूरा साथ देंगे। अब आप चाय का आनंद ले सकते हैं”। आज़ाद ने राजकुमार की ओर प्रशंसा की दृष्टि से देखने के बाद कहा।

“लो फिर तो बन गयी अपनी बात, इस बात पर तो चाय बनती है”। कहने के साथ ही प्रधान जी ने चाय का कप उठाया और चुस्कियां लेनी शुरू कर दीं। उनकी इस हरकत पर दोनों मुस्कुरा दिये।

“तो क्या प्लान बनाया है आप लोगों ने इस लड़ाई को लड़ने का?” आज़ाद ने चाय का कप उठाते हुये प्रधान जी की ओर देखते हुये कहा।

“कल एक प्रैस कांफ्रैंस करेंगे आज़ाद भाई, जिसमें दूरदर्शन अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा कर सूचना एवम प्रसारण मंत्रालय से 15 दिन में इस मामले की जांच करवाने के लिये कहेंगे। जांच न करवायी जाने की सूरत में न्याय सेना के जालंधर दूरदर्शन पर जबरदस्त प्रदर्शन करने की बात कही जायेगी”। प्रधान जी ने बिना किसी हिचकिचाहट के कह दिया सब कुछ। वो समझ गये थे कि इस मामले में आज़ाद पर विश्वास किया जा सकता है।

“बिल्कुल ठीक शुरूआत सोची है आपने, ऐसा ही होना चाहिये इस मामले में। बस दो बातों का ध्यान रखना होगा आपको?” आज़ाद ने एक बार फिर से पहेली खड़ी करने वाले अंदाज़ में कहा।

“वो क्या आज़ाद भाई?” प्रधान जी के मुंह से फौरन ही निकल गया था।

“एक तो इस मामले में सारे पत्ते मत खोलियेगा अंत तक, और कोई न कोई बड़ा पत्ता बचा कर रखियेगा। बहुत बड़ा खेल है ये और दूसरी ओर भी मंझे हुये खिलाड़ी हैं। आपके हर पत्ते का तोड़ निकालने की कोशिश करेंगे वो। इसलिये कोई ऐसा बड़ा पत्ता बचा कर रखियेगा जो ऐन मौके पर खोला जाये ताकि उन्हें उसका तोड़ निकालने का समय न मिल पाये”। कहते कहते मुस्कुरा दिये थे आज़ाद।

“और दूसरी बात, आज़ाद भाई?” कहने से पहले प्रधान जी ने एक मुस्कान राजकुमार की ओर उछाली थी, जिसका अर्थ शायद ये था कि ये खेल उसकी पसंद का है।

“दूसरी बात ये है कि इस लड़ाई को बहुत लंबा लड़ना पड़ सकता है आपको। जांच न होने पर प्रदर्शन करना तो इसका एक हिस्सा रहेगा, शायद पूरी लड़ाई नहीं”। आज़ाद की बात में फिर एक पहेली थी।

“मैं कुछ समझा नहीं, आज़ाद भाई?” प्रधान जी एक बार फिर दुविधा में पड़ गये थे कि प्रदर्शन ही तो न्याय सेना का सबसे बड़ा हथियार है, उसके बाद क्या हो सकता है?

“आज़ाद भाई शायद ये कहना चाहते हैं कि हमें इस मामले में प्रदर्शन करने के बाद भी जांच न होने पर दिल्ली भी जाना पड़ सकता है, सूचना एवम प्रसारण मंत्रालय के मुख्य कार्यालय में”। राजकुमार ने आज़ाद के कुछ कहने से पहले ही अपना विचार पेश किया।

“राजकुमार ने बिल्कुल ठीक समझा है प्रधान जी, मेरा यही अर्थ था। बहुत उपर तक पहुंच है इन लोगों की। आप लोगों के प्रदर्शन के बावजूद भी सारे मामले को दबाने की पुरजोर कोशिश करेंगे ये लोग। इसलिये लंबी लड़ाई की तैयारी करके चलियेगा”। आज़ाद ने मुस्कुराते हुये कहा।

“चाहे जितनी भी लंबी लड़नी पड़े ये लड़ाई आज़ाद भाई, हम पीछे नहीं हटने वाले। एक बार मैदान में उतर गये तो फिर बिना परिणाम हासिल किये मैदान नहीं छोड़ते हम। आप निश्चिंत रहिये और बस अपना सहयोग बना कर रखिये। बाकी सब हम देख लेंगे”। प्रधान जी ने जोशीले अंदाज़ में कहा।

“फिर तो मज़ा आयेगा इस खेल में। अमर प्रकाश हर प्रकार से आपका साथ देगा इस मामले में”। आज़ाद ने कहा और फिर एक विशेष अंदाज़ में राजकुमार की ओर देखा।

“राजकुमार, आप मेरा मोबाइल नंबर नोट कर लीजिये। इस मामले में किसी भी तरह की आवश्यकता पड़ने पर सीधा मुझे फोन कर लीजियेगा”। अपना मोबाइल नंबर बोलते समय आज़ाद की आंखों में फिर एक पहेली थी।

“मैने आपके मोबाइल पर कॉल कर दी है भाई साहिब, ये मेरा नंबर है”। राजकुमार ने भी पहेली भरे अंदाज़ में ही कहा।

“राजकुमार इस मामले में न्याय सेना की जीत सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा, प्रधान जी। इसे इस मामले में अंत तक साथ रखियेगा”। एक और पहेली के साथ मुस्कुराते हुये कहा यूसुफ आज़ाद ने।

“इसे तो मैं जिंदगी भर साथ रखने वाला हूं आज़ाद भाई, और आप केवल इस केस की बात कर रहे हैं”। प्रधान जी की इस बात पर सभी हंस दिये।

 

हिमांशु शंगारी