संकटमोचक 02 अध्याय 12

Sankat Mochak 02
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“ये मुलाकात तो सफल रही पुत्तर जी, अब शाम का इंतज़ार करते हैं भाजी और बाऊ जी या आकाश जी से मिलने के लिये”। लगभग दस मिनट बाद न्याय सेना के कार्यालय में बैठे प्रधान जी ने राजकुमार से कहा।

“आपकी बात बिल्कुल ठीक है प्रधान जी, पर मेरे विचार में हमें एक बार अमर प्रकाश भी हो आना चाहिये। इतने बड़े मामले में हमें उन्हें भी विश्वास में लेकर चलना चाहिये”। राजकुमार ने कुछ सोचते हुये कहा। अमर प्रकाश ने अभी हाल ही में जालंधर से प्रकाशन शुरू किया था और न्याय सेना के कार्यालय के बिल्कुल सामने ही था इनका कार्यालय।

“बात तो तेरी ठीक है पुत्तर, पर इनका सारा स्टाफ बाहर से ही आया है, मैं किसी बड़े पदाधिकारी को नहीं जानता इस अखबार में। दैनिक प्रसारण का तो बहुत सा स्टाफ स्थानीय ही होने के कारण बहुत जानकार हैं मेरे, इस अखबार के नया होने पर भी। लेकिन अमर प्रकाश में खास किसी को नहीं जानते हम। ऐसे बिना जानकारी के ही इतने बड़े मामले में उनसे बात करना क्या ठीक रहेगा?” प्रधान जी ने कहते हुये राजकुमार की ओर उत्तर की आशा से देखा।

“आपकी बात बिल्कुल ठीक है प्रधान जी, पर मेरे दिमाग में कुछ और भी विचार हैं। कोई भी अखबार केवल खबरों के आधार पर ही चलता है और खबरें प्राप्त करते रहने के लिये स्थानीय स्तर पर समझ और पकड़ रखने वाले लोगों के साथ संबंध होना बहुत जरूरी है ताकि समय समय पर महत्वपूर्ण खबरें मिलती रहें। बाकी सारे अखबार भी इसी आधार पर काम करते हैं तो अवश्य ही अमर प्रकाश की भी यही पॉलिसी होगी। ऐसे में हमें उनके नये होने का लाभ मिल सकता है”। राजकुमार ने अपना विचार पेश करते हुये कहा।

“जरा खुल कर बताओ अपनी बात का अर्थ, पुत्तर जी”। प्रधान जी राजकुमार की बात का कुछ कुछ अर्थ समझ कर भी सारी बात उसके मुंह से सुनना चाहते थे।

“किसी भी संस्था के किसी जगह पर नया होने पर उसे लोगों के समूह की आवश्यकता होती है जिसके चलते वो अधिक से अधिक गिनती में महत्वपूर्ण लोगों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश करती है। ऐसे में जो लोग सबसे पहले उसके साथ जुड़ जाते हैं, उन्हें सबसे अधिक लाभ होता है, क्योंकि यही लोग किसी संस्था के सबसे करीबी बन जाते हैं”। राजकुमार ने अपनी बात पूरी करते हुये कहा।

“बात तो तेरी बिल्कुल ठीक है पुत्तर, मैने इस तरह से तो सोचा ही नहीं था, इस विषय में”। प्रधान जी ने राजकुमार की ओर प्रशंसा की दृष्टि से देखते हुये कहा।

“एक कारण और भी है, प्रधान जी। आपने गौर किया होगा कि जस्सी के बयान को सबसे अधिक कवरेज अमर प्रकाश नें ही दी थी। इसका अर्थ है कि उन्हें इस मामले में विशेष रूचि है। इसलिये हमें उनसे सहायता प्राप्त होने की संभावना काफी अधिक है”। राजकुमार ने एक और तर्क देते हुये कहा।

“ओये तेरी ये बात भी ठीक है, पुत्तर। कवरेज तो सबसे अधिक अमर प्रकाश नें ही दी थी और इसका अर्थ भी यही है कि वो इस मामले को उछालना चाहते हैं। तब तो जरूर मिलकर आते हैं उनसे। मैने सुना है यूसुफ आज़ाद के नाम से कोई ब्यूरो चीफ हैं इस अखबार के जिनका सब खबरों पर नियंत्रण रहता है”। प्रधान जी ने राजकुमार के विचार के साथ सहमति जताते हुये कहा।

“आपने बिल्कुल ठीक सुना है प्रधान जी, यूसुफ आज़ाद ही हैं अमर प्रकाश के ब्यूरो चीफ, और बहुत ही रोमांचक किरदार के मालिक हैं”। राजकुमार के चेहरे पर इस बार भेद भरी मुस्कुराहट थी।

“तो तूने सब पता कर लिया है पहले से ही”। प्रधान जी इन चार महीनों में राजकुमार के चेहरे पर विशेष परिस्थितियों आने वाली इस मुस्कुराहट का अर्थ भली भांति समझ चुके थे।

“जी, कल जस्सी के बयान को अमर प्रकाश में दी गई कवरेज के बाद और आपके इस काम को हाथ में लेने के निर्णय के बाद ही मैने ये काम कर लिया था। मुझे ऐसा लग रहा है कि ये अखबार इस मामले में हमारी बहुत सहायता कर सकती है। इसके ब्यूरो चीफ यूसुफ आज़ाद का चरित्र बहुत दिलचस्प है, प्रधान जी”। राजकुमार ने एक पल के लिये विराम दिया अपने शब्दों को और फिर से शुरू हो गया।

“बहुत ही ईमानदार, बेदाग, निर्भीक और बेबाक छवि रखते हैं यूसुफ आज़ाद। उत्तर प्रदेश और हरियाणा में बहुत बड़े बड़े कारनामे करके आये हैं। भ्रष्ट अधिकारियों और राजनेताओं से बहुत नफरत करते हैं, और इन प्रदेशों में तो मुख्य मंत्रियों तक को नहीं छोड़ा इन्होंने। मेरे सूत्रों ने बताया है कि पत्रकार कम और क्रांतिकारी अधिक हैं, आज़ाद”। राजकुमार ने मुस्कुराते हुए कहा।

“अच्छा तो अब तेरे सूत्र भी पैदा हो गये चार महीने में, जो मुझे भी नहीं पता। ठीक ही कहते थे क्रांतिदूत, पत्ते छिपा कर खेलने की आदत है तेरी”। प्रधान जी ने राजकुमार को छेड़ते हुये कहा। उन्हें पता था कि राजकुमार आवश्यकता से अधिक जानकारी कभी किसी को नहीं देता था, अपने सूत्र सबसे छिपा कर रखता था और कोई न कोई बड़ा पत्ता सदा बचा कर रखता था, खेल के आखिरी दांव में खोलकर जीतने के लिये। उसकी इसी आदत के कारण संगठन ने कई मामलों को बड़ी तेजी से हल कर लिया था इन चार महीनों में। ऐन मौके पर कोई बड़ा पत्ता निकाल कर रख देता था, जिसका सामने वाले के पास कोई तोड़ न हो।

“अभी मेरी बात बाकी है, प्रधान जी। बहुत ही प्रोफैशनल और व्यहारिक इंसान हैं आज़ाद तथा औपचारिकता, जज़्बात या भावनाओं के साथ कोई संबंध नहीं रखते। ईंटैलिजैंट लोगों को विशेष रूप से पसंद करते हैं और सरकार के हर विभाग तथा समाज के हर वर्ग में मजबूत खुफिया तंत्र बना कर चलते हैं”। राजकुमार ने अपनी बात पूरी करते हुये कहा।

“यानि की तेरी तरह ही दिमाग से चलते हैं, फिर तो लगता है तेरे साथ ही पटेगी उनकी, मेरे से अधिक। चलो फिर अखबार के कार्यालय में फोन करके मिलने का समय मांग लेते हैं उनसे। और हां, मेरी एक बात ध्यान से सुनो, पुत्तर जी”। प्रधान जी को जैसे एकदम से कुछ याद आ गया हो।

“मैने तुमसे पहले भी कई बार कहा है कि चाहे कोई अफसर हो या अखबार वाले, बातचीत के बीच में जब कुछ बोलने लायक हो या कोई अच्छा विचार हो तो अवश्य बोल दिया करो। आजतक तुमने मेरी इस बात पर अमल नहीं किया और चुपचाप बैठकर सब सुनते रहते हो। अपनी वाणी से सामने वाले को प्रभावित कर लेने की जबरदस्त प्रतिभा है तुम्हारे अंदर, इसका अधिक से अधिक प्रयोग किया करो”। प्रधान जी ने राजकुमार को समझाते हुये कहा।

“आपकी बात तो ठीक है प्रधान जी, पर मैं केवल इसलिये चुप बैठा रहता हूं कि कहीं मेरे बीच में बोलने पर आपका कोई जानकार आहत न हो जाये मेरी किसी बात से”। राजकुमार ने कुछ संकोच के साथ कहा।

“उसकी चिंता तू मुझ पर छोड़ दे और खुल कर बोला कर, जहां तुझे ठीक लगे। संगठन को तेरी इस प्रतिभा का पूरा लाभ उठाना है। इसकी शुरूआत आज से ही कर दे। यूसुफ आज़ाद जितने नये तेरे लिये हैं, उतने ही मेरे लिये भी। इसलिये उनके साथ मुलाकात में उन्हें प्रभावित करने की कोशिश करना अपनी प्रतिभा के माध्यम से। इससे संगठन को बहुत लाभ मिलेगा”। प्रधान जी ने राजकुमार को प्रोत्साहित करते हुये कहा।

“मैं आपकी इस बात का ध्यान रखूंगा, प्रधान जी”। राजकुमार के कहने के बाद प्रधान जी ने अमर प्रकाश के कार्यलय फोन करके यूसुफ आज़ाद से मिलने का समय ले लिया।

“अभी तो किसी काम में व्यस्त हैं आज़ाद, ठीक एक घंटे बाद मिलने का समय दिया है”। प्रधान जी ने फोन बंद करते हुये कहा।

“तब तक मैं कुछ तैयारी कर लेता हूं, इस बातचीत के लिए”। राजकुमार की इस बात पर प्रधान जी मुस्कुराये बिना न रह सके।

हिमांशु शंगारी