संकटमोचक 02 अध्याय 09

Sankat Mochak 02
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आशा के अनुसार ही दूसरे दिन ठीक ग्यारह बजे अनिल खन्ना न्याय सेना के कार्यालय पहुंच गया था और इस समय अपने अपने कप से चाय की चुस्कियां ले रहे थे प्रधान जी, अनिल खन्ना और राजकुमार। संगठन के बाकी पदाधिकारी बाहर के केबिन में ही थे।

“मेरे ख्याल से अब तो न्याय सेना को इस मामले को अपने हाथ में लेने से कोई ऐतराज़ नहीं होना चाहिये, प्रधान जी”। कमरे में अनिल खन्ना का स्वर गूंज़ उठा। साथ ही उसका ध्यान राजकुमार की ओर गया जो चाय पीने के साथ साथ ही बड़े ध्यान से अनिल शर्मा के दिये हुये पेपर्स को देख रहा था।

“बस दो मिनट प्रतीक्षा कीजिये अनिल जी, राजकुमार को ये पेपर्स देखकर अपनी तस्सली कर लेने दीजिये”। प्रधान जी ने अनिल खन्ना की ओर देखकर मुस्कुराते हुये कहा। वो जानते थे कि राजकुमार पेपर्स को अच्छी तरह से चैक किये बिना मानेगा नहीं। प्रधान जी को उसकी ये आदत बहुत पसंद थी। किसी भी बात को ठीक से सोचने समझने और परखने के बाद ही कोई राय देता था उसपर।

“पेपर्स जबरदस्त हैं, प्रधान जी”। लगभग एक मिनट के बाद राजकुमार ने जब चेहरा उठाया तो उसकी आंखें हीरे जैसीं चमक रहीं थीं। प्रधान जी समझ गये कि राजकुमार को इन पेपर्स में कुछ विशेष नज़र आ गया है।

“ऐसा क्या देख लिया है तूने इन पेपर्स में, जो इतना खुश दिखाई दे रहा है?” प्रधान जी ने राजकुमार को छेड़ते हुये कहा। उन्हें भी जल्द से जल्द ये जानने की उत्सुकुता हो चली थी।

“मुझे इनमें कलाकारों की और न्याय सेना की बहुत बड़ी जीत दिखाई दे गई है, प्रधान जी। अनिल जी सहित चार कलाकारों के अटैस्टिड़ शपथपत्र हैं कि इन्होंने किस किस तिथि को दूरदर्शन के किस किस अधिकारी को कितने कितने रूपये दिये थे रिश्वत के तौर पर, उनके मजबूर करने पर”। राजकुमार ने मुस्कुराते हुये कहा।

“ये तो कमाल कर दिया आपने, अनिल जी”। प्रधान जी ने अनिल खन्ना की ओर देखते हुये प्रशंसनात्मक स्वर में कहा।

“ये कमाल यहीं खत्म नहीं हो जाता, प्रधान जी। अनिल जी ने कुछ और भी बहुत जबरदस्त दिया है”। राजकुमार की इस पहेली ने एक बार फिर प्रधान जी का ध्यान खींचा।

“ओये तो जल्दी से बोल न कंजर, सस्पैंस क्यों पैदा कर रहा है?” प्रधान जी ने राजकुमार की ओर नकली गुस्से से देखते हुये कहा। अनिल खन्ना ने चुप रहकर इस नोंक झोंक का आनन्द लेने का फैसला कर लिया था।

“कुछ और पेपर्स दिये हैं अनिल जी ने, जिनमें से कुछ पेपर्स ये बताते हैं कि पिछले दो सालों में दूरदर्शन ने कई महंगी मशीनों को बदलने के लिये मंत्रालय से करोड़ों रुपया लिया है। खरीदी गईं कुछ मशीनों के बिल्स की फोटो कॉपीयां भी हैं और इसके साथ ही कुछ पेपर्स और दूरदर्शन के अंदर ही खींची गयीं कुछ इस तरह की तस्वीरें हैं जो ये बताती हैं कि आज भी वही पुरानी मशीनें दूरदर्शन के अंदर काम कर रहीं हैं, जिन्हें कागजों में बेकार बता कर कबाड़ के भाव बेच दिया गया है”। एक पल के लिये सांस लिया राजकुमार ने और फिर से शुरू हो गया।

“बारूद हैं ये पेपर्स प्रधान जी, और अगर ठीक तरह से इस्तेमाल किया गया इन्हें तो इतना बड़ा धमाका कर सकते हैं कि पूरा जालंधर दूरदर्शन उड़ाने के साथ साथ सूचना एवम प्रसारण मंत्रालय के दिल्ली स्थित कार्यालय की इमारत को भी हिला सकते हैं”। राजकुमार की आंखों की चमक बढ़ती ही जा रही थी।

“ये तो महाकमाल कर दिया आपने, अनिल जी। कहां से पैदा कर लिये आपने ये सुबूत रातों रात?” प्रधान जी ने प्रशंसा और उत्सुकुता के मिले जुले भावों के साथ अनिल खन्ना से पूछा। राजकुमार के चेहरे पर भी अनिल खन्ना के लिये प्रशंसा के भाव थे।

“रातों रात पैदा नहीं किये प्रधान जी, बहुत देर से मौजूद हैं ये कागज़ात। आप तो जानते हीं हैं कि हर डिपार्टमैंट में कुछ न कुछ कर्मचारी ईमानदार भी होते हैं। ऐसे ही कुछ ईमानदार कर्मचारी बड़ी देर से दूरदर्शन के अंदर हो रहे भ्रष्टाचार के सुबूत इक्कठे कर रहे थे। आज उचित मौका देखकर उन्होंने ये सुबूत जाहिर कर दिये”। अनिल खन्ना ने अपनी प्रशंसा से प्रसन्न होते हुये कहा।

“ओह, तो ये सुबूत बहुत लंबे समय में धीरे धीरे करके इक्कठे किये गये हैं। पर आज से पहले इनका इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया फिर?” प्रधान जी के स्वर में आश्चर्य साफ झलक रहा था।

“इतना आसान नहीं है प्रधान जी, आपको तो पता ही है कि कई सामाजिक संगठन ऐसे सुबूतों को लेकर न केवल भ्रष्ट अधिकारियों को ब्लैकमेल करके धन ऐंठ लेते हैं, बल्कि सुबूत देने वालों के नाम भी बता देते हैं। और उच्च अधिकारियों का हाल तो मैं कल ही आप को बता चुका हूं, इसलिये कोई हिम्मत नहीं कर रहा था इस काम को करने की”। अनिल खन्ना ने सांस लेने के लिये एक पल का विराम दिया अपनी वाणी को।

“वो तो आपकी छवि इतनी बेदाग है इस शहर में कि आपका नाम सुनते ही फौरन सौंप दिये गये मुझे ये सुबूत। सब जानते हैं कि आपके रहते न्याय सेना में सत्य और न्याय की खरीद फरोख्त नहीं हो सकती”। अनिल खन्ना के स्वर में अपार आदर उमड़ आया था, प्रधान जी के लिये।

“इतना विश्वास करते हैं इस शहर के लोग मुझपर? मैं तो सदा अपने आप को एक आम इंसान समझता हूं जो भगवान संकटमोचक की कृपा से कुछ बड़े कार्य करने में सफल हो पाया है”। प्रधान जी अपने उपर लोगों के इतने विश्वास के बारे में जानकर भावविभोर हो गये थे।

“और यही लक्ष्ण तो आपको महान बनाता है, प्रधान जी। बिल्कुल आपके इष्ट संकटमोचक भगवान हनुमान की तरह ही आप इतनी ताकत होने के बाद भी उससे अंजान बने रहना ही पसंद करते हैं, और केवल समय आने पर ही उसका उचित प्रयोग करते हैं”। प्रधान जी की तारीफ में इस बार ये शब्द राजकुमार के मुंह से निकले थे। उसके चेहरे पर प्रधान जी के लिये आदर और श्रद्धा के गहरे भाव नज़र आ रहे थे।

“ओये तूने फिर अपना वही राग शुरू कर दिया, कंजरा। इस लड़के को पता नहीं क्या दौरा पड़ जाता है बीच बीच में अनिल जी, कभी मुझे महान तो कभी भगवान संकटमोचक का दूत बताने लगता है”। प्रधान जी ने एक बार फिर बनावटी क्रोध से राजकुमार को देखने के बाद अनिल खन्ना से कहा।

“राजकुमार ठीक कहता है, प्रधान जी। मैने भी अपने सारे जीवन में आपके जैसा महान पुरुष नहीं देखा। इसीलिये तो एकदम से शपथपत्र लिख कर दे दिया आपके हाथ में। जानते हैं, इसका गलत इस्तेमाल होने पर मेरा सारा करियर खत्म हो सकता है और कई अन्य मुसीबतें भी झेलनी पड़ सकतीं हैं”। अनिल खन्ना ने राजकुमार की बात का समर्थन करते हुये कहा।

“आप बिल्कुल निश्चिंत हो जाईये, अनिल जी। वरुण शर्मा के रहते कोई आपका बाल भी बांका नहीं कर सकता। जाकर कह दीजियेगा उन सारे कलाकार भाईयों और ईमानदार अधिकारियों से जिन्होंने मुझ अदने इंसान पर इतना विश्वास दिखाया है, कि न्याय सेना ये लड़ाई अपनी पूरी ताकत और ईमानदारी के साथ लड़ेगी। कलाकारों को इंसाफ अवश्य मिलेगा अनिल जी, ये वादा है आपसे वरुण शर्मा का”। प्रधान जी के चेहरे पर एक बड़ी लड़ाई लड़ने के लक्ष्ण उजागर हो गये थे।

“बस तो फिर मेरी चिंता खत्म, प्रधान जी। इन सुबूतों के अलावा भी और बहुत कुछ है, जो जरूरत पड़ने पर आपकी सेवा में हाज़िर हो जायेगा। बस एक निवेदन करना था, आपसे आज्ञा लेने से पहले”। अनिल खन्ना ने अपने स्वर को थोड़ा संभालते हुये कहा।

“बेझिझक कहिये, अनिल जी”। प्रधान जी ने फौरन उत्तर दिया अनिल खन्ना की बात का।

“ये मामला बहुत ही संवेदनशील है, प्रधान जी। इसलिये मेरा आपसे निवेदन है कि आपके और राजकुमार के अलावा न्याय सेना के किसी अन्य पदाधिकारी तक को भी न पता चले कि आपके पास ये सारे शपथ पत्र और बाकी के सुबूत हैं। अगर ये बात लीक हो गयी तो हम सबकी शामत आ जायेगी और आपका काम भी मुश्किल हो जायेगा। इसलिये इन सारे पेपर्स को गोपनीय ही रखें और उचित समय आने पर ही इनका प्रयोग करें”। अनिल खन्ना ने अपनी बात पूरी करते हुये कहा।

“आपका विचार उत्तम है अनिल जी, और इसपर पूरी तरह से अमल होगा। इन पेपर्स के बारे में मेरे और राजकुमार के अलावा न्याय सेना का कोई पदाधिकारी तक नहीं जान पायेगा, बाहर के लोगों की तो बात ही छोड़ दीजिये”। अनिल खन्ना को आश्वस्त करने के बाद प्रधान जी ने राजकुमार को समझाने वाली दृष्टि से देखा तो उसने फौरन सिर हिला कर सहमति दे दी।

“बस तो फिर मेरी चिंता खत्म और आपका काम शुरू, प्रधान जी। अब मुझे आज्ञा दीजिये”। कहने के साथ ही अनिल खन्ना अपनी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया।

“एक काम और है, अनिल जी। आप राजकुमार का नंबर अपने मोबाइल में सेव कर लीजिये। हो सकता है इस मामले से जुड़े कुछ तकनीकी पहलुओं पर आपसे विचार करने के लिये राजकुमार को आपसे बात करनी पड़ जाये। ऐसी स्थिति में आपको पता होना चाहिये कि किसका फोन आया है”। प्रधान जी ने अनिल खन्ना की ओर देखते हुये कहा।

“चिंता मत कीजिये अनिल जी, राजकुमार को मैने अच्छी तरह से परख लिया है। आप इसपर भरोसा कर सकते हैं”। अनिल खन्ना के चेहरे पर दुविधा के भाव देखकर प्रधान जी ने फौरन उसकी शंका का निवारण किया।

अनिल खन्ना के साथ फोन नंबर्स का आदान प्रदान करते समय राजकुमार को महसूस हो रहा था जैसे उसका कद पहले से बड़ा होता जा रहा है।

 

हिमांशु शंगारी