संकटमोचक 02 अध्याय 01

Sankat Mochak 02
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मसूरी, पहाड़ों की रानी के नाम से जाने जाना वाला उत्तरांचल प्रदेश का एक बहुत ही खूबसूरत हिल स्टेशन था ये। मनमोहक मौसम के अतिरिक्त यहां और भी बहुत से आकर्षण थे जिनके चलते दूर दूर से लोग इस हिल स्टेशन का आनंद उठाने आते थे। गर्मी की छुट्टियों में तो मसूरी इस प्रकार पर्यटकों से भरा रहता था जैसे कोई उत्सव मनाया जा रहा हो।

मसूरी के सबसे जबरदस्त आकर्षणों में से एक माना जाता था यहां का मॉल रोड। लगभग तीन किलोमीटर लंबा मसूरी का यह रोड यहां का केंद्रिय आकर्षण था। पारंपरिक परिधानों तथा पारंपरिक भोजन से लेकर आधुनिक परिधान और भोजन तक यहां सब कुछ मिलता था। इसी कारण इस रोड़ पर पर्यटक सीज़न में लगभग हर समय ही भीड़ लगी रहती थी।

पहाडों को काट कर बनाया गया ये रोड़ वास्तव में था ही इतना सुंदर कि यहां पर घूमने का आनंद ही कुछ और था। पर्यटक सीज़न में बहुत भीड़ होने के कारण इस रोड़ पर शाम से लेकर रात तक वाहनों का प्रवेश मना था। रोड के शुरू में ही दो बैरियर लगे हुये थे, जिनका प्रयोग वाहनों के प्रवेश को नियंत्रित करने के लिये किया जाता था।

“मामा, मुझे उस दुकान से सॉफ्टी खानी है”। मॉल रोड के शुरू में ही बनी हुई एक दुकान पर लगी सॉफ्टी की मशीन की ओर इशारा करता हुआ हनी अपनी मां चंद्रिका से कह रहा था।

“हां बेटा, पापा अभी तुझे सॉफ्टी ले देंगे”………………………………… कहती हुई चंद्रिका ने आस पास नज़र दौड़ाई तो पाया कि राजकुमार ग़ायब था।

“अरे, तुम्हारे पापा कहां गये?” कहती हुई चंद्रिका ने पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि राजकुमार मॉल रोड के शुरू में ही लगे एक बैरियर के पास खड़ा हुआ था।

“आओ बेटा, पापा के पास चलते हैं, वो पीछे रह गये हैं”। कहते हुये चंद्रिका ने हनी का हाथ पकड़ा और कुछ दूर ही खड़े राजकुमार की ओर चल दी।

“आप यहां कहां खड़े हैं, हम तो…………………… राजकुमार के पास पहुंचती हुई चंद्रिका को कहते कहते बीच में ही राजकुमार के हाथ का संकेत देखकर चुप हो जाना पड़ा। राजकुमार की मुद्रा गंभीर थी और वो पूरा ध्यान लगा कर बैरियर पर होने वाले वार्तालाप को सुन रहा था। ये देखकर चंद्रिका ने भी अपना ध्यान उस वार्तालाप पर लगा दिया।

“मैने आपसे कहा न श्रीमान जी, इस समय गाड़ी रोड़ पर नहीं जा सकती। आपको रात ग्यारह बजने तक प्रतीक्षा करनी होगी”। बैरियर पर खड़े कई पुलिस कर्मचारियों में से एक कर्मचारी एक वाहन चालक से कह रहा था। ये पुलिस कर्मचारी बाकी के कर्मचारियों से सीनियर लग रहा था।

“ये नियम तो मुझे भी पता है सर, पर मेरी समस्या भी तो समझिये आप। मैने आपको बताया है न कि मेरी पत्नी की सेहत एकदम से खराब हो गयी है, और होटेल मॉल रोड़ में काफी अंदर जाकर है। वहां तक कोई रिक्शा वाला जाता नहीं और पैदल आने की उसकी स्थिति नहीं है। इसीलिये तो गाड़ी को होटेल तक लेकर जाने की कोशिश कर रहा हूं ताकि उसे जल्दी से किसी अच्छे अस्पताल ले जा सकूं”। कार की सीट पर बैठे एक शिक्षित दिखने वाले व्यक्ति ने सभ्य शब्दों में जैसे विनती की।

“आपकी वो बात तो ठीक है श्रीमान जी, पर कानून तो कानून है। हमें हर हाल में इसकी पालना करनी ही होती है। नहीं तो कोई हमारी शिकायत कर देगा कि मना होने के बाद भी कुछ गाड़ियों को अंदर प्रवेश करने दिया जा रहा है। नहीं नहीं, हम आपकी गाड़ी को मॉल रोड़ पर जाने की अनुमति नहीं दे सकते”। पुलिस कर्मचारी ने एकदम पक्के स्वर में कहा और साथ खड़े पुलिस कर्मचारी भी उसकी इस बात को मूक सहमति देते दिखायी दिये।

“कानून का मैं भी बहुत आदर करता हूं सर, पर कानून आम आदमी की सहूलियत के लिये बनाया जाता है, उसे तंग करने के लिये नहीं। आपातकालीन समय में किसी बड़े कार्य को करने के लिये सामयिक तौर पर कानून को कुछ ढीला भी कर लिया जाना चाहिये”। कार चालक के तर्क में जबरदस्त वज़न था।

“बात तो आपकी ठीक है श्रीमान जी, पर इस तरह की ढील देना मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। इसके लिये तो………………………” वातावरण में सायरन की जोर से गूंज उठी आवाज़ को सुनते ही वह पुलिस कर्मचारी चुप हो गया और सब पुलिस कर्मचारी सतर्क होकर सायरन की दिशा में देखने लगे।

शीघ्र ही तीन गाड़ियों का एक काफिला नज़र में आया तो एकदम से एक पुलिस कर्मचारी ने उल्टी दिशा में लगा हुआ बैरियर उठा दिया और सारे के सारे पुलिस कर्मचारी सावधान मुद्रा में खड़े हो गये। तीनों गाड़ियां जैसे जैसे बैरियर के पास आती जा रहीं थीं, पुलिस वालों की मुस्तैदी और राजकुमार के चेहरे की मुस्कान बढ़ती ही जा रही थी।

देखते ही देखते तीनों गाड़ियां पुलिस बैरियर को पार करती हुयीं मॉल रोड के भीतर प्रवेश कर रहीं थीं और पुलिस वाले जोर जोर से गाड़ियों को सलाम ठोक रहे थे।

“इन गाड़ियों में कौन था भाई साहिब, कोई बड़ा ही आदमी लगता है?” पुलिस कर्मचारी को उकसाती हुई ये आवाज़ राजकुमार के मुंह से निकली थी। उसके चेहरे पर एक जानी पहचानी मुस्कुराहट आ चुकी थी जो पल पल गहरी होती जा रही थी।

“हनी बेटा, अब तुझे सॉफ्टी के स्वाद से भी बढ़िया स्वाद आने वाला है”। हनी के कान में धीरे से फुसफुसा कर कहा चंद्रिका ने और उसे राजकुमार की बात सुनने के लिये कहा। राजकुमार के चेहरे पर गहराती जा रही मुस्कान को देखती हुई चंद्रिका समझ चुकी थी कि उसके मन में कोई शैतानी आ चुकी थी।

“जी हां, ये प्रदेश के बाहुबली विधायक हैं, इनका नाम नरेश ठाकुर है और प्रदेश सरकार में बहुत चलती है इनकी। प्रदेश की सारी पुलिस खौफ खाती है इनके नाम से”। पुलिस कर्मचारी ने विधायक की शान में कसीदे पड़ते हुये कहा।

“ओह, तो इसीलिये प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इनको प्रतिबंधित समय में भी मॉल रोड़ पर गाड़ियों सहित प्रवेश करने का विशेष अनुमति पत्र दिया होगा। तभी तो तीन तीन गाड़ियों सहित रोड़ से बाहर निकलने वाले बैरियर की ओर से भीतर प्रवेश कर गये हैं। है न भाई साहिब?” एकदम भोला बनते हुये राजकुमार ने जैसे सबकुछ समझ जाने वाले अंदाज़ में पुलिस कर्मचारी की ओर देखते हुये कहा।

“कैसी बातें कर रहें हैं आप श्रीमान जी, विधायक जी को भला कहां किसी प्रवेश पत्र की आवश्यकता है? पूरे प्रदेश में इनका रास्ता भला कौन रोक सकता है? और फिर, मैने तो ऐसे किसी प्रवेश पत्र के बारे में सुना तक नहीं”। पुलिस कर्मचारी ने राजकुमार के भोलेपन की खिल्ली उड़ाते हुये कहा तो उसके साथ खड़े पुलिस कर्मचारी भी उसकी इस बात पर हंस दिये। कार मैं बैठा वह व्यक्ति जैसे राजकुमार की बात का कुछ कुछ अर्थ समझ गया था और उसने अपना पूरा ध्यान इस वार्तालाप पर टिका दिया था।

“तो क्या आप ये कह रहे हैं कि कार में बैठे इन भाई साहिब की तरह इन विधायक साहिब के पास भी रोड पर प्रवेश पाने का कोई अधिकार नहीं है, पर फिर भी आप लोगों ने सारे कानून तोड़ कर उन्हें तीन तीन गाड़ियां लेकर भीतर जाने दिया है?” राजकुमार के चेहरे से भोलापन गायब हो चुका था और उसका स्थान अब गंभीरता और दृढ़ता ने ले लिया था, मानो उसके जैसा समझदार व्यक्ति संसार में दूसरा कोई हो ही न।

“आप कहना क्या चाहते हैं, श्रीमान जी”? पुलिस कर्मचारी राजकुमार के स्वर में एकदम से आयी दृढता और उसके चेहरे पर आयी गंभीरता को देखकर हड़बड़ा गया था और उसके साथ खड़े पुलिस कर्मचारी भी अब एकदम से गंभीर मुद्रा में आ गये थे।

“मैं कुछ कहने से पहले आपको कुछ याद करवाना चाहता हूं, भाई साहिब। अभी अभी आपने इन भाई साहिब से कहा था कि कानून की पालना तो आपको हर हाल में करनी पड़ती है। इन तीन गाड़ियों को बिना अनुमति उल्टी दिशा वाले बैरियर से सलाम ठोकते हुये भीतर प्रवेश करवा के कौन से कानून की पालना की है आप लोगों नें?” राजकुमार का स्वर बहुत दृढ और संतुलित किन्तु सभ्य था।

“इस कानून का नाम है, जिसकी लाठी उसी की भैंस। इस कानून के तहत आम आदमी को तंग किया जाता है और ताकतवर लोगों को सलाम ठोंक कर हर कानून तोड़ने दिया जाता है, भाई साहिब”। बड़े तीखे स्वर में कहा था कार की चालक सीट पर बैठे हुये उस व्यक्ति ने, जिसे भीतर जाने से रोका जा रहा था। उसके स्वर में पुलिस वालों के लिये नफरत और राजकुमार के प्रति आदर था।

“और फिर भी इस देश को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है? ये बात कुछ समझ नहीं आयी भाई साहिब?” राजकुमार ने एक बार फिर पुलिस कर्मचारी की ओर देखते हुये कहा। उसके चेहरे पर गंभीरता अभी भी पूर्ण रूप से बनी हुयी थी।

“आखिर आप लोग कहना क्या चाहते हैं?” पुलिस कर्मचारी के स्वर में परेशानी साफ झलक रही थी। साथ में खड़े पुलिस वाले भी जैसे समझ गये थे कि उनका पाला किसी बुद्धु से नहीं बल्कि किसी बड़े चालाक आदमी के साथ पड़ गया था जो उनकी ही बातों में उन्हें फंसाता जा रहा था।

“मैं तो केवल ये पूछ रहा हूं कि किस कानून के तहत इन विधायक जी को तीन तीन गाड़ियों के साथ प्रतिबंधित समय के दौरान इस रोड़ पर प्रवेश करने दिया गया है, जबकि इन कार वाले भाई साहिब को तो अभी अभी किसी कानून की दुहायी देकर ही रोक दिया गया था? ये दो अलग अलग कानून कौन से हैं, जो रुतबे के हिसाब से लोगों में भेदभाव करते हैं? लोकतंत्र होने के नाते ये पूछना तो मेरा अधिकार है। कृप्या इसका उत्तर दीजिये”। राजकुमार की दृष्टि पूरी तरह से पुलिस वाले के चेहरे पर जम गयी थी और उसके चेहरे के भावों से स्पष्ट था कि वो एक लड़ाई लड़ने के लिये तैयार हो चुका है।

कार चालक भी कार से उतरकर राजकुमार के साथ आकर खड़ा हो गया था, मानों अपना समर्थन जता रहा हो। आस पास लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गयी थी और मामला दिलचस्प होता जा रहा था। चंद्रिका इस पूरे प्रकरण का मज़ा ले रही थी और बालक हनी को भी जैसे इस सबमें लुत्फ आ रहा था।

“आप कौन हैं सर, क्या आप कोई पत्रकार हैं या फिर कोई अफसर?” पुलिस कर्मचारी राजकुमार के बोलने के अंदाज़ और उसकी शारीरिक भाषा को देखकर घबरा गया था। साथ खड़े पुलिस कर्मचारी भी अब सतर्क हो गये थे और लगातार जमा हो रही भीड़ को देखकर कुछ परेशान से दिख रहे थे।

“अभी तो आप मुझे केवल एक आम आदमी समझ कर मेरे प्रश्न का उत्तर दीजिये, भाई साहिब। आवश्यकता पड़ने पर मैं आपकी बात पत्रकारों तथा अफसरों से भी करवा दूंगा”। राजकुमार का निरंतर दृढ़ और गंभीर बना हुआ स्वर पुलिस वालों को और अधिक परेशान करता जा रहा था।

“अब छोड़िये न सर, इतनी छोटी सी बात को बढ़ाने का क्या लाभ? आप ये बताइये आप चाहते क्या हैं?” पुलिस कर्मचारी के स्वर में सौदा करने वाला भाव आ गया था। वो समझ गया था कि इस बात को बढ़ाने से पुलिस का नुकसान होने वाला था।

“केवल इतना कि इन भाई साहिब की गाड़ी को भी भीतर जाने दिया जाये, ताकि ये अपनी बीमार पत्नी को जल्द से जल्द किसी अच्छे अस्पताल ले जा सकें”। राजकुमार ने पुलिस कर्मचारी का इशारा समझते हुये कहा। उसका स्वर अभी भी उतना ही गंभीर था परन्तु अब उसमें सौदा करने वाला भाव आ गया था। जैसे पुलिस वालों को बताना चाह रहा हो कि अगर गाड़ी को अंदर जाने दिया गया तो मामला यहीं रफा दफा हो जायेगा।

“बस इतनी सी बात, ये लीजिये आपका ये काम तो अभी कर देते हैं”। कहते हुये पुलिस कर्मचारी ने अपने जूनियर को इशारा किया तो उसने एकदम से बैरियर उठा दिया।

“जाईये श्रीमान जी, जल्दी से जाकर अपनी पत्नी को ले आईये”। पुलिस कर्मचारी ने कार वाले व्यक्ति की ओर देखते हुए शीघ्रता से कहा जो सारी बात को समझते हुये गाड़ी में ही बैठ रहा था। पुलिस वालों को एक बड़ी मुसीबत सस्ते में ही टलती नज़र आ रही थी।

कार के निकलते ही पुलिस वालों ने बैरियर एक बार फिर से गिरा दिया। कार चलाने वाला व्यक्ति कार को थोड़ा आगे खड़ा करके एक बार फिर कार से उतर आया था। शायद राजकुमार का धन्यवाद करने आया था।

“लीजिये श्रीमान जी, अब तो आपको पुलिस से कोई शिकायत नहीं”। पुलिस कर्मचारी ने राजकुमार की ओर देखकर मुस्कुराते हुये शीघ्रता से कहा। जैसे जल्दी से जल्दी बात को खत्म करना चाहता हो।

“जी बिल्कुल नहीं भाई साहिब। आपका बहुत बहुत धन्यवाद। बस चलते चलते आपको केवल एक बात कहना चाहता हूं”। राजकुमार के स्वर से गंभीरता ग़ायब हो चुकी थी और उसका स्थान अब आत्मीयता ने ले लिया था।

“मैं जानता हूं इस विधायक की इतनी पकड़ है प्रदेश के राजतंत्र में कि आप चाहते भी तो इसे रोक नहीं सकते थे। इसलिये मैं इसे आपकी मजबूरी ही समझूंगा, बेईमानी नहीं। किन्तु जैसे आप दबाव में आकर ऐसे ताकतवर लोगों के लिये कानून को ढीला कर देते हैं, वैसे ही कभी कभी अपने पद का सदुपयोग करते हुये किसी ज़रुरतमंद की सहायता करने के लिये भी आप कानून को अपनी इच्छा से ढ़ीला कर दिया कीजिये। आपको बड़ा सुकून मिलेगा और आम आदमी के मन में पुलिस के प्रति आदर भी बना रहेगा”।

बात को पूरा करते ही राजकुमार ने बिना किसी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करते हुये वापिस मुड़कर मॉल रोड की ओर चलना शुरु कर दिया था। पास ही खड़े चंद्रिका और हनी भी राजकुमार के साथ हो लिये। पुलिस कर्मचारी अवाक खड़ा राजकुमार को जाते हुए देख रहा था और सोच रहा था कि कितने सामान्य स्वर मे ये व्यक्ति कितनी गहरी बात कह गया था उससे।

“आपका बहुत धन्यवाद भाई साहिब, आपने समय पर आकर बहुत सहायता कर दी मेरी”। कार वाले सज्जन ने राजकुमार की ओर आते हुये शीघ्रता से कहा। उनका स्वर बता रहा था कि उन्हें जाने की जल्दी थी, पर वो राजकुमार का धन्यवाद किये बिना जाना नहीं चाहते थे शायद।

“आप शीघ्रता से जाकर अपनी पत्नी को देखिये, भाई साहिब। और हां, इस धन्यवाद के वास्तविक अधिकारी तो मेरे गुरू वरूण शर्मा हैं जिन्होनें सालों पहले मुझे मुसीबत में फंसे हर व्यक्ति की यथासंभव सहायता करने का पाठ पढ़ाया था”। राजकुमार के स्वर में प्रधान जी के लिये अपार आदर झलक रहा था।

“आपको और आपके गुरु वरुण शर्मा जी दोनों को मेरा धन्यवाद और आपके गुरु जी को मेरा प्रणाम, जिनकी दी हुयी शिक्षा के कारण आपने आज मेरी सहायता की है। अच्छा अब चलता हूं भाई साहिब, मुझे पहले ही देर हो चुकी है, इसलिय क्षमा करते हुये जाने की इजाजत दीजिये”। तत्परता के साथ उन सज्जन ने कहा।

“अवश्य भाई साहिब, आप शीघ्र जाईये”। राजकुमार के कहते ही कार वाले सज्जन ने एक बार फिर राजकुमार का धन्यवाद किया और गाड़ी में बैठ कर अपने होटेल की ओर चल दिये।

“अब अगर आपका जन सहायता का मिशन पूरा हो गया हो तो थोड़ी सैर कर ली जाये, प्रधान जी? फिर आज तो मौसम भी बहुत अच्छा है”। चंद्रिका ने राजकुमार को छेड़ने के लिये जानबूझकर उसे ‘प्रधान जी’ कहकर बुलाते हुये कहा।

“ये आप पापा को प्रधान जी कहकर क्यों बुला रहीं हैं मामा? प्रधान अंकल तो जालंधर में हैं?” 11 वर्षीय बालक हनी ने जैसे कुछ न समझ आने वाले अंदाज़ में पूछा।

“वो इसलिये बेटा कि जब जब तेरे प्रधान अंकल की सिखायी हुयी शिक्षा पर चलते हुये मैं अपना मज़ा भूलकर किसी और की सहायता करने की कोशिश करता हूं, तो तुम्हारी मां मुझे प्रधान जी कहकर बुलाती हैं। ये तुम्हारी मामा का प्रधान जी को याद करने का तरीका है”। राजकुमार ने भी चंद्रिका को छेड़ते हुए कहा।

“अब बातों में ही सारा समय निकालना है या कुछ और भी करना है? आपके बेटे ने सॉफ्टी खाने की फरमाईश की है”। चंद्रिका के कहते ही हनी को अपनी सॉफ्टी वाली बात याद आ गयी जो इस सारे प्रकरण में वो भूल ही गया था।

“अभी पूरी कर देते हैं इसकी ये इच्छा, श्रीमति जी”। कहते हुये राजकुमार ने तेजी से सॉफ्टी वाली दुकान की ओर चलना शुरु किया तो चंद्रिका और हनी भी उसके पीछे पीछे हो लिये।

पांच मिनट के बाद जब तीनो मॉल रोड पर चल रह थे तो राजकुमार ने सॉफ्टी खा रहे हनी से पूछा। “कैसी है सॉफ्टी, हनी बेटा?”

“सॉफ्टी तो बहुत अच्छी है पापा, पर आपने मुझे प्रॉमिस किया था कि आप मुझे प्रधान अंकल की और भी कहानियां सुनायेंगे। आज प्रधान अंकल की कोई कहानी सुनाईये न, पापा”। हनी ने बालहठ वाले अंदाज़ में कहा।

“जरुर सुनाउंगा बेटा, इस ट्रिप में जब भी समय मिला, जरूर सुनाउंगा”। राजकुमार ने हनी को आश्वासन देते हुये प्रेम भरे स्वर में कहा।

“फिर तो बहुत मज़ा आयेगा, पापा। मुझे प्रधान अंकल की कहानियां बहुत अच्छी लगतीं हैं”। हनी ने एक दम से खुश होते हुये कहा तो राजकुमार और चंद्रिका दोनो ही मुस्कुरा दिये।

तीनों मॉल रोड पर आगे बढ़ते जा रहे थे।

हिमांशु शंगारी