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संकटमोचक 02 अध्याय 08

Sankat Mochak 02
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इस घटना के लगभग चार महीने बाद राजकुमार न्याय सेना के कार्यालय के भीतरी केबिन में बैठा कुछ पेपर्स के साथ कुछ करने में वयस्त था। प्रधान जी भी अपनी कुर्सी पर ही बैठे हुये थे।

इन चार महीनों में राजकुमार ने संगठन में एक विशेष स्थान बना लिया था अपना, और अपनी प्रतिभा से उसने प्रधान जी के अलावा संगठन के और भी बहुत से पदाधिकारियों को चकित कर दिया था। आजकल वो संगठन का आधु्निकीकरण करने में लगा हुआ था, जिसके प्रस्ताव को प्रधान जी ने सहर्ष ही अनुमति दे दी थी।

इस प्रक्रिया के चलते संगठन के सब पदाधिकारियों को पहचान पत्र जारी किये जा रहे थे और उनके पते तथा फोन नंबर्स का रिकार्ड बनाया जा रहा था। इससे किसी भी सदस्य से कभी भी संपर्क किया जा सकता था और न्याय सेना के सदस्यों की ठीक संख्या का हर समय पता भी चलाया जा सकता था। कंप्यूटर्स के क्षेत्र में अच्छा ज्ञान होने के कारण राजकुमार ये सारे रिकार्ड खुद अपने कंप्यूटर पर बना रहा था। अब तक लगभग पांच हज़ार सदस्यों और पदाधिकारियों को जारी किये जा चुके थे ये पहचान पत्र।

“ये पहचान पत्र वाला काम तो बहुत अच्छा हो गया, पुत्तर जी। कब से ये विचार मेरे दिमाग में बार बार आता था, पर इस काम की जटिलता और विशालता को देखते हुये इसे करने वाला कोई पदाधिकारी संगठन में नज़र नहीं आ रहा था मुझे। तुमने इतने कम समय में ही हज़ारों सदस्यों का रिकार्ड बना लिया है। सारा दिन तो मेरे साथ रहते हो, फिर कब करते हो ये सारा काम?”। प्रधान जी ने राजकुमार की ओर प्रशंसनीय दृष्टि से देखते हुये कहा।

“जी रात को अपने कंप्यूटर पर बैठ कर बनाता हूं ये सारे रिकार्ड और फिर उनका प्रिंट आऊट लाकर यहां कार्यालय की फाईल में लगा देता हूं ताकि आवश्यकता पड़ने पर संगठन का कोई भी पदाधिकारी किसी भी सदस्य से संपर्क कर सके”। राजकुमार ने उत्तर दिया और तुरंत ही वापिस अपना काम करने में जुट गया।

“अनिल खन्ना जी मिलना चाहते हैं, प्रधान जी?” राजू की इस आवाज़ ने प्रधान जी के साथ साथ राजकुमार का ध्यान भी आकर्षित किया। राजकुमार को पता था कि अनिल खन्ना एक कलाकार था और जालंधर दूरदर्शन के माध्यम से प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में काम करता था। आज सुबह ही उसने प्रधान जी से मिलने का समय लिया था।

“उन्हें फौरन अंदर भेजो और चाय का प्रबंध करो, पुत्तर जी”। कहने के साथ ही प्रधान जी ने राजकुमार की ओर इस प्रकार देखा जैसे उसे कहना चाहते हों कि अब ये काम छोड़ कर इस मुलाकात पर ध्यान दो। राजकुमार पहले ही राजू की इस बात को सुनकर पेपर्स एक ओर रखकर सतर्क मुद्रा में बैठ गया था।

“चरण स्पर्श, प्रधान जी”। अनिल खन्ना ने आते ही प्रधान जी के पैर छूये।

“ओ जीते रहो, मेरे अनिल जी। बड़ी खुशी होती है आपको टीवी पर देखकर। आईये बैठिये”। प्रधान जी ने खुश होते हुये कहा।

“सब आपका ही आशिर्वाद है, प्रधान जी”। कहते हुये अनिल खन्ना प्रधान जी के सामने लगी कुर्सी पर बैठ गया।

“और सुनाईये अनिल जी, सब कुशल मंगल तो है?”। प्रधान जी जानते थे कि एक वयस्त कलाकार होने के कारण अनिल खन्ना सामान्यतया बिना किसी विशेष कार्य के उनके कार्यालय नहीं आता था। इसलिये उन्होंने सीधे काम का सवाल ही कर दिया था।

“आज का अखबार देखा आपने, प्रधान जी?” अनिल खन्ना ने भेद भरे स्वर में पूछा।

“कहीं आप मशहूर गायक जस्करण सिंह जस्सी के उस बयान की बात तो नहीं कर रहे जिसमें उसने जालंधर दूरदर्शन में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार व्याप्त होने के आरोप लगाये हैं?” प्रधान जी ने अनिल खन्ना का आशय समझते हुये कहा। राजकुमार जानता था कि सुबह उठकर सभी महत्वपूर्ण अखबारों की खबरों को अच्छे से पढ़ना और उनमें से अपने काम की खबरें निकालना प्रधान जी की दिनचर्या की शुरुआत होती थी।

राजकुमार ने भी ये महत्वपूर्ण सबक सीख लिया था प्रधान जी से, और अब वो भी सुबह उठते ही सभी महत्वपूर्ण अखबारों की खबरें पढ़ता था जिससे शहर, प्रदेश और देश में होने वाली महत्वपूर्ण घटनाओं की जानकारी रहे उसे। न्याय के लिये लड़ने वाले एक सामाजिक संगठन को चलाने के लिये बहुत आवश्यक भी था ये, कि आस पास के हालात की पूरी जानकारी रहे आपको।

“जी बिल्कुल ठीक पकड़ा आपने, प्रधान जी। मैं जस्सी के उस बयान की ही बात कर रहा हूं। आपने देखा कितने संगीन आरोप लगाये हैं उन्होनें जालंधर दूरदर्शन के अधिकारियों पर?” अनिल खन्ना की आवाज़ में उर्जा और राजकुमार के चेहरे पर रुचि, दोनों ही बढ़ गये थे।

“हां, बड़े ध्यान से पढ़ी है, मैने ये खबर। हैरान हूं कि जस्सी जैसे स्थापित गायक को भी इस भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ा है?”। प्रधान जी ने हैरान होते हुये कहा। जसकरन जस्सी पंजाबी के एक मशहूर गायक थे। ‘दिल लै गयी कुड़ी पंजाब दी’ से चर्चा में आये जस्सी के कई गाने हिट हो चुके थे और अच्छा खासा नाम कमा लिया था उन्होने।

“जितना आप समझ चुके हैं, मामला उससे बहुत बड़ा है प्रधान जी। इसीलिये तो आया हूं आपके पास”। अनिल खन्ना के स्वर का भेद बढ़ता ही जा रहा था।

“खुल के कहिये अनिल जी, जो कहना है”। प्रधान जी ने अनिल खन्ना को प्रोत्साहित करते हुये कहा।

“जी वो…………”। अनिल खन्ना ने प्रधान जी की आंखों में देखते हुये आखों के इशारे से ही राजकुमार की ओर संकेत किया। प्रधान जी समझ गये थे कि अनिल खन्ना कोई बहुत गोपनीय बात करना चाहता है और राजकुमार की उपस्थिति में वो ये बात नहीं करना चाहता।

“अरे, बातों बातों में मैं आपको राजकुमार से मिलवाना तो भूल ही गया, अनिल जी। इनसे मिलिये, ये हैं राजकुमार। हमारे संगठन में सबसे छोटी आयु के महासचिव। इनकी उम्र पर मत जाईयेगा अनिल जी, बहुत प्रतिभाशाली हैं हमारे राजकुमार। संगठन का हर बड़ा कार्य अब इनसे सलाह करने के बाद ही होता है। आप इन्हें डॉक्टर पुनीत जैसा ही समझ सकते हैं”। प्रधान जी ने अनिल खन्ना का संकेत समझते हुये इशारे में ही जैसे सब कुछ समझा दिया था उसे।

“बहुत खुशी हुयी आपसे मिलकर, राजकुमार। प्रधान जी ने अगर आपकी इतनी तारीफ की है तो आप अवश्य ही इसके काबिल होंगे”। अनिल खन्ना ने राजकुमार की ओर देखते हुये कहा।

“ये तो प्रधान जी का बड़प्पन है अनिल जी, जो इन्हें सबकी केवल खूबियां ही दिखतीं हैं, खामियां नहीं। मैने आपको कई बार टीवी पर देखा है, बहुत अच्छा अभिनय करते हैं आप”। राजकुमार ने प्रधान जी और अनिल खन्ना दोनों की ही तारीफ करते हुये कहा।

“धन्यवाद राजकुमार। तो मैं ये कह रहा था प्रधान जी, कि ये मामला बहुत बड़ा है। कुछ समय पहले ही जब जस्सी ने दूरदर्शन से प्रसारित होने वाले नववर्ष कार्यकर्म में गाने की इच्छा जाहिर की तो अधिकारियों ने उनसे गाना गाने के लिये एक लाख रुपये की मांग कर दी”। अनिल खन्ना ने फिर उसी भेद भरे स्वर में दबी आवाज़ के साथ कहा, जैसे उसे डर हो कि कहीं बाहर के केबिन में बैठे लोग उसकी बात न सुन लें।

“जस्सी से एक लाख रुपये मांग लिये, ये क्या बात हुई अनिल जी? मैने तो सुना है कि अच्छे गायकों को दूरदर्शन पर गाना गाने के पैसे दिये जाते हैं, ये तो उल्टी ही बात सुनायी आपने”। प्रधान जी और राजकुमार दोनों के चेहरों पर ही हैरानी के भाव आ गये थे।

“इसीलिये तो कहा था प्रधान जी, कि मामला बहुत बड़ा है। दूरदर्शन का नववर्ष का कार्यक्रम लोग बहुत शौक से देखते हैं, इसलिये दूरदर्शन अधिकारी इस कार्यक्रम का हिस्सा बनने की इच्छा रखने वाले हर प्रकार के कलाकार से पैसा मांगते हैं। फिर चाहे वो गायक हो या एक्टर”। अनिल खन्ना की बातों में रहस्य का पुट बढ़ता ही जा रहा था।

“तो क्या आप ये कहना चाहते हैं कि आप भी पैसे देते हैं इन भ्रष्ट अधिकारियों को? अगर ऐसा है तो आपने आज तक इस बारे में कोई चर्चा क्यों नहीं की मेरे साथ, सालों की खाट खड़ी कर देता मैं?” प्रधान जी ने हैरानी और क्रोध के मिश्रित भावों से अनिल खन्ना की ओर देखते हुये कहा।

“क्या करें प्रधान जी, जो सब करते हैं वो मुझे भी करना पड़ता है। आप तो जानते ही हैं कि जालंधर दूरदर्शन को देखने वालों की संख्या आज भी बहुत अधिक है, और कुछ सालों पहले तक तो सैटेलाईट चैनल इस देश में आये तक नहीं थे। मनमानी थी इनकी और इसीलिये सब कलाकारों से जबरन वसूली करते थे ये, जो आज भी जारी है”। अनिल खन्ना ने उदास स्वर में कहने के बाद अपनी बात को विराम दिया।

“बड़ी हैरानी की बात बतायी है आपने। नये कलाकारों को चांस देने के बदले में पैसे मांगने की बात तो कई बार सुनी है मैने, पर स्थापित कलाकारों से पैसा वसूली की बात पहली बार सुन रहा हूं आपके मुंह से अनिल जी”। प्रधान जी ने एक बार फिर आश्चर्य से कहा।

“वो इसलिये प्रधान जी, कि कलाकारों का भी एक संघ है जिसमें आपसी सहमति के साथ इस मामले में किसी भी कलाकार को कुछ बोलने से मना किया गया है। बहुत बड़ा दायरा है दूरदर्शन का, प्रधान जी। बहुत नुकसान कर सकता है हमारा”। अनिल खन्ना ने चिंता और भय के मिले जुले भावों के साथ कहा।

“तो फिर आज क्यों बोला है जस्सी, अगर इतना ही डर है सब कलाकारों को दूरदर्शन का?” प्रधान जी की बात में इस बार हैरानी के साथ हल्का व्यंग्य भी था।

“वो इसलिये प्रधान जी, एक तो जस्सी एक निडर इंसान हैं, दूसरा अब दूरदर्शन ने भ्रष्टाचार की हद कर दी है और तीसरा अब और चैनल्स भी आ गये हैं, विकल्प के रूप में। इसलिये अब कलाकारों का सालों से दबा हुआ रोष बाहर आने की कोशिश कर रहा है। जस्सी ने उसी रोष को शब्द दिये हैं, इस बयान के साथ। लेकिन ये मामला इतना ही नहीं है प्रधान जी, बल्कि इससे भी कहीं अधिक गंभीर है। और भी बहुत सी बदमाशियां हो रही हैं, दूरदर्शन के अंदर”। अनिल खन्ना ने फिर एक नयी पहेली खड़ी कर दी थी।

“और क्या है वो बदमाशियां, अनिल जी?”। प्रधान जी की रूचि अब इस सारे मामले में बढ़ती जा रही थी।

“दूरदर्शन के अंदर लगी कुछ महंगी मशीनों को खराब दिखाकर नयी मशीनें खरीदी जाती हैं समय समय पर, जबकि वास्तव में वही पुरानी मशीनें ही काम कर रहीं हैं और सारा पैसा मशीनें बेचने वाली कंपनियों के साथ सैटिंग करके नकली बिलों के भुगतान के माध्यम से खा जाते हैं, ये दूरदर्शन वाले। करोड़ों का हेर फेर करते हैं ये, प्रधान जी”। अनिल खन्ना ने एक और खुलासा किया।

“इतनी बड़ी धांधली, आश्चर्य है। कभी कोई शिकायत या जांच नहीं होती इसकी?” प्रधान जी की हैरानी और रूचि बढ़ती जा रही थी इस मामले में अब।

“शिकायत से कोई लाभ नहीं प्रधान जी, सीधे सूचना और प्रसारण मंत्रालय के बड़े अधिकारियों के साथ सैटिंग है इनकी। उन्हीं की शह पर तो होता है ये सारा भ्रष्टाचार और एक बड़ा हिस्सा उन्हें भी जाता है”। अनिल खन्ना ने एक और भेद खोलते हुये कहा।

“लेकिन देश के सूचना और प्रसारण मंत्री तरुण जेतली तो बहुत साफ छवि वाले और बहुत इंटैलिजैंट व्यक्ति हैं। वो क्यों नहीं करते इस मामले में कुछ?” प्रधान जी ने एक और प्रश्न उछाल दिया था अनिल खन्ना की ओर।

“मंत्री जी के पास सारे देश में ऐसे कितने ही संस्थान और अन्य बहुत से कार्य हैं, जिसके चलते वो हर संस्थान को खुद तो नहीं देख सकते। इसलिये हर बड़े संस्थान के उपर केंद्र से एक वरिष्ठ अधिकारी लगाया जाता है, देखरेख करने के लिये………”। अनिल खन्ना ने अपनी बात को अधूरा ही छोड़ते हुये प्रधान जी की ओर कुछ समझाने वाले भाव से देखा।

“और उस देखरेख करने वाले अधिकारी की ये भ्रष्ट लोग अच्छी तरह से देखरेख कर लेते हैं, ताकि वो इनके बारे में सब अच्छा बोलता और लिखता रहे”। प्रधान जी ने सबकुछ समझ जाने वाले भाव में कहा। उनके स्वर में इस बार तीखा व्यंग्य था। राजकुमार इस सारे वार्तालाप को बहुत दिलचस्पी से सुन रहा था।

“बिल्कुल यही बात है प्रधान जी, इसीलिये तो कोई आवाज़ नहीं उठाता इनके खिलाफ। पर अब इनकी मनमानी हद से बढ़ गयी है। इसीलिये तो आया हूं मैं आपके पास, प्रधान जी………”। अनिल खन्ना ने एक बार फिर अधूरी पहेली उछाल दी थी प्रधान जी की ओर।

“खुल कर कहिये जो कहना चाहते हैं, अनिल जी”। प्रधान जी का स्वर गूंज उठा कार्यालय में।

“पिछले कुछ समय से कलाकार संघ के एक हिस्से में इन अधिकारियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ रोष बढ़ता जा रहा है और साथ ही साथ बढ़ता जा रहा है, कलाकारों के इस हिस्से का आकार। आज की तिथि में लगभग आधे कलाकार दूरदर्शन के खिलाफ आवाज़ उठाना चाहते हैं, और जस्सी के इस बयान ने इन सब कलाकारों के अंदर की आग पर जैसे तेल डालने का काम किया है। हंगामा मच गया है कलाकार संघ में। सुबह से अनेक कलाकारों के फोन आ चुके हैं मुझे, इसीलिये आपसे समय मांगा था मैने मिलने का”। अनिल खन्ना ने कहने के बाद अपनी बात को विराम दे दिया।

“तो फिर ये सारे कलाकार मिलकर लड़ते क्यों नहीं दूरदर्शन में व्याप्त इस भ्रष्टाचार के खिलाफ?” प्रधान जी ने अनिल खन्ना को प्रोत्साहित करते हुये कहा।

“करना तो सब वही चाहते हैं प्रधान जी, पर हम कलाकार हैं, क्रांतिकारी या बड़े नेता नहीं। हमें सुनियोजित तरीके से लड़ाई लड़ने का ढ़ंग नहीं आता। और फिर हमारे सीधे रूप से यूं सामने आ जाने से दूरदर्शन के इन अधिकारियों का कोई नुकसान हो न हो, हमारा बहुत नुकसान जरूर हो सकता है। इसीलिये तो अधिकतर कलाकार इस बात पर सहमत हैं कि कलाकारों के हक में ये लड़ाई कोई अच्छा संगठन लड़े और सारे कलाकार उसे पीछे से सहयोग दें”। अनिल खन्ना एक बार फिर अपनी बात को विराम देकर प्रधान जी की ओर देखने लगा था।

“और आपने उन्हें न्याय सेना का नाम सुझा दिया होगा। इसीलिये आप मेरे पास आये हैं ताकि न्याय सेना इस मामले को हाथ में ले ले, कलाकारों की ओर से”। प्रधान जी ने अनिल खन्ना की बची हुयी बात को पूरा करते हुये कहा। उनके चेहरे पर रोमांचक मुस्कुराहट आ गयी थी।

“बिल्कुल ठीक कहा आपने प्रधान जी, बस एक फर्क है। मैने आपका नाम नहीं सुझाया बल्कि बहुत से कलाकारों ने खुद मुझसे कहा है कि मैं आपसे निवेदन करूं, इस मामले में हमारी सहायता करने के लिये। वे सब जानते हैं कि मेरे आपके साथ अच्छे संबंध हैं”। अनिल खन्ना ने तत्परता के साथ कहा।

“पर न्याय सेना ही क्यों, और भी तो कई सामाजिक संगठन हैं इस शहर में?” प्रधान जी ने जैसे सब समझते हुये भी अनिल खन्ना से प्रश्न किया।

“इसका जवाब तो आप जानते ही हैं, प्रधान जी। बहुत बड़ा और प्रभावशाली संस्थान है दूरदर्शन। लाखों रुपये के लालच से लेकर बहुत बड़े दबाव, धमकियां और साजिशें झेलनी पड़ेंगीं इस लड़ाई का बीड़ा उठाने वाले संगठन को। इतने लालच और दबाव के आगे भी न तो बिकने वाला और न ही झुकने वाला केवल एक ही संगठन है इस शहर में, और वो है आपकी छत्रछाया में चलने वाला न्याय सेना का ये संगंठन”। अनिल खन्ना के स्वर और अंदाज़ में प्रधान जी के लिये प्रशंसा के जबरदस्त भाव थे।

“इतना विश्वास करते हैं कलाकार हमपर, मैं तो इनमें से अधिकतर के साथ कभी मिला भी नहीं?” प्रधान जी ने थोड़ा हैरान होते हुये कहा।

“ये तो मैने बहुत कम कहा है प्रधान जी, आपको अपने प्रभाव के बारे में अभी पूरी तरह से पता ही नहीं। आप इन कलाकारों को निजी रूप से जानते हों या न, किन्तु आपके किये हुये बड़े बड़े कारनामों से और आपकी एकदम बेदाग तथा निर्भय छवि से हर कोई भली भांति वाकिफ है। इसलिये सब कलाकारों को पूरा विश्वास है कि इतने बड़े काम को अंजाम तक ले जाने के लायक केवल आपका ही संगठन है”। अनिल खन्ना ने प्रधान जी की तारीफों के पुल बांधते हुये कहा।

राजकुमार प्रधान जी की कलाकारों जैसे उच्च वर्ग में भी इतनी स्वच्छ छवि को जानकर संगठन के साथ जुड़ने के अपने फैसले पर मन ही मन बहुत खुश हो रहा था।

“ये तो आपने बहुत बड़ी बात कह दी अनिल जी, अब तो हमें इस मामले में अपने कलाकार भाईयों के लिये संघर्ष करना ही होगा। आप निश्चिंत हो जाईये, हम आपकी हर संभव सहायता करेंगे और अपने कलाकार भाईयों को न्याय दिलाने का पूरा प्रयास करेंगे”। प्रधान जी ने कहा और फिर अनिल खन्ना के कोई प्रतिक्रिया देने से पहले ही राजकुमार की ओर देखा।

“पुत्तर जी, आपने सारी बात सुन ली होगी। हमें अब इस काम को अंजाम देना है। अगर आप इस मामले में अपनी कोई राय देना चाहो, तो बोल सकते हो”। प्रधान जी ने राजकुमार के विचार जानने के लिये पूछा।

“मैं बस कुछ सवाल पूछना चाहता हूं अनिल जी से, अगर आपकी आज्ञा हो तो”। राजकुमार ने आदर सहित कहा।

“हा हा हा, तुम्हारी इस कुछ सवाल पूछने की आदत से मैं अब भली भांति वाकिफ हो चुका हूं, पुत्तर जी”। प्रधान जी ने हंसते हुये कहा और इससे पहले अनिल खन्ना प्रधान जी की इस हंसी का कारण समझ पाता, प्रधान जी आवाज़ ने उसका ध्यान खींच लिया।

“लीजिये अनिल जी, अब हमारे राजकुमार के कुछछ… सवालों का जवाब दीजिये। इनके सवाल पूरे होते होते आपको समझ आ जायेगा कि इतनी छोटी आयु में ही इन्हें न्याय सेना का महासचिव क्यों बनाया गया है। इस काम को आसान मत समझियेगा और बिल्कुल उसी तरह से तैयारी कर लीजिये जैसे परीक्षा के समय करते थे”। प्रधान जी ने हंसते हुए अनिल खन्ना से कहा। ‘कुछ’ शब्द को उन्होने जानबूझकर खींच कर और ज़ोर देकर बोला था, क्योंकि वो इन चार महीनों में कई बार देख चुके थे कि राजकुमार के इन ‘कुछ’ सवालों का जवाब देते समय अधिकतर लोग नर्वस हो जाते थे।

“अनिल जी, कुछ साधारण से प्रश्न हैं मेरे बस”। राजकुमार ने प्रधान जी की सहमति मिलने के बाद अनिल खन्ना की ओर देखते हुये कहा। उसकी इस बात पर प्रधान जी एक बार फिर मुस्कुरा दिये जबकि अनिल खन्ना की समझ में अभी भी कुछ नहीं आ रहा था।

“जी, जरूर पूछिये”। हैरान से अनिल खन्ना के मुंह से बस इतना ही निकल पाया।

“कितने कलाकार हैं आपके पक्ष में और कितने विपक्ष में?” राजकुमार ने अपना पहला सवाल किया।

“लगभग आधे कलाकार हमारे पक्ष में हैं और विपक्ष में तो शायद कोई भी नहीं है। बाकी के आधे कलाकार इस पचड़े से दूर रहना चाहते हैं, पर संघर्ष करने वाले कलाकारों की खिलाफत भी नहीं करना चाहते वो। आखिर इस भ्रष्टाचार से मुक्त तो सभी होना चाहते हैं”। अनिल खन्ना ने उत्तर दिया।

“इनमें से लगभग कितने कलाकारों ने आपको न्याय सेना से ये काम अपने हाथ में लेने के लिये कहा है?” राजकुमार का अगला प्रश्न भी तैयार ही था।

“लगभग नौ से दस कलाकारों ने”। अनिल खन्ना ने कुछ सोचते हुये कहा।

“और आपको मिलाकर इन दस लोगों में से कितने लोग हमें दूरदर्शन में व्याप्त इस भ्रष्टाचार का शिकार होने की बात शपथपत्र पर लिखकर दे सकते हैं?” राजकुमार के इस अगले प्रश्न को सुनकर अनिल खन्ना एकदम से असहज हो गया था।

“मैं कुछ समझा नहीं?” कहते हुये अनिल खन्ना ने प्रधान जी की ओर देखा जो निरंतर मुस्कुरा रहे थे।

“जी बस एक सवाल और, इसके बाद समझाता हूं आपको। दूरदर्शन के अंदर मशीनों को झूठमूठ खरीदने की जिस धांधली के बारे में आपने हमें बताया है, उसका कोई ठोस सुबूत दे सकते हैं आप हमें?” राजकुमार के इस अगले प्रश्न ने अनिल खन्ना का बचा खुचा संतुलन भी बिगाड़ दिया और उसने एकदम असहज होकर प्रधान जी की ओर सहायता की दृष्टि से देखा। उसके चेहरे से साफ था कि उसे राजकुमार से इतने तीखे सवालों की बिल्कुल भी अपेक्षा नहीं थी।

“चिंता की कोई बात नहीं है अनिल जी, ये तो हमारे राजकुमार का स्वभाव है, बाल की खाल निकालना। लेकिन इसका कोई भी सवाल बिना गहरे अर्थ के नहीं होता”। कहने के साथ ही प्रधान जी ने राजकुमार की ओर ऐसे देखा जैसे उसे कह रहे हों कि अनिल खन्ना को इन सवालों का अर्थ समझाया जाये।

“अनिल जी, अभी अभी आपने ही कहा है कि दूरदर्शन बहुत प्रभावशाली संस्थान है और इसके खिलाफ लड़ने वाले संगठन को पैसा, दबाव और अन्य कई कठिन परीक्षाओं से निकलना पड़ेगा। जब ये बात हमारे जैसे बड़े संगठनों पर लागू होती है तो कलाकारों के बिकने की या झुक जाने की संभावना तो बहुत अधिक है। वे तो थोड़े से दबाव में आकर ही मुकर सकते हैं कि उन्होंने ऐसी कोई शिकायत नहीं की है न्याय सेना से। मेरी बात ठीक है या नहीं, अनिल जी?” राजकुमार ने अनिल खन्ना की ओर देखते हुये कहा। प्रधान जी के चेहरे पर ऐसी मुस्कान थी जैसे उन्हें पहले से ही पता था कि राजकुमार के इस सवाल का कारण क्या था।

“बिल्कुल हो सकता है ये, और ऐसा तो कई बार हो भी चुका है पहले। समय समय पर कुछ कलाकारों ने शिकायत की थी इस भ्रष्टाचार के खिलाफ, पर फिर किसी लालच या दबाव में आकर पीछे हट गये”। अनिल शर्मा जैसे राजकुमार की बात का अर्थ समझ गया था अब।

“अब जरा विचार कीजिये, न्याय सेना कलाकारों के हक में लड़ाई शुरू कर दे और बाद में कलाकार ही पीछे हट जायें तो कितनी जग हंसाई होगी हमारी?” राजकुमार के इस तर्क का कोई तोड़ नहीं था अनिल खन्ना के पास।

“इसी प्रकार बिना किसी ठोस सुबूत के हम दूरदर्शन पर महंगी मशीनों को झूठमूठ खरीदने का इल्ज़ाम लगा दें और बाद में पता चले कि ये बात भी महज़ एक अफवाह के अलावा कुछ नहीं तो? इसका सारा दायित्व सीधा हमारे संगठन पर आ जायेगा, कि बेकार में ही कितने अधिकारियों को परेशान किया बिना किसी ठोस सुबूत के। इसलिये पूछे थे आपसे ये दोनो सवाल”। राजकुमार ने मुस्कुराते हुये अपनी बात को विराम देते हुये प्रधान जी की ओर देखा।

“राजकुमार के कहने का अर्थ ये है अनिल जी कि आपको कुछ कलाकारों से हमें ये शिकायत लिखित रूप में लेकर देनी होगी कि उनसे काम के बदले में पैसे लिये गये हैं। इससे बाद में ये कलाकार चाह कर भी पीछे नहीं हट पायेंगे। इसी प्रकार आपको हमें मशीनों वाले मामले में भी कुछ ऐसे सुबूत देने होंगे जो हमें ये आरोप लगाने का कोई ठोस आधार दे पायें”। प्रधान जी ने एक पल के लिये अपनी वाणी को विराम दिया और फिर से शुरू हो गये।

“बहुत संवेदनशील मामला है ये अनिल जी, और आप ही के कहने के अनुसार बहुत बड़े अधिकारी शामिल हैं इसमे, जालंधर से लेकर दिल्ली तक। इसलिये हमें इस मामले में बहुत सतर्कता बरतनी पड़ेगी। अब बताईये, आपका क्या विचार है?”। प्रधान जी ने अनिल खन्ना की ओर देखते हुये कहा।

“आपकी बात बिल्कुल ठीक है प्रधान जी, और मैने राजकुमार के महासचिव बनने के पीछे छिपी इनकी प्रतिभा भी देख ली। जहां तक मेरा सवाल है, मैं तो ये शपथपत्र अभी दे सकता हूं। बाकी कलाकारों से इस बारे में बात करने के लिये और मशीनों वाले मामले में कोई ठोस सुबूत ढ़ूंढ़ने के लिये आप मुझे कल तक का समय दीजिये। इन बातों का भी कोई न कोई हल निकल ही आयेगा”। अपनी बात पूरी करने के बाद अनिल खन्ना ने अपनी दृष्टि प्रधान जी चेहरे पर जमा दी।

“बिल्कुल ठीक है अनिल जी, आप जरूर लीजिये कल तक का समय। तब तक हम भी इस मामले से झुड़े कुछ पहलुओं पर गौर कर लेते हैं”। प्रधान जी के निर्णायक स्वर में इतना कहने के बाद अनिल खन्ना ने दूसरे दिन 11 बजे मिलने का समय निश्चित करते हुये उन दोनों से विदा ली।

“क्या लगता है पुत्तर जी, कहां तक जा सकता है ये मामला?” दो मिनट के बाद प्रधान जी राजकुमार से पूछ रहे थे।

“मेरे विचार से ये मामला बहुत बड़ा है प्रधान जी, और इसमें कामयाबी मिलने पर संगठन की साख बहुत अधिक बढ़ जायेगी। सीधा केंद्र के इतने बड़े मंत्रालय से जुड़ा है ये मामला”। राजकुमार ने अपना विचार पेश करते हुये कहा।

“और क्या लगता है तुम्हें, अनिल खन्ना कल आयेगा हमारी मांगी हुयी चीज़ों के साथ या फिर पीछे हट जायेगा”। प्रधान जी ने इस बात का उत्तर पता होते हुये भी राजकुमार को परखने के विचार से पूछा।

“जिस आत्मविश्वास के साथ वो उसी समय शपथपत्र देने की बात कर रहा था, उससे तो लगता है कि ज़रूर आयेगा, प्रधान जी”। राजकुमार से अपनी अपेक्षा के अनुसार उत्तर मिलने पर प्रधान जी मुस्कुरा दिये।

“बिल्कुल ठीक समझे तुम, पुत्तर जी। मैं अनिल खन्ना को सालों से जानता हूं, ये भागने वालों में से नहीं है। ये ज़रुर आयेगा। देखना बस ये है कि कितने और कलाकार तथा क्या सुबूत ला पाता है अपने साथ?” प्रधान जी ने इतना कहते हुये अपनी वाणी को विराम दिया।

“अगर आप की आज्ञा हो तो कल तक इस मामले से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं के विषय में अपनी जानकारी बढ़ा लूं, प्रधान जी?” राजकुमार ने प्रधान जी की ओर देखते हुये कहा।

“जैसे मेरी आज्ञा न मिलने पर तू हट जायेगा बदमाश, मैं अच्छी तरह से जान चुका हूं तुझे। एक नंबर का कंजर है तू और हर समय तेरे दिमाग में कोई न कोई शैतानी चलती रहती है। अब तेरे दिमाग में ये जासूसी करने का कीड़ा घुस गया है तो तू हटेगा थोड़े ही। जुटा ले जो जानकारी जुटानी है तुझे अपने तरीके से”। प्रधान जी ने राजकुमार को छेड़ते हुये कहा।

“प्रधान जी का हुक्म सर आंखों पर”। राजकुमार ने भी शरारती स्वर में ही जवाब दिया तो दोनों ही हंस पड़े।

 

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक 02 अध्याय 07

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दूसरे दिन सुबह के लगभग 11 बजकर 15 मिनट पर राजकुमार और राजीव प्रधान जी के कार्यालय में बैठे थे। टेबल पर चाय लग चुकी थी और प्रधान जी तथा पुनीत के अलावा राजू नाम का वह पदाधिकारी और उसके साथ रमेश गुलाटी भी कार्यालय में ही थे। रमेश गुलाटी का मुंह राजकुमार और राजीव को देखकर ऐसे कड़वा हो गया था, जैसे नीम का पानी पी लिया हो।

“हां तो शुरू करें फिर कार्यवाही। गुलाटी साहिब, इनका कहना है कि आपके द्वारा इनके खिलाफ दी गयी पुलिस शिकायत बिल्कुल झूठी है और वास्तव में ये पीड़ित हैं आपसे। आप क्या कहना चाहते हैं इस मामले में?” प्रधान जी ने राजकुमार और राजीव की ओर इशारा करते हुये रमेश गुलाटी से कहा।

“बिल्कुल झूठ बोलते हैं ये प्रधान जी, मेरे पास सारे सुबूत हैं मेरे सच्चा होने के, और वो भी कागज़ात के रूप में, जिन्हें सबसे बड़े सुबूत माना जाता है”। गुलाटी ने अपना पक्ष दृढ़ता से रखा।

“तो ठीक है फिर, हम अब दूसरे पक्ष को अपनी बात रखने का मौका देंगे। किन्तु इस बात का ध्यान रहे गुलाटी साहिब, अगर आपके इस सच्चा होने के बयान के बाद इनका पक्ष सही निकल आया, तो न केवल हम इनका साथ देंगे इस मामले में, बल्कि आपको न्याय सेना को गुमराह करने का दंड़ भी भुगतना पड़ेगा”। प्रधान जी ने बड़े ही संतुलित मगर दृढ़ स्वर में कहा तो एक पल के लिये रमेश गुलाटी के चेहरे पर ऐसे भाव आ गये, जैसे उसकी चोरी पकड़ी जाने वाली हो।

“हां तो पुत्तर जी, आप अपना पक्ष रख सकते हैं अब”। प्रधान जी ने राजकुमार की ओर देखते हुये कहा। उनके राजकुमार को पुत्तर जी कहने से जहां गुलाटी की परेशानी बढ़ गयी थी, वहीं संगठन के सचिव हरजीत राजू को हैरानी हो रही थी। राजू सोच में पड़ गया था कि ये कौन लड़का है जिसे इतने साल प्रधान जी के साथ रहने पर भी उसने आज तक नहीं देखा और जिससे प्रधान जी इतने प्यार से पेश आ रहे हैं?

“धन्यवाद प्रधान जी, हमें ये मौका देने के लिये। अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं गुलाटी साहिब से कुछ सवाल पूछना चाहूंगा”। राजकुमार ने प्रधान जी की ओर देखते हुये विनम्र स्वर में कहा।

“अवश्य पुत्तर जी। गुलाटी साहिब, ये लड़का जो कुछ भी पूछता है उसका ठीक ठीक उत्तर दीजिये। अगर बाद में आप कुछ कहना चाहें तो पूरा मौका दिया जायेगा आपको”। प्रधान जी के स्वर में बिल्कुल वही निष्पक्षता और दृढ़ता थी जो इंसाफ करते समय किसी अच्छे राजा या न्यायाधीश के स्वर में होती है। राजकुमार प्रधान जी की इस विशेषता से प्रभावित हुये बिना न रह सका।

“जी ठीक है प्रधान जी”। गुलाटी के स्वर का कंपन बता रहा था कि वो खुद को फंसा हुआ महसूस कर रहा था।

“शुरु हो जाओ पुत्तर जी, और पूछो जो भी पूछना है गुलाटी साहिब से”। प्रधान जी के इतना कहते ही राजकुमार ने राजीव की ओर देखा जैसे कुछ पूछ रहा हो। राजीव के सिर हिलाने के बाद उसने अपना चेहरा गुलाटी की ओर घुमा लिया। शायद राजकुमार ने राजीव से मौन सहमति मांगी थी कि आज चाहे कुछ भी हो जाये, वो अपना संयम खोकर बीच में नहीं बोलेगा, और राजकुमार को बात करने देगा।

“जी गुलाटी साहिब, कुछ साधारण से प्रश्न हैं मेरे। अपने राजीव को कितना पैसा दिया था?” राजकुमार ने सवालों का सिलसिला शुरु करते हुये कहा। प्रधान जी और पुनीत का पूरा ध्यान इस वार्तालाप पर केंद्रित हो चुका था, आखिर दो बड़े फैसले जो लेने थे उन्हें इस वार्तालाप के बाद। इस केस से जुड़े सच का फैसला और राजकुमार को न्याय सेना में कौन सा पद दिया जाये, इस बात का फैसला।

“पांच लाख रुपये”। गुलाटी ने संक्षिप्त उत्तर दिया।

“कब दिये थे आपने ये रुपये राजीव को और क्यों दिये थे?” राजकुमार का अगला प्रश्न भी तुरंत ही तैयार था।

“तीन महीने पहले दिये थे। इसने कहा था कि इसके संपर्क में इंग्लैंड का वीज़ा लगवाने वाले लोग हैं जो एक महीने में काम करवा देंगे। मैने अपने भतीजे को भेजने के लिये इसे ये पैसा दिया था”। गुलाटी ने एक बार फिर पूरा पूरा उत्तर दिया। उसके चेहरे पर कोई विशेष भाव नहीं था, जिससे उसकी मनोस्थिति का पता चल सके।

“इसके बदले में आपने अपने पैसे की सुरक्षा के लिये कुछ मांगा था राजीव से?” राजकुमार जैसे अपने सारे प्रश्न रट कर ही आया था, जो एक पल भी गंवाये बिना एक के बाद एक प्रश्न पूछे जा रहा था।

“हां, मैने इससे पांच लाख रुपये का एक चैक लिया था और एक कागज़ पर ये लिखवाकर इसके हस्ताक्षर करवा लिये थे कि इसने ये पैसा मेरे भतीजे को विदेश भेजने के लिये लिया है और दो महीने के अंदर या तो ये मेरे भतीजे को विदेश भेज देगा, या फिर मेरे पैसे वापिस कर देगा”। गुलाटी का जवाब भी तैयार ही था।

“आप राजीव को कैसे और कब से जानते हैं, और कहां दिया था आपने ये पैसा?” राजकुमार ने एक और प्रश्न बिना किसी देरी के गुलाटी की ओर दाग दिया।

“मेरे एक जानकार ने लगभग चार महीने पहले मिलवाया था मुझे इससे और कहा था कि ये लोगों को विदेश भेजने का काम करता है। मैने ये पैसा उस जानकार के सामने ही इसे अपने कार्यालय में ही दिया था”। गुलाटी ने एक बार फिर से पूरा पूरा उत्तर देते हुये कहा।

“और तीन महीने निकल जाने के बाद भी जब न तो राजीव ने आपके भतीजे को विदेश भेजा, न ही आपका पैसा वापिस किया और उपर से आपके पैसा वापिस मांगने पर इसने आपके खिलाफ पुलिस में इसे गुंडों के जरिये प्रताड़ित करने की शिकायत दे दी, तो आप प्रधान जी के पास आ गये। क्या ये ठीक है?” राजकुमार बिल्कुल भावहीन चेहरे के साथ प्रश्न पूछता जा रहा था। प्रधान जी इस सारे मामले का मज़ा ले रहे थे और पुनीत भी दिलचस्पी से सारे वार्तालाप को सुन रहा था।

“बिल्कुल ठीक है”। गुलाटी के चेहरे पर पूरा आत्मविश्वास दिखायी दे रहा था। अभी तक के इस वार्तालाप में दोनों पक्षों के हाव भाव से कुछ पता नहीं चल पा रहा था कि कौन सा पक्ष सच्चा है। हां प्रधान जी ने इतना अवश्य नोट किया था कि राजकुमार ये सारे प्रश्न पहले से ही तैयार करके आया था और शायद उसे पता था कि गुलाटी क्या उत्तर देगा, उसके प्रश्नों के। इसीलिये वो एक बार भी गुलाटी के किसी जवाब पर विचलित नहीं हुआ था।

“क्या आपके पास इस समय वो चैक है जो राजीव ने आपको अपने हस्ताक्षर करके दिया था?” राजकुमार का वही संतुलित स्वर एक बार फिर कमरे में गूंज उठा।

“हां मेरे पास ही है, वो चैक भी और वो कागज़ भी”। गुलाटी भी हर सवाल का जवाब तुरंत ही देता जा रहा था।

“बस अब एक आखिरी सवाल, क्या आप चार महीने से पहले राजीव से कभी मिले हैं?” राजकुमार ने फिर उसी सधे हुये स्वर में पूछा।

“न…हीं”। गुलाटी ने बिल्कुल छोटा सा उत्तर दिया राजकुमार के इस आखिरी सवाल का। प्रधान जी और पुनीत ने बखूबी नोट कर लिया था कि राजकुमार के इस प्रश्न का जवाब देते समय गुलाटी का स्वर कांपा था और उसके चेहरे पर थोड़ी परेशानी झलकी थी, जिसे उसने जल्दी ही छिपा लिया था। वहीं राजकुमार के चेहरे पर गुलाटी का उत्तर सुनते ही ऐसी मुस्कान आ गयी थी जैसे ये मामला उसने हल कर लिया हो।

“धन्यवाद गुलाटी साहिब, अब मुझे आपसे कुछ नहीं पूछना। बस केवल इतनी विनती करनी है कि आप वो चैक प्रधान जी के हवाले कर दें”। राजकुमार के चेहरे की मुस्कुराहट अब स्थायी हो गयी थी जिससे प्रधान जी को स्पष्ट पता चल गया था कि राजकुमार जल्द ही इस पहेली को हल करने वाला है।

“घबराने की कोई बात नहीं गुलाटी साहिब, निश्चिंत होकर दे दीजिये चैक प्रधान जी को”। इस बार ये स्वर राजू के मुंह से निकला था जिसे सुनकर गुलाटी ने एक फाईल में से एक चैक निकालकर प्रधान जी के सामने रख दिया।

“प्रधान जी, अब मुझे आपको कुछ बताना है, अगर आपकी आज्ञा हो तो”। राजकुमार ने प्रधान जी से विनम्र स्वर में कहा।

“जरूर कहो, पुत्तर जी”। प्रधान जी ने चैक को पकड़ते हुये कहा। उनकी उत्सुकुता बढ़ती जा रही थी।

“अब मैं आपको इस केस की असली कहानी सुनाता हूं, प्रधान जी”। राजकुमार ने भेद भरे स्वर में कहा और फिर शुरू हो गया।

“वास्तव में ये पैसा राजीव के स्वर्गीय पिता ने गुलाटी साहिब से लगभग एक वर्ष पहले अपनी बिटिया के विवाह के समय लिया था, और केवल दो लाख ही लिया था। गुलाटी ने ये पैसा तीन प्रतिशत महीने के ब्याज़ पर इसके पिता को दिया था और बदले में अपने पैसे की सुरक्षा के लिये राजीव के पिता और राजीव दोनों से ही दो-दो खाली चैक और एक एक खाली कागज़ हस्ताक्षर करवा के ले लिया था”। राजकुमार के इन शब्दों ने सारे मामले को एक नया ही मोड़ दे दिया था।

“ये लड़का झूठ बोल रहा ………………………” राजकुमार की बात काटकर बीच में ही बोल पड़ने पर गुलाटी को प्रधान जी के हाथ का संकेत देख कर रुक जाना पड़ा।

“राजकुमार को अपनी बात कहने दीजिये गुलाटी साहिब, और बीच में मत बोलिये। बाद में आपको अपना पक्ष रखने का पूरा मौका दिया जायेगा। आगे बताओ, पुत्तर जी”। प्रधान जी ने गुलाटी को चुप कराते हुये एक बार फिर राजकुमार की ओर देखते हुये कहा। गुलाटी के चेहरे पर इस तरह के भाव आ गये जैसे बहुत बेबस हो गया हो।

“जी, प्रधान जी। आठ महीने तक इसे ब्याज़ देते रहने के बाद अचानक राजीव के पिता का हार्ट अटैक के कारण लगभग चार महीने पहले देहांत हो गया। उनके देहांत के पश्चात घर की सारी जिम्मेदारी राजीव पर आ गयी। हालांकि राजीव पिछले दो साल से नौकरी कर रहा है, पर उसकी अकेले की कमाई इतनी नहीं है कि घर भी चला सके और गुलाटी साहिब को ब्याज भी दे सके”। राजकुमार एक बार फिर अपने उसी सधे हुये स्वर में शुरू हो गया था। प्रधान जी जहां उसकी सारी बात रोमांचित होकर सुन रहे थे, वहीं गुलाटी के चेहरे के भाव बिगड़ने शुरू हो गये थे।

“इसलिये जब राजीव ने अपने पिता के अकस्मात देहांत के बाद गुलाटी साहिब को ब्याज छोड़ देने के लिये कहा और असल रकम देने के लिये एक साल का समय मांगा तो इन्होंने गुंडों के माध्यम से इसे तंग करवाया और ये धमकी भी दी कि ब्याज सहित पूरा पैसा न देने पर राजीव की गुंडों से पिटाई करवाने के बाद उस पर 420 का केस डलवा देंगें। इस धमकी के बाद मेरे ही सुझाव पर राजीव ने थाना डिवीजन सात में इसके खिलाफ शिकायत दर्ज करवायी थी, ताकि ये गुंडों के माध्यम से सच में ही राजीव का कोई नुकसान न कर दे”। राजकुमार ने अपनी बात को विराम दिया और राजीव की ओर देखा जिसने तुरंत एक फाईल राजकुमार के सामने रख दी, जैसे दोनों ने सारा प्लान पहले से ही बना रखा हो।

“अब मैं आपको अपनी कहानी के पक्ष में कुछ ऐसे सुबूत दिखाना चाहता हूं प्रधान जी, जिससे आपको राजीव के निर्दोष होने का साफ साफ पता चल जायेगा”। राजकुमार ने फाईल खोलते हुये तेजी से कुछ निकालना शुरु कर दिया। सबके चेहरे की उत्सुकुता चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी जबकि गुलाटी के चेहरे पर विचित्र दुविधा के भाव आने शुरू हो गये थे।

“इस तस्वीर को ध्यान से देखिये, प्रधान जी। एक साल पहले की ये तस्वीर राजीव की बड़ी बहन के विवाह की है, जिसमें गुलाटी साहिब राजीव के पिता जी और बाकी परिवार के साथ नज़र आ रहे हैं जबकि इनका कहना है कि ये चार महीने से पहले राजकुमार से मिले ही नहीं”। कहने के साथ ही राजकुमार ने एक तस्वीर प्रधान जी के सामने रख दी।

इस तस्वीर को देखते ही प्रधान जी के चेहरे पर क्रोध के भाव आने शुरू हो गये थे। इसमें गुलाटी राजकुमार सहित उसके पूरे परिवार के साथ दिखायी दे रहा था। इससे पहले कि प्रधान जी गुलाटी से कुछ कह पाते, राजकुमार के स्वर ने एक बार फिर उनका ध्यान खींच लिया।

“अब अपने सामने पड़े इस चैक को देखिये प्रधान जी, और साथ में ही बैंक का ये कागज़ भी देखिये”। राजकुमार के कहने पर प्रधान जी ने चैक और बैंक का आधिकारिक कागज़ उठा लिया।

“इस कागज़ में पैन से निशान लगाये हुये चैक नंबर्स को देखिये, प्रधान जी। ये लगभग आठ चैक हैं, ये सारे के सारे चैक पिछले एक साल से लेकर पिछले तीन महीने तक बैंक से कैश हुये हैं और इन सबके नंबर गुलाटी साहिब को दिये हुये नंबरों के बाद वाले हैं”। अपनी बात को पूरा करते हुये राजकुमार ने प्रधान जी की ओर रहस्यमयी मुस्कुराहट के साथ देखा, और इसके साथ ही अपने हाथ में पकड़ीं दो चैक बुक्स में से एक चैक बुक उन्हें पकड़ा दी।

“इसका मतलब राजीव ने ये चैक गुलाटी को एक साल या उससे भी पहले दिया था”। कहते हुये प्रधान जी ने गुलाटी को खा जाने वाली नज़रों से देखा तो उसके प्राण मानों गले में ही फंस गये।

“अब ये एक और सुबूत भी देखिये, प्रधान जी”। राजकुमार की आवाज़ ने एक बार फिर प्रधान जी का ध्यान आकर्षित किया और वो गुलाटी को भूल कर राजकुमार की ओर देखने लगे, जो उसी चैक बुक के पीछे लगे उस पेज की ओर उनका ध्यान खींच रहा था, जिसमें किसी को दिये हुये या कैश करवाये गये चैक्स के नंबर, तिथि और नाम भरे जाते हैं।

“ध्यान दीजिये प्रधान जी, गुलाटी साहिब को दिये गये इस चैक का काऊंटर राजीव के पिता जी की हैंड राईटिंग में भरा गया है, जिसे बड़ी आसानी से साबित किया जा सकता है। अब ये राजीव के पिता जी के बैंक की चैक बुक का यही पेज भी देखिये। वही तिथि, गुलाटी साहिब का नाम और ब्लैंक चैक, दोनों चैक बुक्स में बिल्कुल एक जैसे भरे गये हैं ये रिकार्ड, राजीव के पिता की हैंड राईटिंग में”। एक सैकेंड के लिये सांस ली राजकुमार ने और किसी के कोई प्रतिक्रिया देने से पहले ही एक बार फिर शुरू हो गया।

“वास्तव में गुलाटी साहिब को चैक्स देने के बाद राजीव के पिता जी ने दोनों चैक बुक्स के रिकार्ड में ये चीज़ें अपने स्वभाववश नोट कर दीं थीं। राजीव के पिता के देहांत को चार महीने हो चुके हैं प्रधान जी, और गुलाटी साहिब का कहना है कि ये चैक इन्होनें तीन महीने पहले लिया था। गुलाटी साहिब से पैसा लेने से पहले राजीव के पिता जी को एक हार्ट अटैक आ चुका था जिसके चलते इन्होंने अतिरिक्त सुरक्षा के लिये राजीव से भी चैक्स और खाली कागज़ पर हस्ताक्षर करवा लिये थे”। राजकुमार ने अपनी बात को विराम दिया और मुस्कुरा कर प्रधान जी की ओर देखा जिनके चेहरे पर प्रशंसा और क्रोध, दोनो के भाव ही प्रखर हो चुके थे।

“ये क्या बदमाशी है गुलाटी, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुयी न्याय सेना को गुमराह करके गलत काम करवाने की? जल्दी से जवाब दो और ध्यान रखना कि इस बार अगर तुमने एक भी झूठ बोला, तो कल का सूरज जेल की सलाखों के पीछे देखोगे, धोखाधड़ी के मामले में”। प्रधान जी के स्वर में सिंह का वो गर्जन शामिल हो गया था जो उनकी आवाज़ में तभी आता था जब किसी की शामत आने वाली होती थी। कमरे में मौजूद हर व्यक्ति की निगाहें केवल और केवल गुलाटी पर ही लगीं हुयीं थी अब, और राजकुमार के चेहरे की मुस्कान और भी गहरी हो गयी थी।

“जी…… वो प्रधान जी…………………गलती हो गयी, माफ कर दीजिये। इस लड़के ने जो भी कहा है वो सच है”। प्रधान जी के सिंह नाद से बुरी तरह भयभीत गुलाटी इस बार चाह कर भी झूठ नहीं बोल पाया था। उसके चेहरे पर हलाल होते हुये बकरे जैसे भाव दिखाई दे रहे थे।

“इसे गलती नहीं, गुस्ताखी कहते हैं गुलाटी, और इसका दंड अवश्य मिलेगा तुम्हे”। सिंह के नाद में अब वो भीष्णता नहीं थी परंतु क्रोध स्पष्ट झलक रहा था।

“माफ कर दीजिये प्रधान जी, आगे से ऐसा कभी नहीं होगा”। लगभग मिमयाते हुये कहा गुलाटी ने।

“कितने ब्याज दे चुके हो इसे पुत्तर जी?” प्रधान जी ने इस बार ये सवाल बड़े ही प्रेम भरे स्वर में राजीव से पूछा था।

“जी, आठ महीने तक पापा इसे हर महीने 6 हज़ार रुपये देते रहे थे। इस हिसाब से 48 हज़ार रुपये बनते हैं प्रधान जी”। जल्दी जल्दी हिसाब लगाते हुये कहा राजीव ने। उसे एकदम से प्रधान जी के इस सवाल की आशा नहीं थी।

“हूं 48 हज़ार……………बाकी बचा 1 लाख 52 हज़ार। कब तक लौटा पाओगे 1 लाख 52 हज़ार गुलाटी को पुत्तर जी, और कैसे लौटा पाओगे?” प्रधान जी के स्वर में पिता का प्रेम भरा पड़ा था।

“जी एक साल में दो बार करके लौटा सकता हूं, प्रधान जी”। कहते हुये राजीव को चाहे प्रधान जी का हिसाब समझ आया हो न हो पर राजकुमार सब समझ गया था, और उसके चेहरे पर प्रधान जी के लिये प्रशंसा के भाव आ गये थे।

“अब सुनो गुलाटी, राजीव के पिता तुम्हारे दो लाख में से 48 हज़ार रुपये दे चुके हैं। बचे हुये 1 लाख 52 हज़ार रुपये राजीव तुम्हें डेढ़ साल में 6-6 महीने के बाद बराबर किस्तों में तीन बार करके देगा। पहली किस्त आज से 6 महीने बाद दी जायेगी और तुम्हें इसके और इसके पिता के हस्ताक्षर किये हुये सारे कागज़ात अभी के अभी वापिस करने होंगे”। प्रधान जी ने गुलाटी की ओर क्रोध से देखते हुये अपना फैसला सुनाया।

“जी………जैसी आपकी आज्ञा प्रधान जी”। हलाल हो रहे बकरे की आवाज़ में मिमयाते हुये कहा गुलाटी ने। उसे पता था कि अब ब्याज के बारे में बात करने पर प्रधान जी उसका दंड और भी बढ़ा देंगे। सबके चेहरे पर प्रधान जी के इस इंसाफ को देखकर प्रशंसा और आदर के भाव थे। राजीव इस प्रकार प्रधान जी की ओर देख रहा हो जैसे साक्षात भगवान के दर्शन कर रहा हो।

“डॉक्टर साहिब, आप सब लोगों को लेकर बाहर वाले केबिन में जाकर ये फैसला लिखवा लीजिये। फैसले पर दोनों पक्षों के हस्ताक्षर करवा लीजिये और गुलाटी से राजीव के सारे कागज़ात लेकर इसे दे दीजिये”। प्रधान जी ने पुनीत की ओर देखते हुये भेदभरी मुस्कान के साथ कहा तो पुनीत समझ गया कि प्रधान जी राजकुमार से अकेले में बात करना चाहते हैं। उसने तुरंत सिर हिला कर सहमति दी और उठकर खड़ा हो गया।

“प्रधान जी, मैं आपसे क्षमा चाहता हूं कि मैने गुलाटी के मामले का सत्य जाने बिना ही आपसे इसके काम की सिफारिश कर दी”। राजू के इस स्वर ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। उसे पता था कि प्रधान जी को अन्यायी का साथ देने वाले लोग बिल्कुल पसंद नहीं थे।

“इसमे तुम्हारी कोई गलती नहीं है, पुत्तर जी। इस गुलाटी के पास सुबूत ही इतने थे कि एक बार के लिये तो हम भी धोखा खा गये थे। पूरा घाघ है ये, हमारे हाथों एक बड़ा अन्याय करवाने वाला था”। प्रधान जी ने एक बार फिर खा जाने वाली नज़रों से गुलाटी की ओर देखा तो उसने जल्दी से बाहर के केबिन में जाना ही मुनासिब समझा।

“प्रधान जी, मैं आपका बहुत शुक्रगुज़ार हूं। आपने न केवल मुझे इतना समय लेकर दिया है गुलाटी के पैसे लौटाने का, बल्कि 48 हज़ार रुपये भी छुड़वा दिये। इससे मुझे बहुत मदद मिलेगी”। राजीव ने कृतज्ञ भाव से प्रधान जी की ओर देखते हुये विनम्र स्वर में कहा। राजकुमार के चेहरे पर भी लगभग राजीव जैसे ही भाव थे।

“शुक्रिया की कोई बात नहीं है, पुत्तर जी। बहुत परेशानी झेलनी पड़ी है तुम्हें इस मामले में, और इस परेशानी का एक कारण हम भी थे। चाहे अनजाने में ही सही, पर बहुत बड़ा अन्याय करने जा रहे थे हम तुम्हारे साथ। ये उसी का पश्चाताप है”। प्रधान जी ने स्नेह भरे स्वर में राजीव की ओर देखते हुये बहुत बड़ी बात कह दी थी।

राजकुमार प्रधान जी के चरित्र से अधिक से अधिक प्रभावित होता जा रहा था, उनकी हर एक विशेषता देखकर। कितना प्रभावशाली आदमी और कितनी सहजता से मान लिया था कि उनके हाथों अन्याय होने जा रहा था। प्रधान जी की ये बात सुनकर राजकुमार के मन में उनके लिये अपार श्रद्दा उमड़ आयी थी।

“अब जाकर फैसला लिखवा लो पुत्तर जी, और भविष्य में कभी किसी तरह की आवश्यकता पड़े तो बेझिझक चले आना हमारे पास”। प्रधान जी के इतना कहने पर राजीव और राजकुमार ने प्रधान जी को अभिवादन किया और सब लोग बाहर की ओर चल दिये।

“पुत्तर जी, आप यहीं रुक जाओ। मुझे आपसे कुछ बात करनी है”। प्रधान जी ने राजकुमार की ओर देखते हुये कहा। उनके स्वर में फिर वही पिता वाला प्रेम उमड़ आया था।

“जैसा आप कहें, प्रधान जी”। राजकुमार ने आदरपूर्वक कहा और दोबारा अपनी कुर्सी पर बैठ गया। बाकी सब लोग एक एक करके बाहर के केबिन में चले गये और पुनीत ने जाते जाते बीच का दरवाजा अच्छी तरह से बंद कर दिया।

“कहां से लेकर आये इतनी प्रतिभा पुत्तर जी, इतनी छोटी उम्र में। इतनी सूझबूझ के साथ हल किया तुमने इस मामले को, कि गुलाटी ने अपने मुंह से ही मान लिया अपनी गलती को”। प्रधान जी ने प्रशंसा भरे स्वर में कहा।

“जी, वो शुरू से ही मुझे मुश्किल चीज़ों की तह में जाने का शौक है, शायद इसीलिये……”। राजकुमार ने अपनी बात अधूरी ही छोड़ दी थी।

“इतनी प्रतिभा को रोज़मर्रा के कामों में व्यर्थ क्यों गवां रहे हो, पुत्तर जी? हमारे संगठन में शामिल हो जाओ और अपनी प्रतिभा से अधिक से अधिक लोगों को लाभ लेने दो। क्या कहते हो, पुत्तर जी?” प्रधान जी ने अपनी मंशा जाहिर करते हुये कहा। उनके चेहरे के भाव साफ बता रहे थे कि राजकुमार की प्रतिक्रिया की तीव्र प्रतीक्षा थी उन्हें।

“जी ये तो मेरा सौभाग्य होगा, अगर मैं आपके जैसे महान व्यक्ति के साथ काम कर पाऊं। मैने आज तक आपके जैसा अच्छा इंसान नहीं देखा अपने जीवन में। मैं जितना भी हो सकेगा, उतना समय आपकी सेवा में लगाना चाहूंगा”। राजकुमार ने अपने मन के भाव एकदम स्पष्ट कर दिये थे।

“अरे वाह, ये तो बहुत अच्छी बात है। तुम्हारे जैसे प्रतिभाशाली युवाओं की बहुत आवश्यकता है इस संगठन को, पुत्तर जी। मैं चाहता हूं कि तुम संगठन में महासचिव का पद संभालो, जैसे अपने डॉक्टर साहिब हैं”। प्रधान जी ने प्रसन्न होते हुये कहा।

“ये तो बहुत बड़ा दायित्व है, प्रधान जी”। राजकुमार ने थोड़े उलझन भरे स्वर में कहा। एकदम से इतना बड़ा पद मिलने की बात उसे हज़म नहीं हो रही थी शायद।

“तुमने योग्यता सिद्ध की है इस पद के लिये पुत्तर जी, और न्याय सेना का नियम है कि पद देते समय आयु या सेवा के समय की तुलना में योग्यता को अधिक महत्व दिया जाता है। योग्य व्यक्ति ही पद के साथ उचित इंसाफ कर पाता है पुत्तर जी। इसलिए शंका छोड़ो और स्वीकार करो इस दायित्व को। डॉक्टर साहिब की भी यही राय है कि आपको संगठन में महासचिव का पद दिया जाये”। प्रधान जी के इन शब्दों के साथ ही राजकुमार समझ गया था कि उसे संगठन में शामिल करने का निर्णय उसके आने से पहले ही ले लिया गया था।

“जैसी आपकी आज्ञा प्रधान जी, मैं पूरा प्रयास करूंगा आपके विश्वास पर खरा उतरने का”। राजकुमार ने विनम्र स्वर में कहा।

“तो फिर ठीक है, मैं अभी आपके महासचिव बनने के प्रस्ताव पर आधिकारिक मुहर लगा देता हूं। डॉक्टर साहिब…………………” प्रधान जी ने जोर से पुनीत को आवाज़ लगायी।

“जी, प्रधान जी”। लगभग पांच सैकेड़ के अंदर ही पुनीत कमरे के दरवाज़े पर नज़र आया, जैसे प्रधान जी की इसी आवाज़ की प्रतिक्षा कर रहा हो।

“राजकुमार आज से न्याय सेना के महासचिव होंगे, डॉक्टर साहिब। आप इसका आधिकारक पत्र बनाईये, मैं हस्ताक्षर कर देता हूं”। प्रधान जी ने पुनीत की ओर देखते हुये प्रसन्नता से कहा।

“अरे वाह, ये तो बड़ी अच्छी खबर है प्रधान जी। मैं बस बाहर का ये काम पांच मिनट में निपटा कर फौरन बना देता हूं ये पत्र। न्याय सेना का महासचिव बनने की बहुत बहुत बधाई, राजकुमार। बहुत कुछ सीखने को मिलेगा आपको, प्रधान जी के साथ काम करके। इनके साथ रहते रहते मुझमें और न्याय सेना के अन्य कई अधिकारियों में ऐसी अच्छाईयां आ गयीं है, जो या तो पहले थीं हीं नहीं या फिर दबी हुयीं थी”। पुनीत ने प्रधान जी की प्रशंसा करते हुये कहा।

“जी पुनीत जी, प्रधान जी की बहुत सी अच्छाईयां तो मैं इन दो दिनों में ही देख चुका हूं। इसीलिये मैं इनकी छत्रछाया में रहकर काम करना चाहता हूं ताकि इनसे बहुत कुछ सीख सकूं”। राजकुमार ने भी पुनीत की बात का समर्थन किया। उसके चेहरे पर प्रधान जी के लिये बहुत आदर और श्रद्धा के भाव थे।

“बस तो फिर कल सुबह से ही आ जाओ, पुत्तर जी। न्याय सेना का कार्यालय दस बजे शुरू हो जाता है। कार चलानी आती है तुम्हें?” प्रधान जी ने पूछते हुये प्रश्नात्मक दृष्टि से राजकुमार की ओर देखा।

“जी प्रधान जी, अच्छी तरह से आती है”। राजकुमार ने तत्परता के साथ जवाब दिया।

“अरे वाह, ये तो और भी अच्छी बात है”। प्रधान जी की इस बात पर पुनीत मुस्कुरा दिया क्योंकि वो जानता था कि प्रधान जी को कार ड्राईव करना पसंद नहीं था और सदा न्याय सेना का कोई पदाधिकारी ही उनके साथ रहता था कार चलाने के लिये।

लगभग आधे घंटे के बाद राजकुमार और राजीव न्याय सेना के कार्यालय से बाहर निकल कर पार्किंग में खड़े स्कूटर की ओर जा रहे थे।

“यार, तूने तो कमाल कर दिया आज। अपना मामला भी हल हो गया इतने अच्छे से, और उपर से इतना बड़ा पद भी मिल गया तुझे इतने अच्छे संगठन में”। राजीव की आवाज़ से उसकी खुशी साफ झलक रही थी। प्रधान जी के न्याय ने उसे बहुत प्रभावित किया था और यही प्रभाव राजकुमार पर भी दिखाई दे रहा था।

“हां राजीव, शिव कृपा से ये बहुत अच्छा मौका मिला है मुझे कुछ करने का और बहुत कुछ सीखने का। बहुत कम लोगों को मिलता है ऐसा मौका”। राजकुमार ने प्रसन्न स्वर में राजीव की ओर देखते हुये कहा।

 

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक 02 अध्याय 06

Sankat Mochak 02
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उसी दिन दोपहर के लगभग दो बजे प्रधान जी अपने कार्यालय में बैठे डॉक्टर पुनीत के साथ कुछ विचार विमर्श कर रहे थे।

“कैसा लगा आपको वो लड़का, डॉक्टर साहिब?” प्रधान जी पुनीत को डॉक्टर साहिब कहकर ही बुलाते थे, हालांकि पुनीत उम्र में बहुत छोटा था उनसे।

“बिल्कुल वैसा ही प्रधान जी, जैसा इस समय न्याय सेना को चाहिये। शिक्षित, बातचीत करने में कुशल, निर्भय और मौके के हिसाब से व्यवहार करने वाला”। पुनीत ने राजकुमार की तारीफ करते हुये कहा।

“मेरे मुंह की बात छीन ली आपने, डॉक्टर साहिब। लड़का है ही तारीफ के काबिल। आपने देखा था, मेरे इतना क्रोध करने पर भी न तो डरा और न ही अपना संयम खोया उसने। सौम्य किंतु दृढ़ स्वर में हर बात का जवाब देता रहा। मुझे उसकी ये बात बहुत पसंद आयी”। प्रधान जी राजकुमार से बहुत प्रभावित लग रहे थे।

“बिल्कुल ठीक कहा आपने प्रधान जी, लड़के में कुछ तो खास है। इतना समय आपके साथ बिताने पर भी मैने बहुत कम ऐसे लोगों को देखा है, जो आपके क्रोध को बिना विचलित हुये झेल जायें”। पुनीत ने प्रधान जी की बात का समर्थन करते हुये कहा।

“तो फिर क्या राय है आपकी, कल उसके सामने न्याय सेना में शामिल होने का प्रस्ताव रखा जाये?” प्रधान जी ने प्रश्नात्मक दृष्टि से पुनीत की ओर देखते हुये पूछा।

“बिल्कुल रखा जाये प्रधान जी, न्याय सेना को इस समय अच्छे और शिक्षित लोगों की ही सबसे अधिक आवश्यकता है, जो विभिन्न केसों से जुड़े कागज़ात को भली भांति समझ सकें ताकि हम लोगों की ठीक प्रकार से सहायता कर सकें। और फिर मेरा तो इसमें निजी लाभ भी है, मुझे थोड़ा और समय मिल जायेगा अपनी प्रैक्टिस के लिये”। पुनीत ने मुस्कुराते हुये कहा।

न्याय सेना के पास उस समय उच्च शिक्षा प्राप्त लोग अधिक न होने के कारण डॉक्टर पुनीत को ही अधिकतर समय कागज़ात से जुड़े मामलों को देखना पड़ता था, जिसके कारण उनकी प्रैक्टिस पर विपरीत प्रभाव पड़ता था। फिर भी वे प्रधान जी के किसी भी समय बुलाने पर हाज़िर हो जाते थे।

“हा हा हा, ये बात भी खूब कही आपने, डॉक्टर साहिब। इसमें सबसे अधिक लाभ तो आपका ही होगा। तो फिर ठीक है, कल मैं राजकुमार से बात करूंगा, न्याय सेना में शामिल होने के लिये। वैसे अपके विचार में हमें क्या पद देना चाहिये उसे संगठन मे, अगर वो शामिल होने के लिये मान जाये तो?” प्रधान जी ने एक बार फिर पुनीत की राय जानने के इरादे से पूछा।

“उसकी अभी तक नज़र आ रही खूबियों को देखते हुये मेरे विचार से आपको उसे महासचिव का या कम से कम सचिव का पद देना चाहिये”। पुनीत ने अपना विचार पेश करते हुये कहा।

“सीधा महासचिव का पद, ज्यादा नहीं हो जायेगा ये डॉक्टर साहिब?” प्रधान जी ने एक और प्रश्न उछाल दिया था पुनीत की ओर।

“न्याय सेना का ये नियम आपने ही बनाया है प्रधान जी, कि संगठन में पद योग्यता देखकर दिये जायेंगे, नया या पुराना सदस्य देखकर नहीं। ये न्याय सेना के उत्तम नियमों में से एक है क्योंकि इस नियम के चलते हर प्रतिभावान व्यक्ति को अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने का पूरा अवसर और अधिकार प्राप्त हो जाता है। इससे न्याय सेना को ही लाभ होता है। इसी नियम के अंतर्गत राजकुमार महासचिव या सचिव बनने के योग्य है, कम से कम”। पुनीत ने अपनी बात पूरी करते हुये कहा।

“आपकी ये आदत मुझे बहुत पसंद है, डॉक्टर साहिब। किसी दूसरे काबिल व्यक्ति से इर्ष्या नहीं होती आपको। खुद महासचिव होते हुये भी आपने राजकुमार को सीधा महासचिव का पद देने की सिफारिश कर दी, बिना किसी प्रकार की प्रतिस्पर्धा की भावना के। न्याय सेना आपके जैसे पदाधिकारियों के कारण ही उन्नति करती जा रही है”। प्रधान जी ने खुले दिल से पुनीत की प्रशंसा करते हुये कहा।

“मेरे विचार में संगठन के प्रत्येक पदाधिकारी को अपना निजी लाभ न देखते हुये वो निर्णय लेने चाहियें, जिनसे संगठन को लाभ होता हो। आपने सदा ही उदाहरण बनकर ऐसे निर्णय लिये हैं और आपकी प्रेरणा से ही मैं और संगठन के अन्य पदाधिकारी ऐसे निर्णय लेने में सक्षम हो पाते हैं”। पुनीत के स्वर और आंखों में प्रधान जी के लिये अपार आदर और श्रद्धा झलक रही थी।

“क्या बात कही है डॉक्टर साहिब। इसीलिये तो कहता हूं कि आप बहुत अच्छे इंसान हैं, आप महान हैं, बल्कि मैं तो ये कहूंगा कि आप पुरुष ही नहीं हैं”। प्रधान जी का जाना पहचाना विनोदी स्वभाव जाग चुका था।

“क्या मतलब प्रधान जी?” पुनीत ने जैसे सबकुछ समझते हुये भी मुस्कुरा कर कहा।

“महापुरुष हैं आप, महापुरुष। प्रधान जी के इस फिल्मी डायलॉग के पूरा होते ही दोनों ठहाका लगा कर हंस दिये।

“तो फिर तय रहा, डॉक्टर साहिब। कल राजकुमार से संगठन में शामिल होने की बात की जायेगी। रही बात पद की, तो कल वो अपने दोस्त के मामले को कैसे निपटाता है, इसी को देखकर उसका पद निर्धारित करेंगे। आईये अब खाना खाने चलते हैं, बहुत भूख लगी है”। कहते कहते प्रधान जी उठकर खड़े हो गये तो पुनीत ने भी उनका अनुसरण किया।

 

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक 02 अध्याय 05

Sankat Mochak 02
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दूसरे अध्याय पढ़ने के लिये यहां क्लिक कीजिये।

“मां, आज मैं एक अदभुत व्यक्ति से मिला। महानता के स्पष्ट लक्षण थे उनमें”। दोपहर के खाने के समय राजकुमार अपनी मां स्नेह लता से कह रहा था।

“ऐसा क्या देख लिया तूने जो इतनी तारीफ कर रहा है?” स्नेह लता जानती थी कि राजकुमार बहुत कम ही किसी की इस प्रकार प्रशंसा करता था। शुरू से ही प्रतिभाशाली होने के कारण वो लोगों की खूबियों और कमियों को तेजी से पहचान लेता था। अधिकतर लोगों की कमियां जल्द ही नज़र आ जाने के कारण उसके मुख से इस प्रकार की तारीफ कम ही निकलती थी किसी के लिये।

“क्या बताऊं उनके बारे में, मां। एक सच्चा शूरवीर, एक बहुत ही विनम्र इंसान, न्याय के लिये लड़ने वाला और प्रेम से भरपूर, कहां मिलते हैं इतने सारे लक्ष्ण एक ही व्यक्ति में आज के युग में”। राजकुमार के हाव भाव से स्पष्ट जाहिर था कि वो प्रधान जी के व्यक्तिव से बहुत प्रभावित हुआ था।

“अगर सच में ये सारी खूबियां हैं उनमें, तो निश्चित रूप से कोई महान व्यक्ति ही होंगे। इतने सारे अच्छे लक्ष्ण और वो भी एक साथ तो केवल महान लोगों में ही होते हैं”। स्नेह लता ने भी प्रधान जी से प्रभावित होते हुये कहा।

“हां मां, न्याय सेना के नाम से एक बड़ा संगठन चलाते हैं वो। ये संगठन पीड़ितों की सहायता के लिये काम करता है। बहुत बड़ी बड़ी लड़ाईयां लड़ी हैं उन्होंने इस शहर में पीड़ितों को न्याय दिलवाने के लिये। इससे उनके सच्चे वीर होने का पता चलता है”। राजकुमार ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये कहा।

“इतना प्रभाव होने के बाद भी अपनी कुर्सी पर संगठन के दूसरे पदाधिकारियों को बैठने देते हैं, इससे उनके विनम्र होने का पता चलता है। राजीव के मामले में आज उनसे मिलने गया था मैं। हालांकि दूसरे पक्ष की सहायता कर रहे थे वो, फिर भी हमें भरोसा दिलवाया है कि अगर हमारा पक्ष सत्य हुआ तो वे न्याय का ही साथ देंगें। इससे उनके न्याय पसंद होने का पता चलता है”। अपनी ही धुन में कहता चला जा रहा था राजकुमार। स्नेह लता ध्यान से उसकी बातें सुनती जा रही थी।

“छोटे बड़े सब लोगों से इस प्रकार स्नेह से बात करते हैं कि किसी को भी एक पल में अपना बना लें। मुझसे भी ऐसे बात की जैसे कोई बड़ा भाई या पिता स्नेहपूर्वक अपने छोटे भाई या पुत्र से बात करता है। इससे उनके भीतर उमड़ रहे प्रेम के सागर की कल्पना की जा सकती है, मां”। राजकुमार ने अपनी बात को पूरा करते हुये कहा।

“तब तो अवश्य ही कोई सदपुरुष होंगे, किसी दिन घर आने के लिये निवेदन करना उनसे। ऐसे लोग जिस स्थान पर भी जाते हैं, उसे पवित्र कर देते हैं”। स्नेह लता ने प्रेम भरे स्वर में कहा।

“अवश्य कहूंगा मां, पर मुझे आपसे एक और बात भी करनी है”। राजकुमार ने एक बार फिर स्नेह लता की ओर देखते हुये कहा।

“बस अब खाना भी खायेगा या बातें ही करता रहेगा। एक तो तेरी ये बातें नहीं खत्म होतीं कभी। कितना बोलता है तू, पता नहीं आगे चलकर क्या काम करेगा तू?” स्नेह लता ने प्रेम भरे स्वर में राजकुमार को डांटते हुये कहा।

“देखना मां, शिव कृपा से एक दिन तेरे इस बेटे की बातें सुनने के लिये ही लोग उसे पैसे देंगे। अपनी बातों से ही कमायेगा तेरा ये बेटा। बस ये आखिरी बात है मां, इसके बाद केवल खाना”। राजकुमार ने स्नेह लता को मनाने वाले स्वर में कहा।

“अच्छा बोल फिर जल्दी से”। स्नेह लता जानती थी कि राजकुमार के मन में एक बार कोई बात आ गयी तो फिर कहे बिना चैन नहीं आता था उसे। बहुत स्पष्ट स्वभाव था उसका, अच्छी बुरी हर बात मुंह पर ही बोल देता था, और वो भी सामान्य भाव से ही।

“मां, आज उनसे हुयी बातचीत के दौरान मुझे ये लगा कि वो मुझे अपने संगठन में काम करने का प्रस्ताव देंगे। बहुत अच्छा संगठन है मां, पीडितों की सहायता के लिये काम करता है। अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं अपनी पढ़ाई के बाद बचने वाला समय उनके साथ लगा दूं?” राजकुमार ने आशा भरी नज़रों से स्नेह लता की ओर देखते हुये कहा।

“अगर तुझे लगता है कि इतना अच्छा संगठन है, तो अवश्य लगा अपना समय इस संगठन के कार्यों में। अच्छे कामों में लगाया गया समय ही इंसान के काम आता है बस, बाकी सारा समय तो व्यर्थ ही जाता है”। स्नेह लता ने राजकुमार को प्रोत्साहित करते हुये कहा। उसे पता था कि चारों भाईयों में से राजकुमार अलग ही तरह का था। उसे अधिकतर क्षेत्रों से जुड़े विषयों के बारे में ज्यादा से ज्यादा ज्ञान जुटाने का और भलाई के काम करने का बहुत शौक था।

“ये तो आपने बहुत अच्छी बात कही मां, बस अब केवल खाना और खाने के अलावा कुछ नहीं”। कहने के साथ ही राजकुमार ने अपना पूरा ध्यान खाने पर लगा दिया। स्नेह लता के चेहरे पर राजकुमार की खुशी देखकर मुस्कुराहट आ गयी थी। राजकुमार की 9 वर्ष की आयु में ही उसके पिता का देहांत हो जाने के बाद उसने ही इन चारों भाईयों की परवरिश की थी। इसलिये माता और पिता दोनों का कार्य वो ही करती थी। राजकुमार चारों भाईयों में दूसरे नंबर पर था और बाकी सब भाईयों से कई मायनों में अलग भी था।

 

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक 02 अध्याय 04

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दूसरे अध्याय पढ़ने के लिये यहां क्लिक कीजिये।

दूसरे दिन सुबह के लगभग 11:30 बजे राजकुमार और राजीव न्याय सेना के कार्यालय के भीतरी केबिन में प्रवेश कर रहे थे। राजीव के हाथ में प्लास्टिक का एक बड़ा लिफाफा था जिसके अंदर कुछ फाईल्स रखीं प्रतीत हो रहीं थीं।

“गुड मार्निंग, पुनीत जी। हमने कल बात करके आज 11:30 बजे प्रधान जी से मिलने का समय लिया था”। राजकुमार ने अंदर वाले केबिन में प्रवेश करते हुए सामने पड़े हुये टेबल के पीछे लगी हुयी एक कुर्सी पर बैठे हुये लगभग 27-28 वर्ष के दिखने वाले युवक से कहा। राजकुमार को कार्यालय के बाहरी हिस्से से पता चल चुका था कि इस लड़के का नाम पुनीत था। पेशे से ये युवक डॉक्टर था और न्याय सेना में इसे महासचिव का पद प्राप्त था।

“गुड मार्निंग, आईये बैठिये। मुझे पता है आपने आज मिलने का समय लिया है। प्रधान जी के सिर में तेज़ दर्द है जिसके कारण वे थोड़ी देर विश्राम कर रहे हैं। आप मुझे बताईये क्या बात है?” पुनीत नामक उस युवक ने कहते कहते इस लंबे केबिन के प्रवेश द्वार से बिल्कुल उल्टी दिशा में अंत पर लगे हुये एक दीवान की ओर देखा तो राजकुमार और राजीव ने भी उसकी नज़र का पीछा किया।

सामने लगे दीवान पर प्रधान जी आंखें बंद कर के लेटे हुये थे। राजकुमार ने लेटे होने के बावजूद भी प्रधान जी के शारीरिक बल का अंदाजा उनके मज़बूत बदन को देख कर लगा लिया था।

“नमस्कार प्रधान जी”। राजकुमार और राजीव दोनों ने प्रधान जी को आदरपूर्वक नमस्कार किया।

“जीते रहो, आप लोग डॉक्टर साहिब से बात कीजिये, मैं थोड़ी देर में आपसे बात करता हूं। सिर बहुत दर्द कर रहा था, दवा ली है, दस मिनट में ठीक हो जायेगा”। प्रधान जी ने अपने चिर परिचित अंदाज़ में कहा तो राजकुमार ने महसूस किया कि लेटे होने के बावजूद भी उनकी आवाज़ में जबरदस्त उर्जा थी।

“जी कोई बात नहीं, आप विश्राम कीजिये प्रधान जी। हम तब तक पुनीत जी से बात करते हैं”। राजकुमार ने आदरपूर्वक कहा और दोनो पुनीत के सामने लगी कुर्सियों पर बैठ गये।

राजकुमार और राजीव का मुख अब पुनीत की ओर था जबकि प्रधान जी राजकुमार के दायें हाथ की बिल्कुल सीध में आ रहे दीवान पर लेटे हुये थे, जिसके कारण अब उनका चेहरा अब उन्हें दिखायी नहीं दे रहा था।

“जी कहिये, क्या काम है आपका?” डॉक्टर पुनीत ने राजकुमार की ओर देखते हुये पूछा और साथ ही में एक लड़के को बुला कर चाय लाने के लिये कह दिया।

“शायद आपको पता हो पुनीत जी कि प्रधान जी एक मामले में रमेश गुलाटी नाम के एक आदमी की सहायता कर रहे हैं। ये मामला थाना डिवीजन नंबर सात में चल रहा है और ये पैसे के लेन देन से संबंधित है”। राजकुमार ने बात को शुरू करने के लिये अपने एक एक शब्द को तोलते हुये कहा।

“बिल्कुल जानता हूं, ये सारा मामला मेरी जानकारी में है। बल्कि इस मामले के सारे कागज़ात मैने ही चैक किये थे, जब पहले दिन रमेश गुलाटी इस मामले में प्रधान जी से सहायता मांगने आये थे। पर आपका प्रश्न क्या है?” डॉक्टर पुनीत ने राजकुमार की ओर देखते हुये कहा।

“जी मैं आपसे ये निवेदन करना चाहता हूं कि भले ही पेपर्स को देखने से ये मामला रमेश गुलाटी के पक्ष में लगता है, पर वास्तविकता इसके विपरीत है। ये मेरा दोस्त राजीव है और रमेश गुलाटी की शिकायत इसी के खिलाफ है”। राजकुमार ने एक बार फिर से अपने शब्दों का संतुलन पूरी तरह से बनाये रखा और अपनी बात पूरी करते करते अपने साथ बैठे राजीव की ओर इशारा किया।

“ये तो बड़ी विचित्र बात कह रहे हैं आप। इस मामले के सारे पेपर्स स्पष्ट बता रहे हैं कि आपके दोस्त ने धोखे से रमेश गुलाटी से पैसा लिया है और अब पैसा देने की बजाये इसने खुद ही पुलिस में उसके खिलाफ झूठी शिकायत की है”। पुनीत ने थोड़े तीखे स्वर में कहा और साथ ही राजीव की ओर ऐसी दृष्टि से देखा जिसमें तिरस्कार की कुछ मात्रा शामिल थी।

“ये सब बिल्कुल झूठ है, पुनीत जी। वो गुलाटी एक नंबर का फ्रॉड और कमीना है। आपको उसकी सहायता नहीं करनी चाहिये”। डॉक्टर पुनीत के नज़रों में छिपे तिरस्कार को शायद बर्दाशत नहीं कर पाया था राजीव, और उसने अपना संयम ताक पर रखकर असभ्य भाषा का प्रयोग कर दिया था। राजीव के स्वर में तीखापन था और उसमें निश्चित रूप से ही सामने बैठे व्यक्ति के लिये भी कोई विशेष आदर नहीं था। शायद पुनीत के शब्दों और नज़र के तीखेपन ने उसे विचलित कर दिया था, और एकदम से अपना आपा खोकर बोल गया था वो।

“अरे वाह, ये तो उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली बात हो गयी। सारे कागज़ात गुलाटी के पक्ष में, झूठी शिकायत भी आपने की और अब हमें ही बता रहे हैं कि किसकी सहायता करें और किसकी नहीं, और वो भी हमारे ही कार्यालय में बैठ कर”। पुनीत के स्वर में अब तल्खी आ गयी थी। जैसे उसे राजीव के बात करने का ढ़ंग बहुत बुरा लगा हो।

“पुनीत जी, इसके स्वर की तल्खी पर मत जाईये। ये बेचारा अत्याधिक पीड़ित होने के कारण अपना संयम खो बैठा है। मैं आपको सारी बात बताता हूं”। राजकुमार ने बात को बिगड़ते देखकर एकदम से बीच में हस्ताक्षेप करते हुये बड़े विनम्र स्वर में पुनीत से कहा, और फिर राजीव की ओर अपना चेहरा घुमा दिया।

“राजीव, मैने तुम्हें कहा था न कि इस मामले में तुम केवल मुझे बात करने दोगे और बीच में बिल्कुल नहीं बोलेगे। अब कुछ मत बोलना और चुप रहना”। राजकुमार ने अपनी बायीं ओर बैठे राजीव को लगभग डांटते हुये कहा।

“ऐसे कैसे चुप रहूं मैं, जबकि मेरे निर्दोष होने के बाद भी ये पुनीत जी सारा दोष मेरे ही उपर डालकर मुझे ऐसे तिरस्कार भरी दृष्टि से देख रहे हैं”। एक बार फिर अपना संयम खोकर बोल पड़ा था राजीव। जिस अंदाज़ से उसने ‘ये पुनीत जी’ कहते हुये डॉक्टर पुनीत की ओर देखा था, राजकुमार समझ गया था कि ये मामला अब बिगड़ जायेगा।

“देखा आपने राजकुमार जी, आपका ये दोस्त तो हमारे ही कार्यालय में बैठकर भी हमारी परवाह नहीं कर रहा। तो फिर गुलाटी की या कानून की क्या परवाह होगी इसे। मुझे तो ये सरासर कुसूरवार लग रहा है”। आशा के अनुसार ही डॉक्टर पुनीत ने सीधा हमला बोल दिया था और सारी बातचीत का रुख ही मोड़ दिया था एकदम से।

“पुनीत जी, राजीव की ओर से मैं क्षमा मांगता हूं और साथ ही में आपसे निवेदन भी करता हूं कि इसकी बेवकूफी को इसके कुसूरवार होने का सुबूत मत मानिये। ये अपना संयम थोड़ा जल्दी खो देता है पर इस मामले में ये बिल्कुल निर्दोष है। आप एक बार मेरी बात तो सुनिये, उसके बाद जो आपको ठीक लगे वो कीजियेगा”। राजकुमार ने लगभग विनती भरे स्वर में पुनीत से कहा और फिर राजीव को खा जाने वाली नज़रों से देखा। राजीव के यूं संयम खो देने से सारा मामला बनने से पहले ही एकदम बिगड़ गया था।

“आप सबसे पहले अपने इस दोस्त को तमीज़ सिखाईये, फिर हमारे पास आईयेगा। तब हम आपकी बात ज़रूर सुनेंगे। अभी तो फिलहाल आप यहां से चले जाईये। ये तो हमारे कार्यालय में आकर हमसे ही अपमानजनक अंदाज़ में बात कर रहा है। ऐसे किसी से सहायता थोड़े मांगी जाती है। आप जाईये, हमें इस समय आपसे कोई बात नहीं करनी है”। डॉक्टर पुनीत का स्वर एकदम दृढ़ था।

“ऐसा मत कहिये पुनीत जी, ऐसे तो मामला बहुत बिगड़ जायेगा। हम तो बहुत आशा लेकर और प्रधान जी का बहुत नाम सुनकर आये थे आपके पास। आप मेरी बात तो सुनिये एक बार”। राजकुमार लगातार विनम्र स्वर में डॉक्टर पुनीत को मनाने में लगा हुआ था। साथ वाले दीवान पर प्रधान जी इस प्रकार चुपचाप विश्राम कर रहे थे, जैसे ये उनके लिये कोई विशेष बात न हो।

“रहने दो राजकुमार, मेरे कारण तुम्हें इनकी इतनी मिन्नतें करने की कोई ज़रूरत नहीं है। इससे अच्छा तो ये है कि हम अपना दुखड़ा किसी बड़े पुलिस अधिकारी के पास जाकर ही रो लें। शायद अपना काम बन ही जाये। आओ यहां से चलते हैं, कोई फायदा नहीं इनसे बात करने का। ये तो पहले ही उस कमीने गुलाटी को ठीक और हमें गलत मान कर बैठे हैं”। राजीव ने एक बार फिर अपना संयम खोते हुये पुनीत पर हमला बोल दिया था और अपनी बात पूरी करते करते ही उठकर खड़ा भी हो गया था।

“राजीव, तू चुप नहीं रह सकता पांच मिनट। क्यों सारा मामला बिगाड़ने पर तुला हुआ है। चुपचाप बैठ जा यहां पर”। राजकुमार ने राजीव को खा जाने वाली नज़रों से घूरते हुये कहा।

“मुझे नहीं बैठना ऐसी जगह जहां मेरा अपमान होता हो, राजकुमार। तुझे बैठना है तो बैठ, मैं तो जा रहा हूं। जब तेरा इनसे बातचीत करने का शौक पूरा हो जाये तो बाहर आ जाना, मैं वहीं खड़ा हूं”। कहने के साथ ही राजीव किसी के कोई प्रतिक्रिया देने से पहले ही तेजी से न्याय सेना के कार्यालय से बाहर निकल गया।

“देख लिया आपने, कैसे तेवर हैं आपके दोस्त के। ऐसे तो ठीक होने पर भी कोई इसकी सहायता नहीं करेगा। आपकी भी कोई बात नहीं मानी उसने तो, और आप उसकी सहायता करने की कोशिश कर रहे हैं”। पुनीत ने तीखे व्यंग्य के साथ राजकुमार से कहा।

“दोस्त तो फिर भी दोस्त ही है न, पुनीत जी। ये बेवकूफ और हालात का सताया हुआ अवश्य है, पर कुसूरवार नहीं। आप अभी भी अगर मुझे दो मिनट दें तो मैं सारी बात आपको समझा सकता हूं”। राजकुमार ने एक बार फिर जैसे विनती करते हुये कहा।

“अरे वाह, दाद देनी पड़ेगी आपकी दोस्ती की। आपके दोस्त ने हमारे ही कार्यालय में आकर हमसे इतना कुछ कह दिया और आप अभी भी हमसे सहायता की आशा कर रहे हैं। अब हम इस मामले में आपसे कोई बात नहीं करना चाहते। हां, कभी किसी और मामले में न्याय सेना की सहायता की आवश्यकता पड़े तो बेझिझक आ जाईयेगा”। डॉक्टर पुनीत ने अपने स्वर को निर्णायक बनाते हुये कहा, जैसे इस मामले में वो अब कोई बात नहीं करना चाहता था। साथ वाले दीवान पर लेटे हुये प्रधान जी की ओर से अभी भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी थी इस सारे मामले में।

“ये तो बड़ी गड़बड़ हो गयी, पुनीत जी। जो बात शांति से निपट सकती थी, उसके लिये अब हमें अपने अपने पक्षों की ओर से कानूनी दांव पेंच खेलने पड़ेंगें। इसमें तो दोनों का ही नुकसान होगा। इसलिये आप कृप्या मेरे सुझाव को मानते हुये इस मामले का बातचीत के माध्यम से हल निकालने के मेरे सुझाव पर एक बार फिर विचार कीजिये। लड़ाई हमेशा अंतिम विकल्प होना चाहिये, पुनीत जी”। राजकुमार ने एक बार फिर विनम्र स्वर में कहा किन्तु इस बार उसके स्वर में कहीं अधिक दृढ़ता और पुनीत को समझाने वाला भाव भी आ गया था।

“और अगर हम न मानें तुम्हारे इस सुझाव को तो?” उर्जा से भरपूर और एकदम रोबीली इस आवाज़ को सुनते ही राजकुमार ने आवाज़ की दिशा में नज़र घुमायी तो देखा कि ये आवाज़ प्रधान जी के मुख से निकली थी। प्रधान जी उठकर दीवान पर ही बैठ चुके थे और उनके चेहरे पर क्रोध के धीमे लक्ष्ण स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। शायद इस मामले में हुयी गर्मागर्मी से उनका मन कुछ विचलित हो गया था।

“फिर तो प्रधान जी, लड़ाई के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह जाता”। बिल्कुल विनम्र लेकिन बड़े ही ठोस शब्दों में कहा था राजकुमार ने प्रधान जी की ओर देखते हुये। डॉक्टर पुनीत के चेहरे पर दिलचस्पी के भाव आ गये थे, जैसे जान गया हो कि प्रधान जी आगे क्या कहने वाले हैं।

“और तुम्हे लगता है कि न्याय सेना से लड़कर तुम और तुम्हारा दोस्त जीत पाओगे? कोई अंदाज़ा भी है तुम्हें, किससे लड़ाई करने की बात कर रहे हो तुम?” प्रधान जी ने अब स्पष्टतया क्रोध भरे अंदाज़ से एकदम रोबीली आवाज़ में जैसे राजकुमार को डराने वाले भाव में कहा।

“जी बिल्कुल जानता हूं, प्रधान जी। इस शहर में आपके फुटबॉल चौक और आदर्श नगर में आम आदमी को इसांफ दिलाने वाले वाले कारनामों से लेकर झुग्गी झोपड़ी वाले लोगों को सरकार से पक्के घर दिलवाने तक सब जानता हूं”। राजकुमार ने बिना विचलित हुये प्रधान जी की आंखों मे सीधा देखते हुये अपने स्वर की विनम्रता और दृढता, दोनो को ही बनाये रखकर कहा।

“और फिर भी तुम्हारा इतना साहस कि तुम न्याय सेना के कार्यालय में आकर हमें ही लड़ाई करने की धमकी दे रहे हो। जानते हो इसका अंजाम क्या हो सकता है?” प्रधान जी की आवाज़ की उंचाई और उनके चेहरे पर क्रोध बढ़ते ही जा रहे थे।

पास में बैठा डॉक्टर पुनीत दोनों के बीच में होने वाले इस वार्तालाप को सुनकर जहां एक ओर रोमांचित हो रहा था, वहीं उसे एक अंजाना सा भय भी लग रहा था कि प्रधान जी कहीं क्रोध में आकर राजकुमार नाम के इस लड़के का कोई बड़ा नुकसान ही न कर दें। प्रधान जी के साथ बहुत सालों से था पुनीत और वो जानता था कि एक बार उन्हें क्रोध आ जाये तो फिर सामने वाले की खैर नहीं, फिर चाहे वो बड़े से बड़ा अफसर या राजनेता ही क्यों न हो।

वहीं पर पुनीत को राजकुमार का चरित्र भी हैरानी में डाल रहा था जो प्रधान जी के इतना क्रोध करने पर भी विचलित नहीं हो रहा था और बड़े सौम्य लेकिन निर्भय स्वर में उनकी हर बात का जवाब दे रहा था। बाहर वाले केबिन से भी न्याय सेना के कुछ पदाधिकारी शोर सुनकर भीतर आ चुके थे और प्रधान जी के क्रोध से रुबरु हो रहे थे।

“मुझे अच्छी तरह से पता है कि आपसे लड़ाई लड़ने की सूरत में हमें तेजी से कुछ भारी नुकसान उठाने पड़ सकते हैं, प्रधान जी। किन्तु नुकसान या हार के डर के चलते लड़ाई के मैदान से भागा भी तो नहीं जा सकता। एक शेरदिल इंसान होने के नाते आपसे अधिक ये बात कौन जान सकता है?” राजकुमार एक के बाद एक अपने शब्दों के बाण चलाता जा रहा था और कार्यालय में खड़ा न्याय सेना का हर पदाधिकारी सांस रोककर इस वार्तालाप को सुन रहा था। प्रधान जी के क्रोध के सामने इतनी देर तक किसी को टिकते हुये उन्होंने आज तक नहीं देखा था।

“मैं तो आपका बहुत नाम सुनकर आया था प्रधान जी, पर लगता है कि आपसे मित्रता करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं होगा मुझे। चलिये मित्रता नहीं तो लड़ाई ही सही। आपके जैसे शूरवीर के साथ तो लड़ने से भी मेरा कद उंचा ही हो जायेगा। रही बात हार जीत की, तो आपके और मेरे हाथ में तो केवल लड़ना है, लड़ाई का परिणाम तो भगवान शिव की इच्छा से ही निर्धारित होगा। चलता हूं प्रधान जी, अपने दोस्त की सहायता के लिये कोई और रास्ता खोजना है मुझे”। फिर एक बार उसी विनम्र किंतु निर्भय स्वर में इतना कहते कहते राजकुमार अपनी कुर्सी से उठा और प्रधान जी को दोनों हाथ जोड़कर डॉक्टर पुनीत को अभिवादन करता हुआ केबिन से बाहर चल दिया।

बाहर की ओर जाते हुये राजकुमार के दिमाग में एक के बाद एक विचार आ और जा रहे थे। इस मामले में राजीव की नासमझी ने मुसीबत को और भी बड़ा कर दिया था। प्रधान जी के क्रोध के कारण होने वाले उनके नुकसान और उसे रोकने का तरीका सोचने की कोशिश कर रहा था राजकुमार।

कार्यालय में किसी को कुछ नहीं सूझ रहा था। सब हैरान खड़े इस तमाशे को देख रहे थे। राजकुमार नाम के इस लड़के ने कितनी विनम्रता के साथ प्रधान जी को पूरा आदर देते हुये और उनके क्रोध से भयभीत हुये बिना ही उनकी लड़ाई की चुनौती को स्वीकार कर लिया था। डॉक्टर पुनीत का दिल जैसे उसके गले में ही आकर अटक गया था। उसे लग रहा था कि प्रधान जी शीघ्र ही इस मामले में कोई बड़ा कदम उठाकर राजकुमार और उसके दोस्त का कोई बड़ा नुकसान करने वाले हैं।

“क्या काम करते हो पुत्तर जी?” आशा के एकदम विपरीत डॉक्टर पुनीत ने प्रधान जी का स्नेह से भरा स्वर सुना तो उसकी विचार तन्द्रा टूटी और उसने हैरानी से प्रधान जी की ओर देखा जिनके स्वर में बिल्कुल एक पिता जैसा स्नेह उमड़ आया था। पुनीत जानता था कि इस स्वर में प्रधान जी केवल अपने बहुत आत्मीय लोगों से ही बात करते थे। सारा कार्यालय भी प्रधान जी के व्यवहार में आये इस परिवर्तन को देखकर हैरान था और इस बदलाव का कारण जानने के लिये उत्सुक था।

पित्रवत प्रेम से भरे इस स्वर के कानों में पड़ते ही राजकुमार के पैर अपने आप ही रुक गये और उसने पीछे मुड़कर अपने एकदम सामने खड़े नज़र आ रहे प्रधान जी की ओर देखा। उनके चेहरे पर चंद पल पहले तक नज़र आ रहे क्रोध का दूर दूर तक कोई नामोनिशान नहीं था, और प्रेम ही प्रेम दिख रहा था उनके मुखमंडल पर।

“आओ पुत्तर जी, बैठ कर बात करते हैं”। कहते कहते प्रधान जी जब अपनी कुर्सी की ओर बढ़े तो डॉक्टर पुनीत एकदम उनकी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया। कदाचित वो प्रधान जी की कुर्सी पर बैठ कर ही राजकुमार और राजीव से बातचीत कर रहा था।

प्रधान जी की पहली आवाज़ को सुनकर राजकुमार के मन में कुछ दुविधा आयी थी कि प्रधान जी ने उसे संबोधित किया है या किसी और को। इसीलिये उसने केवल मुड़कर प्रधान जी को देखा था, वापिस नहीं गया था। किंतु प्रधान जी ने दूसरी बार जब सीधे रूप से उसकी ओर देखते हुये ही उसी प्रकार पित्रवत प्रेम से भरपूर स्वर में उसे बैठने के लिये कहा तो उसकी सारी शंका दूर हो गयी।

“जी, प्रधान जी”। कहते हुये राजकुमार एक बार फिर से उसी कुर्सी पर जाकर बैठ गया, जिसपर वो पहले बैठा था। उसके चेहरे पर दुविधा के भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। प्रधान जी के व्यवहार में आये इस विपरीत परिवर्तन का अर्थ नहीं समझ पा रहा था वो शायद।

“हैरान होने की कोई आवश्यकता नहीं है पुत्तर जी, मैं तो केवल तुम्हें परख रहा था। मेरा सारा क्रोध दिखावा था और उसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं था”। राजकुमार के बिल्कुल सामने बैठे मुस्कुरा रहे थे प्रधान जी। राजकुमार की समझ में प्रधान जी की इस परख का कारण तो समझ नहीं आया पर इतना वो अवश्य समझ गया था कि इस परख में वो पास हो गया है। इसीलिये प्रधान जी उसके साथ इस प्रकार स्नेह भरे स्वर में बात कर रहे थे।

“मेरी परख, मैं कुछ समझा नहीं प्रधान जी?” राजकुमार ने हैरानी भरे स्वर में कहा। प्रधान जी के पास ही एक और कुर्सी पर बैठा पुनीत समझ गया था कि इस परख का कारण क्या है और इसीलिये वो राजकुमार की इस बात पर मंद मंद मुस्कुरा रहा था।

“वो इसलिये पुत्तर जी, कि बहुत कम कभी ऐसा होता है कि वरुण शर्मा किसी से पहली ही मुलाकात में इतना प्रभावित हो जाये। और जब ऐसा होता है तो ऐसे हर व्यक्ति को मैं न्याय सेना के साथ जोड़ने की कोशिश करता हूं, ताकि उसकी खूबियों को समाज की भलाई के कामों में लगाया जा सके। इसलिये तुम्हारी परख कर रहा था जिससे ये निर्णय ले सकूं कि तुम केवल बातें ही अच्छी करते हो या शूरवीरों की भाषा भी जानते हो”। प्रधान जी के चेहरे पर मुस्कुराहट और स्वर में वही प्रेम बना हुआ था। पुनीत के चेहरे पर अब इस प्रकार की मुस्कान थी जैसे प्रधान जी ने बिल्कुल उसके अनुमान के अनुसार ही बात की हो।

“जी, अब मैं सब समझ गया, प्रधान जी”। राजकुमार ने एक धीमी मुस्कान के साथ कहा। उसे अब ये मामला अपने पक्ष में होता नज़र आ रहा था।

“बाकी बातें बाद में, चलो पहले चाय पीते हैं पुत्तर जी। ओये टीटू, चाय क्यों नहीं आयी अभी तक, कंजरा”। प्रधान जी ने भीतरी केबिन में ही आ चुके टीटू नाम के उस लड़के को बनावटी क्रोध भरी मुद्रा से देखते हुये कहा।

“चाय तो आ गयी थी, प्रधान जी। लेकिन माहौल में इतना तनाव देखकर मैने चाय देना ठीक नहीं समझा। अभी लेकर आ गया मैं”। कहते कहते टीटू तेजी से बाहर के केबिन की ओर चल दिया।

“जैसी आपकी आज्ञा प्रधान जी, पर मेरा दोस्त राजीव बाहर है। अगर आप ठीक समझें तो उसे भी भीतर बुला लें”। राजकुमार ने विनम्र स्वर में कहते हुये प्रधान जी के साथ साथ पुनीत के चेहरे की ओर भी देखा, उसकी प्रतिक्रिया जानने के लिये।

“हा हा हा…………तुम्हारी यही बात मुझे सबसे अधिक पसंद आयी, पुत्तर जी। अपने दोस्त के इतनी बेवकूफियां करने के बाद और तुम्हारी बात न मानने के बाद भी तुम उसके लिये इतनी बड़ी लड़ाई लड़ने के लिये ऐसे तैयार हो गये, जैसे कोई बड़ी बात ही न हो। अब भी तुम्हें चाय के समय अपने से पहले अपना दोस्त ही नज़र आ रहा है। ये एक सच्चे दोस्त के लक्ष्ण हैं”। प्रधान जी ने प्रशंसा भरी नज़रों से राजकुमार की ओर देखते हुये कहा।

“तारी पुत्तर, जा बाहर से इनके दोस्त को बुला कर ले आ”। इसी के साथ प्रधान जी ने तारी नाम के उस लड़के को आदेश दिया। बाकी सारे लड़के भी तारी के पीछे पीछे ही बाहर के केबिन की ओर चल दिये थे।

“दोस्त तो दोस्त ही है प्रधान जी, समझदार हो या नासमझ। मुसीबत में जो दोस्त को छोड़ कर भाग जाये, ऐसा आदमी दोस्त तो क्या इंसान कहलाने के लायक भी नहीं”। प्रधान जी की बात का उत्तर देते हुए राजकुमार ने नोट कर लिया था कि पुनीत के चेहरे पर अब राजीव का नाम सुनकर नापसंदगी के भाव नहीं आये थे। शायद उसने राजीव की नासमझी को माफ कर दिया था।

“तुम्हारी दूसरी ये बात बहुत पसंद आयी मुझे, पुत्तर जी। इतनी छोटी उम्र में कितनी बड़ी बड़ी बातें कितने सामान्य अंदाज़ में कह देते हो। कहां से सीखे इतने अच्छे संस्कार?” प्रधान जी राजकुमार से बहुत प्रभावित दिखाई दे रहे थे।

“जी बस जितना कुछ है, अपनी मां से ही सीखा है”। राजकुमार के चेहरे के भाव बता रहे थे कि वो अपनी प्रशंसा सुनकर कुछ विचलित हो गया था।

“तब तो धन्य हैं तुम्हारी माता जी, एक दिन अवश्य मुलाकात करेंगे उनसे। लो चाय आ गयी और तुम्हारा दोस्त भी आ गया”। प्रधान जी के कहते कहते टीटू ने सबके सामने चाय रखी तो राजकुमार ने देखा कि राजीव भी आ चुका था।

“आओ बैठो राजीव, प्रधान जी बहुत महान व्यक्ति हैं। इन्होनें हमारी बात सुनने का फैसला किया है”। राजकुमार की इस आवाज़ को सुनकर राजीव कुछ समझ नहीं पाया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि दस मिनट के अंदर ही कार्यालय के माहौल में इतना परिवर्तन कैसे आ गया था।

“निश्चिंत होकर बैठ जाओ, पुत्तर जी। अगर तुम्हारा पक्ष सही है तो न्याय सेना के कार्यालय में तुम्हें इंसाफ अवश्य मिलेगा। सारा शहर जानता है कि वरुण शर्मा ने अपनी समझ में सदा न्याय का ही साथ दिया है”। प्रधान जी के इस पुरजोर स्वर और उनके आश्वासन भरे शब्दों को सुनते ही राजीव ने एक पल भी नहीं गंवाया और फौरन कुर्सी पर बैठ गया।

“अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं इस केस से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में आपको कुछ जानकारी दूं, प्रधान जी। इससे आपको इस मामले की सच्चाई जानने में आसानी होगी”। राजकुमार ने विनम्र स्वर में निवेदन किया।

“ऐसे नहीं, पुत्तर जी। अभी दूसरी पार्टी को भी बुला लेते हैं यहीं पर। फिर आमने सामने बैठ कर ही दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा”। कहते कहते ही प्रधान जी ने अपने मोबाइल फोन से किसी का नंबर डायल कर दिया था। राजकुमार को प्रधान जी का ये सुझाव बहुत अच्छा लगा था।

“ओये राजू पुत्तर, वो गुलाटी है न जिसे तू लेकर आया था हमारे पास। उसे लेकर फौरन दफ्तर पहुंच जा”। दूसरी ओर से किसी के फोन उठाते ही प्रधान जी ने कहा।

“शाम तक, अच्छा ठीक है फिर, कल सुबह ग्यारह बजे उसे लेकर दफतर पहुंच जाना”। कहते हुये प्रधान जी ने फोन डिस्कनैक्ट कर दिया।

“पुत्तर जी, न्याय सेना का जो पदाधिकारी गुलाटी को हमारे पास लेकर आया था, वो आज लुधियाना गया हुआ है। शाम तक आ जायेगा। आप लोग कल ग्यारह बजे दफतर आ जाओ, वहीं का वहीं निपटा देंगें ये मामला”। प्रधान जी ने राजकुमार की ओर देखते हुए उसी प्रकार स्नेह भरे स्वर में कहा।

“जी बिल्कुल ठीक है, प्रधान जी। बस आपसे एक निवेदन करना था”। राजकुमार ने विनम्र स्वर में एक बार फिर प्रधान जी की ओर देखते हुये कहा।

“बेझिझक होकर कहो पुत्तर जी, जो भी बात है”। प्रधान जी का स्वर आश्वासन से भरपूर था।

“इस मामले में थाना डिवीजन सात की पुलिस आपके हस्ताक्षेप के कारण बहुत दबाव में है। बड़ी मुश्किल से मैने किसी तरह उन्हें एक आध दिन इस मामले में कार्यवाही न करने के लिये मनाया था, ताकि आपसे बातचीत करके इस मामले को सुलझा लिया जाये। कल तक कहीं पुलिस इस मामले में राजीव के खिलाफ केस ही न दर्ज कर दे”। अपनी बात को पूरा करते हुए राजकुमार ने प्रश्नात्मक दृष्टि से प्रधान जी की ओर देखा।

“मैं समझ गया तुम क्या कहना चाहते हो, पुत्तर जी। लो अभी इसका हल भी कर देते हैं”। कहते कहते प्रधान जी ने एक बार फिर अपने मोबाइल से कोई नंबर डायल कर दिया।

“ओ की हाल है मेरे गुरविंद्र भाई……………… ओ बस ठीक………………… ओ मैं ताबेदार”। प्रधान जी दूसरी ओर से बात करने वाले के साथ बड़े मित्रवत भाव में बोल रहे थे। राजकुमार को पता था कि थाना डिवीजन सात के प्रभारी का नाम गुरविंद्र सिंह था।

“ओ बस एक छोटी सी बात कहनी थी आपसे। वो गुलाटी वाले मामले में जो मैने आपको फोन किया था न दूसरी पार्टी के खिलाफ कार्यवाही करने के लिये, उस मामले में अभी कोई कार्यवाही मत कीजियेगा। दूसरी पार्टी भी मेरे पास ही आ गयी है, यहीं दफतर में ही फैसला करवा देंगें इनका। ओ ठीक है जी, थैंक्यू”। कहने के साथ ही प्रधान जी ने फोन डिस्कनैक्ट कर दिया।

“लो पुत्तर जी, अब इस मामले में तुम्हारे दोस्त के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होगी। अब चाय पी लें, आराम से”। प्रधान जी इस बात पर सब मुस्कुरा दिये और अपना अपना कप उठा कर चाय पीने लगे।

“तुमने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया, पुत्तर जी। क्या करते हो?” प्रधान जी ने चाय की चुस्कियों के बीच एक बार फिर राजकुमार से स्नेह भरे स्वर में पूछा।

“जी, मैने नॉन मैडिकल्स में ग्रैजुएशन किया है और अब आगे कुछ परीक्षाओं की तैयारी कर रहा हूं। राजीव मेरे साथ ही कॉलेज में पढ़ता था”। राजकुमार ने प्रधान जी की ओर देखते हुये विनम्र स्वर में कहा।

“ओह तो कॉलेज की दोस्ती है, इसीलिये इसके कारण हमारे साथ भी लड़ने को तैयार हो गये थे”। प्रधान जी ने राजकुमार को छेड़ते हुये कहा। राजीव इस प्रकार राजकुमार की ओर देख रहा था जैसे इस लड़ाई वाली बात का अर्थ समझना चाहता हो।

“मैने आपके बारे में बहुत कुछ अच्छा सुना है प्रधान जी, और यहां आकर आपका चरित्र देख भी लिया। इसलिये आपके साथ किये गये अपने व्यवहार के लिये मैं क्षमा मांगता हूं”। राजकुमार ने एक बार फिर विनम्र स्वर में ही कहा।

“तुमने क्षमा मांगने वाला कोई काम नहीं किया, पुत्तर जी। तुमने केवल वही किया जो अपने दोस्त के पक्ष में होने पर तुम्हें करना चाहिये था। मेरा ध्यान शुरू से ही सारे वार्तालाप पर था। इस सारे प्रकरण के बीच केवल तुम ही थे जिसने एक क्षण के लिये भी अपना संयम नहीं खोया और बात को संभालने की कोशिश करते रहे। इस उम्र में ऐसा सयंम बहुत कम लोगों में देखने को मिलता है”। प्रधान जी ने एक बार फिर राजकुमार की तारीफ करते हुये कहा।

“जी, भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि युद्ध अंतिम विकल्प होना चाहिए और उससे पहले शांति का हर संभव प्रयास किया जाना चाहिये। इसलिये मैं पूरा प्रयास कर रहा था कि ये मामला शांतिपूर्ण ढ़ंग से ही निपट जाये”। राजकुमार ने प्रधान जी की ओर देखते हुये फिर उसी विनम्रता के साथ कहा।

“बिल्कुल ठीक बात है ये। एक अच्छा इंसान पहले शांति के सारे प्रयास करता है और फिर उसके बाद ही युद्ध का विकल्प चुनता है”। प्रधान जी ने राजकुमार की बात का समर्थन करते हुये कहा।

“प्रधान जी, अशोक शर्मा जी आये हैं मिलने”। टीटू के इन शब्दों ने बातचीत का सिलसिला तोड़ा तो प्रधान जी को ध्यान आया कि अशोक शर्मा ने आज किसी केस के सिलसिले में मिलने का समय लिया हुआ था।

“उन्हें फौरन अंदर भेजो”। प्रधान जी ने तत्परता से कहा।

“अब हमें जाने की आज्ञा दीजिये, प्रधान जी। कल दर्शन करते हैं आप के”। राजकुमार ने मौके की जरुरत को समझते हुये कहा।

“ठीक है पुत्तर जी, तो कल मिलते हैं फिर 11 बजे”। प्रधान जी ने उसी स्नेह भरे स्वर में कहा तो राजकुमार और राजीव उनको नमस्कार करने के बाद सबको अभिवादन करते हुये कार्यालय से बाहर चले गये। प्रधान जी के चेहरे के भाव स्पष्ट बता रहे थे कि वो अभी राजकुमार नाम के इस लड़के से और बातचीत करना चाहते थे।

“नमस्कार प्रधान जी”। अशोक शर्मा के इन शब्दों ने प्रधान जी का ध्यान खींचा तो उन्होंने देखा कि अशोक शर्मा कुछ और लोगों के साथ कार्यालय के भीतर प्रवेश कर चुके थे।

“आईये आईये अशोक जी, बैठिये”। कहते हुये प्रधान जी ने टीटू को सबके लिये चाय का प्रबंध करने का आदेश दिया।

 

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक 02 अध्याय 03

Sankat Mochak 02
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दूसरे अध्याय पढ़ने के लिये यहां क्लिक कीजिये।

“लेकिन रामपाल भाई, जब आप जान चुके हैं कि राजीव का कोई कुसूर नहीं है तो फिर पुलिस इसे बार बार तंग क्यों कर रही है?” अपने सामने बैठे पुलिस कर्मचारी से कहा राजकुमार ने। वो इस समय किसी पुलिस थाने में बैठा था।

राजकुमार की उम्र इस समय लगभग 23-24 वर्ष के करीब थी और अपने एक मित्र राजीव के साथ वो जालंधर शहर के थाना डिवीज़न नंबर सात में बैठा हुआ था। उसके सामने ही बैठा हुआ था रामपाल नाम का वह व्यक्ति जो थाने का मुंशी था।

“तुम्हारी बात ठीक है राजकुमार, लेकिन मेरे ये समझ लेने से कुछ नहीं होता कि तुम्हारा दोस्त निर्दोष है। थाना प्रभारी का बहुत दबाव है हमारे उपर, इस मामले में राजीव के खिलाफ केस दर्ज करने के लिये। वो तो तुम्हारे दखल के बाद मैने इस केस की जांच करने वाले अतिरिक्त सब-इंस्पैक्टर से निवेदन करके इसे कुछ समय के लिये ढ़ीला करवा दिया ताकि तुम्हें इस केस की गंभीरता के बारे में बता सकूं”। रामपाल ने राजकुमार की ओर देखते हुये गंभीर स्वर में कहा।

“अगर आप कहें तो मैं थाना प्रभारी से मुलाकात करके उन्हें सारी सच्चाई बताऊं? सच जानने के बाद तो वो अवश्य ही हमारा साथ देंगें”। राजकुमार ने रामपाल की ओर दिशा निर्देश मांगने वाले अंदाज़ में देखते हुये कहा।

“उससे भी कोई विशेष लाभ नहीं होगा राजकुमार, क्योंकि इस मामले में उनके उपर भी बहुत दबाव है। इसलिये उन्होंने हमें सीधे शब्दों में निर्देश दिया है कि या तो राजीव दूसरी पार्टी के पैसे वापिस कर दे, नहीं तो उसके खिलाफ आई पी सी की धारा 420 के तहत केस दर्ज करके उसे गिरफ्तार कर लिया जाये”। रामपाल के स्वर में गंभीरता बनी हुयी थी।

“ऐसे कैसे दे सकता है ये पांच लाख रुपये दूसरी पार्टी को, जबकि वास्तविकता ये है कि इसे उनका केवल दो लाख रुपया देना है। और वो दो लाख रुपया भी दूसरी पार्टी ने इसे अपनी सहमति के साथ दिया था, न कि इसने कोई फ्रॉड करके उनसे लिया है। तो फिर 420 का मामला कैसे बनता है, रामपाल भाई?” राजकुमार ने अपने साथ बैठे राजीव के हाथ को इस तरह दबाते हुये कहा जैसे उसे आश्वस्त कर रहा हो कि कुछ नहीं होगा।

“ऐसा तो सदा से होता ही आया है राजकुमार, और ऐसा शायद भविष्य में भी होता रहेगा। लड़ाई कर रहे दो पक्षों में से जब एक पक्ष बहुत अधिक प्रभावशाली हो तो कानून अक्सर उसके हक में जाकर बैठ जाता है। फिर चाहे वो पक्ष ठीक हो या ग़लत। ताकत और प्रभाव का ये खेल तो सदियों से चलता आ रहा है इस संसार में”। रामपाल ने राजकुमार को समझाने वाले अंदाज़ में कहा।

“तो फिर कानून कहां है, इंसाफ कहां है और इन सबसे भी उपर, पुलिस कहां है रामपाल भाई?” राजकुमार के शब्दों में तीखा व्यंग्य था और उसकी दृष्टि पूरी तरह से रामपाल के चेहरे पर जम चुकी थी, जैसे उसके चेहरे के भावों को ठीक तरीके से पढ़ना चाहता हो।

“मैं तुम्हारी बात का मतलब समझ रहा हूं राजकुमार, लेकिन पुलिस की भी अपनी मजबूरियां हैं। हमारे उपर बहुत दबाव रहता है कुछ मामलों में, और इस दबाव के विपरीत जाने की स्थिति में नुकसान हमें उठाना पड़ता है। इसलिये ऐसे मामलों में अक्सर पुलिस इंसाफ नहीं कर पाती”। रामपाल ने पुलिस या शासन व्यवस्था को बचाने की कोई भी कोशिश न करते हुये सीधे सीधे सिस्टम की इस कमी को स्वीकार कर लिया था।

“तो ऐसे मामलों में फिर पीड़ित पक्ष कहां जाये, रामपाल भाई? क्या प्रभावशाली लोगों के विपक्ष में होने पर आम आदमी के लिये ठीक होने के बाद भी कोई इंसाफ नहीं है इस देश में? ये कैसा लोकतंत्र है रामपाल भाई, ये तो फिर राजतंत्र हुआ, जो राज करता है, जिसका प्रभाव है, उसका गलत भी ठीक। और आम आदमी का ठीक भी गलत”। राजकुमार के स्वर की उंचाई और उसके अंदाज़ की बगावत बढ़ती ही जा रही थी।

“तुम्हारी ये बात भी ठीक ही है, राजकुमार। प्रभावशाली आदमी के विपक्ष में होने पर आम आदमी के लिये अक्सर इस देश में कोई विशेष इंसाफ नहीं होता और उसे बहुत कुछ झेलना पड़ता है। पर शायद तुम्हारे दोस्त के केस में ऐसा न हो। एक रास्ता नज़र आता है मुझे”। रामपाल ने जैसे कुछ सोचते हुये कहा।

“क्या है वो रास्ता, रामपाल भाई? आप शीघ्र बताईये ताकि हम उस रास्ते पर चलकर इस मामले का उचित हल निकाल पायें”। उत्सुकुता भरे स्वर में पूछा राजकुमार ने।

“इस मामले में थाना प्रभारी पर प्रधान जी का दबाव है। मेरे सुझाव से आपको एक बार जाकर सीधे प्रधान जी से ही मुलाकात करनी चाहिये इस मामले में। तभी इस समस्या का कोई हल संभव है”। रामपाल ने अपनी बात पूरी करते हुये कहा।

“प्रधान जी, ये कौन हैं, और ये कैसा नाम हुआ रामपाल भाई? और फिर वो जो भी हैं, हम उनके पास क्यों जायें? जो व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से एक गलत आदमी का साथ दे रहा है, वो भला हमारी बात क्यों सुनेगा? इससे अच्छा तो हम शहर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पास चले जाते हैं और उनसे मिलकर सारी बात बताते हैं। शायद हमारी बात बन जाये?” राजकुमार ने एक साथ कई प्रश्न उछाल दिये थे रामपाल की ओर, जिसका ये सुझाव शायद उसे पसंद नहीं आया था। उसके स्वर में एक बार फिर तीखापन और बगावत आ चुकी थी।

“कोई विशेष लाभ नहीं होगा आपको एस एस पी साहिब के पास जाने से भी। इस मामले में प्रधान जी का नाम आते ही उनका दिशा निर्देश होगा कि इस मामले को प्रधान जी के साथ मिलकर आपसी सहमति से सुलझा लिया जाये”। रामपाल ने राजकुमार को समझाने वाले अंदाज़ में कहा।

“ऐसा कौन सा प्रभावशाली इंसान है ये प्रधान जी, जिसके मामले में एस एस पी साहिब भी दखल नहीं देना चाहते, जिससे आपके थाना प्रभारी भी डरते हैं और जिसका नाम तक नहीं सुना मैने आज तक? क्या सत्ताधारी पार्टी का कोई बहुत बड़ा नेता है ये प्रधान जी?” राजकुमार के शब्दों में प्रधान जी के लिये कोई विशेष आदर नहीं था जैसे वो उन्हें कोई विलेन समझ रहा हो।

“पुलिस डरती नहीं है प्रधान जी से राजकुमार, बल्कि बहुत आदर करती है उनका। और इस आदर के पूरी तरह से हकदार भी हैं वो। किसी राजनैतिक पार्टी से कोई लेना देना नहीं उनका, और एक सच्चे समाज सेवक हैं, प्रधान जी। शहर में पिछले बीस सालों में जितना काम सत्ता में होने के बाद भी राजनेताओं नें नहीं किया, उससे कहीं अधिक प्रधान जी ने बिना किसी सत्ता के कर दिखाया है”। रामपाल के स्वर में प्रधान जी के लिये अपार आदर झलक आया था और उसने अपनी बात को जारी रखते हुये कहा।

“उनके जैसा सच्चा समाज सेवक मैने अपने जीवन में आज तक नहीं देखा। सदा सच का साथ देते हैं, और गरीबों के मसीहा के नाम से जाने जाते हैं, प्रधान जी। उनका नाम वैसे तो वरुण शर्मा है, किन्तु प्यार और आदर से सारा शहर उन्हें प्रधान जी ही कहता है। इस शहर में पीड़ितों के पक्ष में पुलिस, प्रशासन और सत्ता से लड़कर जितने कारनामें उन्होनें अंजाम दिये हैं, साधारण आदमी तो ऐसे साहस की कल्पना तक नहीं कर सकता”। रामपाल के स्वर में प्रधान जी के लिये आदर निरंतर बना हुआ था और वो खुलकर प्रशंसा कर रहा था, प्रधान जी नाम के इस इंसान की।

“अगर इतने ही सच्चे इंसान हैं तुम्हारे प्रधान जी, रामपाल भाई, तो फिर इस मामले में अन्याय करवाने पर क्यों तुले हुये हैं?” राजकुमार के स्वर का व्यंग्य बदस्तूर बना हुआ था, हालांकि उसकी आवाज़ अब धीमी हो गयी थी और उसके चेहरे पर उत्सुकुता के भाव भी आ गये थे। शायद प्रधान जी के व्यक्तित्व के बखान का प्रभाव था ये।

“यही बात तो मेरी समझ में भी नहीं आ रही, और इसीलिये तो मैने आपको प्रधान जी से मुलाकात करने का सुझाव दिया था। मेरे मुताबिक बस एक ही कारण हो सकता है उनका इस मामले में पुलिस पर आपके दोस्त के खिलाफ कार्यवाही करने के लिये दबाव बनाने का। और वो कारण है ये है कि उनके किसी करीबी ने उन्हें इस बात से आश्वस्त कर दिया है कि उनका पक्ष ठीक है और आपके दोस्त का पक्ष गलत”। रामपाल ने राजकुमार को समझाने वाले भाव में कहा।

“ओह, तो आपका अर्थ है कि इस मामले में प्रधान जी जानबूझकर गलत नहीं कर रहे, बल्कि ये सब उनसे अंजाने में हो रहा है। इसीलिये आपने हमें उनसे मिलकर सच बताने की बात कही थी, ताकि वो इस मामले से पीछे हट जायें”। राजकुमार जैसे अब रामपाल की बात समझ गया था और उसके स्वर में अब प्रधान जी के लिये कुछ आदर भी आ गया था।

“अब तुम बिल्कुल ठीक समझ गये हो, राजकुमार। इसीलिये मैने तुम्हें प्रधान जी से मुलाकात करने के लिये कहा था। रामपाल ने मुस्कुराते हुये कहा।

“पर क्या आपको वास्तव में लगता है कि इस मामले का सच जानने के बाद वो इस केस से पीछे हट जायेंगे और पुलिस को अपना काम निष्पक्ष रूप से करने देंगें? इन बड़े लोगों का अहंकार भी तो बहुत बड़ा होता है, रामपाल भाई। एक बार किसी केस में अपना हाथ लगा दिया तो फिर ठीक हो या ग़लत, अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना कर बैठ जाते हैं”। राजकुमार के मन में एक बार फिर शंका ने जन्म ले लिया था।

“लगता है नहीं राजकुमार, बल्कि पूरा विश्वास है मुझे कि पूरी बात समझ आ जाने पर प्रधान जी इस मामले से पीछे हट जायेंगे। साक्षात भगवान संकटमोचक की अपार कृपा है उनपर। अहंकार तो उनके आस पास भी नहीं है, बहुत विनम्र इंसान हैं हमारे प्रधान जी। अपनी गलती पता चलने पर एकदम से उसे मान कर सुधार लेते हैं”। रामपाल ने राजकुमार की शंका का निवारण करते हुये कहा।

“अगर वास्तव में ऐसा है, तो फिर ये प्रधान जी अवश्य ही कोई महान व्यक्ति हैं, जो इतना प्रभाव होते हुये भी इतने विनम्र हैं और अहंकार से परे हैं। ऐसे व्यक्ति से तो मैं एकबार अवश्य मिलना चाहूंगा और देखना चाहूंगा कि जितनी प्रशंसा आपने उनकी की है, क्या वास्तव में इतने अच्छे हैं, आपके प्रधान जी?” राजकुमार ने अपने अंतिम शब्द बोलते हुये रामपाल की ओर एक भेद भरी मुस्कुराहट उछाल दी। उसके स्वर में अब प्रधान जी के लिये पहले से भी अधिक आदर आ गया था, किन्तु उनके चरित्र को लेकर शंका अभी भी बनी हुयी थी।

“मैने तो उनकी बहुत कम प्रशंसा की है राजकुमार, प्रधान जी तो इससे भी बहुत आगे पहुंचे हुये इंसान हैं। अगर आपने उन्हें इस बात का विश्वास दिला दिया कि आपका दोस्त इस मामले में निर्दोष है, तो न केवल वो इस मामले में दूसरे पक्ष की सहायता करने से मना कर देंगें, बल्कि…………”। अपनी बात को जानबूझकर अधूरा छोड़ दिया था रामपाल ने, जो राजकुमार की ओर देखकर मुस्कुरा रहा था।

“बल्कि क्या, रामपाल भाई? जल्दी बताईये न”। रामपाल के अनुमान अनुसार ही राजकुमार की उत्सुकुता एकदम से बढ़ गयी थी।

“बल्कि वो अपनी पूरी ताकत लगा देंगें राजीव को इंसाफ दिलाने के लिये। ऐसे हैं हमारे प्रधान जी। सत्य का पता चलते ही एक पल में पक्ष बदल कर आपकी ओर आ जायेंगे वो”। रामपाल ने मुस्कुराते हुये अपनी बात पूरी की।

“फिर तो जल्दी बताईये रामपाल भाई, कि हम उनसे कब और कहां मिल सकते हैं? अगर वो वास्तव में ही इतने महान हैं तो फिर अवश्य ही दर्शन करना चाहूंगा मैं उनके”। राजकुमार के स्वर में आदर और उत्सुकुता का मिश्रण था।

“न्याय सेना के नाम से एक संगंठन चलाते हैं प्रधान जी, और इस संगठन का मुख्य कार्यालय मिलाप चौक क्षेत्र में है। मैं आपको उनके कार्यालय का फोन नंबर दे देता हूं, आप मिलने का समय लेकर चले जाईये”। कहते हुये रामपाल ने अपने मोबाइल फोन में से कोई नंबर ढ़ूंढ़ना शुरू कर दिया।

“ये बिल्कुल ठीक रहेगा, रामपाल भाई”। अपनी बात पूरी करते ही राजकुमार ने अपने मोबाइल पर वो नंबर सेव करना शुरू कर दिया जो रामपाल बता रहा था।

“बस आपसे एक और निवेदन है, रामपाल भाई। जब तक इस मामले में हमारी मुलाकात प्रधान जी से न हो जाये, आप कृप्या राजीव के खिलाफ कोई केस दर्ज मत होने दीजियेगा”। राजकुमार ने बड़ी आशा भरी निगाहों से रामपाल की ओर देखते हुये बहुत ही विनम्र स्वर में कहा।

“बहुत देर तक तो नहीं, किन्तु एक या दो दिन तो लटका ही सकते हैं हम इस मामले को। इतने समय में आपको ये काम कर लेना होगा और काम होते ही जो भी नतीजा निकले, फौरन मुझे बता दीजियेगा। हमें भी थाना प्रभारी को जवाब देना है इस मामले में, जल्द से जल्द”। रामपाल ने आश्वासन देते हुये कहा।

“दो दिन तो बहुत हैं हमारे लिये, रामपाल भाई। हम कल का ही कोई समय निर्धारत करके मुलाकात कर लेंगें प्रधान जी से और कल शाम तक आपको सारी स्थिति से अवगत करवा दूंगा मैं। अब चलते हैं, आपका बहुत आभारी रहूंगा मैं, इस मामले में हमें सही दिशा दिखाने के लिये”। कहते हुये राजकुमार और राजीव ने रामपाल से विदा ली।

“लेकिन राजकुमार, तुमने प्रधान जी से कल मिलने की बात क्यों कही? आज का अभी आधे से अधिक दिन पड़ा है, हम आज भी तो मिलने का समय मांग सकते हैं उनसे?” लगभग पांच मिनट के बाद राजीव ने राजकुमार से पूछा। दोनों स्कूटर पर बैठ कर एक दिशा की ओर जा रहे थे।

“वो इसलिये राजीव, कि प्रधान जी से मिलने से पहले मैं आज रात तक उनके बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त कर लेना चाहता हूं। तुम्हें तो पता ही है कि किसी के साथ आमने सामने होने से पहले उसके स्वभाव, ताकत और कमज़ोरी का अधिक से अधिक अंदाज़ा लगा लेना मेरी आदत है। इससे बहुत लाभ मिलता है”। राजकुमार ने मुस्कुराते हुये कहा।

“अरे हां, मैं तो भूल ही गया था कि किसी के बारे में अधिक से अधिक जानकारी जुटाये बिना उसका सामना करना तुम्हारी आदत नहीं। आखिर ऐसे ही तो सब दोस्त तुम्हें इंटनैशनल जासूस नहीं कहते थे कॉलेज में”। राजीव ने राजकुमार को छेड़ते हुये कहा।

“हा हा हा………ये बात भी खूब याद दिलायी। कॉलेज के दिन याद करवा दिये तूने, क्या क्या कारनामे करते थे हम”। राजकुमार ने हंसते हुये कहा।

“हम नहीं, कारनामे तो तू ही करता था, हमारा तो बस नाम लग जाता था तेरी शरारतों में तेरा दोस्त होने के कारण। बहुत बार सज़ा मिली है टीचर्स से तेरा दोस्त होने के कारण”। राजीव ने एक बार फिर राजकुमार को छेड़ते हुये कहा।

“दोस्ती की है, निभानी तो पड़ेगी ही मेरे राजू प्यारे”। राजकुमार के इतना कहते ही दोनों ठहाका लगा कर हंस दिये।

“एक जरूरी बात है राजीव, इतना ध्यान रखना कि अपनी आपा खोकर कुछ भी बोल देने की आदत पर वैसे है काबू रखना है तुझे इस मुलाकात के दौरान, जैसे आज रखा है”। एक मिनट के बाद जैसे कुछ सोचते हुये कहा राजकुमार ने।

“ठीक है ठीक है, मैं समझ गया पिता जी”। राजीव ने राजकुमार को छेड़ने वाले अंदाज़ में कहा और एक बार फिर दोनों हंस दिये।

स्कूटर तेजी से अपनी मंज़िल की ओर भागा जा रहा था और स्कूटर की गति से भी तेज़ गति से भाग रहा था राजकुमार का दिमाग, जो इस मामले के साथ और प्रधान जी के साथ जुड़े तथ्यों का विशलेषण कर रहा था।

 

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक 02 अध्याय 02

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दूसरे दिन दोपहर का खाना खाने के बाद जब चंद्रिका ने एक दो घंटे विश्राम करने की इच्छा जतायी तो राजकुमार ने मुस्कुरा कर हनी की ओर देखा।

“जी पापा, मुझे अभी प्रधान अंकल की कहानी सुननी है”। राजकुमार का इशारा समझते हुये हनी ने एकदम खुश होते हुये कहा।

“तो चलो फिर बाहर गार्डन में बैठते हैं। चंद्रिका तुम आराम करो, तब तक मैं और हनी बाहर गार्डन में बैठे हैं”। कहते हुये राजकुमार ने हनी को साथ लिया और होटेल के कमरे से बाहर निकल गया।

होटेल ‘सेवोय द फॉरचून’ मसूरी के बहुत अच्छे होटलों में से एक था। पांच सितारा का दर्जा प्राप्त किये हुये ये होटेल वास्तव में एक हैरिटिज प्रॉपर्टी था जिसके पास कई एकड़ ज़मीन थी। होटेल के अंदर ही छोटे बड़े कई गार्डन बने हुये थे और पहाड़ों के आंचल में बने हुये ये गार्डन बहुत ही मनमोहक थे।

“तो आओ बेटा, आज तुम्हें प्रधान अंकल की एक और कहानी सुनाता हूं”। गार्डन में लगी कुर्सियों में से एक पर बैठते हुये राजकुमार ने हनी से कहा जो उसके सामने ही लगी एक कुर्सी पर बैठ गया था।

“हां पापा, सुनाईये मुझे प्रधान अंकल की कोई मज़ेदार कहानी, लेकिन उससे पहले मुझे कुछ और भी जानना है”। उत्साहित स्वर में हनी ने राजकुमार से कहा।

“वो क्या बेटा?” राजकुमार ने प्रश्नात्मक दृष्टि से हनी की ओर देखते हुये कहा।

“पापा आपने मुझे आज तक ये नहीं बताया कि आप प्रधान अंकल से पहली बार कब और कैसे मिले थे? मुझे सबसे पहले यही जानना है कि आपकी प्रधान अंकल से पहली मुलाकात कब हुई थी?” हनी ने अपना प्रश्न पूरा करते हुये कहा।

“अच्छा ये बात है, तो चलो आज तुम्हें वही कहानी सुनाता हूं जब मैं पहली बार तुम्हारे प्रधान अंकल से मिला था”। राजकुमार ने मुस्कुराते हुये कहा।

“आपके और प्रधान अंकल के पहली बार मिलने की भी कोई कहानी है, पापा?” हनी ने हैरान होते हुये पूछा।

“प्रधान अंकल और मैं जब भी साथ होते हैं, कोई न कोई कहानी बन ही जाती है, बेटा। फिर इस रिश्ते की शुरुआत भी एक कहानी से ही होना स्वभाविक ही है। बड़ी फिल्मी थी हमारी पहली मुलाकात। इस मुलाकात में प्रधान जी और मैं दो अलग अलग पक्षों की ओर से एक दूसरे के साथ ही लड़ रहे थे”। राजकुमार ने रहस्य भरे स्वर में कहते हुये हनी की ओर देखा।

“आपकी और प्रधान अंकल की पहली मुलाकात एक दूसरे के साथ लड़ाई में हुई थी, पापा? फिर तो जल्दी सुनाईये मुझे ये कहानी। मैने तो आज तक सोचा भी नहीं था कि आपने कभी प्रधान अंकल के साथ लड़ाई भी की होगी। आप दोनों में तो बहुत अधिक प्यार है?” हनी की उत्सुकुता के साथ उसकी हैरानी भी बढ़ती जा रही थी।

“लड़ाई से शुरू होने वाला प्यार का रिश्ता सामान्य रिश्ते की तुलना में बहुत गहरा होता है, बेटा। क्योंकि इस रिश्ते में आप पहले ही हर रिश्ते का दूसरा पहलू यानि कि झगड़ा देख चुके होते हैं और झगड़े के बाद ही आप प्यार शुरु करते हैं, इसलिये ये रिश्ता फिर बहुत गहरा हो जाता है”। राजकुमार ने हनी को समझाने वाले स्वर में कहा।

“ऐसा भी होता है, पापा? मैं कुछ समझा नहीं?” हनी ने हैरानी भरे स्वर में पूछा।

“ऐसा ही होता है, बेटा। जब आप किसी के साथ झगड़ा करने के बाद प्यार करते हैं तो वो प्यार और भी पक्का होता है। सोचो, जिस आदमी की ओर आप झगड़ा करने के बाद भी खिंचते चले जाते हैं, उसके प्यार का आकर्षण सामान्य की तुलना में कितना अधिक होगा?” राजकुमार के स्वर में फिलॉस्फी का पुट झलकना शुरु हो गया था।

“तब तो आप जल्दी सुनाईये मुझे ये कहानी”। बालक हनी ने उतावले स्वर में कहा। वो पूरी तरह से राजकुमार की इस गहरी बात को समझ नहीं पाया था।

“तो ठीक है फिर, आओ तुम्हें लगभग पंद्रह साल पीछे लेकर चलता हूं, जब मेरी और प्रधान जी की पहली मुलाकात हुयी थी। कहते कहते राजकुमार की आंखें शून्य में स्थिर होनी शुरू हो गयीं थीं, जैसे शारीरिक रूप से उस गार्डन में होने के बावजूद भी वहां नहीं था।

 

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक 02 अध्याय 01

Sankat Mochak 02
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दूसरे अध्याय पढ़ने के लिये यहां क्लिक कीजिये।

मसूरी, पहाड़ों की रानी के नाम से जाने जाना वाला उत्तरांचल प्रदेश का एक बहुत ही खूबसूरत हिल स्टेशन था ये। मनमोहक मौसम के अतिरिक्त यहां और भी बहुत से आकर्षण थे जिनके चलते दूर दूर से लोग इस हिल स्टेशन का आनंद उठाने आते थे। गर्मी की छुट्टियों में तो मसूरी इस प्रकार पर्यटकों से भरा रहता था जैसे कोई उत्सव मनाया जा रहा हो।

मसूरी के सबसे जबरदस्त आकर्षणों में से एक माना जाता था यहां का मॉल रोड। लगभग तीन किलोमीटर लंबा मसूरी का यह रोड यहां का केंद्रिय आकर्षण था। पारंपरिक परिधानों तथा पारंपरिक भोजन से लेकर आधुनिक परिधान और भोजन तक यहां सब कुछ मिलता था। इसी कारण इस रोड़ पर पर्यटक सीज़न में लगभग हर समय ही भीड़ लगी रहती थी।

पहाडों को काट कर बनाया गया ये रोड़ वास्तव में था ही इतना सुंदर कि यहां पर घूमने का आनंद ही कुछ और था। पर्यटक सीज़न में बहुत भीड़ होने के कारण इस रोड़ पर शाम से लेकर रात तक वाहनों का प्रवेश मना था। रोड के शुरू में ही दो बैरियर लगे हुये थे, जिनका प्रयोग वाहनों के प्रवेश को नियंत्रित करने के लिये किया जाता था।

“मामा, मुझे उस दुकान से सॉफ्टी खानी है”। मॉल रोड के शुरू में ही बनी हुई एक दुकान पर लगी सॉफ्टी की मशीन की ओर इशारा करता हुआ हनी अपनी मां चंद्रिका से कह रहा था।

“हां बेटा, पापा अभी तुझे सॉफ्टी ले देंगे”………………………………… कहती हुई चंद्रिका ने आस पास नज़र दौड़ाई तो पाया कि राजकुमार ग़ायब था।

“अरे, तुम्हारे पापा कहां गये?” कहती हुई चंद्रिका ने पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि राजकुमार मॉल रोड के शुरू में ही लगे एक बैरियर के पास खड़ा हुआ था।

“आओ बेटा, पापा के पास चलते हैं, वो पीछे रह गये हैं”। कहते हुये चंद्रिका ने हनी का हाथ पकड़ा और कुछ दूर ही खड़े राजकुमार की ओर चल दी।

“आप यहां कहां खड़े हैं, हम तो…………………… राजकुमार के पास पहुंचती हुई चंद्रिका को कहते कहते बीच में ही राजकुमार के हाथ का संकेत देखकर चुप हो जाना पड़ा। राजकुमार की मुद्रा गंभीर थी और वो पूरा ध्यान लगा कर बैरियर पर होने वाले वार्तालाप को सुन रहा था। ये देखकर चंद्रिका ने भी अपना ध्यान उस वार्तालाप पर लगा दिया।

“मैने आपसे कहा न श्रीमान जी, इस समय गाड़ी रोड़ पर नहीं जा सकती। आपको रात ग्यारह बजने तक प्रतीक्षा करनी होगी”। बैरियर पर खड़े कई पुलिस कर्मचारियों में से एक कर्मचारी एक वाहन चालक से कह रहा था। ये पुलिस कर्मचारी बाकी के कर्मचारियों से सीनियर लग रहा था।

“ये नियम तो मुझे भी पता है सर, पर मेरी समस्या भी तो समझिये आप। मैने आपको बताया है न कि मेरी पत्नी की सेहत एकदम से खराब हो गयी है, और होटेल मॉल रोड़ में काफी अंदर जाकर है। वहां तक कोई रिक्शा वाला जाता नहीं और पैदल आने की उसकी स्थिति नहीं है। इसीलिये तो गाड़ी को होटेल तक लेकर जाने की कोशिश कर रहा हूं ताकि उसे जल्दी से किसी अच्छे अस्पताल ले जा सकूं”। कार की सीट पर बैठे एक शिक्षित दिखने वाले व्यक्ति ने सभ्य शब्दों में जैसे विनती की।

“आपकी वो बात तो ठीक है श्रीमान जी, पर कानून तो कानून है। हमें हर हाल में इसकी पालना करनी ही होती है। नहीं तो कोई हमारी शिकायत कर देगा कि मना होने के बाद भी कुछ गाड़ियों को अंदर प्रवेश करने दिया जा रहा है। नहीं नहीं, हम आपकी गाड़ी को मॉल रोड़ पर जाने की अनुमति नहीं दे सकते”। पुलिस कर्मचारी ने एकदम पक्के स्वर में कहा और साथ खड़े पुलिस कर्मचारी भी उसकी इस बात को मूक सहमति देते दिखायी दिये।

“कानून का मैं भी बहुत आदर करता हूं सर, पर कानून आम आदमी की सहूलियत के लिये बनाया जाता है, उसे तंग करने के लिये नहीं। आपातकालीन समय में किसी बड़े कार्य को करने के लिये सामयिक तौर पर कानून को कुछ ढीला भी कर लिया जाना चाहिये”। कार चालक के तर्क में जबरदस्त वज़न था।

“बात तो आपकी ठीक है श्रीमान जी, पर इस तरह की ढील देना मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। इसके लिये तो………………………” वातावरण में सायरन की जोर से गूंज उठी आवाज़ को सुनते ही वह पुलिस कर्मचारी चुप हो गया और सब पुलिस कर्मचारी सतर्क होकर सायरन की दिशा में देखने लगे।

शीघ्र ही तीन गाड़ियों का एक काफिला नज़र में आया तो एकदम से एक पुलिस कर्मचारी ने उल्टी दिशा में लगा हुआ बैरियर उठा दिया और सारे के सारे पुलिस कर्मचारी सावधान मुद्रा में खड़े हो गये। तीनों गाड़ियां जैसे जैसे बैरियर के पास आती जा रहीं थीं, पुलिस वालों की मुस्तैदी और राजकुमार के चेहरे की मुस्कान बढ़ती ही जा रही थी।

देखते ही देखते तीनों गाड़ियां पुलिस बैरियर को पार करती हुयीं मॉल रोड के भीतर प्रवेश कर रहीं थीं और पुलिस वाले जोर जोर से गाड़ियों को सलाम ठोक रहे थे।

“इन गाड़ियों में कौन था भाई साहिब, कोई बड़ा ही आदमी लगता है?” पुलिस कर्मचारी को उकसाती हुई ये आवाज़ राजकुमार के मुंह से निकली थी। उसके चेहरे पर एक जानी पहचानी मुस्कुराहट आ चुकी थी जो पल पल गहरी होती जा रही थी।

“हनी बेटा, अब तुझे सॉफ्टी के स्वाद से भी बढ़िया स्वाद आने वाला है”। हनी के कान में धीरे से फुसफुसा कर कहा चंद्रिका ने और उसे राजकुमार की बात सुनने के लिये कहा। राजकुमार के चेहरे पर गहराती जा रही मुस्कान को देखती हुई चंद्रिका समझ चुकी थी कि उसके मन में कोई शैतानी आ चुकी थी।

“जी हां, ये प्रदेश के बाहुबली विधायक हैं, इनका नाम नरेश ठाकुर है और प्रदेश सरकार में बहुत चलती है इनकी। प्रदेश की सारी पुलिस खौफ खाती है इनके नाम से”। पुलिस कर्मचारी ने विधायक की शान में कसीदे पड़ते हुये कहा।

“ओह, तो इसीलिये प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इनको प्रतिबंधित समय में भी मॉल रोड़ पर गाड़ियों सहित प्रवेश करने का विशेष अनुमति पत्र दिया होगा। तभी तो तीन तीन गाड़ियों सहित रोड़ से बाहर निकलने वाले बैरियर की ओर से भीतर प्रवेश कर गये हैं। है न भाई साहिब?” एकदम भोला बनते हुये राजकुमार ने जैसे सबकुछ समझ जाने वाले अंदाज़ में पुलिस कर्मचारी की ओर देखते हुये कहा।

“कैसी बातें कर रहें हैं आप श्रीमान जी, विधायक जी को भला कहां किसी प्रवेश पत्र की आवश्यकता है? पूरे प्रदेश में इनका रास्ता भला कौन रोक सकता है? और फिर, मैने तो ऐसे किसी प्रवेश पत्र के बारे में सुना तक नहीं”। पुलिस कर्मचारी ने राजकुमार के भोलेपन की खिल्ली उड़ाते हुये कहा तो उसके साथ खड़े पुलिस कर्मचारी भी उसकी इस बात पर हंस दिये। कार मैं बैठा वह व्यक्ति जैसे राजकुमार की बात का कुछ कुछ अर्थ समझ गया था और उसने अपना पूरा ध्यान इस वार्तालाप पर टिका दिया था।

“तो क्या आप ये कह रहे हैं कि कार में बैठे इन भाई साहिब की तरह इन विधायक साहिब के पास भी रोड पर प्रवेश पाने का कोई अधिकार नहीं है, पर फिर भी आप लोगों ने सारे कानून तोड़ कर उन्हें तीन तीन गाड़ियां लेकर भीतर जाने दिया है?” राजकुमार के चेहरे से भोलापन गायब हो चुका था और उसका स्थान अब गंभीरता और दृढ़ता ने ले लिया था, मानो उसके जैसा समझदार व्यक्ति संसार में दूसरा कोई हो ही न।

“आप कहना क्या चाहते हैं, श्रीमान जी”? पुलिस कर्मचारी राजकुमार के स्वर में एकदम से आयी दृढता और उसके चेहरे पर आयी गंभीरता को देखकर हड़बड़ा गया था और उसके साथ खड़े पुलिस कर्मचारी भी अब एकदम से गंभीर मुद्रा में आ गये थे।

“मैं कुछ कहने से पहले आपको कुछ याद करवाना चाहता हूं, भाई साहिब। अभी अभी आपने इन भाई साहिब से कहा था कि कानून की पालना तो आपको हर हाल में करनी पड़ती है। इन तीन गाड़ियों को बिना अनुमति उल्टी दिशा वाले बैरियर से सलाम ठोकते हुये भीतर प्रवेश करवा के कौन से कानून की पालना की है आप लोगों नें?” राजकुमार का स्वर बहुत दृढ और संतुलित किन्तु सभ्य था।

“इस कानून का नाम है, जिसकी लाठी उसी की भैंस। इस कानून के तहत आम आदमी को तंग किया जाता है और ताकतवर लोगों को सलाम ठोंक कर हर कानून तोड़ने दिया जाता है, भाई साहिब”। बड़े तीखे स्वर में कहा था कार की चालक सीट पर बैठे हुये उस व्यक्ति ने, जिसे भीतर जाने से रोका जा रहा था। उसके स्वर में पुलिस वालों के लिये नफरत और राजकुमार के प्रति आदर था।

“और फिर भी इस देश को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है? ये बात कुछ समझ नहीं आयी भाई साहिब?” राजकुमार ने एक बार फिर पुलिस कर्मचारी की ओर देखते हुये कहा। उसके चेहरे पर गंभीरता अभी भी पूर्ण रूप से बनी हुयी थी।

“आखिर आप लोग कहना क्या चाहते हैं?” पुलिस कर्मचारी के स्वर में परेशानी साफ झलक रही थी। साथ में खड़े पुलिस वाले भी जैसे समझ गये थे कि उनका पाला किसी बुद्धु से नहीं बल्कि किसी बड़े चालाक आदमी के साथ पड़ गया था जो उनकी ही बातों में उन्हें फंसाता जा रहा था।

“मैं तो केवल ये पूछ रहा हूं कि किस कानून के तहत इन विधायक जी को तीन तीन गाड़ियों के साथ प्रतिबंधित समय के दौरान इस रोड़ पर प्रवेश करने दिया गया है, जबकि इन कार वाले भाई साहिब को तो अभी अभी किसी कानून की दुहायी देकर ही रोक दिया गया था? ये दो अलग अलग कानून कौन से हैं, जो रुतबे के हिसाब से लोगों में भेदभाव करते हैं? लोकतंत्र होने के नाते ये पूछना तो मेरा अधिकार है। कृप्या इसका उत्तर दीजिये”। राजकुमार की दृष्टि पूरी तरह से पुलिस वाले के चेहरे पर जम गयी थी और उसके चेहरे के भावों से स्पष्ट था कि वो एक लड़ाई लड़ने के लिये तैयार हो चुका है।

कार चालक भी कार से उतरकर राजकुमार के साथ आकर खड़ा हो गया था, मानों अपना समर्थन जता रहा हो। आस पास लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गयी थी और मामला दिलचस्प होता जा रहा था। चंद्रिका इस पूरे प्रकरण का मज़ा ले रही थी और बालक हनी को भी जैसे इस सबमें लुत्फ आ रहा था।

“आप कौन हैं सर, क्या आप कोई पत्रकार हैं या फिर कोई अफसर?” पुलिस कर्मचारी राजकुमार के बोलने के अंदाज़ और उसकी शारीरिक भाषा को देखकर घबरा गया था। साथ खड़े पुलिस कर्मचारी भी अब सतर्क हो गये थे और लगातार जमा हो रही भीड़ को देखकर कुछ परेशान से दिख रहे थे।

“अभी तो आप मुझे केवल एक आम आदमी समझ कर मेरे प्रश्न का उत्तर दीजिये, भाई साहिब। आवश्यकता पड़ने पर मैं आपकी बात पत्रकारों तथा अफसरों से भी करवा दूंगा”। राजकुमार का निरंतर दृढ़ और गंभीर बना हुआ स्वर पुलिस वालों को और अधिक परेशान करता जा रहा था।

“अब छोड़िये न सर, इतनी छोटी सी बात को बढ़ाने का क्या लाभ? आप ये बताइये आप चाहते क्या हैं?” पुलिस कर्मचारी के स्वर में सौदा करने वाला भाव आ गया था। वो समझ गया था कि इस बात को बढ़ाने से पुलिस का नुकसान होने वाला था।

“केवल इतना कि इन भाई साहिब की गाड़ी को भी भीतर जाने दिया जाये, ताकि ये अपनी बीमार पत्नी को जल्द से जल्द किसी अच्छे अस्पताल ले जा सकें”। राजकुमार ने पुलिस कर्मचारी का इशारा समझते हुये कहा। उसका स्वर अभी भी उतना ही गंभीर था परन्तु अब उसमें सौदा करने वाला भाव आ गया था। जैसे पुलिस वालों को बताना चाह रहा हो कि अगर गाड़ी को अंदर जाने दिया गया तो मामला यहीं रफा दफा हो जायेगा।

“बस इतनी सी बात, ये लीजिये आपका ये काम तो अभी कर देते हैं”। कहते हुये पुलिस कर्मचारी ने अपने जूनियर को इशारा किया तो उसने एकदम से बैरियर उठा दिया।

“जाईये श्रीमान जी, जल्दी से जाकर अपनी पत्नी को ले आईये”। पुलिस कर्मचारी ने कार वाले व्यक्ति की ओर देखते हुए शीघ्रता से कहा जो सारी बात को समझते हुये गाड़ी में ही बैठ रहा था। पुलिस वालों को एक बड़ी मुसीबत सस्ते में ही टलती नज़र आ रही थी।

कार के निकलते ही पुलिस वालों ने बैरियर एक बार फिर से गिरा दिया। कार चलाने वाला व्यक्ति कार को थोड़ा आगे खड़ा करके एक बार फिर कार से उतर आया था। शायद राजकुमार का धन्यवाद करने आया था।

“लीजिये श्रीमान जी, अब तो आपको पुलिस से कोई शिकायत नहीं”। पुलिस कर्मचारी ने राजकुमार की ओर देखकर मुस्कुराते हुये शीघ्रता से कहा। जैसे जल्दी से जल्दी बात को खत्म करना चाहता हो।

“जी बिल्कुल नहीं भाई साहिब। आपका बहुत बहुत धन्यवाद। बस चलते चलते आपको केवल एक बात कहना चाहता हूं”। राजकुमार के स्वर से गंभीरता ग़ायब हो चुकी थी और उसका स्थान अब आत्मीयता ने ले लिया था।

“मैं जानता हूं इस विधायक की इतनी पकड़ है प्रदेश के राजतंत्र में कि आप चाहते भी तो इसे रोक नहीं सकते थे। इसलिये मैं इसे आपकी मजबूरी ही समझूंगा, बेईमानी नहीं। किन्तु जैसे आप दबाव में आकर ऐसे ताकतवर लोगों के लिये कानून को ढीला कर देते हैं, वैसे ही कभी कभी अपने पद का सदुपयोग करते हुये किसी ज़रुरतमंद की सहायता करने के लिये भी आप कानून को अपनी इच्छा से ढ़ीला कर दिया कीजिये। आपको बड़ा सुकून मिलेगा और आम आदमी के मन में पुलिस के प्रति आदर भी बना रहेगा”।

बात को पूरा करते ही राजकुमार ने बिना किसी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करते हुये वापिस मुड़कर मॉल रोड की ओर चलना शुरु कर दिया था। पास ही खड़े चंद्रिका और हनी भी राजकुमार के साथ हो लिये। पुलिस कर्मचारी अवाक खड़ा राजकुमार को जाते हुए देख रहा था और सोच रहा था कि कितने सामान्य स्वर मे ये व्यक्ति कितनी गहरी बात कह गया था उससे।

“आपका बहुत धन्यवाद भाई साहिब, आपने समय पर आकर बहुत सहायता कर दी मेरी”। कार वाले सज्जन ने राजकुमार की ओर आते हुये शीघ्रता से कहा। उनका स्वर बता रहा था कि उन्हें जाने की जल्दी थी, पर वो राजकुमार का धन्यवाद किये बिना जाना नहीं चाहते थे शायद।

“आप शीघ्रता से जाकर अपनी पत्नी को देखिये, भाई साहिब। और हां, इस धन्यवाद के वास्तविक अधिकारी तो मेरे गुरू वरूण शर्मा हैं जिन्होनें सालों पहले मुझे मुसीबत में फंसे हर व्यक्ति की यथासंभव सहायता करने का पाठ पढ़ाया था”। राजकुमार के स्वर में प्रधान जी के लिये अपार आदर झलक रहा था।

“आपको और आपके गुरु वरुण शर्मा जी दोनों को मेरा धन्यवाद और आपके गुरु जी को मेरा प्रणाम, जिनकी दी हुयी शिक्षा के कारण आपने आज मेरी सहायता की है। अच्छा अब चलता हूं भाई साहिब, मुझे पहले ही देर हो चुकी है, इसलिय क्षमा करते हुये जाने की इजाजत दीजिये”। तत्परता के साथ उन सज्जन ने कहा।

“अवश्य भाई साहिब, आप शीघ्र जाईये”। राजकुमार के कहते ही कार वाले सज्जन ने एक बार फिर राजकुमार का धन्यवाद किया और गाड़ी में बैठ कर अपने होटेल की ओर चल दिये।

“अब अगर आपका जन सहायता का मिशन पूरा हो गया हो तो थोड़ी सैर कर ली जाये, प्रधान जी? फिर आज तो मौसम भी बहुत अच्छा है”। चंद्रिका ने राजकुमार को छेड़ने के लिये जानबूझकर उसे ‘प्रधान जी’ कहकर बुलाते हुये कहा।

“ये आप पापा को प्रधान जी कहकर क्यों बुला रहीं हैं मामा? प्रधान अंकल तो जालंधर में हैं?” 11 वर्षीय बालक हनी ने जैसे कुछ न समझ आने वाले अंदाज़ में पूछा।

“वो इसलिये बेटा कि जब जब तेरे प्रधान अंकल की सिखायी हुयी शिक्षा पर चलते हुये मैं अपना मज़ा भूलकर किसी और की सहायता करने की कोशिश करता हूं, तो तुम्हारी मां मुझे प्रधान जी कहकर बुलाती हैं। ये तुम्हारी मामा का प्रधान जी को याद करने का तरीका है”। राजकुमार ने भी चंद्रिका को छेड़ते हुए कहा।

“अब बातों में ही सारा समय निकालना है या कुछ और भी करना है? आपके बेटे ने सॉफ्टी खाने की फरमाईश की है”। चंद्रिका के कहते ही हनी को अपनी सॉफ्टी वाली बात याद आ गयी जो इस सारे प्रकरण में वो भूल ही गया था।

“अभी पूरी कर देते हैं इसकी ये इच्छा, श्रीमति जी”। कहते हुये राजकुमार ने तेजी से सॉफ्टी वाली दुकान की ओर चलना शुरु किया तो चंद्रिका और हनी भी उसके पीछे पीछे हो लिये।

पांच मिनट के बाद जब तीनो मॉल रोड पर चल रह थे तो राजकुमार ने सॉफ्टी खा रहे हनी से पूछा। “कैसी है सॉफ्टी, हनी बेटा?”

“सॉफ्टी तो बहुत अच्छी है पापा, पर आपने मुझे प्रॉमिस किया था कि आप मुझे प्रधान अंकल की और भी कहानियां सुनायेंगे। आज प्रधान अंकल की कोई कहानी सुनाईये न, पापा”। हनी ने बालहठ वाले अंदाज़ में कहा।

“जरुर सुनाउंगा बेटा, इस ट्रिप में जब भी समय मिला, जरूर सुनाउंगा”। राजकुमार ने हनी को आश्वासन देते हुये प्रेम भरे स्वर में कहा।

“फिर तो बहुत मज़ा आयेगा, पापा। मुझे प्रधान अंकल की कहानियां बहुत अच्छी लगतीं हैं”। हनी ने एक दम से खुश होते हुये कहा तो राजकुमार और चंद्रिका दोनो ही मुस्कुरा दिये।

तीनों मॉल रोड पर आगे बढ़ते जा रहे थे।

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक भाग 02

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ॐ नम: शिवाय

इस उपन्यास में लिखा हुआ प्रत्येक शब्द केवल भगवान शिव की कृपा से ही संभव हुआ है, और ये उपन्यास केवल उनकी कृपा का ही परिणाम है।

ॐ नम: शिवाय

 Arun Sharma Pappu

स्वर्गीय श्री अरुण शर्मा 1958-2015

                                                                             श्रद्दांजलि

यह उपन्यास मेरे परम मित्र स्वर्गीय श्री अरुण शर्मा जी को श्रद्दांजलि है, जिन्होंने अपना समस्त जीवन समाज सेवा के कार्य में लगा दिया। अरुण जी के मन में दीन दुखियों को देखते ही सहायता करने का प्रबल भाव उमड़ आता था और अपने व्यवसाय या परिवार की चिंता किये बिना उन्होंने अपनी अंतिम सांस तक दुखियों की सहायता की।

अपने इस जीवनकाल में मैने बहुत समय उनके सानिध्य में व्यतीत किया है और इस समय के दौरान मैने उनसे जीव और जीवन के ऐसे सच्चे मूल्यों को सीखा है, जिन्होंने मेरे जीवन को प्रकाशमय कर दिया है। भगवान शिव की अवश्य ही बहुत विशेष कृपा है मेरे ऊपर, जो ऐसे पुण्यात्मा के साथ मेरा इतना आत्मीय संबंध संभव हो पाया है।

अरुण जी को अपनी आत्मा की सदगति के लिये हालांकि किसी की प्रार्थना की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उनके द्वारा किये गये करोड़ों पुण्य और संकटमोचक भगवान बजरंग बली की उनपर स्पष्टतया विदित कृपा ही उन्हें दैवीय लोकों में ले जाने के लिये पूरी तरह से समर्थ है। फिर भी उनका ये मित्र अपने इष्ट भगवान शिव से प्रार्थना करता है कि वे इस पुण्यात्मा को सदा अपनी विशेष कृपा की छाया में रखें।

ॐ नम: शिवाय

हिमांशु शंगारी

 ध्यानार्थ

इस उपन्यास के सभी पात्र पूरी तरह से काल्पनिक हैं और इनका किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। इस उपन्यास के किसी भी पात्र या घटना का किसी के साथ संबंध होना मात्र एक संयोग से अधिक कुछ नहीं है।

 

संकटमोचक-02-अध्याय-01

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संकटमोचक-02-अध्याय-27

अगले भाग की झलकी

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक अध्याय 34

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दूसरे अध्याय पढ़ने के लिये यहां क्लिक कीजिये।

प्रधान अंकल कह रहे थे कि आप लोगों की बहुत सी कहानियां है, पापा। कोई और कहानी सुनाओ न। अगले दिन गाड़ी में बैठा हनी राजकुमार से कह रहा था। गाड़ी तेज गति से चंडीगढ़ की ओर दौड़ी जा रही थी।

आज नहीं बेटा, फिर कभी। पर सुनाऊंगा जरूर, तुम्हारे प्रधान अंकल की बहुत सी और कहानियां सुनाऊंगा तुम्हे। राजकुमार ने प्रेम भरे स्वर में हनी से कहा और अपनी सीट की बैक से सिर लगा कर आंखे बंद कर लीं। उसके चेहरे पर बार बार एक अजीब सी खुशी के भाव आ रहे थे। चंद्रिका समझ चुकी थी कि राजकुमार का मन अभी भी प्रधान जी के ख्यालों में ही खोया हुआ है।

गाड़ी निरंतर अपनी मंज़िल की ओर भागती जा रही थी।

 

दास्तान जारी रहेगी।

 

अगले भाग में पढ़िये

भारत के सूचना और प्रसारण मंत्री तरुण जेतली दिल्ली स्थित अपने आफिस में बैठे हुये बड़े ध्यान से अपने सामने पड़े हुये कुछ पेपर्स को देख रहे थे।

तरुण जेतली सत्ताधारी पार्टी के बहुत जाने माने नेता थे और माननीय प्रधानमंत्री के बहुत खास लोगों में से एक थे। उनकी गिनती देश के बहुत इंटेलिजेंट और इंटेलैक्चुअल नेताओं में होती थी।

ये मामला तो बहुत बड़ा लगता है। बड़ी हैरानी वाली बात है कि अभी तक इस मामले की उचित जानकारी नहीं थी मुझे। पेपर्स को ध्यान से देखने के बाद तरुण जेतली ने सामने देखते हुये कहा।

हैरानी तो हमें भी इसी बात की है सर, क्योंकि हमारे हिसाब से तो आपको इस मामले की पूरी जानकारी होनी चाहिये थी। सामने लगीं दो कुर्सियों में से एक कुर्सी पर बैठे हुये प्रधान जी ने भेद भरे अंदाज़ में कहा।

व्हाट डू यू मीन, आर यू सेयिंग आई एम इनवॉल्वड़ इन दिस करप्शन…………… इंगलिश में चिल्ला पड़े थे तरुण जेतली।

जस्ट हैव अ लुक एट दीस डॉक्यूमैंटस सर, बिफोर यू रीच ऐनी कॉनक्लूज़न्स। धाराप्रवाह इंगलिश में बोले गये ये शब्द निकले थे प्रधान जी के साथ वाली कुर्सी पर बैठे राजकुमार के मुंह से। कहने के साथ ही एक नयीं फाईल रख दी थी उसने तरुण जेतली के टेबल पर और उसमें से कुछ पेपर्स दिखाने के साथ साथ ही कुछ बताने लग गया था उन्हें।

फाईल में लगे पेपर्स को देखते हुये तरुण जेतली के चेहरे पर चिंता और क्रोध के भाव गहरे होते जा रहे थे और अभी आधी फाईल ही देखी थी उन्होनें कि अपना फोन उठाया और जोर से चिल्ला पड़े।

सैंड द सी ई ओ इन माय रुम ऐट वन्स। ( मुख्य अधिकारी को तुरंत मेरे कमरे में भेजो )

तरुण जेतली के चेहरे पर क्रोध और बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी जबकि उनके सामने बैठे प्रधान जी और राजकुमार के चेहरों पर विजयी मुस्कुराहट आनी शुरु हो गयी थी।

हिमांशु शंगारी