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संकटमोचक 02 अध्याय 18

Sankat Mochak 02
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उसी दिन लगभग चार बजे प्रधान जी और राजकुमार न्याय सेना के कार्यलय में बैठे विचार विमर्श कर रहे थे।

“लगता है बहुत बड़े घपले कर रखे हैं इन लोगों ने दूरदर्शन में, जो इतनी जल्दी योगेश दत्त ने फोन करके समय मांग लिया है मिलने का”। प्रधान जी राजकुमार की ओर देखते हुये मुस्कुरा रहे थे।

“अखबारों ने खबरें भी तो बहुत बड़ी लगाईं हैं, प्रधान जी। इससे अधिकारियों को अंदाज़ा हो गया होगा कि ये मामला तूल पकड़ने वाला है जिसके कारण उन्होंने इस मामले को समय रहते ही दबाने के लिये योगेश दत्त से संपर्क किया होगा। पर क्या आपको पूरा विश्वास है कि योगेश दत्त इसी मामले में बात करना चाहता है? उसने तो केवल मिलने की इच्छा जतायी है फोन पर, और आपके हां करने पर कहा है कि कुछ ही देर में पहुंच रहा है हमारे कार्यालय में”। राजकुमार को योगेश दत्त के बारे में कुछ खास जानकारी नहीं थी जिसके कारण उसने प्रधान जी से ये सवाल पूछा था।

“तुम जानते नहीं योगेश दत्त को, एक नंबर का चालू आदमी है। कहने को तो एक राजनैतिक पार्टी में स्थानीय स्तर का नेता है, पर उसका असल काम बड़े बड़े अधिकारियों के साथ मिलकर सौदेबाजी करना ही है। बिना मतलब कभी नहीं मिलता किसी से, और न ही आज हमसे मिलने आ रहा होगा। देखना, आते ही दो मिनट भी गंवाये बिना सौदेबाजी करनी शुरू कर देगा। हाई प्रोफाइल दलाल है ये योगेश दत्त”। प्रधान जी की बात पूरी होते होते राजकुमार को समझ आ चुका था कि पांच मिनट पहले फोन करने वाले योगेश दत्त की असलीयत क्या है।

“आपके विचार से किस तरह की सौदेबाजी करने की कोशिश करेगा वो?” कहते कहते राजकुमार का दिमाग सक्रिय हो चुका था।

“अपनी चिकनी चुपड़ी बातों में फंसा कर हमे या तो इस केस से हट जाने के लिये कहेगा, या फिर कोई लिहाज़ मांग लेगा कुछ खास अधिकारियों के लिये। बदले में पैसा या दूरदर्शन पर समय समय पर संगठन के कारनामों को प्रमोट करने का लालच देगा। गिने चुने तीर ही रखता है अपने तरकश में और उन्ही का प्रयोग करने में माहिर है वो”। प्रधान जी ने हंसते हुये कहा।

“तो क्या सोचा है आपने, अगर पैसे का लालच दिया उसने तो क्या जवाब देंगें आप?” राजकुमार के चेहरे पर वही जानी पहचानी मुस्कुराहट आ गयी थी, ये सवाल पूछते पूछते।

“ओये क्या मतलब है तेरा कंजर, तुझे पता नहीं चला इतने महीनों में अभी तक। जैसे ही पैसे की बात करेगा, उसे चुपचाप भाग जाने के लिये बोल दूंगा। वरुण शर्मा ने न तो आज तक सौदा किया है अपने ईमान का, और न ही कभी करेगा”। जोश में आकर कहते हुये प्रधान जी राजकुमार की मुस्कुराहट को देखकर सोच में पड़ गये थे। उन्हें पता था कि ये मुस्कुराहट राजकुमार के चेहरे पर तभी आती है, जब किसी बड़ी शैतानी को अंजाम दे रहा होता है वो।

“मत बेचिये अपना ईमान, पर उसकी बोली लगवाने में क्या हर्ज़ है प्रधान जी?” राजकुमार की मुस्कुराहट और गहरी हो गयी थी।

“तू और तेरी ये पहेलियां, दोनों ही मेरी समझ से बाहर हैं। अब जल्दी बोल क्या कहना चाहता है?” मुस्कुराते हुये प्रधान जी राजकुमार की योजना जानने के लिये उत्सुक हो गये थे।

“यही कि जब योगेश दत्त आपके ईमान की बोली लगाये तो उसे एक दम से मना मत कीजियेगा। इस अंदाज़ में सोचकर मना कीजियेगा जैसे आपको लग रहा हो कि वो कम बोली लगा रहा है। मुझे देखना है कि कहां तक बोली लगाता है वो आपके ईमान की”। कहने के बाद चुप हो गया था राजकुमार, पर मुस्कुराहट वैसे ही कायम थी।

“ओये मुझे क्या नौटंकी समझा है तूने जो मैं नाटक करूं तेरा दिल बहलाने के लिये। सीधे सीधे बोल क्या शैतानी आयी है तेरे दिमाग में?” प्रधान जी ने आंखें निकालते हुये कहा, बनावटी क्रोध के साथ।

“इससे हमें दो फायदे होंगे। एक तो हमें ये पता चल जायेगा कि अधिक से अधिक कितना पैसा ऑफर कर सकता है वो इस मामले में। जितना अधिक पैसा, उतना ही बड़ा घपला और उतनी ही बड़ी घबराहट। मतलब ये कि इससे हमें मामले की गहरायी और अफसरों की घबराहट, दोनों का ही पता चल जायेगा, जो आगे की रणनीति बनाने में हमारे काम आयेंगें”। राजकुमार की आंखें चमक रहीं थीं।

“नंबर दो, आपके इस प्रकार मना करने से उन्हें ये मैसेज जायेगा कि शायद पैसा कम था, इसलिये हमने ऑफर नहीं उठाया उनका। अपनी जान बचाने के लिये और अधिक पैसा देने की बात सोच सकते हैं वो लोग, जिससे फिर हमें दो फायदे होंगें। एक तो दूरदर्शन अधिकारियों का ध्यान बंटा रहेगा कि ये विकल्प खुला है उनके सामने, जिससे दूसरे रास्तों पर उतनी एकाग्रता के साथ काम नहीं कर पायेंगे वो, यानि ध्यान बंटा रहेगा उनका। पैसे का ऑफर बड़ा करने की स्थिति में इन लोगों में आपसी मनमुटाव भी हो सकता है, जिसका लाभ भी हमें ही मिलेगा”। अपनी बात पूरी करते हुये कहा राजकुमार ने।

“कोई जरुरी तो नहीं कि उनमें मनमुटाव हो?” प्रधान जी का प्रश्न छोटा मगर उत्तर में उनकी रूचि कहीं बड़ी लग रही थी।

“जरूरी तो नहीं प्रधान जी, पर बहुत संभावना है ऐसा होने की। आम तौर पर हम किसी डिपार्टमैंट के किसी एक अधिकारी के भ्रष्टाचार को निशाना बनाते हैं, पर इस बार मामला अलग तरह का है। एक अधिकारी अपनी जान बचाने के लिये जितना भी पैसा खर्च कर सकता है और खर्च करना चाहता है, वैसा प्रयास करता है। क्योंकि कोई दूसरा नहीं हैं इस खर्च को बांटने वाला, विवाद होने का सवाल ही नहीं पैदा होता”। कहकर चुप हो गया था राजकुमार।

“और इस मामले में क्योंकि कई अधिकारी शामिल हैं, ये खर्चा हिस्सों में बंटेगा। इसलिये कोई अधिकारी वो हिस्सा देने को मानेगा और कोई नहीं मानेगा। मैं तेरी बात समझ गया शैतान, दूर की सोचता है तू”। प्रधान जी ने राजकुमार की बात को पूरा करते हुये कहा।

“आज की सौदेबाजी के लिये तो योगेश दत्त को केवल उतना ही पैसा ऑफर करने के अधिकार दिये गये होंगें प्रधान जी, जो सब अधिकारी आसानी से बांट सकें। यानि की पैसे के खर्च के बंटवारे पर सहमति होने के बाद ही भेजा जा रहा होगा योगेश दत्त को हमारे पास। किन्तु भविष्य में अधिक या बहुत अधिक पैसे का मामला आने पर कोई अधिकारी मानेगा और कोई नहीं। ऐसी स्थिति में फूट तो पड़ेगी ही, जिसका लाभ हमें मिलेगा”। राजकुमार ने स्थिति को पूरी तरह से स्पष्ट करने के लिये कहा।

“उत्तम विचार है पुत्तर जी, चलो फिर आज ये तमाशा भी करके देखते हैं”। कहते कहते हंस दिये थे प्रधान जी।

लगभग पांच मिनट बाद टीटू ने बताया कि योगेश दत्त मिलने आये हैं तो उसे चाय का प्रबंध करने के लिये कहकर प्रधान जी ने योगेश दत्त को अंदर बुला लिया।

“शहर के सबसे बड़े संगठन और शहर के सबसे बड़े प्रधान को योगेश दत्त का सलाम”। पहली ही बात चापलूसी के साथ शुरू की थी, योगेश दत्त ने।

“क्या बात है योगेश जी, आज बड़ी तारीफ हो रही है?” मामला क्या है?” प्रधान जी ने योगेश दत्त को उकसाने वाले अंदाज़ में कहा।

“मामला क्या होना है प्रधान जी, कल की प्रैस कांफ्रैंस के बाद हड़कंप मचा हुआ है दूरदर्शन के अंदर। सब अधिकारी अपनी अपनी जान छुड़ाने का रास्ता ढूंढ रहे हैं”। पूरी चाटुकारिता के अंदाज़ में कहा योगेश दत्त नें।

“तो आप बता देते न कोई रास्ता, योगेश जी। सारे शहर में अफसरों को रास्ते बताने में आपसे अच्छा कोई है भला?” प्रधान जी ने योगेश दत्त को छेड़ते हुये कहा।

“अपना तो उद्देश्य ही पूरे जगत का कल्याण है, प्रधान जी। अगर दो लड़ने वाले पक्षों के बीच में आपसी रजामंदी से इस प्रकार सुलह करवा दी जाये जिससे दोनों का लाभ हो, तो लड़ाई से कहीं अच्छी है ऐसी सुलह”। मक्कार अंदाज़ में मुस्कुराते हुये कहा योगेश दत्त ने।

“आपकी ये बात सुनने में तो ठीक ही लगती है, योगेश जी”। एक बार फिर प्रोत्साहित किया प्रधान जी ने योगेश दत्त को।

“केवल सुनने में ही नहीं प्रधान जी, करने में भी बहुत व्यवहारिक है। अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं एक ऐसी खुशखबरी सुना सकता हूं जिससे आपका बहुत लाभ हो सकता है”। फिर उसी मक्कारी के साथ कहा योगेश दत्त ने।

“आप पहले चाय लीजिये और फिर आराम से कहिये जो कहना है”। प्रधान जी ने टेबल पर आ चुकी चाय की ओर इशारा करते हुये कहा।

“मैं तो केवल ये कहना चाहता हूं प्रधान जी, कि दूरदर्शन अधिकारी बहुत घबराये हुये हैं और अपनी जान बचाने के लिये कुछ भी करने को तैयार हैं”। चाय की चुस्की लेते हुये तेजी से कहा योगेश दत्त ने।

“और क्या है इस कुछ भी का मतलब, योगेश जी?” प्रधान जी जैसे सब समझ कर भी अंजान बन रहे थे।

“आप तो सब समझते ही हैं, प्रधान जी”। कहते हुये योगेश दत्त ने आंखों ही आंखों में प्रधान जी को राजकुमार की कमरे में उपस्थिति का अहसास दिलाया।

“इसकी चिंता मत करो योगेश जी, ये तो अपना पुत्तर है। खुल के कहो जो कहना चाहते हो”। प्रधान जी ने योगेश दत्त का इशारा समझते हुये कहा। राजकुमार ने अपना चेहरा इस तरह सपाट बना रखा था जैसे इस सबमें कोई रूचि ही न हो उसकी।

“बहुत पैसा दे सकते हैं ये दूरदर्शन अधिकारी, प्रधान जी”। योगेश दत्त ने चारा डालते हुये कहा।

“कितना पैसा दे सकते हैं अपनी जान बचाने के लिये ये लोग, योगेश जी?” प्रधान जी ने झूठी उत्सुकुता दर्शाते हुये कहा।

“दस से पंद्रह लाख तो आराम से दे देंगें, बाकी आप कहो तो ज़्यादा की मांग भी की जा सकती है”। योगेश दत्त खुलकर सौदेबाजी पर आ गया था।

“आप तो जानते ही हैं कितना समय और प्रयास लगा है न्याय सेना को इस मुकाम पर लाने में। दस पंद्रह लाख के लिये क्या इस सब को दांव पर लगा देना ठीक होगा, योगेश जी?” प्रधान जी ने भी अपना चारा फेंकते हुये कहा।

“और अगर ये रकम पच्चीस लाख हो जाये तो, मुश्किल तो होगा पर मना सकता हूं मैं उन्हें इस रकम के लिये भी?” आंखें इस प्रकार चमक रहीं थीं योगेश दत्त की, जैसे शिकार को अपने जाल में फंसते देखकर शिकारी की आंखें चमकती हैं।

“पच्चीस लाख रकम तो खासी है, पर मेरे ख्याल में हमें इस मामले में जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिये योगेश जी। कुछ दिन इंतज़ार करके तेल और तेल की धार देखते हैं, फिर कोई फैसला लेते हैं”। अपने मतलब की सूचना मिलते ही प्रधान जी ने एकदम से किसी गुब्बारे की तरह हवा निकाल दी थी योगेश दत्त के मंसूबों की।

“हे हे हे, कोई बात नहीं प्रधान जी, आप जितना समय चाहे ले लीजिये। बस एक विनती है आपके इस छोटे भाई की। जब भी आपका विचार बने इस मामले में, सबसे पहला फोन मुझे ही कीजियेगा। दो घंटे में सब कुछ फिक्स करवा दूंगा”। अपनी बात न बनते देख एक और चारा फेंका योगेश दत्त ने।

“ये वादा रहा योगेश जी, इस मामले में जब भी ये रास्ता लेना होगा, आप ही को फोन किया जायेगा”। प्रधान जी ने इस तरह का मुंह बनाते हुये कहा जैसे अभी भी पैसा लेने या न लेने के बारे में सोच रहे हों।

“ये तो आपने एहसान कर दिया मुझपर, प्रधान जी। अच्छा अब जाने की इजाज़त दीजिये”। कहते कहते ही योगेश दत्त ने एक बड़े घूंट में खत्म कर दी अपनी चाय, और उठकर खड़ा हो गया। उसके चेहरे पर चापलूसी के भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे।

“तो ठीक है योगेश जी, फिर मिलते हैं”। प्रधान जी के इतना कहते ही योगेश दत्त कमान से निकले हुये तीर की तरह कार्यालय से बाहर चला गया।

“है न दिलचस्प किरदार, पुत्तर जी”। योगेश दत्त के जाते ही प्रधान जी राजकुमार की ओर देखकर मुस्कुराये।

“पूरा व्यापारी है प्रधान जी, आते ही काम की बात शुरू कर दी और काम की बात खत्म होते ही उठकर चला गया। जैसा आपने कहा था बिल्कुल वैसा ही है”। कहता कहता राजकुमार तेजी से कुछ सोचता जा रहा था।

“तो क्या नतीजा निकाला, पुत्तर जी। पच्चीस लाख रुपये बहुत होते हैं, कोई बहुत ही बड़ा मामला लगता है”। प्रधान जी ने कुछ सोचते हुये कहा।

“आपका अनुमान बिल्कुल ठीक है प्रधान जी, ये मामला बहुत बड़ा है। पहली ही मुलाकात में पच्चीस लाख देने को मान गया। मेरे ख्याल से अगर इन्हें हमारे पास पड़े सूबुतों का भी पता चल जाये तो पचास लाख से एक करोड़ देने को भी मान जायेंगे। इतने पैसे देने का अर्थ केवल एक ही है कि बहुत बड़े घपले करते हैं और बहुत कमाई है इन लोगों की”। राजकुमार ने प्रधान जी की बात का समर्थन करते हुये कहा।

“तो अब आगे क्या करना………………………………” अधूरे ही रह गये थे प्रधान जी के शब्द, और कारण था उनके मोबाइल फोन की बज रही घंटी।

“अनिल खन्ना का फोन है”। कहते हुए प्रधान जी ने फोन रिसीव किया और अनिल खन्ना से बात करने लगे।

“तुम्हें बुलाया है, आज ही, एक मिनट होल्ड करो अनिल जी”। कहते हुये प्रधान जी ने राजकुमार की ओर देखा जो शायद उनके बीच होने वाली बातचीत का अंदाज़ा लगा रहा था।

“दूरदर्शन के एक बड़े अधिकारी ने अनिल खन्ना से आकर मिलने के लिये कहा है उसके कार्यालय में। थोड़ा घबराया हुआ है और पूछ रहा है क्या करना है?” प्रधान जी के कहते कहते ही राजकुमार तेजी से जोड़ तोड़ करने लग गया था।

“अगर आपकी इजाज़त हो तो मैं कुछ बात करना चाहता हूं, अनिल खन्ना से”। राजकुमार ने कुछ सोचते हुये कहा।

“जरूर करो, पुत्तर जी”। कहने के साथ ही प्रधान जी ने अनिल खन्ना को राजकुमार से बात करने के लिये कहा और फोन राजकुमार को दे दिया।

“घबराने की कोई जरूरत नहीं है अनिल जी, बस मेरे कुछ सवालों का जवाब दीजिये। किसने बुलाया है आपको?” राजकुमार ने अनिल खन्ना को हिम्मत बंधाने के साथ ही दाग़ दिया था अपना पहला सवाल।

“जी, दूरदर्शन के चीफ प्रोग्राम प्रोडूयसर विजय बहल ने बुलाया है। अभी कुछ देर पहले ही फोन आया था और अपने कार्यालय में शीघ्र से शीघ्र मिलने के लिये कहा है मुझे”। तेजी से उत्तर दिया अनिल खन्ना ने, कुछ घबरायी हुयी आवाज़ में।

“क्या पहले भी बुलाया है इसने कभी आपको?” राजकुमार का अगला प्रश्न तैयार था।

“जी बहुत बार, बल्कि प्रोग्राम प्रोडयूसर होने के कारण अक्सर यही बुलाता है मुझे”। अनिल खन्ना ने तुरंत जवाब दिया।

“आम तौर पर कब बुलाता है ये आपको?” उत्तर सुनते ही अगला प्रश्न कर दिया था राजकुमार ने।

“केवल दो ही सूरतों में बुलाता है, या तो कोई नया प्रोग्राम शुरू करना हो जिसमें मेरे लिये कोई चांस हो, या फिर पहले से ही कोई ऐसा प्रोग्राम चल रहा हो जिसमें मेरा भी रोल हो”। एक सैकेंड से भी कम समय सोचने के बाद जवाब दिया अनिल खन्ना ने।

“क्या अभी ऐसा कोई प्रोग्राम चल रहा है, जिसमें आपका रोल हो?” एक और प्रश्न आ गया था फौरन ही, राजकुमार की ओर से।

“जी पिछले दो महीने से किसी प्रोग्राम में काम नहीं किया मैने”। कुछ सोचते हुये कहा अनिल खन्ना ने।

“हम्म्म्म्म…………………फिर तो तय है अनिल जी, कि उसने आपको इसी मामले में बुलाया है”। राजकुमार की इस बात ने प्रधान जी की उत्सुकुता और अनिल खन्ना की परेशानी, दोनों ही बढ़ा दीं थीं।

“तो क्या आपका मतलब है, इन्हें पता चल चुका है, मगर कैसे?” घबराये हुये स्वर में पूछा अनिल खन्ना ने।

“इस कैसे का जवाब तो नहीं हैं मेरे पास अभी, पर आपकी समस्या का समाधान जरूर है, ध्यान से सुनिये। अगर वो आपसे पूछे कि क्या आप प्रधान जी को जानते हैं, तो कहियेगा कि बहुत वर्षों से आपके संबंध हैं उनके साथ। अगर वो ये पूछे कि क्या आप हाल ही में उनसे मिलने उनके कार्यालय गये थे और क्यों गये थे, तो कहियेगा कि प्रधान जी ने फोन करके बुलाया था और मेरे वहां जाने पर दूरदर्शन में फैले भ्रष्टाचार के बारे में मुझे कुछ जानकारी होने की बात पूछी थी, जिससे मैने इन्कार कर दिया”। राजकुमार की बात पूरी होते होते प्रधान जी सबकुछ समझ कर प्रशंसा की दृष्टि से राजकुमार की ओर देख रहे थे।

“जी समझ गया, बहुत अच्छे जवाब बताये हैं आपने”। कहते हुये अनिल खन्ना अब कुछ संभल गया लगता था।

“लीजिये अब प्रधान जी से बात कीजिये”। कहते हुए राजकुमार ने फोन प्रधान जी को पकड़ा दिया था।

“अनिल जी, इस मुलाकात के बाद फोन करके बताईयेगा और हां, अब के बाद इस मामले में फोन राजकुमार के मोबाइल पर ही कीजियेगा। मेरे साथ में न होने पर आप इस मामले में कोई भी बात राजकुमार से कर सकते हैं”। कहने के साथ ही दूसरी ओर से अनिल खन्ना का अभिवादन सुनने के बाद फोन डिस्कनैक्ट कर दिया प्रधान जी ने।

“इतनी जल्दी कैसे पता चल गया इन लोगों को कि अनिल खन्ना हमारे साथ मिला हुआ है?” प्रधान जी ने आश्चर्य भरे अंदाज़ में राजकुमार की ओर देखते हुये कहा।

“मेरे ख्याल से इन्हें अभी केवल ये पता चला है कि अनिल खन्ना हमसे मिलने आया था, शायद इससे अधिक कुछ नहीं। इसलिये वो उससे पूछताछ करके चैक करना चाहते हैं कि वो हमसे मिला हुआ है या नहीं। अगर उन्हें पक्का यकीन होता कि वो हमारे साथ मिला हुआ है तो फिर उसे बुलाने का कोई मतलब नहीं रहा जाता, वो केवल चैक करना चाहते हैं इसे। पुराना प्रोग्राम कोई है नहीं अनिल खन्ना के पास और नया प्रोग्राम शुरू करने की तो ये लोग सोच भी नहीं सकते इस स्थिति में। मतलब इसी काम से बुलाया है”। राजकुमार ने अपनी बात को तोलते हुये कहा।

“हां तेरी ये बात भी ठीक है। तो क्या इसीलिये तूने उसे मेरे साथ संबंध होने की और दफतर आने की बात मान जाने के लिये कहा था?” प्रधान जी ने जैसे सबकुछ समझते हुये भी पुष्टि करने के इरादे से पूछा।

“बिल्कुल यही कारण था, प्रधान जी। एक बात तो पक्की है कि उन्हें ये पता है कि अनिल खन्ना हमारे पास आया था। ये बात भी पता करनी मुश्किल नहीं होगी कि उसके आपके साथ पुराने संबंध हैं। इसीलिये मैने उसे इन दोनों बातों का जवाब हां में देने के लिये कहा था जिससे उन्हें उसके सच्चा होने का यकीन हो जाये”। राजकुमार ने प्रधान जी के विचार का समर्थन करते हुये कहा।

“और उसी यकीन के चलते वो लोग उसका ये झूठ भी मान लें कि वो हमारे पास नहीं आया था बल्कि हमने बुलाया था”। प्रधान जी को अब सब कुछ साफ साफ समझ आ गया था।

“बिल्कुल प्रधान जी, ये बात तो केवल आप और अनिल खन्ना ही जानते हैं कि किसने किसको बुलाया था। कार्यालय में हम लोगों की क्या बात हुयी थी, इसे भी केवल हम तीन लोग ही जानते हैं। इसका अर्थ ये कि इन दोनों बातों को झूठ साबित नहीं कर पायेंगे वो लोग”। राजकुमार का दिमाग लगातार जोड़ तोड़ करने में लगा हुआ था।

“कुछ ज़्यादा ही घबरा गये लगते हैं ये लोग, जो एक साथ कई मोर्चे खोल दिये हैं”। प्रधान जी को शायद इस खेल में मज़ा आना शुरू हो गया था।

“मेरे ख्याल से अडवानी ने आज मीटिंग बुलायी होगी इस मामले में, और अपने अधिकारियों को चुने हुये कामों पर लगाया होगा। इसका अर्थ कि दूसरी ओर से भी खेल योजना बना कर खेला जा रहा है। विजय बहल ने अनिल खन्ना को फोन किया है, इसका अर्थ वो अवश्य होगा इस मीटिंग में। आपके विचार में योगेश दत्त के सबसे गहरे संबंध किसके साथ हैं दूरदर्शन में, प्रधान जी?” राजकुमार ने प्रधान जी की ओर देखकर कुछ हिसाब लगाते हुये कहा।

“ये तो मुझे भी नहीं पता, पुत्तर जी। दूरदर्शन से कभी कम ही वास्ता पड़ा है मेरा”। कहते हुये प्रधान जी किसी सोच में पड़ गये थे।

“लेकिन मेरे पास एक आदमी है जिसे पता हो सकता है, लगता है अब अपने नये दोस्तों को आज़माने का समय आ गया है”। कहते कहते राजकुमार प्रधान जी की ओर देखकर मुस्कुराया और अपने मोबाइल से एक नंबर डायल कर दिया।

“नमस्कार भाई साहिब, कैसे हैं आप?” राजकुमार के इतना कहते ही प्रधान जी को समझ गये कि राजकुमार ने यूसुफ आज़ाद को फोन लगाया है।

“मैं बिल्कुल ठीक हूं, आप सुनाईये। आज तो खूब छापा है सब अखबारों ने न्याय सेना की प्रैस कांफ्रैंस को। दूरदर्शन के अंदर भूचाल आया हुआ है। अभी तक सिफारिश नहीं आयी कोई आप लोगों को, इस मामले से हटने की?” दूसरी ओर यूसुफ आज़ाद ही थे जो राजकुमार को छेड़ रहे थे।

“सिफारिश के साथ साथ पैसा भी आया था, पर फिलहाल हमने लेने से मना कर दिया है, भाई साहिब। एक बात पूछनी थी आपसे, क्या आप योगेश दत्त को जानते हैं?” राजकुमार ने काम की बात पर आते हुये कहा।

“बिल्कुल जानते हैं, भ्रष्ट अधिकारियों का दलाल है। दूरदर्शन में भी मनजिन्द्र जौहल के साथ……………………। ओह तो ये बात है, आपके पास भेजा गया था इसे”। आज़ाद ने जैसे अपनी ही कोई पहेली हल कर ली थी और राजकुमार के लिये एक पहेली खड़ी कर दी थी।

“क्या बात है भाई साहिब, मुझे भी बताईये न। और हां, आपकी बात बिल्कुल ठीक है, अभी अभी उठकर गया है योगेश दत्त। सौदेबाजी करने आया था”। राजकुमार की उत्सुकुता बढ़ गयी थी।

“दूरदर्शन से मेरे एक सूत्र ने खबर दी है कि आज सुबह अडवानी ने तीन बड़े अधिकारियों के साथ मीटिंग की है, जिनके नाम विजय बहल, मनजिंदर जौहल और सुरिंदर सिंह हैं। मीटिंग के बाद से ही ये सारे अधिकारी रोज़मर्रा के कामों से हटकर कुछ अलग ही कर रहे हैं। दोपहर के समय योगेश दत्त गया था मनजिंद्र जौहल से मिलने………” अपनी बात को अधूरा ही छोड़ दिया था आज़ाद ने।

“और उसी मुलाकात में कहा गया होगा इसे हमसे सौदेबाजी करने के लिये। तो सुरिंदर सिंह भी शामिल है इस मामले में”। राजकुमार ने भी अपनी पहेली को हल करते हुये कहा।

“सुरिंदर सिंह भी शामिल है? इसका मतलब आपको पहले ही पता चल चुका है कि विजय बहल भी शामिल है इस मामले में?” आज़ाद के इतना पूछते ही राजकुमार समझ चुका था कि उसने केवल सुरिंदर सिंह का ही नाम लिया था, विजय बहल का नहीं। आज़ाद जैसे तेज़ दिमाग वाले व्यक्ति को समझने में देर नहीं लगी कि विजय बहल के नाम पर कोई हैरानी नहीं हुयी उसे, जिसका मतलब उसे पहले ही पता था उसके बारे में।

“आपका अंदाज़ा बिल्कुल ठीक है भाई साहिब, विजय बहल ने इस मामले में कुछ कलाकारों से संपर्क किया है। उन्हीं में से एक कलाकार ने हमें बताया है”। राजकुमार ने आज़ाद के अनुमान की पुष्टि करते हुये कहा।

“तो फिर सुरिंदर सिंह को भी जरूर दिया गया होगा कोई मिशन, और खुद अडवानी भी लगा होगा किसी मिशन पर। इस खेल में मज़ा आने वाला है। आप और हम शायद इसे अकेले अकेले खेल कर आसानी से नहीं जीत पायेंगे, इसलिये हर महत्वपूर्ण सूचना को एक दूसरे के साथ शेयर करना ही उचित होगा। क्या कहते हैं आप?” आज़ाद ने अपना प्रस्ताव रखते हुये कहा।

“जी बिल्कुल ठीक है आपकी बात, आगे से यही होगा। जिसके पास भी कुछ महत्वपूर्ण होगा इस मामले में, वो दूसरे को बता देगा”। राजकुमार ने फौरन आज़ाद की बात का समर्थन किया।

“तो ठीक है, फोन रखता हूं अब”। कहने के साथ ही बिना किसी विशेष औपचारिकता के फोन काट दिया आज़ाद ने।

“अडवानी के अलावा तीन और अधिकारी लगे हुये हैं इस काम पर, प्रधान जी। इनके नाम हैं विजय बहल, मनजिंद्र जौहल और सुरिंदर सिंह। योगेश दत्त के साथ मनजिंद्र जौहल डील कर रहा है”। राजकुमार ने प्रधान जी की ओर देखते हुये कहा।

“ये आज़ाद तो बड़े काम के आदमी लगते हैं, पुत्तर जी। इस मामले पर बड़ी पैनी नज़र बना कर रखी हुयी है उन्होंने”। प्रधान जी ने यूसुफ आज़ाद की तारीफ करते हुये कहा।

“आपने बिल्कुल ठीक कहा प्रधान जी, उन्होंने इस मामले में हर महत्वपूर्ण सूचना शेयर करने का प्रस्ताव रखा था जिसे मैने स्वीकार कर लिया है”। कहते हुये राजकुमार ने प्रधान जी की ओर अपने इस फैसले के सही होने की पुष्टि करने के इरादे से देखा।

“ये बहुत अच्छा किया तुमने पुत्तर जी, आज़ाद जैसा साथी मिलने से इस मामले में हमारा काम कहीं आसान हो जायेगा। उनसे समय समय पर बात करते रहना इस मामले में”। प्रधान जी ने प्रसन्नता के साथ कहा।

“अब क्या प्रोग्राम है, प्रधान जी?” राजकुमार ने प्रधान जी की ओर देखते हुये कहा।

“फिलहाल तो अनिल खन्ना के फोन का इंतज़ार करते हैं, फिर आगे का प्रोग्राम तय करेंगे। तब तक कुछ खाने के लिये मंगवा लेते हैं। आज कोई चाईनीस स्नैकस मंगवाते हैं फिर, बड़े दिन हो गये खाये हुये। क्या कहते हो, पुत्तर जी?” प्रधान जी के मुंह में कहते कहते ही पानी आना शुरू हो गया था।

“उत्तम विचार है प्रधान जी, मैं अभी इंतजाम करवाता हूं”। कहते हुये मुस्कुरा दिया था राजकुमार, प्रधान जी के चेहरे के भाव देखकर। जीवन का पूरा मज़ा लेने में विश्वास रखते थे प्रधान जी और हर पल को पूरी तरह से जीने की कला में माहिर थे। राजकुमार ने इन चार महीनों में प्रधान जी को कभी उदास नहीं देखा था, हर समय हंसने और मौज करने का कोई न कोई कारण ढ़ूंढ ही लेते थे। गंभीर से गंभीर समय को भी हल्का बना देने की अदभुत कला थी उनमें। स्नैकस आर्डर करते हुये राजकुमार का मन इन्हीं बातों में खोया हुआ था।

लगभग दो घंटे बाद राजकुमार के मोबाइल की घंटी बजी और स्क्रीन पर अनिल खन्ना का नाम फ्लैश हुआ। फोन के दूसरी ओर से अनिल खन्ना के बोलने की पुष्टि करने के बाद राजकुमार ने फोन प्रधान जी को दे दिया।

“नमस्कार प्रधान जी, आप लोगों का अंदाज़ा बिल्कुल ठीक था। इन लोगों को कहीं से पता चल गया है कि मैं आपसे मिलने आया था। लगभग वही सवाल पूछे थे जो आप लोगों ने बताये थे और मैने वही उत्तर दिये जो मुझे समझाये गये थे। उन्हें केवल शक था मुझ पर, इसीलिये मुझसे मिलकर किसी नतीजे पर पहुंचना चाहते थे। मेरे ख्याल से मेरे जवाबों से संतुष्ट था विजय बहल”। अनिल खन्ना ने प्रसन्न स्वर में कहा।

“और कोई खास सवाल पूछा उसने?” प्रधान जी ने अनिल खन्ना की बात सुनने के बाद कहा। प्रधान जी के संकेत पर राजकुमार ने भी अपना कान फोन से चिपका दिया था जिससे वो भी सारी बात सुन सके।

“जी बस ये पूछा था कि मेरे अलावा और कौन कौन से कलाकार जानते हैं आपको? मैने कह दिया कि इस शहर के छोटे से छोटे कलाकार से लेकर बंस राज बंस तक सबके संबंध हैं आपके साथ”। अनिल खन्ना ने प्रधान जी की बात का जवाब दिया।

“अरे अच्छा याद दिलाया, बंस भाई कहां रहता है आजकल? बड़ी देर से कोई बात नहीं हुयी उससे”। प्रधान जी ने जैसे कुछ याद करते हुये कहा।

“जी विदेश दौरे पर गये हुये हैं आजकल वो, शायद अगले हफ्ते आ जायेंगे”। अनिल खन्ना ने फौरन जवाब दिया प्रधान जी के सवाल का।

“और कुछ विशेष नोट किया हो आपने इस मुलाकात में?” प्रधान जी ने वापिस काम की बात पर आते हुये कहा।

“जी बस कुछ परेशान और सतर्क लग रहा था वो। मेरे चेहरे को इस तरह से देखता रहा सारा समय, जैसे लगातार कुछ पढ़ने की कोशिश कर रहा हो”। अनिल खन्ना ने कुछ पल सोचने के बाद कहा।

“करने दीजिये उसे कोशिश, कलाकारों के चेहरे को पढ़ना कोई आसान काम थोड़े ही है”। प्रधान जी ने विनोदी स्वर में कहा और फिर औपचारिक बातचीत के बाद फोन डिस्कनैक्ट कर दिया।

“तुम्हारी बात ठीक थी पुत्तर जी, उन्हें केवल संदेह ही था अनिल खन्ना पर”। प्रधान जी के स्वर ने कार्यालय में दो पल के लिये छा गयी चुप्पी को तोड़ा।

“अभी भी पूरी तरह से मिटा नहीं होगा ये संदेह, प्रधान जी। इसलिये अब हमें इस मामले में अनिल खन्ना से तभी मिलना चाहिये जब बहुत आवश्यकता हो”। राजकुमार फिर से जोड़ तोड़ करने में लग गया था।

“तेरी ये बात भी ठीक ही लगती है। चल अब चलते हैं, अनिल खन्ना के फोन का इंतज़ार करते करते पहले ही लेट हो गये हैं”। प्रधान जी इतना कहते ही राजकुमार ने गाड़ी की चाबी उठायी और दोनों कार्यालय से बाहर निकल गये। जाते जाते टीटू को कार्यालय बंद करने का आदेश दे दिया था प्रधान जी ने।

 

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक 02 अध्याय 17

Sankat Mochak 02
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दूसरे दिन सुबह लगभग 10:30 बजे का समय। जालंधर दूरदर्शन का निदेशक सुरेश अडवानी अपने कार्यालय में बैठा बेचैनी के साथ अपने सामने टेबल पर पड़ी अखबारों को देख रहा था। सुरेश अडवानी को दूरदर्शन के निदेशक का पद संभाले दो साल से भी अधिक समय हो चुका था। अपने काम करने के तरीके या अपने व्यक्तिव के कारण चर्चा में रहने की बजाये दिल्ली मंत्रालय में अपने उच्च स्तरीय संबंधों के लिये कहीं अधिक चर्चा में रहता था सुरेश अडवानी।

अधिकारिक क्षेत्रों में चलने वाली बातों के अनुसार सूचना एवम प्रसारण मंत्रालय में सबसे उपर बैठे लोगों के साथ सीधा लेन देन चलता था उसका। इसीलिये शायद दूरदर्शन के अंदर से कोई ईमानदार अधिकारी दूरदर्शन में फैले भ्रष्टाचार की शिकायत करने की हिम्मत नहीं करता था और बाहर से जिसने भी शिकायत की थी, या तो उस पर कोई कार्यवाही नहीं हुयी, या फिर जांच के दौरान उस शिकायत को आधारहीन दिखा दिया गया था।

दूरदर्शन के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वास्ता रखने वाले सभी प्रभावशाली लोगों के साथ अच्छे सबंध बनाकर रखना अडवानी की नीति में शामिल था जिसके कारण जालंधर से छपने वाले कई अखबारों के बहुत से पदाधिकारियों के साथ भी अच्छे संबंध थे उसके।

“आज की इस आपातकालीन मीटिंग का मकसद तो समझ ही गये होंगें आप लोग”। सुरेश अडवानी ने अपने सामने की कुर्सियों पर बैठे तीन लोगों से कहा, जो निश्चित रूप से ही जालंधर दूरदर्शन में उच्च पदों पर आसीन अधिकारी थे।

“जी बिल्कुल सर, न्याय सेना के द्वारा कल की गयी प्रैस कांफ्रैंस में हम लोगों पर लगाये गये भ्रष्टाचार के आरोप और उनकी जांच की मांग है, निश्चित रूप से इस मीटिंग का कारण”। दूरदर्शन के अतिरिक्त निदेशक सुरिंदर सिंह ने तत्परता के साथ जवाब दिया था अडवानी के इस सवाल का, जिसे शायद किसी जवाब की जरूरत थी ही नहीं।

“ये मामला तूल पकड़ सकता है और इसीलिये इसे समय रहते ही संभाल लेना बहुत आवश्यक है”। बड़े ही सीमित शब्दों में अपनी बात कहने के बाद सुरेश अडवानी ने एक बार फिर सामने बैठे अधिकारियों की ओर देखा।

“लेकिन सर, ऐसा प्रयास तो पहले भी कई लोग कर चुके हैं, और हर बार हमने उनकी कोशिशों को नाकाम कर दिया है, बिना किसी भी प्रकार की हानि उठाये। तो इस बार ये आपातकालीन मीटिंग बुलाने की आवश्यकता क्यों आन पड़ी?” उत्सुकुता भरे ये शब्द निकले थे चीफ प्रोग्राम प्रोडयूसर विजय बहल के मुख से। बाकी के अधिकारियों के चेहरे भी विजय बहल के प्रश्न को ही पूछ रहे लगते थे।

“क्योंकि इस बार का ये मामला निश्चित रूप से ही कहीं अधिक गंभीर है, पिछले सारे मामलों से। आप लोग तो जानते ही हैं कि स्थानीय समाचार पत्रों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत पदाधिकारियों के साथ मधुर संबंध है हमारे, ऐसी किसी भी स्थिति को संभालने के लिये। इसी कारण दूरदर्शन के खिलाफ विभिन्न लोगों और संगठनों द्वारा समय समय पर लगाये जाने वाले आरोपों को या तो छापा ही नहीं गया, या फिर इतनी कांट छांट के बाद छापा गया कि उन आरोपों में कोई विशेष औचित्य न दिखाई दे”। अपनी बात को विश्राम देते हुये अडवानी ने विजय बहल की ओर देखा।

“जबकि इस बार न्याय सेना द्वारा लगाये गये आरोपों को न केवल बिना किसी कांट छांट के, बल्कि उल्टा बढ़ा चढ़ा कर छापा गया है, और वो भी अखबारों के बहुत महत्वपूर्ण पृष्ठों पर, जिससे अधिक से अधिक लोग इस न्यूज़ को पढ़ पायें”। अडवानी की अधूरी बात पूरी की थी मनजिंद्र जौहल ने जो दूरदर्शन में उप निदेशक के पद पर कार्यरत था।

“बिल्कुल ठीक समझा आपने जौहल साहिब, और वास्तव में बात इससे भी कहीं अधिक गंभीर है। न्याय सेना की इस प्रैस कांफ्रैंस की और इसमें लगाये गये आरोपों की सूचना प्रैस कांफ्रैंस के तुरंत बाद ही दे दी थी मेरे सूत्रों नें। लगभग सभी अखबारों में कार्यरत हमारे मित्रों से मेरी बात हो गयी थी और सबने आश्वासन दिया था इस खबर को दबाने और कांटने छांटने का, ऐसे अन्य अवसरों की तरह ही”। अडवानी ने जौहल की बात को ही आगे बढ़ाते हुये कहा।

“किन्तु आशा के विपरीत, सब अखबारों नें ही इस खबर को बहुत बढ़ा चढ़ाकर छापा है। दो तीन अखबारों में मैने सुबह बात की थी, इसका कारण जानने के लिये। हर जगह से एक ही जवाब आया कि अखबार में स्थानीय स्तर पर सबसे उच्च पद पर आसीन अधिकारी के सीधे दखल के कारण इस खबर के साथ कोई भी छेड़ छाड़ नहीं हो पायी। कहीं पर संपादक, कहीं पर ब्यूरो चीफ और कहीं पर मुख्य संपादक ने सीधे दखल दिया है इस मामले में”। एक पल से भी कम के विराम के बाद अपनी बात को दोबारा शुरु किया अडवानी ने।

“इससे दो बातें पता लगतीं हैं। नंबर एक, न्याय सेना के पदाधिकारियों ने ये प्रैस कांफ्रैस करने से पहले ही विभिन्न अखबारों में उच्चतम पदों पर आसीन अधिकारियों को विश्वास में ले लिया था। इससे ये पता चलता है कि इस मामले में न्याय सेना किसी प्रकार की जल्दबाज़ी से काम न लेकर पूरी योज़ना बना कर चल रही है। जस्सी का बयान आने के दो दिन बाद हुयी है ये प्रैस कांफ्रैस, जिसका अर्थ ये निकलता है कि इन दो दिनों में इस मामले में तैयारी की है इन लोगों ने, और उसके बाद ही हमला किया है हमारे उपर”। अडवानी के इस खुलासे ने सबको चिंता में डाल दिया था।

“और दूसरी बात क्या है, सर?” विजय बहल के मुख से निकला ये प्रश्न जैसे हर कोई ही पूछना चाहता था।

“दूसरी बात है इस संगठन के उच्च स्तरीय संबंध। इस शहर में ऐसे कितने लोग या संगठन हैं जो इन समाचार पत्रों में उच्चतम पदों पर आसीन अधिकारियों से इतने कम समय में न केवल मु्लाकात कर सकें, बल्कि उन्हें अपने पक्ष में चलने के लिये राज़ी भी कर सकें? मेरे विचार से ये सारी मुलाकातें इन लोगों ने एक ही दिन में की हैं, जिसका अर्थ है कि इन लोगों को किसी भी समय मिलने का समय दे देते हैं इस शहर के अखबारों में उच्चतम पदों पर आसीन अधिकारी”। सुरेश अडवानी ने एक बार फिर विराम दिया था अपनी बात को।

“आपकी बात बिल्कुल ठीक है सर, अनेक अखबारों के मालिकों और उच्चतम पदों पर आसीन अधिकारियों के साथ व्यक्तिगत और पारिवारिक संबध हैं वरुण शर्मा के”। अडवानी की बात की पुष्टि की जौहल ने, जो सभी अधिकारियों की तुलना में कहीं अधिक समय व्यतीत कर चुका था जालंधर दूरदर्शन में, जिसके चलते शहर की कहीं अधिक जानकारी रखता था वो।

“इससे फिर दो बातें सामने आती हैं। नंबर एक, इस मामले में मीडिया भविष्य में भी हमारा कोई लिहाज़ नही करने वाला है। नंबर दो, इन लोगों के विभिन्न आधाकारिक क्षेत्रों में और भी पदाधिकारियों के साथ घनिष्ठ संबंध हो सकते हैं। इन बातों का सार ये निकला कि इस बार दुश्मन न केवल ताकतवर है, बल्कि योजना बना कर चलने वाला भी है। यही है इस आपातकालीन मीटिंग को बुलाने का कारण”। कहते हुये अडवानी के चेहरे पर चिंता की लकीरें गहरी होती जा रहीं थीं और यही हाल बाकी सब लोगों का भी था।

“किन्तु सर, कोई सुबूत तो दिया नहीं इन्होंने अपने आरोपों के पक्ष में। केवल बयान दिया है कि कलाकारों से पैसा मांगा जाता है और मशीनों की खरीद के बिलों में घपला किया जाता है। ऐसा भी तो हो सकता है कि इन लोगों के पास कोई सुबूत हो ही नहीं और जस्सी के बयान के बाद केवल प्रचार पाने के इरादे से की गयी हो ये प्रैस कांफ्रैंस?” विजय बहल ने शंका जताते हुये कहा।

“अगर ऐसा होता तो उसी दिन कर दी गयी होती ये प्रैस कांफ्रैंस, दो दिन बाद नहीं बहल साहिब। और फिर सुबह के समय की गयी है ये प्रैस कांफ्रैंस, इससे पहले की शाम ही सब पत्रकारों को इसकी जानकारी देकर। इसका अर्थ इन लोगों ने पूरी तैयारी की है पहले और तैयारी हो जाने के बाद भी एक रात प्रतीक्षा की प्रैस कांफ्रैंस के लिये। मतलब कि ये लोग सुनियोजित तरीके से काम कर रहे हैं, और ऐसे लोग बिना किसी ठोस आधार के इतने बड़े कदम नहीं उठाते”। विजय बहल की शंका का निवारण करते हुये कहा अडवानी ने।

“तो क्या इनके पास हमारे खिलाफ कोई ठोस सुबूत है, सर?” विजय बहल के इतना कहते ही सब लोगों के चेहरे पर पहली बार खौफ की झलक दिखायी दी थी।

“आवश्यक तो नहीं है ये, लेकिन इसकी गहरी संभावना जरूर है। हम सब जानते हैं कि मशीनों के बिलों में उनके वास्तविक मूल्यों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जाती, और मामला कुछ और ही होता है। फिर भी असल मामले को सामने न लाकर वो आरोप लगाया गया है जो साबित ही नहीं हो सकता। इसका मतलब ये लोग हमें खुशफहमीं में रखना चाहते हैं कि इनके पास हमारे खिलाफ कुछ विशेष नहीं है, जिससे हम लापरवाह हो जायें और इन्हें अपना काम करने में आसानी हो जाये”। अडवानी के चेहरे पर मुस्कान और बाकी सब लोगों के चेहरे पर हैरत थी।

“फिर तो वाकई में ये मामला सीरियस है, सर। क्या करना चाहिये फिर हम लोगों को इस मामले में?” जौहल के स्वर ने तोड़ा था कमरे में चंद पल के लिये छा गये सन्नाटे को।

“एक साथ कई मोर्चे खोलने होंगे हमें, इस समस्या से निपटने के लिये। अब सुनिये इस समस्या से निपटने की योजना। मैं मंत्रालय में बात करके अपने शुभचिंतकों को इस मामले से आगाह कर देता हूं जिससे वहां तक कोई बात जाने पर उसे समय रहते ही दबाया जा सके। सुरिंदर जी, आप पता लगाने की कोशिश कीजिये कि इन लोगों के पास हमारे उपर लगाये गये आरोपों के पक्ष में क्या सुबूत हैं? जौहल साहिब, आप अपने उस कांटैक्ट से संबंध स्थापित कीजिये जिसे हमने ऐसे ही मौकों के लिये रखा हुआ है”। बात पूरी करते करते मुस्कुरा दिया था अडवानी, जौहल की ओर देखते हुये।

“कहीं आप योगेश दत्त की बात तो नहीं कर रहे सर?” कुछ समझ जाने वाले अंदाज़ में कहा था जौहल ने।

“आप बिल्कुल ठीक समझे हैं जौहल साहिब, मैनें योगेश दत्त की बात ही की है”। अडवानी ने सहमति में सिर हिलाते हुये कहा।

“लेकिन सर, क्या उसे इस मामले में इस्तेमाल करना उचित होगा। जहां तक मैं वरुण शर्मा को जानता हूं, हमारा ये हथियार नाकाम होने की संभावना बहुत अधिक है। ऐसी चीज़ों से कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता उसे”। जौहल ने एक संभावना व्यक्त करते हुये कहा, शंकालु स्वर में।

“इस बात का अंदाज़ा मुझे भी है, किन्तु प्रयास करने में क्या हर्ज है। इसलिये आप उसे इस काम पर लगा दीजिये और जो भी परिणाम निकले, मुझे सूचित कीजियेगा। बहल साहिब, आप कुछ ऐसे कलाकारों को तैयार कर लीजिये जिनसे हमारे संबध बहुत अच्छे हैं और जिन्हें समय आने पर इस मामले में किसी भी प्रकार इस्तेमाल किया जा सके”। जौहल को समझाने के बाद विजय बहल की ओर देखते हुये कहा अडवानी ने।

“मैं आपका इशारा समझ गया सर, मैं फौरन लग जाता हूं इस काम पर”। विजय बहल ने सब कुछ समझ जाने वाले अंदाज़ में कहा।

“तो फिर सब लोग लग जाईये, अपने अपने काम पर। सबकी ओर से काम की रिपोर्ट आने पर एक बार फिर बैठेंगे, आगे की रणनीति बनाने के लिये”। बात को समाप्त करते हुये कहा अडवानी ने, और तेजी से किसी सोच में पड़ गया था। एक मिनट के अंदर ही सभी अधिकारी उसे अभिवादन करके कमरे से बाहर जा चुके थे।

 

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक 02 अध्याय 16

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दूसरे दिन सुबह लगभग 11:30 बजे न्याय सेना का कार्यालय पत्रकारों से भरा हुआ था और प्रधान जी, राजकुमार, डॉक्टर पुनीत, जगतप्रताप जग्गू तथा हरजीत राजू के अतिरिक्त संगठन के अन्य महत्वपूर्ण पदाधिकारी भी मौज़ूद थे कार्यालय में।

“लगभग सारे पत्रकार भाई आ चुके हैं, शुरू की जाये प्रैस कांफ्रैंस फिर?” प्रधान जी ने जैसे मुद्दे की बात शुरू करने के लिये कहा।

“बिल्कुल शुरू की जाये प्रधान जी, भाईयों के साथ साथ अब तो पत्रकार बहिनें भी आ चुकीं हैं”। शिव वर्मा के इस विनोदी स्वर नें प्रधान जी को एहसास दिलाया कि कार्यलय में उपस्थित दो महिला पत्रकारों को संबोधन करना तो भूल ही गये थे वो। शिव वर्मा की इस बात पर जहां प्रधान जी कुछ झेंप गये थे, राजकुमार मुस्कुरा कर शिव वर्मा की ओर देख रहा था।

शिव वर्मा की आयु लगभग 30 वर्ष के करीब थी और सत्यजीत समाचार के न्यूज़ रिपोर्टर थे वो। युवा आयु में ही अच्छा नाम कमा लिया था शिव ने और विशेष रूप से अपनी निर्भीक और बेबाक पत्रकारिता के लिये जाने जाते थे वो। किसी के बारे में भी अच्छा या बुरा लिखते समय सीमाओं में बंधना पसंद नहीं था उन्हें। इस कारण अपनी खबरों के माध्यम से या तो वे संबंधित व्यक्ति को पहाड़ की चोटी पर या फिर सीधा कुयें के तल में पहुंचा देते थे। उनके इस बेबाक अंदाज़ के कारण अधिकारियों और राजनेताओं में एक प्रकार का खौफ रहता था, उन्हें और उनकी खबरों को लेकर।

“आपकी बात बिल्कुल ठीक है शिव जी, अपनी पत्रकार बहनों से भी मैं आज्ञा चाहूंगा इस प्रैस कांफ्रैंस को शुरू करने की”। प्रधान जी ने मुस्कुराते हुये कहा और फिर महिला पत्रकारों की सहमति पाने के बाद मुद्दे की बात पर आ गये।

“जैसा कि आप सब लोग जानते ही हैं, दो दिन पहले अखबारों में मशहूर पंजाबी गायक जसकरण जस्सी का बयान छपा था कि जालंधर दूरदर्शन में भ्रष्टाचार व्यापत है और कलाकारों से गाना गाने के एवज में पैसा मांगा जाता है। न्याय सेना इस प्रैस कांफ्रैंस के माध्यम से ये संदेश देना चाहती है सूचना एवम प्रसारण मंत्रालय को, कि दूरदर्शन में फैले भ्रष्टाचार की शीघ्र से शीघ्र जांच हो”। प्रधान जी ने बात शुरु करते हुये कहा।

“केवल जस्सी का बयान ही आधार है आपकी इस जांच करवाने की मांग का, या फिर कोई और कारण भी है प्रधान जी?” प्रश्न की दिशा में देखा प्रधान जी ने तो पाया कि अर्जुन कुमार मुस्कुरा रहे थे उनकी ओर देखकर।

अर्जुन कुमार अमर प्रकाश के उन गिने चुने पत्रकारों में से एक थे जिन्हें जालंधर से ही चुना गया था। अर्जुन इससे पहले अन्य कई अखबारों के लिये काम कर चुके थे और उनकी योग्यता को देखते हुये ही अमर प्रकाश ने उन्हें अपने समूह में शामिल किया था। वाणी से अक्सर सौम्य रहने वाले अर्जुन वास्तव में बहुत शातिर थे और उन्हें क्रोध में बहुत कम ही देखा जाता था। जिस व्यक्ति के खिलाफ कुछ बहुत बुरा भी लिखते थे, खबर छपने से पहले उसे भनक तक नहीं लगने देते थे कि उसका क्या अंजाम होने वाला है। शिव वर्मा और अर्जुन कुमार की कार्यशैली में ये एक बहुत बड़ा अंतर था।

शिव वर्मा जिसके खिलाफ लिखते थे, उसे अक्सर पहले ही आगाह कर देते थे कि कल के अखबार में अपना हश्र देख लेना। दूसरी ओर अर्जुन कुमार संबंधित व्यक्ति को अंत तक पता नहीं चलने देते थे कि उसके बारे में अच्छा छपने वाला है या बुरा। शायद उनकी इसी पत्ते छिपा कर खेलने की आदत ने ही यूसुफ आज़ाद को आकर्षित किया था उनकी ओर, और उन्हीं की सिफारश पर अमर प्रकाश ने शामिल किया था अर्जुन को अपने समूह में।

“अवश्य ही और भी कारण हैं, अर्जुन जी। जस्सी के अलावा कुछ और कलाकारों ने भी निजी रूप से हमें मिलकर शिकायत की है कि उनसे दूरदर्शन के कार्यक्रमों में काम करने के लिये पैसा मांगा जाता है”। प्रधान जी ने अर्जुन कुमार की ओर देखते हुये ऐसी मुस्कुराहट के साथ कहा जैसे जानते हों कि अब अर्जुन का अगला प्रश्न क्या होगा।

“क्या आप उनमें से कुछ कलाकारों के नाम बता सकते हैं हमें?” आशा के अनुरूप फौरन ही दाग दिया था अपना अगला प्रश्न अर्जुन कुमार ने।

“इस समय तो नहीं लेकिन ठीक समय आने पर जरूर बता दिये जायेंगे आप लोगों को उनके नाम। इस मामले में शिकायत लेकर आने वाले सभी कलाकारों ने अपना नाम गोपनीय रखने की रिक्वैस्ट की है”। प्रधान जी का उत्तर पहले ही तैयार था।

“केवल कलाकारों की शिकायत तो नहीं लगती आपकी इस मुस्कान के पीछे, प्रधान जी। कुछ और भी अवश्य है इस मामले से जुड़ा हुआ”। अश्विन सिड़ाना के मुंह से निकले थे ये अल्फाज़, जिन्होंनें एकदम से सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया था।

अश्विन सिडाना वरिष्ठ पत्राकार का दर्जा रखते थे पंजाब ग्लोरी में और अपनी इंटैलिजैंस के लिये विशेष रूप से जाने जाते थे। सौम्य वाणी के स्वामी अश्विन अधिक बात करना या अधिक प्रश्न पूछना पसंद नहीं करते थे, बल्कि दूसरे पत्रकारों के पूछे गये प्रश्नों का उत्तर देने वाले व्यक्ति के भावों को पढ़ना उनका शौक था। अधिकतर प्रैस कांफैंसों में एक या दो प्रश्न ही पूछते थे अश्विन, लेकिन ये एक या दो प्रश्न बाकी सब लोगों के प्रश्नों पर अक्सर भारी पड़ जाते थे।

“आपका अनुमान कभी गलत हुआ है अश्विन जी, जो आज होगा। वास्तव में दूरदर्शन में फैला भ्रष्टाचार का ये तंत्र कलाकारों से पैसे मांगने से कहीं बड़ा है। दूरदर्शन के भ्रष्ट अधिकारी पिछले कुछ सालों से महंगी मशीनों को खराब बता कर बेच रहे हैं और नयीं मशीनों की खरीद फरोख्त में भारी घपला किया जा रहा है”। प्रधान जी ने मुस्कुराते हुये अश्विन सिडाना की बात का जवाब दिया। उन्होंने जानबूझ कर ये बात छिपा ली थी कि असल में तो पुरानी मशीनें हीं काम कर रहीं हैं, नयीं तो खरीदीं हीं नहीं जातीं।

“कोई सुबूत है आपके पास, इस आरोप के पक्ष में?” सवाल एक बार फिर अर्जुन की ओर से आया था।

“हमारा काम शक होने पर केवल आरोप लगाना और जांच की मांग करना है, सुबूत ढूंढना तो जांच ऐजेंसियों का काम है, अर्जुन जी”। प्रधान जी ने बड़ी चतुराई से उत्तर दिया अर्जुन के सवाल का।

“शक होने पर आरोप लगाना, तो फिर अवश्य ही आपके पास इस शक की कोई पुख्ता वज़ह तो होगी। क्या हम वो वज़ह जान सकते हैं?” प्रधान जी का उत्तर पूरा होते होते ही अगला सवाल निकल गया था अर्जुन के मुंह से। प्रधान जी के ही शब्दों को पकड़ कर उनमें से एक और सवाल निकाल लिया था उसने। राजकुमार बड़ी दिलचस्पी और रोमांच के साथ देख रहा थे ये सब कुछ, जो उसके लिये एकदम नया अनुभव था। पत्रकारों के बाल की खाल निकालने के स्वभाव के बारे में उसने बहुत कुछ सुना था इन चार महीनों में, पर इसका प्रत्यक्ष प्रमाण आज ही मिला था उसे।

“वजह अवश्य है अर्जुन जी, दूरदर्शन के अंदर से ही पुख्ता सूचना मिली है हमें कि नयीं मशीनों की खरीद के समय भारी घपला किया जाता है। इसलिये इस मामले की जांच अवश्य होनी चाहिये”। प्रधान जी का जवाब एक बार फिर तैयार था।

“कितना समय देंगे आप इस जांच के लिये सूचना एवम प्रसारण मंत्रालय को प्रधान जी, और उस समय के भीतर जांच न होने पर क्या कदम उठायेगा आपका संगठन?” शिव वर्मा ने लोहार वाली चोट मारते हुये कहा। उन्हें बातों को खींचने और गोल गोल घुमाने की बजाये कम शब्दों में मुद्दे को निपटा देना पसंद था, अपने बेबाक स्वभाव की वज़ह से। इसलिये उन्होंने शायद बाकी पत्रकारों के सवालों के लंबे सिलसिले को खत्म करने के इरादे से निर्णायक प्रश्न पूछ लिया था।

“न्याय सेना इस जांच के लिये पंद्रह दिन का समय देती है सूचना एवम प्रसारण मंत्रालय को, और निवेदन करती है कि इस मामले की जांच शीघ्र से शीघ्र करवायी जाये। पंद्रह दिन में जांच न होने पर अगले दिन यानि कि आज से सोलहवें दिन न्याय सेना एक विशाल प्रदर्शन करेगी जालंधर दूरदर्शन के बाहर”। प्रधान जी की आवाज़ में जोश और उर्जा की मात्रा बढ़ गयी थी इस बार।

“फिर तो ये मामला रोचक बनने वाला है प्रधान जी, क्योंकि पंद्रह दिन के अंदर इस मामले की जांच होने की कोई संभावना कम ही नज़र आ रही है मुझे तो। आप तैयारी करनी शुरु कर दीजिये प्रदर्शन की”। एक बार फिर बोल दिये थे, मुस्कुराते हुये अर्जुन कुमार।

“न्याय सेना तो हर समय तैयार ही रहती है अर्जुन जी, किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी का सामना करने के लिये। बस आप सब भाईयों का सहयोग चाहिये इस लड़ाई को लड़ने के लिये और जीतने के लिये, क्योंकि आप लोगों के सहयोग के बिना तो ये लड़ाई जीती नहीं जा सकती”। प्रधान जी के स्वर में वही जोश और उर्जा बनी हुयी थी।

“ये ठीक बात नहीं है, प्रधान जी। आप बहनों को एक बार फिर नज़र अंदाज़ कर रहे हैं”। बनावटी क्रोध के बीच ये बात कही थी हरप्रीत कौर ने, जो अंग्रेजी के अखबार इंडियन स्कसैस की पत्रकार थीं। उनकी इस बात पर सब पत्रकार हंस दिये थे और प्रधान जी झेंप कर चुप कर गये थे, जैसे कोई उत्तर न सूझ रहा हो इस सवाल का।

“सहायता तो केवल भाईयों से ही मांगनी पड़ती है, हरप्रीत जी। मातायें और बहनें तो शुरु से ही बिना मांगे ही सहायता करती आयीं हैं बेटों और भाईयों की इस देश में। शायद इसीलिये प्रधान जी बार बार बहनों को संबोधित करना भूल जाते हैं, कि बहनों से सहायता मिलने में तो कोई शक है ही नहीं”। प्रधान जी को कोई जवाब न सूझता देखकर पहली बार बीच में बोला था मुस्कुराते हुये राजकुमार, बात को संभालने के लिये।

“तो क्या आप ये कहना चाहते हैं कि भाईयों के सहायता करने पर शक है आपको?” नोंक झोंक से मज़ा लेने की अपनी आदत के चलते कहा अर्जुन कुमार ने, जिसकी तेज़ निगाहें अब राजकुमार के चेहरे पर जम चुकीं थी। राजकुमार की बात से प्रभावित हरप्रीत कौर भी उसी की ओर देख रही थी।

“शक की तो कोई गुंजाईश ही नहीं है अर्जुन जी, बस एक फर्क की बात कही है मैने। क्या आप मेरी इस बात से सहमत नहीं हैं कि किसी भी मामले में भाई या मित्र मांगने पर आपकी सहायता अवश्य करते हैं, जबकि बहनें या मातायें आपके मांगने से पहले ही हाज़िर हो जातीं हैं, सहायता के लिये?” राजकुमार ने बड़ी चतुरायी से अर्जुन कुमार का प्रश्न उन्हीं की ओर निर्देशित कर दिया था।

“आपका ये नया महासचिव तो खूब है प्रधान जी, पत्रकारों से ही सवाल पूछ रहा है”। राजकुमार के प्रश्न की गहरायी भांपते हुये बिना उसका उत्तर देते हुये कहा अर्जुन ने। वो जानते थे कि इस प्रश्न का किसी के भी पक्ष में उत्तर देना उन्हें विवाद में फंसा सकता है। उनकी आंखों में प्रशंसा के भाव साफ दिखायी दे रहे थे। राजकुमार को पहले भी कई बार मिल चुके थे वो प्रधान जी के साथ, पर उसे बोलते हुये बहुत कम ही देखा था उन्होंने। अक्सर चुपचाप रहकर सारी बातें सुनता और नोट करता रहता था वो।

“इतने बड़े कांप्लिमैंट के बाद अब कोई भाई सहायता करे न करे प्रधान जी, बहनों को तो करनी ही पड़ेगी। हम इस मामले में पूरी तरह से आपके साथ हैं। वैसे आपने इनका परिचय नहीं करवाया, प्रधान जी?” कहती हुईं हरप्रीत कौर राजकुमार से प्रभवित नज़र आ रहीं थीं और यही हाल कुछ और पत्रकारों का भी था।

“तो अब करवा देते हैं, हरप्रीत जी। ये हैं न्याय सेना के नये महासचिव राजकुमार। इनकी युवा उम्र पर मत जाईयेगा, बहुत प्रतिभाशाली हैं ये। उच्च शिक्षा प्राप्त है और हिन्दी, पंजाबी तथा अंग्रेज़ी भाषाओं का बहुत अच्छा ज्ञान है इन्हें। बहुत इंटैलिजैंट हैं और वाणी पर इनकी मज़बूत पकड़ का एक नमूना तो आप सब देख ही चुके हैं”। प्रधान जी ने राजकुमार की तारीफ करते हुये कहा।

“लगता है आपका संगठन अब बहुत आगे जाने वाला है प्रधान जी, युवा और शिक्षित लोगों की गिनती बढ़ती जा रही है न्याय सेना में”। एक बार फिर अर्जुन कुमार के मुंह से ही निकले थे ये शब्द।

“अवश्य आगे जायेगा अर्जुन जी, अगर ऐसे ही सहयोग मिलता रहा आप सभी पत्रकार भाईयों का। ……………………… और बहनों का भी”। इस बार लगभग भूलते भूलते याद आ गया था प्रधान जी को कि बहनों का नाम भी बोलना है। इसीलिये बात को पूरा करने के बाद उन्होंने उनका नाम भी शामिल कर दिया था उसमें जल्दी से। उनकी इस बात पर सब हंस दिये थे।

 

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक 02 अध्याय 15

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क्षेत्र के दो सबसे अधिक लोकप्रिय अखबारों में से एक था पंजाब ग्लोरी, और इस अखबार के मुख्य संपादक थे अजय कुमार। प्रदेश की बहुत लोकप्रिय शख्सीयतों में से एक अजय कुमार को आदरवश सब बाऊ जी ही कहते थे।

लगभग 70 वर्ष की आयु के अजय कुमार ने अखबार के संपादन का कार्य अपने पिता की मृत्यु के पश्चात संभाला था और अपनी प्रतिभा से पंजाब ग्लोरी को कई नयी उंचाईयों पर लेकर गये थे। इनके सामाजिक और राजनैतिक प्रभाव का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि आम आदमी से लेकर बड़े से बड़े पुलिस अधिकारियों तक और प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर देश के बड़े से बड़े राजनेताओं तक सब लोग इनके संपर्क में थे। देश के प्रधानमंत्री भी आते रहते थे इनके पास समय समय पर।

“ओ मेरे बाऊ जी की जय, ओ मेरे बाऊ जी की जय”। नारा सुनते ही समझ गये थे अजय कुमार कि वरुण आया है। प्रधान जी को वरुण के नाम से ही बुलाते थे वो। उस समय से आ रहे थे प्रधान जी उनके पास, जब उन्होंने समाज सेवा का पहला कार्य किया था। अजय कुमार का न सिर्फ प्रधान जी के उपर, बल्कि उनके परिवार के उपर भी विशेष प्रभाव था। प्रधान जी की पत्नी रानी तो विशेष रूप से बहुत आदर करती थी उनका।

“आजा वरुण आजा, आ बैठ”। स्नेहपूर्वक कहा अजय कुमार ने और साथ ही चाय लाने का आदेश दे दिया एक कर्मचारी को। प्रधान जी के साथ साथ राजकुमार भी उनके चरण स्पर्श करके कुर्सी पर बैठ चुका था।

“इस बार बड़े दिनों बाद आया है वरुण, लगता है बहुत बड़ा नेता बन गया है अब तू”। बाऊ जी ने प्रधान जी को छेड़ते हुये कहा।

“एक बार आया था बीच में बाऊ जी, आप शहर से बाहर थे। आकाश जी से मुलाकात हुयी थी मेरी”। प्रधान जी ने जल्दी से अपनी सफाई देते हुये कहा। अजय कुमार के बड़े सुपुत्र थे आकाश कुमार और पंजाब ग्लोरी के संपादक थे। अजय कुमार के बाद अखबार का दायित्व मुख्य रूप से उन्हीं के उपर था।

“चल छोड़ दिया तुझे आज, और बता कैसा चल रहा है तेरा संगठन?” बाऊ जी ने मुस्कुराते हुये कहा।

“आपकी कृपा से सब ठीक है बाऊ जी, बस एक बड़ा काम पकड़ा था, आपका आशिर्वाद लेने चला आया इसे शुरु करने से पहले”। प्रधान जी ने बातचीत की भूमिका बनाने के लिये कहा।

“अब किसकी शामत आयी है जो तेरे हत्थे चढ़ गया, शहर के लगभग हर डिपार्टमैंट को तो पहले ही शिकार बना चुका है तू”। मुस्कुराते हुये कहा बाऊ जी ने और चाय के कप की ओर इशारा किया जिसे एक कर्मचारी अभी अभी टेबल पर रखकर गया था।

“इस बार दूरदर्शन में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने जा रहे हैं बाऊ जी, बहुत बड़े स्तर की धांधलियां हो रहीं हैं जालंधर दूरदर्शन में”। प्रधान जी ने चाय का कप उठाते हुये कहा।

“धांधलियां तो सदा होती ही रहीं है सरकारी महकमों में, और होतीं ही रहेंगीं। पर इस मामले को बड़े ध्यान से हैंडल करना, दूरदर्शन बहुत बड़ा संस्थान है और बहुत उपर तक पहुंच है इसके अधिकारियों की”। बाऊ जी ने समझाने वाले भाव में कहा प्रधान जी को।

“हम पूरा ध्यान रखेंगे, बाऊ जी। फिर आपका आशिर्वाद रहते हुये हमें कौन रोक सकता है ये लड़ाई जीतने से। आज तक आपके आशिर्वाद से कितनी लड़ाईयां जीतीं हैं न्याय सेना ने, ये लड़ाई भी जीत ही लेंगे हम”। प्रधान जी ने चाय की चु्स्की लेते हुये कहा।

“मेरा आशिर्वाद तो सदा ही तेरे साथ है, तब से जानता हूं तुझे जब तू इस लड़के की उम्र का रहा होगा शायद। तुझे एक जोशीले युवा लड़के से एक अनुभवी नेता बनने का सफर तय करते देखा है मैने”। बाऊ जी ने राजकुमार की ओर इशारा करते हुये एक मुस्कुराहट के साथ कहा।

“और उस जोशीले लड़के से मुझे एक अनुभवी इंसान बनाने में आपका बहुत बड़ा योगदान रहा है, बाऊ जी। आपने समय समय पर मुझे हर उस काम को करने से रोका है, जिसे जल्दबाज़ी में करने से मेरा नुकसान हो सकता था। अखबार में भी सदा आपने मेरे हर मुद्दे को विशेष स्थान दिया है। आपके आशिर्वाद के बिना यहां तक नहीं आ सकता था मैं, इसीलिये तो सदा आपकी जय बोलता हूं। ओ मेरे बाऊ जी की जय, ओ मेरे बाऊ जी की जय”। कहते कहते प्रधान जी ने खड़े होकर एक बार फिर झुक कर नमस्कार कर दिया था बाऊ जी को।

“तेरे जैसे ईमानदार, निडर और सच्चे नेताओं की बहुत आवश्यकता है समाज को वरुण, इसलिये शुरू से ही मैं तेरे हर मुद्दे को समर्थन देता हूं। इस बार भी मैं पूरी तरह से तेरे साथ हूं। तू बस डट कर लड़ाई कर और शेष किसी बात की चिंता मत कर”। बाऊ जी ने प्रधान जी को प्रोत्साहित करते हुये कहा।

“आपके इन शब्दों के बाद तो मुझे वैसे भी किसी बात की चिंता नहीं रही, बाऊ जी। जल्दी ही आपको इस मामले में बड़े धमाके सुनने को मिलेंगे”। जोश में आ गये थे प्रधान जी, बाऊ जी के प्रोत्साहित करने पर।

“जाते हुये एक बार आकाश से मिलकर उसे भी इस मामले की जानकारी दे देना”। बाऊ जी की इस बात पर प्रधान जी ने सिर हिला कर सहमति दी और फिर चाय के साथ गपशप का सिलसिला चल पड़ा कमरे में।

लगभग चालीस मिनट के बाद प्रधान जी और राजकुमार एक बार फिर न्याय सेना के कार्यालय में बैठे हुये थे।

“बाऊ जी और आकाश जी से मुलाकात तो बहुत अच्छी गयी पुत्तर जी, अब कल की प्रैस कांफैंस के लिये सबको बोल देते हैं”। कहने के बाद प्रधान जी ने हिन्दी, पंजाबी और इंग्लिश में छपने वाले सभी महत्वपूर्ण अखबारों के पत्रकारों को फोन करके दूसरे दिन सुबह 11 बजे न्याय सेना के कार्यालय में प्रैस कांफ्रैंस का समय दे दिया।

“लो ये काम भी हो गया, चलो अब प्रैस नोट बना लेते हैं”। प्रधान जी ने राजकुमार की ओर देखते हुये कहा।

“आपने सुबह का समय ही क्यों चुना प्रैस कांफ्रैंस के लिये प्रधान जी, जबकि हम ये काम कल शाम पर भी तो रख सकते थे? आखिर खबरें तो दोनों सूरतों में ही परसों सुबह के अखबार में ही आयेंगीं”। राजकुमार ने जिज्ञासा भरे स्वर में पूछा।

“सीखने की बहुत लगन है तुझमें, छोटी से छोटी बात का कारण भी समझना चाहता है तू। प्रैस कांफ्रैंस कल सुबह के लिये इसलिये रखी है क्योंकि ये बड़ा मामला है। पत्रकारों को लगभग सारा दिन मिल जायेगा इस मामले में दूरदर्शन के अधिकारियों से संपर्क करके इस मामले में उनका पक्ष जानने के लिये तथा कुछ और अन्य तथ्य एकत्रित करने के लिये, जिनसे ये न्यूज़ रोचक बन सके। और जितनी ये खबर रोचक बनेगी, उतना ही लाभ मिलेगा हमें”। प्रधान जी ने मुस्कुराते हुये कहा।

“ओह, तो ये बात है”। राजकुमार के इतना कहने के बाद दोनों कल की प्रैस कांफ्रैंस के लिये प्रैस नोट बनाने में जुट गये। प्रधान जी बोलते जा रहे थे और राजकुमार लिखता जा रहा था। अपनी आदत के अनुसार बीच बीच में राजकुमार कुछ लाईनों को लिखने का कारण भी पूछता जा रहा था प्रधान जी से।

 

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक 02 अध्याय 14

Sankat Mochak 02
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“बहुत उपर की चीज़ है ये यूसुफ आज़ाद, पुत्तर जी। पहेलियों में ही बात करते हैं, कई बातें तो मेरी समझ में ही नहीं आयीं”। दस मिनट बाद न्याय सेना के कार्यलय में बैठे प्रधान जी ने राजकुमार की ओर देखते हुये कहा। उनके चेहरे पर यूसुफ आज़ाद का सम्मोहन अभी भी साफ देखा जा सकता था।

“मैने तो आपको पहले ही बता दिया था उनके बारे में, प्रधान जी”। राजकुमार प्रधान जी की इस हालत का मज़ा ले रहा था।

“वो तो ठीक है, पर तुझे कैसे पता लगा कि दूरदर्शन के अधिकारियों ने ही उन्हें इस मामले के हमारे पास आ जाने की सूचना दी है?” कुछ याद करते हुये कहा प्रधान जी ने।

“इस मामले की सूचना केवल तीन पक्षों के पास थी, प्रधान जी। हम, कलाकार और वो अधिकारी जिन्होंने ये सुबूत दिये हैं अनिल खन्ना के माध्यम से हमें। हमने आज़ाद को बताया नहीं, सीधे अपने नाम से शपथपत्र देने के कारण अनिल खन्ना या ऐसे किसी कलाकार के बताने की संभावना भी बहुत कम है क्योंकि वो खुद इस मामले में सामने आने से डर रहे हैं। बच गये सिर्फ वो अधिकारी, जिन्हें इस मामले में शोर मच जाने पर भी कोई हानि नहीं क्योंकि उनका नाम कोई नहीं जानता, जबकि कलाकारों का नाम सीधे तौर से शपथ पत्रों पर लिखा हुआ है”। राजकुमार प्रधान जी की ओर देखकर मुस्कुराया और फिर शुरू हो गया।

“इसलिये मैने आज़ाद से कहा था कि हमें कोई सुबूत नहीं मिले, उनके मन को टटोलने के लिये। इसके जवाब में उन्होंने केवल उन सुबूतों का जिक्र किया जो अधिकारियों के माध्यम से आये हैं, उन्होंने एक बार भी ये नहीं कहा कि किसी कलाकार ने हमें शपथ पत्र भी दिया है। इससे स्पष्ट हो गया कि ये बात अधिकारियों ने ही बतायी है उन्हें। इसीलिये मैने उन्हें प्रभावित करने के लिये पूरे आत्मविश्वास से कह दिया कि हमें पता है ये बात उन्हें अधिकारियों ने बतायी है”। राजकुमार ने अपनी बात पूरी की और प्रधान जी को देखते हुये मुस्कुराने लगा।

“और कुछ ज़्यादा ही प्रभावित कर लिया तूने उन्हें, इसीलिये तो मुझे अपना नंबर न देकर तुझे दे दिया, और वो भी पहेली वाले अंदाज़ में”। प्रधान जी ने राजकुमार को छेड़ते हुये कहा।

“वो तो कोई बड़ी पहेली नहीं थी, प्रधान जी। आज़ाद अपना नंबर देते समय दो कारणों से पहेली वाले अंदाज़ में मुस्कुरा रहे थे। एक तो वो चाहते थे कि बदले में मैं अपना नंबर उन्हें दूं और दूसरा शायद वो चाहते हैं कि इस मामले में उनके साथ बातचीत आप नहीं, मैं ही करूं”। राजकुमार ने आज़ाद की मुस्कान का भेद खोलते हुये कहा।

“ओह, तो इसीलिये तूने फौरन उनके नंबर पर कॉल कर दिया था और वो मुस्कुराने लगे थे। पर ये बात कैसे कही जा सकती है कि वो इस मामले में न्याय सेना की ओर से तुझी से बात करना चाहते हैं?” प्रधान जी एक बार फिर दुविधा में आ गये थे।

“अगर वो ऐसा न चाहते तो अपना नंबर आपको देते, मुझे नहीं। फिर बातचीत के अंत में उन्होंने कहा था कि मुझे इस मामले में अंत तक साथ रखा जाये, ये दूसरा संकेत था कि वो मेरे साथ अधिक सहज हैं। इसका कारण शायद ये है कि उनका काम करने का तरीका बहुत गोपनीय है, मुझे शहर में अधिक लोग नहीं जानते जबकि आपको शहर के सब महत्वपूर्ण लोग जानते हैं। इसलिये वो चाहते हैं कि उनके साथ संपर्क मैं रखूं”। राजकुमार ने कहा और प्रधान जी की ओर देखते हुये मुस्कुराने लगा।

“तो इसका अर्थ वो नहीं चाहते कि मेरे उनको बार बार फोन करने पर आसपास बैठे किसी व्यक्ति को ये पता चले कि न्याय सेना के साथ उनके संबंध बहुत गहरे हो चुके हैं। यानि की इस मामले में वो पत्ते छिपा कर खेलना चाहते हैं”। प्रधान जी ने राजकुमार को छेड़ते हुये कहा क्योंकि उसे भी पत्ते छिपा कर ही खेलने की आदत थी।

“और नहीं तो क्या, अपनी शेर जैसी आवाज़ सुनी है आपने? मोबाइल फोन का स्पीकर फाड़कर भी आसपास बैठे सब लोगों को बता देती है कि प्रधान जी का फोन आया है”। राजकुमार ने भी प्रधान जी को छेड़ा।

“अजीब होते हो तुम हर समय दिमाग से चलने वाले लोग भी, सीधी बात को भी जलेबी की तरह बना देते हो। जो बात सीधी कही जा सकती है, उसे पहेलियों में कहने की क्या ज़रुरत है?” प्रधान जी ने एक बार फिर राजकुमार को छेड़ा।

“सीधा होना दिल की और टेढ़ा होना दिमाग की पहचान है, प्रधान जी। इसलिये दिल से चलने वाला आदमी अधिकतर सीधी बात और दिमाग से चलने वाला आदमी अक्सर पहेलीनुमा बातें करता है”। राजकुमार ने हंसते हुये कहा।

“और आधे लोग तो समझ ही नहीं पाते इन पहेलियों को। अपने को तो दिल से चलना ही पसंद है, जिसकी बातें बड़ी आसानी से समझ जाते हैं लोग। वैसे मेरे ख्याल में अब खाना खा लेना चाहिये, बहुत भूख लग आयी है”। प्रधान जी ने एकदम से ही बात का विषय बदलते हुये कहा।

“भूख, लेकिन अभी अभी तो आपने चाय पी है, आज़ाद के पास?” राजकुमार के स्वर में शरारत थी।

“ओये एक कप चाय से क्या बनता है, उससे तो मेरी भूख और भी बढ़ गयी है। आज चिकन खाते हैं, पुत्तर जी”। प्रधान जी के चेहरे पर चिकन का नाम लेते लेते ऐसी खुशी आ गयी थी जैसे सारे दिन की भूखी पत्नी ने करवा चौथ का चांद देख लिया हो। चिकन उनकी फेवरिट डिश थी।

“चिकन तो आप ही खायेंगे प्रधान जी, अपने को तो शाकाहारी खाना ही अच्छा लगता है। पता नहीं क्यों कुछ पल के स्वाद के लिए लोग निर्दोष जीवों की हत्या करते हैं, प्रधान जी? न्याय सेना को इन निर्दोष जानवरों के पक्ष में भी लड़ाई लड़नी चाहिये”। राजकुमार को पता था अब प्रधान जी की प्रतिक्रिया क्या होगी।

“ओये चुपकर कंजरा, अगर मेरे और चिकन के बीच में आया तो अभी निकाल दूंगा तुझे न्याय सेना से। तुझे पता है न कि न्याय सेना में चिकन खाने वालों को नापसंद करना सबसे बड़ा अपराध है”। प्रधान जी की इस बात पर दोनों ही हंस पड़े। राजकुमार ने गाड़ी की चाबी उठा ली थी।

“क्यों न चलने से पहले बाऊ जी और भाजी से मिलने का समय तय कर लिया जाये, पुत्तर जी?” प्रधान जी की इस बात को सुनते ही राजकुमार ने सिर हिलाते हुये चाबी वापिस रख दी थी।

लगभग पांच मिनट के भीतर प्रधान जी ने पंजाब ग्लोरी और सत्यजीत समाचार के कार्यालयों में फोन करके बात कर ली थी।

“बाऊ जी से चार बजे मिलने का समय लिया है, भाजी आज दफ्तर नहीं आयेंगे । अब जल्दी चलो, भूख और भी बढ़ गयी है”। प्रधान जी के कहते कहते ही राजकुमार एक बार फिर गाड़ी की चाबी उठा चुका था।

 

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक 02 अध्याय 13

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“हमारे आज़ाद भाई की जय हो”। प्रधान जी ने आज़ाद के कार्यालय में प्रवेश करते ही नारा लगा दिया था। किसी भी आदमी की तारीफ करके उसके दिल में तेजी से जगह बना लेने की खास प्रतिभा थी प्रधान जी में।

“आईये, आईये प्रधान जी, बैठिये”। आज़ाद ने प्रधान जी के संबोधन पर मुस्कुराते हुये कहा और फोन पर किसी को चाय भेजने का आदेश भी दे दिया।

“बहुत बड़ी बड़ी बातें सुनी हैं आपके बारे में आज़ाद भाई, सुना है बड़े बड़े धुरंधरों की छुट्टी की है आपने उत्तर प्रदेश और हरियाणा में”। प्रधान जी ने आज़ाद को प्रभावित करने के लिये राजकुमार की दी गयी जानकारी इस्तेमाल करते हुये कहा।

“सुना तो मैने भी बहुत है आपके और न्याय सेना के इस शहर पर प्रभाव के बारे में, लेकिन आपने तो हमारे पास आने में बहुत देर लगा दी। हम तो कब से आपका इंतज़ार कर रहे थे। कहीं जस्सी का बयान पढ़कर तो नहीं आये आप?” आज़ाद ने बेबाक स्वर में इस तरह से प्रधान जी को छेड़ते हुये कहा जैसे उन्हें शत प्रतिशत पता हो कि प्रधान जी दूरदर्शन वाले मामले में ही आये हैं।

“जी……आज़ाद भाई…”। इससे अधिक कुछ नहीं कह पाये थे प्रधान जी। आज़ाद ने पहले ही दांव में चारो खाने चित्त कर दिया था उन्हें। वो समझ नही पा रहे थे कि आखिर आज़ाद को कैसे पता चल गयी इतनी गोपनीय बात। राजकुमार का दिमाग भी सक्रिय हो चुका था और वो आज़ाद के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करने के साथ साथ ही बड़ी तेजी के साथ इस मामले से जुड़े तथ्यों के बारे में जोड़ तोड़ करता जा रहा था। यूसुफ आज़ाद को उनके आने की वजह पहले से ही पता होने की बात ने उसे भी एकदम से चौंका दिया था।

“सुना है न्याय सेना इस मामले को अपने हाथ में ले चुकी है। हमें तो ये भी पता चला है कि आप लोगों के पास इस मामले से संबंधित कुछ सुबूत भी आ चुके हैं”। आज़ाद ने एक और विस्फोट किया। प्रधान जी बिल्कुल अचंभे की स्थिति में थे और उन्हें लग रहा था आज़ाद जैसे कोई जादूगर हैं जो हर बात को जादू से जान लेते हैं।

“आपने बिल्कुल गलत सुना है भाई साहिब, ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला हमें”। बिल्कुल सधे हुये स्वर में और सपाट चेहरे के साथ कहने के साथ ही राजकुमार ने धीरे से प्रधान जी का हाथ दबा दिया था। प्रधान जी को पता था इस इशारे का अर्थ है कि राजकुमार इस स्थिति को खुद हैंडल करना चाहता है।

“अच्छा नहीं मिले, तो फिर वो बिल और तस्वीरें किसको मिल गयीं?” आज़ाद एक के बाद एक धमाका करते जा रहे थे। उनकी इस बात को सुनकर प्रधान जी के चेहरे का आश्चर्य जहां और गहरा गया था, वहीं राजकुमार के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी थी।

“आप इस शहर में नयें हैं भाई साहिब, ज़्यादा भरोसा मत कीजियेगा इन दूरदर्शन के अधिकारियों पर। अक्सर गलत सूचना देते हैं, अखबार वालों को”। राजकुमार ने अपनी मुस्कुराहट को और भी अधिक उजागर करते हुये कहा, जिससे आज़ाद इस मुस्कुराहट को भली भांति देख पायें। प्रधान जी अभी भी दोनों के बीच हो रहे वार्तालाप को ध्यान से सुनकर कुछ समझने की कोशिश कर रहे थे।

“तो आपको लगता है कि हमें ये सूचना दूरदर्शन के अधिकारियों ने दी है, कोई ठोस वज़ह इतने विश्वास की?” आज़ाद अब रिलैक्स होकर बैठ गये थे और मज़ा ले रहे थे राजकुमार के साथ बातचीत का। उनके चेहरे पर दिलचस्पी के भाव आ गये थे अब।

“सारा जादू आपको ही तो नहीं आता भाई साहिब, थोड़ा बहुत हमने भी सीख रखा है”। राजकुमार ने भी शरारती मुस्कान के बीच पहेली का जवाब पहेली से ही दिया।

“आप अवश्य ही राजकुमार हैं। आपकी भी बहुत तारीफ सुनी है मैने, चलिये आज मुलाकात भी हो गयी। आपकी और हमारी तो लगता है खूब जमेगी”। कहते कहते आज़ाद और राजकुमार दोनों ही हंस दिये।

“मुझे भी कुछ पता चलेगा यहां क्या पहेलियां बुझायी जा रहीं हैं?” मामला जब प्रधान जी की बर्दाशत से बाहर हो गया तो उन्होंने बीच में बोलते हुये कहा। उनकी आवाज़ में गहरी उत्सुकुता थी।

“वो सब तो मैं आपको बाद में बता दूंगा प्रधान जी, फिलहाल आप ये समझ लीजिये कि आज़ाद भाई इस मामले में हमारे साथ हैं। या फिर ये समझ लीजिये कि ये इस मामले पर हमसे भी पहले लगे हुये हैं”। राजकुमार ने कहने के साथ ही अपनी बात की पुष्टि करने की मंशा से आज़ाद की ओर देखा।

“आपके महासचिव बिल्कुल ठीक फरमा रहे हैं प्रधान जी, इस मामले में हम आपसे भी पहले मैदान में आ चुके हैं और आपका पूरा साथ देंगे। अब आप चाय का आनंद ले सकते हैं”। आज़ाद ने राजकुमार की ओर प्रशंसा की दृष्टि से देखने के बाद कहा।

“लो फिर तो बन गयी अपनी बात, इस बात पर तो चाय बनती है”। कहने के साथ ही प्रधान जी ने चाय का कप उठाया और चुस्कियां लेनी शुरू कर दीं। उनकी इस हरकत पर दोनों मुस्कुरा दिये।

“तो क्या प्लान बनाया है आप लोगों ने इस लड़ाई को लड़ने का?” आज़ाद ने चाय का कप उठाते हुये प्रधान जी की ओर देखते हुये कहा।

“कल एक प्रैस कांफ्रैंस करेंगे आज़ाद भाई, जिसमें दूरदर्शन अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा कर सूचना एवम प्रसारण मंत्रालय से 15 दिन में इस मामले की जांच करवाने के लिये कहेंगे। जांच न करवायी जाने की सूरत में न्याय सेना के जालंधर दूरदर्शन पर जबरदस्त प्रदर्शन करने की बात कही जायेगी”। प्रधान जी ने बिना किसी हिचकिचाहट के कह दिया सब कुछ। वो समझ गये थे कि इस मामले में आज़ाद पर विश्वास किया जा सकता है।

“बिल्कुल ठीक शुरूआत सोची है आपने, ऐसा ही होना चाहिये इस मामले में। बस दो बातों का ध्यान रखना होगा आपको?” आज़ाद ने एक बार फिर से पहेली खड़ी करने वाले अंदाज़ में कहा।

“वो क्या आज़ाद भाई?” प्रधान जी के मुंह से फौरन ही निकल गया था।

“एक तो इस मामले में सारे पत्ते मत खोलियेगा अंत तक, और कोई न कोई बड़ा पत्ता बचा कर रखियेगा। बहुत बड़ा खेल है ये और दूसरी ओर भी मंझे हुये खिलाड़ी हैं। आपके हर पत्ते का तोड़ निकालने की कोशिश करेंगे वो। इसलिये कोई ऐसा बड़ा पत्ता बचा कर रखियेगा जो ऐन मौके पर खोला जाये ताकि उन्हें उसका तोड़ निकालने का समय न मिल पाये”। कहते कहते मुस्कुरा दिये थे आज़ाद।

“और दूसरी बात, आज़ाद भाई?” कहने से पहले प्रधान जी ने एक मुस्कान राजकुमार की ओर उछाली थी, जिसका अर्थ शायद ये था कि ये खेल उसकी पसंद का है।

“दूसरी बात ये है कि इस लड़ाई को बहुत लंबा लड़ना पड़ सकता है आपको। जांच न होने पर प्रदर्शन करना तो इसका एक हिस्सा रहेगा, शायद पूरी लड़ाई नहीं”। आज़ाद की बात में फिर एक पहेली थी।

“मैं कुछ समझा नहीं, आज़ाद भाई?” प्रधान जी एक बार फिर दुविधा में पड़ गये थे कि प्रदर्शन ही तो न्याय सेना का सबसे बड़ा हथियार है, उसके बाद क्या हो सकता है?

“आज़ाद भाई शायद ये कहना चाहते हैं कि हमें इस मामले में प्रदर्शन करने के बाद भी जांच न होने पर दिल्ली भी जाना पड़ सकता है, सूचना एवम प्रसारण मंत्रालय के मुख्य कार्यालय में”। राजकुमार ने आज़ाद के कुछ कहने से पहले ही अपना विचार पेश किया।

“राजकुमार ने बिल्कुल ठीक समझा है प्रधान जी, मेरा यही अर्थ था। बहुत उपर तक पहुंच है इन लोगों की। आप लोगों के प्रदर्शन के बावजूद भी सारे मामले को दबाने की पुरजोर कोशिश करेंगे ये लोग। इसलिये लंबी लड़ाई की तैयारी करके चलियेगा”। आज़ाद ने मुस्कुराते हुये कहा।

“चाहे जितनी भी लंबी लड़नी पड़े ये लड़ाई आज़ाद भाई, हम पीछे नहीं हटने वाले। एक बार मैदान में उतर गये तो फिर बिना परिणाम हासिल किये मैदान नहीं छोड़ते हम। आप निश्चिंत रहिये और बस अपना सहयोग बना कर रखिये। बाकी सब हम देख लेंगे”। प्रधान जी ने जोशीले अंदाज़ में कहा।

“फिर तो मज़ा आयेगा इस खेल में। अमर प्रकाश हर प्रकार से आपका साथ देगा इस मामले में”। आज़ाद ने कहा और फिर एक विशेष अंदाज़ में राजकुमार की ओर देखा।

“राजकुमार, आप मेरा मोबाइल नंबर नोट कर लीजिये। इस मामले में किसी भी तरह की आवश्यकता पड़ने पर सीधा मुझे फोन कर लीजियेगा”। अपना मोबाइल नंबर बोलते समय आज़ाद की आंखों में फिर एक पहेली थी।

“मैने आपके मोबाइल पर कॉल कर दी है भाई साहिब, ये मेरा नंबर है”। राजकुमार ने भी पहेली भरे अंदाज़ में ही कहा।

“राजकुमार इस मामले में न्याय सेना की जीत सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा, प्रधान जी। इसे इस मामले में अंत तक साथ रखियेगा”। एक और पहेली के साथ मुस्कुराते हुये कहा यूसुफ आज़ाद ने।

“इसे तो मैं जिंदगी भर साथ रखने वाला हूं आज़ाद भाई, और आप केवल इस केस की बात कर रहे हैं”। प्रधान जी की इस बात पर सभी हंस दिये।

 

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक 02 अध्याय 12

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“ये मुलाकात तो सफल रही पुत्तर जी, अब शाम का इंतज़ार करते हैं भाजी और बाऊ जी या आकाश जी से मिलने के लिये”। लगभग दस मिनट बाद न्याय सेना के कार्यालय में बैठे प्रधान जी ने राजकुमार से कहा।

“आपकी बात बिल्कुल ठीक है प्रधान जी, पर मेरे विचार में हमें एक बार अमर प्रकाश भी हो आना चाहिये। इतने बड़े मामले में हमें उन्हें भी विश्वास में लेकर चलना चाहिये”। राजकुमार ने कुछ सोचते हुये कहा। अमर प्रकाश ने अभी हाल ही में जालंधर से प्रकाशन शुरू किया था और न्याय सेना के कार्यालय के बिल्कुल सामने ही था इनका कार्यालय।

“बात तो तेरी ठीक है पुत्तर, पर इनका सारा स्टाफ बाहर से ही आया है, मैं किसी बड़े पदाधिकारी को नहीं जानता इस अखबार में। दैनिक प्रसारण का तो बहुत सा स्टाफ स्थानीय ही होने के कारण बहुत जानकार हैं मेरे, इस अखबार के नया होने पर भी। लेकिन अमर प्रकाश में खास किसी को नहीं जानते हम। ऐसे बिना जानकारी के ही इतने बड़े मामले में उनसे बात करना क्या ठीक रहेगा?” प्रधान जी ने कहते हुये राजकुमार की ओर उत्तर की आशा से देखा।

“आपकी बात बिल्कुल ठीक है प्रधान जी, पर मेरे दिमाग में कुछ और भी विचार हैं। कोई भी अखबार केवल खबरों के आधार पर ही चलता है और खबरें प्राप्त करते रहने के लिये स्थानीय स्तर पर समझ और पकड़ रखने वाले लोगों के साथ संबंध होना बहुत जरूरी है ताकि समय समय पर महत्वपूर्ण खबरें मिलती रहें। बाकी सारे अखबार भी इसी आधार पर काम करते हैं तो अवश्य ही अमर प्रकाश की भी यही पॉलिसी होगी। ऐसे में हमें उनके नये होने का लाभ मिल सकता है”। राजकुमार ने अपना विचार पेश करते हुये कहा।

“जरा खुल कर बताओ अपनी बात का अर्थ, पुत्तर जी”। प्रधान जी राजकुमार की बात का कुछ कुछ अर्थ समझ कर भी सारी बात उसके मुंह से सुनना चाहते थे।

“किसी भी संस्था के किसी जगह पर नया होने पर उसे लोगों के समूह की आवश्यकता होती है जिसके चलते वो अधिक से अधिक गिनती में महत्वपूर्ण लोगों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश करती है। ऐसे में जो लोग सबसे पहले उसके साथ जुड़ जाते हैं, उन्हें सबसे अधिक लाभ होता है, क्योंकि यही लोग किसी संस्था के सबसे करीबी बन जाते हैं”। राजकुमार ने अपनी बात पूरी करते हुये कहा।

“बात तो तेरी बिल्कुल ठीक है पुत्तर, मैने इस तरह से तो सोचा ही नहीं था, इस विषय में”। प्रधान जी ने राजकुमार की ओर प्रशंसा की दृष्टि से देखते हुये कहा।

“एक कारण और भी है, प्रधान जी। आपने गौर किया होगा कि जस्सी के बयान को सबसे अधिक कवरेज अमर प्रकाश नें ही दी थी। इसका अर्थ है कि उन्हें इस मामले में विशेष रूचि है। इसलिये हमें उनसे सहायता प्राप्त होने की संभावना काफी अधिक है”। राजकुमार ने एक और तर्क देते हुये कहा।

“ओये तेरी ये बात भी ठीक है, पुत्तर। कवरेज तो सबसे अधिक अमर प्रकाश नें ही दी थी और इसका अर्थ भी यही है कि वो इस मामले को उछालना चाहते हैं। तब तो जरूर मिलकर आते हैं उनसे। मैने सुना है यूसुफ आज़ाद के नाम से कोई ब्यूरो चीफ हैं इस अखबार के जिनका सब खबरों पर नियंत्रण रहता है”। प्रधान जी ने राजकुमार के विचार के साथ सहमति जताते हुये कहा।

“आपने बिल्कुल ठीक सुना है प्रधान जी, यूसुफ आज़ाद ही हैं अमर प्रकाश के ब्यूरो चीफ, और बहुत ही रोमांचक किरदार के मालिक हैं”। राजकुमार के चेहरे पर इस बार भेद भरी मुस्कुराहट थी।

“तो तूने सब पता कर लिया है पहले से ही”। प्रधान जी इन चार महीनों में राजकुमार के चेहरे पर विशेष परिस्थितियों आने वाली इस मुस्कुराहट का अर्थ भली भांति समझ चुके थे।

“जी, कल जस्सी के बयान को अमर प्रकाश में दी गई कवरेज के बाद और आपके इस काम को हाथ में लेने के निर्णय के बाद ही मैने ये काम कर लिया था। मुझे ऐसा लग रहा है कि ये अखबार इस मामले में हमारी बहुत सहायता कर सकती है। इसके ब्यूरो चीफ यूसुफ आज़ाद का चरित्र बहुत दिलचस्प है, प्रधान जी”। राजकुमार ने एक पल के लिये विराम दिया अपने शब्दों को और फिर से शुरू हो गया।

“बहुत ही ईमानदार, बेदाग, निर्भीक और बेबाक छवि रखते हैं यूसुफ आज़ाद। उत्तर प्रदेश और हरियाणा में बहुत बड़े बड़े कारनामे करके आये हैं। भ्रष्ट अधिकारियों और राजनेताओं से बहुत नफरत करते हैं, और इन प्रदेशों में तो मुख्य मंत्रियों तक को नहीं छोड़ा इन्होंने। मेरे सूत्रों ने बताया है कि पत्रकार कम और क्रांतिकारी अधिक हैं, आज़ाद”। राजकुमार ने मुस्कुराते हुए कहा।

“अच्छा तो अब तेरे सूत्र भी पैदा हो गये चार महीने में, जो मुझे भी नहीं पता। ठीक ही कहते थे क्रांतिदूत, पत्ते छिपा कर खेलने की आदत है तेरी”। प्रधान जी ने राजकुमार को छेड़ते हुये कहा। उन्हें पता था कि राजकुमार आवश्यकता से अधिक जानकारी कभी किसी को नहीं देता था, अपने सूत्र सबसे छिपा कर रखता था और कोई न कोई बड़ा पत्ता सदा बचा कर रखता था, खेल के आखिरी दांव में खोलकर जीतने के लिये। उसकी इसी आदत के कारण संगठन ने कई मामलों को बड़ी तेजी से हल कर लिया था इन चार महीनों में। ऐन मौके पर कोई बड़ा पत्ता निकाल कर रख देता था, जिसका सामने वाले के पास कोई तोड़ न हो।

“अभी मेरी बात बाकी है, प्रधान जी। बहुत ही प्रोफैशनल और व्यहारिक इंसान हैं आज़ाद तथा औपचारिकता, जज़्बात या भावनाओं के साथ कोई संबंध नहीं रखते। ईंटैलिजैंट लोगों को विशेष रूप से पसंद करते हैं और सरकार के हर विभाग तथा समाज के हर वर्ग में मजबूत खुफिया तंत्र बना कर चलते हैं”। राजकुमार ने अपनी बात पूरी करते हुये कहा।

“यानि की तेरी तरह ही दिमाग से चलते हैं, फिर तो लगता है तेरे साथ ही पटेगी उनकी, मेरे से अधिक। चलो फिर अखबार के कार्यालय में फोन करके मिलने का समय मांग लेते हैं उनसे। और हां, मेरी एक बात ध्यान से सुनो, पुत्तर जी”। प्रधान जी को जैसे एकदम से कुछ याद आ गया हो।

“मैने तुमसे पहले भी कई बार कहा है कि चाहे कोई अफसर हो या अखबार वाले, बातचीत के बीच में जब कुछ बोलने लायक हो या कोई अच्छा विचार हो तो अवश्य बोल दिया करो। आजतक तुमने मेरी इस बात पर अमल नहीं किया और चुपचाप बैठकर सब सुनते रहते हो। अपनी वाणी से सामने वाले को प्रभावित कर लेने की जबरदस्त प्रतिभा है तुम्हारे अंदर, इसका अधिक से अधिक प्रयोग किया करो”। प्रधान जी ने राजकुमार को समझाते हुये कहा।

“आपकी बात तो ठीक है प्रधान जी, पर मैं केवल इसलिये चुप बैठा रहता हूं कि कहीं मेरे बीच में बोलने पर आपका कोई जानकार आहत न हो जाये मेरी किसी बात से”। राजकुमार ने कुछ संकोच के साथ कहा।

“उसकी चिंता तू मुझ पर छोड़ दे और खुल कर बोला कर, जहां तुझे ठीक लगे। संगठन को तेरी इस प्रतिभा का पूरा लाभ उठाना है। इसकी शुरूआत आज से ही कर दे। यूसुफ आज़ाद जितने नये तेरे लिये हैं, उतने ही मेरे लिये भी। इसलिये उनके साथ मुलाकात में उन्हें प्रभावित करने की कोशिश करना अपनी प्रतिभा के माध्यम से। इससे संगठन को बहुत लाभ मिलेगा”। प्रधान जी ने राजकुमार को प्रोत्साहित करते हुये कहा।

“मैं आपकी इस बात का ध्यान रखूंगा, प्रधान जी”। राजकुमार के कहने के बाद प्रधान जी ने अमर प्रकाश के कार्यलय फोन करके यूसुफ आज़ाद से मिलने का समय ले लिया।

“अभी तो किसी काम में व्यस्त हैं आज़ाद, ठीक एक घंटे बाद मिलने का समय दिया है”। प्रधान जी ने फोन बंद करते हुये कहा।

“तब तक मैं कुछ तैयारी कर लेता हूं, इस बातचीत के लिए”। राजकुमार की इस बात पर प्रधान जी मुस्कुराये बिना न रह सके।

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक 02 अध्याय 11

Sankat Mochak 02
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राजेश क्रांतिदूत, सह संपादक दैनिक प्रसारण। इनकी मानसिक क्षमताओं का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि जानकारों के दायरे में इन्हें चाणक्य के नाम से संबोधित किया जाता था। जबरदस्त दिमाग, किसी भी स्थिति का तेजी से विशलेषण करने की क्षमता और जोड़ तोड़ करने की कला में तो महारत हासिल थी इन्हें।

दैनिक प्रसारण को जालंधर में आये अभी कुछ ही महीने हुये थे और क्रांतिदूत को सह संपादक के रूप में नियुक्त किया गया था। क्रांतिकारी सोच और सदा कुछ नया करने का प्रयास करते रहने के कारण इन्हें क्रांतिदूत का नाम दिया था इनके जानकारों ने, और इस नाम को फिर इन्होंने अपना तक्कलुस बना लिया था।

शहर के हर महत्वपूर्ण व्यक्ति की ताकत और कमज़ोरियों का पूरा हिसाब रहता था इनके पास, और मौका आने पर इस जानकारी से लाभ उठाते थे क्रांतिदूत। किसी भी प्रकार की स्थिति में अपने चेहरे पर कोई विशेष भाव नहीं आने देते थे क्रांतिदूत, ताकि इनका चेहरा पढ़ा न जा सके। सामान्य से कुछ बड़ी आंखें स्कैनर का काम करतीं थीं और सामने वाले के दिल के अंदर तक घुस जातीं थी, इनके काम की जानकारी निकाल लाने के लिये।

उस समय अपने कार्यालय में ही बैठे हुये कुछ पेपर्स को देख रहे थे क्रांतिदूत, जब एक कर्मचारी ने बताया कि प्रधान जी मिलना चाहते हैं। उन्हें अंदर भेजने के साथ साथ चाय का प्रबंध करने के लिये भी कहा क्रांतिदूत ने। प्रधान जी उनके बहुत पुराने मित्र थे और उनसे क्रांतिदूत का विशेष लगाव था।

“ओ मेरे पंडित जी की जय हो”। चंद ही पलों में प्रधान जी का जाना पहचाना स्वर सुनायी दिया तो क्रांतिदूत मुस्कुराये बिना न रह सके। प्रधान जी के साथ साथ ही राजकुमार भी भीतर प्रवेश कर चुका था।

“आईये प्रधान जी, बैठिये”। कहते कहते क्रांतिदूत राजकुमार को बहुत गहरी दृष्टि से देख रहे थे। किसी भी नये व्यक्ति पर जल्दी विश्वास नहीं करते थे क्रांतिदूत और बहुत गहरायी से अध्ययन करते थे उसका। राजकुमार हालांकि पहले भी दो बार आ चुका था प्रधान जी के साथ, पर फिर भी उसे शंका की दृष्टि से ही देखते थे क्रांतिदूत।

“और सुनाईये प्रधान जी, सब ठीक ठाक है, क्या चल रहा है आजकल?” क्रांतिदूत ने बिना एक पल गंवाये काम की बात पर आते हुये कहा, औपचारिकताओं में अधिक समय लगाना पसंद नहीं था उन्हें।

“सब ठीक है आपके राज में मेरे पंडित जी, बस एक नया काम पकड़ा है, इसलिये सबसे पहले आपका आशिर्वाद लेने चले आये”। प्रधान जी ने क्रांतिदूत की खुशामद करते हुये कहा। इन चार महीनों में राजकुमार जान चुका था कि किसी की तारीफ करके अपना काम निकलवा लेने की कला में माहिर थे, प्रधान जी।

“कोई बड़ा ही काम लगता है प्रधान जी, जो प्रैस कांफ्रैंस करने से भी पहले ही मिलने आ गये आप। इसका अर्थ सामने कोई बड़ा खिलाड़ी है और आप लड़ाई लड़ने से पहले अपनी ताकत बढ़ा लेना चाहते हैं”। क्रांतिदूत ने सपाट चेहरे के साथ कहा, हालांकि उनकी आंखों की चमक ये बता रही थी कि उन्होंने प्रधान जी का भेद जान लिया है।

“ओ आप तो जानी जान हैं मेरे पंडित जी, इसीलिये तो आपको चाणक्य पंड़ित कहते हैं सब। मामला सचमुच में बड़ा है इस बार। जालंधर दूरदर्शन में फैले कई प्रकार के भ्रष्टाचार से जुड़ा है ये मामला, और न्याय सेना ने इसे अपने हाथ में लेने का फैसला कर लिया है”। प्रधान जी ने क्रांतिदूत की प्रशंसा करते हुये कहा। क्रांतिदूत की मानसिक क्षमता से बहुत प्रभावित होता था राजकुमार, और बड़े ध्यान से नोट करता रहता था उनके हर एक हाव भाव को।

“ओह तो ये मामला है, जस्सी के कल छपे बयान के बाद बहुत बवाल मचा हुआ है इस मामले में। इस मामले को तूल देने का बिल्कुल सही समय चुना है आपने, अखबारें खुद इस मामले में नया मसाला ढूंढ रहीं हैं। जस्सी ने बात की क्या आपसे?” क्रांतिदूत एक बार फिर बात की जड़ के आस पास पहुंच गये थे।

“बस कुछ ऐसा ही समझ लीजिये आप”। प्रधान जी ने अपने स्वभाव के विपरीत छोटा सा उत्तर देते हुये धीमे से मुस्कुराते हुये कहा।

“क्या बात है प्रधान जी, कोई विशेष ही बात लग रही है इस मामले में जो मुझसे भी छिपायी जा रही है। ऐसा कौन सा बारूद लग गया आपके हाथ जो किसी को दिखाना नहीं चाहते आप, विस्फोट करने से पहले”। क्रांतिदूत की नज़र एक बार फिर प्रधान जी के चेहरे के रास्ते उनके दिल तक घुस गयी थी। एकदम सटीक अनुमान लगा लिया था उन्होंने। राजकुमार रोमांचित होकर क्रांतिदूत की ओर देखे जा रहा था, जिनके चेहरे पर अब भी कोई विशेष भाव नहीं थे पर आंखों में अदभुत चमक और होंठों पर भेद भरी मुस्कान थी।

“ऐसा कुछ नहीं है मेरे पंड़ित जी, बस कुछ कलाकारों ने शिकायत की है और अपना नाम न बताने का निवेदन भी किया है, इसलिये किसी का नाम नहीं ले रहा मैं”। प्रधान जी ने झेंपते हुये कहा और फिर कुछ न सूझता देखकर टेबल पर आ चुकी चाय की चुस्कियां लेने लगे जल्दी जल्दी से। राजकुमार समझ गया था कि इस मनोवैज्ञानिक खेल में क्रांतिदूत ने प्रधान जी को असहज कर दिया था।

“चलिये छोड़ दिया आपको, नहीं पूछता किसी का नाम। बस केवल इतना बता दीजिये कि अगर दैनिक प्रसारण आपकी खुल कर सहायता करे इस मामले में तो हमारी नाक तो नहीं कटेगी बाद में? मेरा मतलब है कि पुख्ता सुबूत हैं न आपके पास दूरदर्शन के खिलाफ?”। क्रांतिदूत ने एक बार फिर ठीक जगह पर चोट की थी और साथ में ही ये संकेत भी दे दिया था कि दैनिक प्रसारण इस मामले में न्याय सेना का साथ देने के लिये तैयार है।

“उसकी आप चिंता मत कीजिये, बिल्कुल भी। एकदम ठोक बजा कर पकड़ा है ये मामला हमने”। एक दम जोश में भरकर कहा प्रधान जी ने। चाय का कप अभी भी उनके हाथ में ही था।

“कुछ बहुत बड़ा हाथ लग गया है आपके, जो इतने जोश में हैं, प्रधान जी। तो ठीक है फिर, आप डट कर कीजिये ये लड़ाई, दैनिक प्रसारण आपके साथ है”। एक बार फिर से प्रधान जी को छेड़ते हुये कहा, क्रातिदूत ने।

“फिर तो आप देखते जाईये, क्या हाल करते हैं हम दूरदर्शन के भ्रष्ट अधिकारियों का”। प्रधान जी क्रांतिदूत के इस आश्वासन पर प्रसन्न हो गये थे एकदम से।

“इस मामले में आपके काम करने का तरीका कुछ बदला बदला सा लग रहा है, प्रधान जी। खुलकर खेलने की बजाये आप इस बार पत्ते छिपा कर खेलना चाहते हैं। ये किसका असर हो गया है आपके उपर?” कहते कहते क्रांतिदूत ने अपनी दृष्टि राजकुमार के चेहरे पर लगा दी थी।

“चलो पुत्तर जी, अब यहां से खिसक चलें, इससे पहले कि पंडित जी की दिव्य दृष्टि तुम्हारे दिल के भेद निकालने शुरू कर दे”। क्रांतिदूत का इशारा समझ कर हंसते हुये कहा प्रधान जी ने, और कुर्सी से उठकर खड़े हो गये, खाली कप टेबल पर रखते हुये।

“आपका ये नया साथी कुछ अलग है, प्रधान जी। इसका चेहरा पढ़ना इतना आसान नहीं, चेहरे के भाव छिपाने की कला आती है इसे”। क्रांतिदूत ने हल्की मुस्कुराहट के साथ राजकुमार के चेहरे पर ही नज़र जमाये हुये कहा।

“फिर तो इसका मुझपर असर नहीं, आपका इसपर असर हो गया है पंडित जी, क्योंकि इस कला के सबसे बड़े उस्ताद तो आप ही हैं”। प्रधान जी के इतना कहते ही सब हंस दिये। राजकुमार अभी भी क्रांतिदूत की पैनी दृष्टि को अपने चेहरे पर महसूस कर रहा था और अपने आप को सामान्य रखने की पूरी चेष्टा कर रहा था।

 

हिमांशु शंगारी

संकटमोचक 02 अध्याय 10

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“आपने इतनी बड़ी बात कह दी अनिल खन्ना से, प्रधान जी? ऐसे कब परख लिया आपने मुझे?” राजकुमार अभी भी प्रधान जी की उस बात के बारे में ही सोच रहा था। अनिल खन्ना अभी अभी कार्यालय से निकला ही था।

“ओये तेरी तरह मैं लोगों को सवाल पूछ पूछ कर नहीं परखता, कंजरा। मेरा अपना तरीका है लोगों को परखने का। मैं लोगों को दिमाग से नहीं, दिल से परखता हूं। तुझे पहले दिन मिलने के बाद ही मेरे दिल ने बता दिया था मुझे कि तेरी मेरी खूब जमने वाली है”। प्रधान जी ने राजकुमार को छेड़ते हुये कहा। वो जानते थे कि राजकुमार जल्दी किसी पर विश्वास नहीं करता था और किसी भी आदमी के साथ काम करने से पहले उसके बारे में बहुत जांच पड़ताल करने की आदत थी उसे।

“पर दिल तो दिल है प्रधान जी, धोखा भी तो दे सकता है। आखिर भगवान ने भी दिमाग को दिल से उपर जगह दी है शरीर में, कोई तो कारण होगा न?” राजकुमार ने भी शरारत का जवाब शरारत से ही दिया।

“इसीलिये तो दिमाग सबसे अलग थलग पड़ा रहता है शरीर में, जबकि दिल सारे शरीर के साथ मिलजुल कर रहता है। दिमाग हमें लोगों पर शक करवा के उनसे दूर करवाता है जबकि दिल हमें उनके साथ प्यार करवा के उनसे जोड़ देता है”। प्रधान जी ने साधारण स्वर में ही बहुत गहरी फिलॉस्फी की बात कह दी थी। अधिकतर समय हर बात का जवाब तुरंत दे देने वाले हाजिर जवाब राजकुमार को भी प्रधान जी की इस बात का कोई उचित जवाब नहीं सूझ रहा था और वो मन ही मन प्रधान जी की इस बात की गहरायी तक पहुंचने की कोशिश कर रहा था।

“मेरी एक बात याद रखना पुत्तर जी, दिल से चलने वाले आदमी पर सब लोग आसानी से विश्वास कर लेते हैं जबकि केवल दिमाग से काम लेने वाले लोग अक्सर अकेले रह जाते हैं, बिल्कुल दिमाग की तरह ही। दिमाग शरीर में सबसे उपर रहकर सारे शरीर को नियंत्रित करने की कोशिश करता है जबकि दिल शरीर के साथ रहकर उसे लगातार रक्त और अन्य पोषक तत्व प्रदान करके उसका पोषण करता है। दोनों में फर्क बिल्कुल साफ है पुत्तर जी, दिमाग नियंत्रित करना चाहता है और दिल प्यार तथा सेवा करना चाहता है”। प्रधान जी ने एक पल सांस ली और वहीं से शुरू हो गये।

“इसलिये अगर दुनिया में सचमुच कुछ बड़ा करना चाहते हो तो दिमाग के साथ साथ दिल की ताकत को भी पहचानो, पुत्तर जी। लोगों के दिल से लेकर तुम्हारे भगवान शिव तक जाने का रास्ता दिल ही निकालता है, दिमाग नहीं”। प्रधान जी ने मुस्कुराते हुये अपनी बात पूरी की। उन्हें पता था कि राजकुमार की भगवान शिव पर अपार श्रद्धा थी।

“ऐसे तो मैने कभी सोचा ही नहीं, प्रधान जी। हालांकि मै दिमाग का प्रयोग करने का ही समर्थक हूं, पर आपकी बातों में जबरदस्त तथ्य हैं, जिन्हें खुद मेरा दिमाग भी सहमति दे रहा है”। राजकुमार के चेहरे पर ऐसा आश्चर्य नज़र आ रहा था जैसे उसे आज ही पता चला हो कि सारी दुनिया को जल देने वाली वर्षा भी ये सारा जल सागर से ही लेती है।

“दिमाग के बिना भी दिल सारी दुनिया को प्रेम से जीत सकता है पुत्तर जी, पर दिल के बिना दिमाग दुनिया के एक भी आदमी को नहीं जीत सकता। इसलिये मैं दिमाग पर अधिक जोर न देकर दिल से ही काम लेता हूं”। प्रधान जी अभी भी राजकुमार की ओर देखकर मुस्कुराते जा रहे थे।

“ये तो बहुत बड़ा सबक सिखा दिया आपने मुझे आज, प्रधान जी। मैने तो सोचा ही नहीं था कि दिल के पास इतनी जबरदस्त ताकत होती है”। राजकुमार का आश्चर्य अभी भी वैसे का वैसे ही बना हुआ था।

“और दिल की इसी जबरदस्त ताकत ने मुझे पहली ही मुलाकात में बता दिया था कि तुझसे मेरा कुछ विशेष रिश्ता बनने वाला है। मैने तुझे आज से पहले कभी नहीं बताया पुत्तर, पर तेरे आस पास होने पर मेरा दिल सदा मुझसे कहता है कि तुझसे पिछले जन्म का कोई बहुत आत्मीय संबंध है मेरा। ये है तुझ पर इतने कम समय में मेरे इतने अधिक विश्वास करने का कारण”। प्रधान जी ने जैसे राजकुमार को आश्चर्य के सागर में ही डुबो देने का फैसला कर लिया था आज।

“ये तो बड़ी अदभुत बात कही आपने, प्रधान जी। आश्चर्य है कि मैं आज तक अपने आपके साथ इस तरह के संबंध को महसूस नहीं कर पाया, हालांकि मैं आपका बहुत आदर करता हूं और आपके साथ काम करना मुझे बहुत अच्छा लगता है”। आश्चर्यचकित राजकुमार के मुंह से जैसे खुद ब खुद निकल गयें हों ये शब्द।

“वो इसलिये पुत्तर जी, कि तुमने सदा अपने दिमाग को ही पुकारा है हर काम के लिये, दिल को मौका ही कब दिया है तुमसे बात करने का, अपनी ताकत दिखाने का? एक बार देकर देखो अपने दिल को ये मौका, मेरे साथ ही नहीं, और भी बहुत लोगों के साथ आत्मीय संबंध होने के बारे में बता देगा तुम्हें”। कहते हुये प्रधान जी ने अपनी बात को विराम दिया।

राजकुमार साफ साफ महसूस कर रहा था कि प्रधान जी की एक एक बात आज उसके दिमाग में नहीं बल्कि सीधी दिल की गहराईयों में उतरती जा रही थी। एक अदभुत रोमांच का अहसास हो रहा था उसे और ऐसा लग रहा था जैसे जीवन में पहली बार वो अपने दिल की धड़कन इतने साफ तौर पर सुन पा रहा था।

“अवश्य ही भगवान शिव की विशेष कृपा हुयी है आज मुझपर प्रधान जी, जो आपके मुख से जीवन के इतने अमूल्य सत्य जान पाया हूं मैं। आपसे वादा करता हूं कि आज के बाद अपने दिमाग के साथ साथ अपने दिल को भी पूरा मौका दूंगा अपनी उपस्थिति बताने का और अपनी ताकत दिखाने का”। आश्चर्य और प्रसन्नता से मिश्रित स्वर में कहा राजकुमार ने।

“यानि कि अपने दिमाग का इस्तेमाल करना फिर भी नहीं छोड़ेगा तू, कंजर”। प्रधान जी ने एक बार फिर चुटकी लेते हुये कहा।

“वो तो हो ही नहीं सकता, प्रधान जी। दिमाग से तो मेरा बचपन का प्यार है, इतनी जल्दी थोड़े चले जायेगा”। राजकुमार के ये कहते ही दोनो हंस दिये।

“अब काम की बात पर आ जाते हैं। ये सारे पेपर्स तुम्हें अपने पास रखने हैं पुत्तर जी, इन्हें न्याय सेना के कार्यालय में या मेरे घर पर नहीं रखा जा सकता। दोनों ही जगह आने जाने वालों का तांता लगा रहता है”। प्रधान जी ने अनिल खन्ना के दिये हुये पेपर्स की ओर देखते हुये कहा।

“यानि कि आपका घर दिल की तरह भरा भरा और मेरा घर दिमाग की तरह अकेला अकेला है, प्रधान जी”। राजकुमार ने शरारत करते हुये कहा। उसे खुद ही अपनी ये बात ठीक लग रही थी और एक बार फिर उसका ध्यान प्रधान जी की बातों पर चला गया था। इस बार उसने प्रधान जी से इतना विश्वास करने का कारण नहीं पूछा था, क्योंकि उसके दिल ने उसे ये कारण बता दिया था।

“बातें बनाने में उस्ताद है तू, चल अब आगे की रणनिति बना लेते हैं”। प्रधान जी के इतना कहते ही राजकुमार सिर हिला कर गंभीर हो गया। इस तरह के बड़े मामले को उसने इससे पहले कभी डील नहीं किया था, इसलिये वो प्रधान जी की ओर उनकी रणनीति जानने के लिये देख रहा था।

“सबसे पहले हमें इस मामले में एक प्रैस कांफ्रैंस करनी होगी। इस प्रैस कांफ्रैस में जालंधर दूरदर्शन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये जायेंगे और केंद्र सरकार से पंद्रह दिन के अंदर जांच करवाने की मांग की जायेगी। जांच न करवाये जाने पर न्याय सेना द्वारा प्रैस कांफ्रैंस से पंद्रह दिन बाद जालंधर दूरदर्शन के बाहर जबरदस्त प्रदर्शन करने की बात कही जायेगी”। प्रधान जी ने अपनी बात पूरी करते हुये कहा।

“पंद्रह दिन क्या बहुत अधिक नहीं हो जायेंगे, प्रधान जी? आमतौर पर तो आप किसी मामले में इतना समय देने का समर्थन नहीं करते। तो फिर इस मामले में क्यों?” राजकुमार ने शंकित स्वर में पूछा।

“हर मामला एक तरह का नहीं होता पुत्तर जी, इस बात को अच्छी प्रकार से समझ लो। आम तौर पर हमारा वास्ता शहर की पुलिस, प्रशासन या अन्य किसी डिपार्टमैंट से पड़ता है। ऐसी स्थिति में तीन से सात दिन देना बहुत होता है क्योंकि हमारे प्रैस कांफ्रैंस करते ही संबंधित डिपार्टमैंट को तुरंत पता चल जाता है”। प्रधान जी ने राजकुमार को समझाते हुये कहा।

“किन्तु इस मामले में जांच केवल केंद्र सरकार करवा सकती है। तीन चार दिन में तो ये खबर भली प्रकार से पहुंच भी नहीं पायेगी सूचना एवम प्रसारण मंत्रालय में। फिर और भी बहुत काम रहते हैं उनके पास देश भर से। इसलिये इस मामले में पंद्रह दिन का समय देना ही ठीक है, जिससे कि मंत्रालय को इस मामले को समझने और कार्यवाही करने का उचित समय मिल जाये”। अपनी बात कहकर प्रधान जी मुस्कुराने लगे। उन्हें पता था कि राजकुमार उनके हर छोटे बड़े पैंतरे को बहुत ध्यान से सीख रहा था और जो समझ में नहीं आता था, तुरंत पूछ लेता था।

“ये बात तो बिल्कुल ठीक कही आपने, प्रधान जी”। राजकुमार ने जैसे सब कुछ समझते हुये कहा। इन छोटे-बड़े फैसलों से पिछले चार महीनों में राजकुमार ये समझ चुका था कि प्रधान जी के पास व्यवहारिक ज्ञान और अनुभव बहुत अधिक था। इसका कारण स्पष्ट रूप से उनके द्वारा पिछले कई वर्षों से समाज सेवा के लिये इस प्रकार के काम करते रहना था, जिससे अलग अलग तरह की स्थितियों से उनका वास्ता पड़ता रहता था और अनुभव प्राप्त होता रहता था।

“लेकिन प्रैस कांफ्रैंस से भी पहले हमें एक और काम करना होगा, पुत्तर जी। हमें हर बड़े अखबार के संचालक से मिलना होगा और उनसे सहायता मांगनी होगी”। प्रधान जी ने एक और खुलासा किया, उन्हें पता था अब राजकुमार का अगला प्रश्न क्या होगा।

“पर वो क्यों प्रधान जी, आम तौर पर तो आप ऐसा नहीं करते?” आशानुसार ही राजकुमार का ये प्रश्न सुनकर प्रधान जी मुस्कुरा दिये।

“वो इसलिये पुत्तर जी, कि इन चार महीनों में तुमने न्याय सेना को केवल सामान्य या मध्यम स्तर के मामले डील करते हुये देखा है। ये मामला बहुत बड़ा है, इसलिये इसकी रणनीति भी अलग ही होगी। दूरदर्शन अपने आप में ही मीडिया का एक बहुत बड़ा हिस्सा है, इसलिये लगभग सारे बड़े अखबारों के साथ बहुत अच्छे संबंध होंगें इसके उच्च अधिकारियों के”। प्रधान जी ने बात को विराम देते हुये राजकुमार की ओर भेदभरी दृष्टि से देखा।

“और वो अधिकारी इस मामले में अखबारों को कवरेज दबाने के लिये बोल सकते हैं। इसलिये हमें पहले हर बड़े अखबार के संचालक से इस मामले में बात करके उसका रुख देखना होगा, ताकि हमें ये पता चल सके कि इस मामले में हम अखबारों से कितने सहयोग की अपेक्षा कर सकते हैं”। राजकुमार ने सबकुछ समझ जाने वाले भाव में कहा।

“ओ तेरे बच्चे जीन, बड़ा तेज़ दिमाग है तेरा। एक सिरा हाथ में आते ही पूरी पहेली हल कर देता है तू”। प्रधान जी ने राजकुमार की प्रशंसा करते हुये कहा और अपनी बात को आगे बढ़ाया।

“इस तरह के बड़े मामलों में अखबारों का योगदान बहुत महत्वपूर्ण होता है पुत्तर जी, जिसके चलते सबसे पहले हमें इस मोर्चे पर अपनी ताकत को तोल लेना चाहिये। इससे हमें पता चल जायेगा कि बाकी बचे मोर्चों पर कितनी ताकत लगानी होगी हमें इस लड़ाई को जीतने के लिये”। प्रधान जी ने अपनी बात पूरी की तो राजकुमार एक बार फिर सवाल पूछने वाली नज़र से उनकी ओर देख रहा था।

“किसी किसी मामले में विभन्न कारणों के चलते अखबार खुल कर हमारा साथ नहीं दे पाते, पुत्तर जी। फिर ऐसे मामलों में हम हज़ारों पोस्टर्स बनवा कर शहर के कोने कोने में लगवाते हैं जिससे कि हमारा मुद्दा लोगों की दृष्टि में आ सके और चर्चा का विषय बन सके। इस तरह के मामलों में अधिक से अधिक चर्चा बहुत सहायता करती है हमारी, क्योंकि इससे संबंधित डिपार्टमैंट के अधिकारियों पर बहुत मनोवैज्ञानिक दबाव बनता है”। राजकुमार ध्यान से प्रधान जी की सारी बातें सुनता और समझता जा रहा था।

“किसी भी प्रकार की लड़ाई सबसे अधिक मनोवैज्ञानिक स्तर पर ही लड़ी जाती है, पुत्तर जी। अगर आपने मनोवैज्ञानिक स्तर पर सामने वाले को विचलित कर दिया या डरा दिया तो फिर आपकी जीत की संभावना बहुत बढ़ जाती है क्योंकि सामने वाले की हिम्मत टूट जाती है”। प्रधान जी एक बार राजकुमार की ओर देखकर मुस्कुराये।

“और हिम्मत टूटने के बाद कोई भी लड़ाई जीती नहीं जा सकती”। राजकुमार ने प्रधान जी की बात पूरी करते हुये कहा।

“आज तुम्हें एक और बहुत महत्वपूर्ण बात बताता हूं, पुत्तर जी। इसे ध्यान से सुनो और समझो”। राजकुमार का पूरा ध्यान प्रधान जी के चेहरे पर ही केंद्रित था।

“तुम्हें याद है पहली बार कार्यालय आने पर मैने तुम पर बहुत जोर से बनावटी क्रोध का प्रदर्शन किया था। वो केवल तुम्हारा मनोवैज्ञानिक स्तर देखने के लिये था। अधिकतर लोग मेरे इस क्रोध वाले रूप को देखकर या तो बिल्कुल ही डर जाते हैं या फिर विचलित हो जाते हैं। इससे मुझे पता चल जाता है कि इस आदमी को हराने में अधिक मुश्किल नहीं होगी”। प्रधान जी ने एक और रहस्य खोला।

“ओह, तो इसीलिये आपने कहा था कि मैं तो तुझे परख रहा था। आप केवल मनोवैज्ञानिक स्तर पर मेरी मजबूती या कमज़ोरी को देखना चाहते थे”। राजकुमार ने एक बार फिर सब समझ जाने वाले अंदाज़ में कहा।

“बिल्कुल ठीक जगह पहुंच गया है तू, यही कारण था तुझपर क्रोध करने का। तेरे विचलित न होने पर मैं समझ गया था कि तू कोई बड़ा कंजर है, तुझसे दुश्मनी करने में नहीं, दोस्ती करनें में ही लाभ है”। प्रधान जी राजकुमार की ओर देख कर हंस दिये।

“और इसीलिये आपने मुझे संगठन में शामिल कर लिया”। राजकुमार ने भी मुस्कुराते हुये कहा।

“ये अकेला कारण तो नहीं था, पर ये भी एक महत्वपूर्ण कारण था। तेरे प्रधान के गुस्से को बिना विचलित हुये झेल जायें, ऐसे बहुत कम लोग हैं इस शहर में। बड़े बड़े अधिकारी भी झेल नहीं पाते मेरा वो रूप। जब तू मेरे उस रुप से भी नहीं डरा और अपनी बात पर अड़ा रहा तो मैं समझ गया कि तुझे जल्दी कोई डरा नहीं सकता, और एक निडर योद्धा तो किसी भी सेना की शान ही बनता है”। प्रधान जी के इन शब्दों के साथ ही साथ राजकुमार सोच रहा था कि उपर से भोला दिखने वाले इस आदमी के पास कितना जबरदस्त व्यवहारिक ज्ञान है कई मामलों में।

“ये बात तो मेरी मां भी कहती है प्रधान जी, कि एक बार ये किसी ज़िद पर अड़ जाये तो फिर इसे किसी भी तरह से डरा कर या दबा कर उस ज़िद से हटाया नहीं जा सकता, केवल प्यार से समझा कर ही मनाया जा सकता है। मुझे ढ़ीठ कहकर बुलाती हैं वो, कि एक बार अड़ गया तो अड़ गया”। राजकुमार को समझ नहीं आ रहा था कि वो अपनी खूबी बता रहा है या खामी।

“और लड़ाई में तो केवल अड़े रहने वाले लोग ही जीत हासिल करते हैं। हर तरह के दबाव को झेलकर भी लड़ते रहना ही योद्धा होने की निशानी है”। प्रधान जी एक के बाद एक सबक देते जा रहे थे राजकुमार को।

“समझ गया प्रधान जी, तो फिर कहां से शुरू किया जाये, अखबार संचालकों से मिलने का ये अभियान”। राजकुमार सबकुछ समझ कर एक बार फिर मुद्दे की बात पर आ गया था।

“बाऊ जी या भाजी को तो चार बजे के बाद ही मिला जा सकता है, क्यों न अपने क्रांतिदूत भाई को मिल लिया जाये?” कहते कहते प्रधान जी ने अपना मोबाइल फोन निकाला और एक नंबर डायल कर दिया।

“ओ नमस्कार मेरे पंडित जी, मेरे ब्राहमण देवता……… ओ सब ठीक है जी। बस आपके दर्शन करने का मन किया तो फोन कर लिया……… आ जायें फिर………… दस मिनट में पहुंच गये जी”। प्रधान जी के फोन बंद करते करते राजकुमार ने गाड़ी की चाबी उठा ली थी। वो समझ चुका था कि अब उन्हें क्रांतिदूत के पास जाना है।

 

हिमांशु शंगारी

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आशा के अनुसार ही दूसरे दिन ठीक ग्यारह बजे अनिल खन्ना न्याय सेना के कार्यालय पहुंच गया था और इस समय अपने अपने कप से चाय की चुस्कियां ले रहे थे प्रधान जी, अनिल खन्ना और राजकुमार। संगठन के बाकी पदाधिकारी बाहर के केबिन में ही थे।

“मेरे ख्याल से अब तो न्याय सेना को इस मामले को अपने हाथ में लेने से कोई ऐतराज़ नहीं होना चाहिये, प्रधान जी”। कमरे में अनिल खन्ना का स्वर गूंज़ उठा। साथ ही उसका ध्यान राजकुमार की ओर गया जो चाय पीने के साथ साथ ही बड़े ध्यान से अनिल शर्मा के दिये हुये पेपर्स को देख रहा था।

“बस दो मिनट प्रतीक्षा कीजिये अनिल जी, राजकुमार को ये पेपर्स देखकर अपनी तस्सली कर लेने दीजिये”। प्रधान जी ने अनिल खन्ना की ओर देखकर मुस्कुराते हुये कहा। वो जानते थे कि राजकुमार पेपर्स को अच्छी तरह से चैक किये बिना मानेगा नहीं। प्रधान जी को उसकी ये आदत बहुत पसंद थी। किसी भी बात को ठीक से सोचने समझने और परखने के बाद ही कोई राय देता था उसपर।

“पेपर्स जबरदस्त हैं, प्रधान जी”। लगभग एक मिनट के बाद राजकुमार ने जब चेहरा उठाया तो उसकी आंखें हीरे जैसीं चमक रहीं थीं। प्रधान जी समझ गये कि राजकुमार को इन पेपर्स में कुछ विशेष नज़र आ गया है।

“ऐसा क्या देख लिया है तूने इन पेपर्स में, जो इतना खुश दिखाई दे रहा है?” प्रधान जी ने राजकुमार को छेड़ते हुये कहा। उन्हें भी जल्द से जल्द ये जानने की उत्सुकुता हो चली थी।

“मुझे इनमें कलाकारों की और न्याय सेना की बहुत बड़ी जीत दिखाई दे गई है, प्रधान जी। अनिल जी सहित चार कलाकारों के अटैस्टिड़ शपथपत्र हैं कि इन्होंने किस किस तिथि को दूरदर्शन के किस किस अधिकारी को कितने कितने रूपये दिये थे रिश्वत के तौर पर, उनके मजबूर करने पर”। राजकुमार ने मुस्कुराते हुये कहा।

“ये तो कमाल कर दिया आपने, अनिल जी”। प्रधान जी ने अनिल खन्ना की ओर देखते हुये प्रशंसनात्मक स्वर में कहा।

“ये कमाल यहीं खत्म नहीं हो जाता, प्रधान जी। अनिल जी ने कुछ और भी बहुत जबरदस्त दिया है”। राजकुमार की इस पहेली ने एक बार फिर प्रधान जी का ध्यान खींचा।

“ओये तो जल्दी से बोल न कंजर, सस्पैंस क्यों पैदा कर रहा है?” प्रधान जी ने राजकुमार की ओर नकली गुस्से से देखते हुये कहा। अनिल खन्ना ने चुप रहकर इस नोंक झोंक का आनन्द लेने का फैसला कर लिया था।

“कुछ और पेपर्स दिये हैं अनिल जी ने, जिनमें से कुछ पेपर्स ये बताते हैं कि पिछले दो सालों में दूरदर्शन ने कई महंगी मशीनों को बदलने के लिये मंत्रालय से करोड़ों रुपया लिया है। खरीदी गईं कुछ मशीनों के बिल्स की फोटो कॉपीयां भी हैं और इसके साथ ही कुछ पेपर्स और दूरदर्शन के अंदर ही खींची गयीं कुछ इस तरह की तस्वीरें हैं जो ये बताती हैं कि आज भी वही पुरानी मशीनें दूरदर्शन के अंदर काम कर रहीं हैं, जिन्हें कागजों में बेकार बता कर कबाड़ के भाव बेच दिया गया है”। एक पल के लिये सांस लिया राजकुमार ने और फिर से शुरू हो गया।

“बारूद हैं ये पेपर्स प्रधान जी, और अगर ठीक तरह से इस्तेमाल किया गया इन्हें तो इतना बड़ा धमाका कर सकते हैं कि पूरा जालंधर दूरदर्शन उड़ाने के साथ साथ सूचना एवम प्रसारण मंत्रालय के दिल्ली स्थित कार्यालय की इमारत को भी हिला सकते हैं”। राजकुमार की आंखों की चमक बढ़ती ही जा रही थी।

“ये तो महाकमाल कर दिया आपने, अनिल जी। कहां से पैदा कर लिये आपने ये सुबूत रातों रात?” प्रधान जी ने प्रशंसा और उत्सुकुता के मिले जुले भावों के साथ अनिल खन्ना से पूछा। राजकुमार के चेहरे पर भी अनिल खन्ना के लिये प्रशंसा के भाव थे।

“रातों रात पैदा नहीं किये प्रधान जी, बहुत देर से मौजूद हैं ये कागज़ात। आप तो जानते हीं हैं कि हर डिपार्टमैंट में कुछ न कुछ कर्मचारी ईमानदार भी होते हैं। ऐसे ही कुछ ईमानदार कर्मचारी बड़ी देर से दूरदर्शन के अंदर हो रहे भ्रष्टाचार के सुबूत इक्कठे कर रहे थे। आज उचित मौका देखकर उन्होंने ये सुबूत जाहिर कर दिये”। अनिल खन्ना ने अपनी प्रशंसा से प्रसन्न होते हुये कहा।

“ओह, तो ये सुबूत बहुत लंबे समय में धीरे धीरे करके इक्कठे किये गये हैं। पर आज से पहले इनका इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया फिर?” प्रधान जी के स्वर में आश्चर्य साफ झलक रहा था।

“इतना आसान नहीं है प्रधान जी, आपको तो पता ही है कि कई सामाजिक संगठन ऐसे सुबूतों को लेकर न केवल भ्रष्ट अधिकारियों को ब्लैकमेल करके धन ऐंठ लेते हैं, बल्कि सुबूत देने वालों के नाम भी बता देते हैं। और उच्च अधिकारियों का हाल तो मैं कल ही आप को बता चुका हूं, इसलिये कोई हिम्मत नहीं कर रहा था इस काम को करने की”। अनिल खन्ना ने सांस लेने के लिये एक पल का विराम दिया अपनी वाणी को।

“वो तो आपकी छवि इतनी बेदाग है इस शहर में कि आपका नाम सुनते ही फौरन सौंप दिये गये मुझे ये सुबूत। सब जानते हैं कि आपके रहते न्याय सेना में सत्य और न्याय की खरीद फरोख्त नहीं हो सकती”। अनिल खन्ना के स्वर में अपार आदर उमड़ आया था, प्रधान जी के लिये।

“इतना विश्वास करते हैं इस शहर के लोग मुझपर? मैं तो सदा अपने आप को एक आम इंसान समझता हूं जो भगवान संकटमोचक की कृपा से कुछ बड़े कार्य करने में सफल हो पाया है”। प्रधान जी अपने उपर लोगों के इतने विश्वास के बारे में जानकर भावविभोर हो गये थे।

“और यही लक्ष्ण तो आपको महान बनाता है, प्रधान जी। बिल्कुल आपके इष्ट संकटमोचक भगवान हनुमान की तरह ही आप इतनी ताकत होने के बाद भी उससे अंजान बने रहना ही पसंद करते हैं, और केवल समय आने पर ही उसका उचित प्रयोग करते हैं”। प्रधान जी की तारीफ में इस बार ये शब्द राजकुमार के मुंह से निकले थे। उसके चेहरे पर प्रधान जी के लिये आदर और श्रद्धा के गहरे भाव नज़र आ रहे थे।

“ओये तूने फिर अपना वही राग शुरू कर दिया, कंजरा। इस लड़के को पता नहीं क्या दौरा पड़ जाता है बीच बीच में अनिल जी, कभी मुझे महान तो कभी भगवान संकटमोचक का दूत बताने लगता है”। प्रधान जी ने एक बार फिर बनावटी क्रोध से राजकुमार को देखने के बाद अनिल खन्ना से कहा।

“राजकुमार ठीक कहता है, प्रधान जी। मैने भी अपने सारे जीवन में आपके जैसा महान पुरुष नहीं देखा। इसीलिये तो एकदम से शपथपत्र लिख कर दे दिया आपके हाथ में। जानते हैं, इसका गलत इस्तेमाल होने पर मेरा सारा करियर खत्म हो सकता है और कई अन्य मुसीबतें भी झेलनी पड़ सकतीं हैं”। अनिल खन्ना ने राजकुमार की बात का समर्थन करते हुये कहा।

“आप बिल्कुल निश्चिंत हो जाईये, अनिल जी। वरुण शर्मा के रहते कोई आपका बाल भी बांका नहीं कर सकता। जाकर कह दीजियेगा उन सारे कलाकार भाईयों और ईमानदार अधिकारियों से जिन्होंने मुझ अदने इंसान पर इतना विश्वास दिखाया है, कि न्याय सेना ये लड़ाई अपनी पूरी ताकत और ईमानदारी के साथ लड़ेगी। कलाकारों को इंसाफ अवश्य मिलेगा अनिल जी, ये वादा है आपसे वरुण शर्मा का”। प्रधान जी के चेहरे पर एक बड़ी लड़ाई लड़ने के लक्ष्ण उजागर हो गये थे।

“बस तो फिर मेरी चिंता खत्म, प्रधान जी। इन सुबूतों के अलावा भी और बहुत कुछ है, जो जरूरत पड़ने पर आपकी सेवा में हाज़िर हो जायेगा। बस एक निवेदन करना था, आपसे आज्ञा लेने से पहले”। अनिल खन्ना ने अपने स्वर को थोड़ा संभालते हुये कहा।

“बेझिझक कहिये, अनिल जी”। प्रधान जी ने फौरन उत्तर दिया अनिल खन्ना की बात का।

“ये मामला बहुत ही संवेदनशील है, प्रधान जी। इसलिये मेरा आपसे निवेदन है कि आपके और राजकुमार के अलावा न्याय सेना के किसी अन्य पदाधिकारी तक को भी न पता चले कि आपके पास ये सारे शपथ पत्र और बाकी के सुबूत हैं। अगर ये बात लीक हो गयी तो हम सबकी शामत आ जायेगी और आपका काम भी मुश्किल हो जायेगा। इसलिये इन सारे पेपर्स को गोपनीय ही रखें और उचित समय आने पर ही इनका प्रयोग करें”। अनिल खन्ना ने अपनी बात पूरी करते हुये कहा।

“आपका विचार उत्तम है अनिल जी, और इसपर पूरी तरह से अमल होगा। इन पेपर्स के बारे में मेरे और राजकुमार के अलावा न्याय सेना का कोई पदाधिकारी तक नहीं जान पायेगा, बाहर के लोगों की तो बात ही छोड़ दीजिये”। अनिल खन्ना को आश्वस्त करने के बाद प्रधान जी ने राजकुमार को समझाने वाली दृष्टि से देखा तो उसने फौरन सिर हिला कर सहमति दे दी।

“बस तो फिर मेरी चिंता खत्म और आपका काम शुरू, प्रधान जी। अब मुझे आज्ञा दीजिये”। कहने के साथ ही अनिल खन्ना अपनी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया।

“एक काम और है, अनिल जी। आप राजकुमार का नंबर अपने मोबाइल में सेव कर लीजिये। हो सकता है इस मामले से जुड़े कुछ तकनीकी पहलुओं पर आपसे विचार करने के लिये राजकुमार को आपसे बात करनी पड़ जाये। ऐसी स्थिति में आपको पता होना चाहिये कि किसका फोन आया है”। प्रधान जी ने अनिल खन्ना की ओर देखते हुये कहा।

“चिंता मत कीजिये अनिल जी, राजकुमार को मैने अच्छी तरह से परख लिया है। आप इसपर भरोसा कर सकते हैं”। अनिल खन्ना के चेहरे पर दुविधा के भाव देखकर प्रधान जी ने फौरन उसकी शंका का निवारण किया।

अनिल खन्ना के साथ फोन नंबर्स का आदान प्रदान करते समय राजकुमार को महसूस हो रहा था जैसे उसका कद पहले से बड़ा होता जा रहा है।

 

हिमांशु शंगारी