संकटमोचक 02 अध्याय 04

Sankat Mochak 02
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दूसरे दिन सुबह के लगभग 11:30 बजे राजकुमार और राजीव न्याय सेना के कार्यालय के भीतरी केबिन में प्रवेश कर रहे थे। राजीव के हाथ में प्लास्टिक का एक बड़ा लिफाफा था जिसके अंदर कुछ फाईल्स रखीं प्रतीत हो रहीं थीं।

“गुड मार्निंग, पुनीत जी। हमने कल बात करके आज 11:30 बजे प्रधान जी से मिलने का समय लिया था”। राजकुमार ने अंदर वाले केबिन में प्रवेश करते हुए सामने पड़े हुये टेबल के पीछे लगी हुयी एक कुर्सी पर बैठे हुये लगभग 27-28 वर्ष के दिखने वाले युवक से कहा। राजकुमार को कार्यालय के बाहरी हिस्से से पता चल चुका था कि इस लड़के का नाम पुनीत था। पेशे से ये युवक डॉक्टर था और न्याय सेना में इसे महासचिव का पद प्राप्त था।

“गुड मार्निंग, आईये बैठिये। मुझे पता है आपने आज मिलने का समय लिया है। प्रधान जी के सिर में तेज़ दर्द है जिसके कारण वे थोड़ी देर विश्राम कर रहे हैं। आप मुझे बताईये क्या बात है?” पुनीत नामक उस युवक ने कहते कहते इस लंबे केबिन के प्रवेश द्वार से बिल्कुल उल्टी दिशा में अंत पर लगे हुये एक दीवान की ओर देखा तो राजकुमार और राजीव ने भी उसकी नज़र का पीछा किया।

सामने लगे दीवान पर प्रधान जी आंखें बंद कर के लेटे हुये थे। राजकुमार ने लेटे होने के बावजूद भी प्रधान जी के शारीरिक बल का अंदाजा उनके मज़बूत बदन को देख कर लगा लिया था।

“नमस्कार प्रधान जी”। राजकुमार और राजीव दोनों ने प्रधान जी को आदरपूर्वक नमस्कार किया।

“जीते रहो, आप लोग डॉक्टर साहिब से बात कीजिये, मैं थोड़ी देर में आपसे बात करता हूं। सिर बहुत दर्द कर रहा था, दवा ली है, दस मिनट में ठीक हो जायेगा”। प्रधान जी ने अपने चिर परिचित अंदाज़ में कहा तो राजकुमार ने महसूस किया कि लेटे होने के बावजूद भी उनकी आवाज़ में जबरदस्त उर्जा थी।

“जी कोई बात नहीं, आप विश्राम कीजिये प्रधान जी। हम तब तक पुनीत जी से बात करते हैं”। राजकुमार ने आदरपूर्वक कहा और दोनो पुनीत के सामने लगी कुर्सियों पर बैठ गये।

राजकुमार और राजीव का मुख अब पुनीत की ओर था जबकि प्रधान जी राजकुमार के दायें हाथ की बिल्कुल सीध में आ रहे दीवान पर लेटे हुये थे, जिसके कारण अब उनका चेहरा अब उन्हें दिखायी नहीं दे रहा था।

“जी कहिये, क्या काम है आपका?” डॉक्टर पुनीत ने राजकुमार की ओर देखते हुये पूछा और साथ ही में एक लड़के को बुला कर चाय लाने के लिये कह दिया।

“शायद आपको पता हो पुनीत जी कि प्रधान जी एक मामले में रमेश गुलाटी नाम के एक आदमी की सहायता कर रहे हैं। ये मामला थाना डिवीजन नंबर सात में चल रहा है और ये पैसे के लेन देन से संबंधित है”। राजकुमार ने बात को शुरू करने के लिये अपने एक एक शब्द को तोलते हुये कहा।

“बिल्कुल जानता हूं, ये सारा मामला मेरी जानकारी में है। बल्कि इस मामले के सारे कागज़ात मैने ही चैक किये थे, जब पहले दिन रमेश गुलाटी इस मामले में प्रधान जी से सहायता मांगने आये थे। पर आपका प्रश्न क्या है?” डॉक्टर पुनीत ने राजकुमार की ओर देखते हुये कहा।

“जी मैं आपसे ये निवेदन करना चाहता हूं कि भले ही पेपर्स को देखने से ये मामला रमेश गुलाटी के पक्ष में लगता है, पर वास्तविकता इसके विपरीत है। ये मेरा दोस्त राजीव है और रमेश गुलाटी की शिकायत इसी के खिलाफ है”। राजकुमार ने एक बार फिर से अपने शब्दों का संतुलन पूरी तरह से बनाये रखा और अपनी बात पूरी करते करते अपने साथ बैठे राजीव की ओर इशारा किया।

“ये तो बड़ी विचित्र बात कह रहे हैं आप। इस मामले के सारे पेपर्स स्पष्ट बता रहे हैं कि आपके दोस्त ने धोखे से रमेश गुलाटी से पैसा लिया है और अब पैसा देने की बजाये इसने खुद ही पुलिस में उसके खिलाफ झूठी शिकायत की है”। पुनीत ने थोड़े तीखे स्वर में कहा और साथ ही राजीव की ओर ऐसी दृष्टि से देखा जिसमें तिरस्कार की कुछ मात्रा शामिल थी।

“ये सब बिल्कुल झूठ है, पुनीत जी। वो गुलाटी एक नंबर का फ्रॉड और कमीना है। आपको उसकी सहायता नहीं करनी चाहिये”। डॉक्टर पुनीत के नज़रों में छिपे तिरस्कार को शायद बर्दाशत नहीं कर पाया था राजीव, और उसने अपना संयम ताक पर रखकर असभ्य भाषा का प्रयोग कर दिया था। राजीव के स्वर में तीखापन था और उसमें निश्चित रूप से ही सामने बैठे व्यक्ति के लिये भी कोई विशेष आदर नहीं था। शायद पुनीत के शब्दों और नज़र के तीखेपन ने उसे विचलित कर दिया था, और एकदम से अपना आपा खोकर बोल गया था वो।

“अरे वाह, ये तो उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली बात हो गयी। सारे कागज़ात गुलाटी के पक्ष में, झूठी शिकायत भी आपने की और अब हमें ही बता रहे हैं कि किसकी सहायता करें और किसकी नहीं, और वो भी हमारे ही कार्यालय में बैठ कर”। पुनीत के स्वर में अब तल्खी आ गयी थी। जैसे उसे राजीव के बात करने का ढ़ंग बहुत बुरा लगा हो।

“पुनीत जी, इसके स्वर की तल्खी पर मत जाईये। ये बेचारा अत्याधिक पीड़ित होने के कारण अपना संयम खो बैठा है। मैं आपको सारी बात बताता हूं”। राजकुमार ने बात को बिगड़ते देखकर एकदम से बीच में हस्ताक्षेप करते हुये बड़े विनम्र स्वर में पुनीत से कहा, और फिर राजीव की ओर अपना चेहरा घुमा दिया।

“राजीव, मैने तुम्हें कहा था न कि इस मामले में तुम केवल मुझे बात करने दोगे और बीच में बिल्कुल नहीं बोलेगे। अब कुछ मत बोलना और चुप रहना”। राजकुमार ने अपनी बायीं ओर बैठे राजीव को लगभग डांटते हुये कहा।

“ऐसे कैसे चुप रहूं मैं, जबकि मेरे निर्दोष होने के बाद भी ये पुनीत जी सारा दोष मेरे ही उपर डालकर मुझे ऐसे तिरस्कार भरी दृष्टि से देख रहे हैं”। एक बार फिर अपना संयम खोकर बोल पड़ा था राजीव। जिस अंदाज़ से उसने ‘ये पुनीत जी’ कहते हुये डॉक्टर पुनीत की ओर देखा था, राजकुमार समझ गया था कि ये मामला अब बिगड़ जायेगा।

“देखा आपने राजकुमार जी, आपका ये दोस्त तो हमारे ही कार्यालय में बैठकर भी हमारी परवाह नहीं कर रहा। तो फिर गुलाटी की या कानून की क्या परवाह होगी इसे। मुझे तो ये सरासर कुसूरवार लग रहा है”। आशा के अनुसार ही डॉक्टर पुनीत ने सीधा हमला बोल दिया था और सारी बातचीत का रुख ही मोड़ दिया था एकदम से।

“पुनीत जी, राजीव की ओर से मैं क्षमा मांगता हूं और साथ ही में आपसे निवेदन भी करता हूं कि इसकी बेवकूफी को इसके कुसूरवार होने का सुबूत मत मानिये। ये अपना संयम थोड़ा जल्दी खो देता है पर इस मामले में ये बिल्कुल निर्दोष है। आप एक बार मेरी बात तो सुनिये, उसके बाद जो आपको ठीक लगे वो कीजियेगा”। राजकुमार ने लगभग विनती भरे स्वर में पुनीत से कहा और फिर राजीव को खा जाने वाली नज़रों से देखा। राजीव के यूं संयम खो देने से सारा मामला बनने से पहले ही एकदम बिगड़ गया था।

“आप सबसे पहले अपने इस दोस्त को तमीज़ सिखाईये, फिर हमारे पास आईयेगा। तब हम आपकी बात ज़रूर सुनेंगे। अभी तो फिलहाल आप यहां से चले जाईये। ये तो हमारे कार्यालय में आकर हमसे ही अपमानजनक अंदाज़ में बात कर रहा है। ऐसे किसी से सहायता थोड़े मांगी जाती है। आप जाईये, हमें इस समय आपसे कोई बात नहीं करनी है”। डॉक्टर पुनीत का स्वर एकदम दृढ़ था।

“ऐसा मत कहिये पुनीत जी, ऐसे तो मामला बहुत बिगड़ जायेगा। हम तो बहुत आशा लेकर और प्रधान जी का बहुत नाम सुनकर आये थे आपके पास। आप मेरी बात तो सुनिये एक बार”। राजकुमार लगातार विनम्र स्वर में डॉक्टर पुनीत को मनाने में लगा हुआ था। साथ वाले दीवान पर प्रधान जी इस प्रकार चुपचाप विश्राम कर रहे थे, जैसे ये उनके लिये कोई विशेष बात न हो।

“रहने दो राजकुमार, मेरे कारण तुम्हें इनकी इतनी मिन्नतें करने की कोई ज़रूरत नहीं है। इससे अच्छा तो ये है कि हम अपना दुखड़ा किसी बड़े पुलिस अधिकारी के पास जाकर ही रो लें। शायद अपना काम बन ही जाये। आओ यहां से चलते हैं, कोई फायदा नहीं इनसे बात करने का। ये तो पहले ही उस कमीने गुलाटी को ठीक और हमें गलत मान कर बैठे हैं”। राजीव ने एक बार फिर अपना संयम खोते हुये पुनीत पर हमला बोल दिया था और अपनी बात पूरी करते करते ही उठकर खड़ा भी हो गया था।

“राजीव, तू चुप नहीं रह सकता पांच मिनट। क्यों सारा मामला बिगाड़ने पर तुला हुआ है। चुपचाप बैठ जा यहां पर”। राजकुमार ने राजीव को खा जाने वाली नज़रों से घूरते हुये कहा।

“मुझे नहीं बैठना ऐसी जगह जहां मेरा अपमान होता हो, राजकुमार। तुझे बैठना है तो बैठ, मैं तो जा रहा हूं। जब तेरा इनसे बातचीत करने का शौक पूरा हो जाये तो बाहर आ जाना, मैं वहीं खड़ा हूं”। कहने के साथ ही राजीव किसी के कोई प्रतिक्रिया देने से पहले ही तेजी से न्याय सेना के कार्यालय से बाहर निकल गया।

“देख लिया आपने, कैसे तेवर हैं आपके दोस्त के। ऐसे तो ठीक होने पर भी कोई इसकी सहायता नहीं करेगा। आपकी भी कोई बात नहीं मानी उसने तो, और आप उसकी सहायता करने की कोशिश कर रहे हैं”। पुनीत ने तीखे व्यंग्य के साथ राजकुमार से कहा।

“दोस्त तो फिर भी दोस्त ही है न, पुनीत जी। ये बेवकूफ और हालात का सताया हुआ अवश्य है, पर कुसूरवार नहीं। आप अभी भी अगर मुझे दो मिनट दें तो मैं सारी बात आपको समझा सकता हूं”। राजकुमार ने एक बार फिर जैसे विनती करते हुये कहा।

“अरे वाह, दाद देनी पड़ेगी आपकी दोस्ती की। आपके दोस्त ने हमारे ही कार्यालय में आकर हमसे इतना कुछ कह दिया और आप अभी भी हमसे सहायता की आशा कर रहे हैं। अब हम इस मामले में आपसे कोई बात नहीं करना चाहते। हां, कभी किसी और मामले में न्याय सेना की सहायता की आवश्यकता पड़े तो बेझिझक आ जाईयेगा”। डॉक्टर पुनीत ने अपने स्वर को निर्णायक बनाते हुये कहा, जैसे इस मामले में वो अब कोई बात नहीं करना चाहता था। साथ वाले दीवान पर लेटे हुये प्रधान जी की ओर से अभी भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी थी इस सारे मामले में।

“ये तो बड़ी गड़बड़ हो गयी, पुनीत जी। जो बात शांति से निपट सकती थी, उसके लिये अब हमें अपने अपने पक्षों की ओर से कानूनी दांव पेंच खेलने पड़ेंगें। इसमें तो दोनों का ही नुकसान होगा। इसलिये आप कृप्या मेरे सुझाव को मानते हुये इस मामले का बातचीत के माध्यम से हल निकालने के मेरे सुझाव पर एक बार फिर विचार कीजिये। लड़ाई हमेशा अंतिम विकल्प होना चाहिये, पुनीत जी”। राजकुमार ने एक बार फिर विनम्र स्वर में कहा किन्तु इस बार उसके स्वर में कहीं अधिक दृढ़ता और पुनीत को समझाने वाला भाव भी आ गया था।

“और अगर हम न मानें तुम्हारे इस सुझाव को तो?” उर्जा से भरपूर और एकदम रोबीली इस आवाज़ को सुनते ही राजकुमार ने आवाज़ की दिशा में नज़र घुमायी तो देखा कि ये आवाज़ प्रधान जी के मुख से निकली थी। प्रधान जी उठकर दीवान पर ही बैठ चुके थे और उनके चेहरे पर क्रोध के धीमे लक्ष्ण स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। शायद इस मामले में हुयी गर्मागर्मी से उनका मन कुछ विचलित हो गया था।

“फिर तो प्रधान जी, लड़ाई के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह जाता”। बिल्कुल विनम्र लेकिन बड़े ही ठोस शब्दों में कहा था राजकुमार ने प्रधान जी की ओर देखते हुये। डॉक्टर पुनीत के चेहरे पर दिलचस्पी के भाव आ गये थे, जैसे जान गया हो कि प्रधान जी आगे क्या कहने वाले हैं।

“और तुम्हे लगता है कि न्याय सेना से लड़कर तुम और तुम्हारा दोस्त जीत पाओगे? कोई अंदाज़ा भी है तुम्हें, किससे लड़ाई करने की बात कर रहे हो तुम?” प्रधान जी ने अब स्पष्टतया क्रोध भरे अंदाज़ से एकदम रोबीली आवाज़ में जैसे राजकुमार को डराने वाले भाव में कहा।

“जी बिल्कुल जानता हूं, प्रधान जी। इस शहर में आपके फुटबॉल चौक और आदर्श नगर में आम आदमी को इसांफ दिलाने वाले वाले कारनामों से लेकर झुग्गी झोपड़ी वाले लोगों को सरकार से पक्के घर दिलवाने तक सब जानता हूं”। राजकुमार ने बिना विचलित हुये प्रधान जी की आंखों मे सीधा देखते हुये अपने स्वर की विनम्रता और दृढता, दोनो को ही बनाये रखकर कहा।

“और फिर भी तुम्हारा इतना साहस कि तुम न्याय सेना के कार्यालय में आकर हमें ही लड़ाई करने की धमकी दे रहे हो। जानते हो इसका अंजाम क्या हो सकता है?” प्रधान जी की आवाज़ की उंचाई और उनके चेहरे पर क्रोध बढ़ते ही जा रहे थे।

पास में बैठा डॉक्टर पुनीत दोनों के बीच में होने वाले इस वार्तालाप को सुनकर जहां एक ओर रोमांचित हो रहा था, वहीं उसे एक अंजाना सा भय भी लग रहा था कि प्रधान जी कहीं क्रोध में आकर राजकुमार नाम के इस लड़के का कोई बड़ा नुकसान ही न कर दें। प्रधान जी के साथ बहुत सालों से था पुनीत और वो जानता था कि एक बार उन्हें क्रोध आ जाये तो फिर सामने वाले की खैर नहीं, फिर चाहे वो बड़े से बड़ा अफसर या राजनेता ही क्यों न हो।

वहीं पर पुनीत को राजकुमार का चरित्र भी हैरानी में डाल रहा था जो प्रधान जी के इतना क्रोध करने पर भी विचलित नहीं हो रहा था और बड़े सौम्य लेकिन निर्भय स्वर में उनकी हर बात का जवाब दे रहा था। बाहर वाले केबिन से भी न्याय सेना के कुछ पदाधिकारी शोर सुनकर भीतर आ चुके थे और प्रधान जी के क्रोध से रुबरु हो रहे थे।

“मुझे अच्छी तरह से पता है कि आपसे लड़ाई लड़ने की सूरत में हमें तेजी से कुछ भारी नुकसान उठाने पड़ सकते हैं, प्रधान जी। किन्तु नुकसान या हार के डर के चलते लड़ाई के मैदान से भागा भी तो नहीं जा सकता। एक शेरदिल इंसान होने के नाते आपसे अधिक ये बात कौन जान सकता है?” राजकुमार एक के बाद एक अपने शब्दों के बाण चलाता जा रहा था और कार्यालय में खड़ा न्याय सेना का हर पदाधिकारी सांस रोककर इस वार्तालाप को सुन रहा था। प्रधान जी के क्रोध के सामने इतनी देर तक किसी को टिकते हुये उन्होंने आज तक नहीं देखा था।

“मैं तो आपका बहुत नाम सुनकर आया था प्रधान जी, पर लगता है कि आपसे मित्रता करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं होगा मुझे। चलिये मित्रता नहीं तो लड़ाई ही सही। आपके जैसे शूरवीर के साथ तो लड़ने से भी मेरा कद उंचा ही हो जायेगा। रही बात हार जीत की, तो आपके और मेरे हाथ में तो केवल लड़ना है, लड़ाई का परिणाम तो भगवान शिव की इच्छा से ही निर्धारित होगा। चलता हूं प्रधान जी, अपने दोस्त की सहायता के लिये कोई और रास्ता खोजना है मुझे”। फिर एक बार उसी विनम्र किंतु निर्भय स्वर में इतना कहते कहते राजकुमार अपनी कुर्सी से उठा और प्रधान जी को दोनों हाथ जोड़कर डॉक्टर पुनीत को अभिवादन करता हुआ केबिन से बाहर चल दिया।

बाहर की ओर जाते हुये राजकुमार के दिमाग में एक के बाद एक विचार आ और जा रहे थे। इस मामले में राजीव की नासमझी ने मुसीबत को और भी बड़ा कर दिया था। प्रधान जी के क्रोध के कारण होने वाले उनके नुकसान और उसे रोकने का तरीका सोचने की कोशिश कर रहा था राजकुमार।

कार्यालय में किसी को कुछ नहीं सूझ रहा था। सब हैरान खड़े इस तमाशे को देख रहे थे। राजकुमार नाम के इस लड़के ने कितनी विनम्रता के साथ प्रधान जी को पूरा आदर देते हुये और उनके क्रोध से भयभीत हुये बिना ही उनकी लड़ाई की चुनौती को स्वीकार कर लिया था। डॉक्टर पुनीत का दिल जैसे उसके गले में ही आकर अटक गया था। उसे लग रहा था कि प्रधान जी शीघ्र ही इस मामले में कोई बड़ा कदम उठाकर राजकुमार और उसके दोस्त का कोई बड़ा नुकसान करने वाले हैं।

“क्या काम करते हो पुत्तर जी?” आशा के एकदम विपरीत डॉक्टर पुनीत ने प्रधान जी का स्नेह से भरा स्वर सुना तो उसकी विचार तन्द्रा टूटी और उसने हैरानी से प्रधान जी की ओर देखा जिनके स्वर में बिल्कुल एक पिता जैसा स्नेह उमड़ आया था। पुनीत जानता था कि इस स्वर में प्रधान जी केवल अपने बहुत आत्मीय लोगों से ही बात करते थे। सारा कार्यालय भी प्रधान जी के व्यवहार में आये इस परिवर्तन को देखकर हैरान था और इस बदलाव का कारण जानने के लिये उत्सुक था।

पित्रवत प्रेम से भरे इस स्वर के कानों में पड़ते ही राजकुमार के पैर अपने आप ही रुक गये और उसने पीछे मुड़कर अपने एकदम सामने खड़े नज़र आ रहे प्रधान जी की ओर देखा। उनके चेहरे पर चंद पल पहले तक नज़र आ रहे क्रोध का दूर दूर तक कोई नामोनिशान नहीं था, और प्रेम ही प्रेम दिख रहा था उनके मुखमंडल पर।

“आओ पुत्तर जी, बैठ कर बात करते हैं”। कहते कहते प्रधान जी जब अपनी कुर्सी की ओर बढ़े तो डॉक्टर पुनीत एकदम उनकी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया। कदाचित वो प्रधान जी की कुर्सी पर बैठ कर ही राजकुमार और राजीव से बातचीत कर रहा था।

प्रधान जी की पहली आवाज़ को सुनकर राजकुमार के मन में कुछ दुविधा आयी थी कि प्रधान जी ने उसे संबोधित किया है या किसी और को। इसीलिये उसने केवल मुड़कर प्रधान जी को देखा था, वापिस नहीं गया था। किंतु प्रधान जी ने दूसरी बार जब सीधे रूप से उसकी ओर देखते हुये ही उसी प्रकार पित्रवत प्रेम से भरपूर स्वर में उसे बैठने के लिये कहा तो उसकी सारी शंका दूर हो गयी।

“जी, प्रधान जी”। कहते हुये राजकुमार एक बार फिर से उसी कुर्सी पर जाकर बैठ गया, जिसपर वो पहले बैठा था। उसके चेहरे पर दुविधा के भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। प्रधान जी के व्यवहार में आये इस विपरीत परिवर्तन का अर्थ नहीं समझ पा रहा था वो शायद।

“हैरान होने की कोई आवश्यकता नहीं है पुत्तर जी, मैं तो केवल तुम्हें परख रहा था। मेरा सारा क्रोध दिखावा था और उसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं था”। राजकुमार के बिल्कुल सामने बैठे मुस्कुरा रहे थे प्रधान जी। राजकुमार की समझ में प्रधान जी की इस परख का कारण तो समझ नहीं आया पर इतना वो अवश्य समझ गया था कि इस परख में वो पास हो गया है। इसीलिये प्रधान जी उसके साथ इस प्रकार स्नेह भरे स्वर में बात कर रहे थे।

“मेरी परख, मैं कुछ समझा नहीं प्रधान जी?” राजकुमार ने हैरानी भरे स्वर में कहा। प्रधान जी के पास ही एक और कुर्सी पर बैठा पुनीत समझ गया था कि इस परख का कारण क्या है और इसीलिये वो राजकुमार की इस बात पर मंद मंद मुस्कुरा रहा था।

“वो इसलिये पुत्तर जी, कि बहुत कम कभी ऐसा होता है कि वरुण शर्मा किसी से पहली ही मुलाकात में इतना प्रभावित हो जाये। और जब ऐसा होता है तो ऐसे हर व्यक्ति को मैं न्याय सेना के साथ जोड़ने की कोशिश करता हूं, ताकि उसकी खूबियों को समाज की भलाई के कामों में लगाया जा सके। इसलिये तुम्हारी परख कर रहा था जिससे ये निर्णय ले सकूं कि तुम केवल बातें ही अच्छी करते हो या शूरवीरों की भाषा भी जानते हो”। प्रधान जी के चेहरे पर मुस्कुराहट और स्वर में वही प्रेम बना हुआ था। पुनीत के चेहरे पर अब इस प्रकार की मुस्कान थी जैसे प्रधान जी ने बिल्कुल उसके अनुमान के अनुसार ही बात की हो।

“जी, अब मैं सब समझ गया, प्रधान जी”। राजकुमार ने एक धीमी मुस्कान के साथ कहा। उसे अब ये मामला अपने पक्ष में होता नज़र आ रहा था।

“बाकी बातें बाद में, चलो पहले चाय पीते हैं पुत्तर जी। ओये टीटू, चाय क्यों नहीं आयी अभी तक, कंजरा”। प्रधान जी ने भीतरी केबिन में ही आ चुके टीटू नाम के उस लड़के को बनावटी क्रोध भरी मुद्रा से देखते हुये कहा।

“चाय तो आ गयी थी, प्रधान जी। लेकिन माहौल में इतना तनाव देखकर मैने चाय देना ठीक नहीं समझा। अभी लेकर आ गया मैं”। कहते कहते टीटू तेजी से बाहर के केबिन की ओर चल दिया।

“जैसी आपकी आज्ञा प्रधान जी, पर मेरा दोस्त राजीव बाहर है। अगर आप ठीक समझें तो उसे भी भीतर बुला लें”। राजकुमार ने विनम्र स्वर में कहते हुये प्रधान जी के साथ साथ पुनीत के चेहरे की ओर भी देखा, उसकी प्रतिक्रिया जानने के लिये।

“हा हा हा…………तुम्हारी यही बात मुझे सबसे अधिक पसंद आयी, पुत्तर जी। अपने दोस्त के इतनी बेवकूफियां करने के बाद और तुम्हारी बात न मानने के बाद भी तुम उसके लिये इतनी बड़ी लड़ाई लड़ने के लिये ऐसे तैयार हो गये, जैसे कोई बड़ी बात ही न हो। अब भी तुम्हें चाय के समय अपने से पहले अपना दोस्त ही नज़र आ रहा है। ये एक सच्चे दोस्त के लक्ष्ण हैं”। प्रधान जी ने प्रशंसा भरी नज़रों से राजकुमार की ओर देखते हुये कहा।

“तारी पुत्तर, जा बाहर से इनके दोस्त को बुला कर ले आ”। इसी के साथ प्रधान जी ने तारी नाम के उस लड़के को आदेश दिया। बाकी सारे लड़के भी तारी के पीछे पीछे ही बाहर के केबिन की ओर चल दिये थे।

“दोस्त तो दोस्त ही है प्रधान जी, समझदार हो या नासमझ। मुसीबत में जो दोस्त को छोड़ कर भाग जाये, ऐसा आदमी दोस्त तो क्या इंसान कहलाने के लायक भी नहीं”। प्रधान जी की बात का उत्तर देते हुए राजकुमार ने नोट कर लिया था कि पुनीत के चेहरे पर अब राजीव का नाम सुनकर नापसंदगी के भाव नहीं आये थे। शायद उसने राजीव की नासमझी को माफ कर दिया था।

“तुम्हारी दूसरी ये बात बहुत पसंद आयी मुझे, पुत्तर जी। इतनी छोटी उम्र में कितनी बड़ी बड़ी बातें कितने सामान्य अंदाज़ में कह देते हो। कहां से सीखे इतने अच्छे संस्कार?” प्रधान जी राजकुमार से बहुत प्रभावित दिखाई दे रहे थे।

“जी बस जितना कुछ है, अपनी मां से ही सीखा है”। राजकुमार के चेहरे के भाव बता रहे थे कि वो अपनी प्रशंसा सुनकर कुछ विचलित हो गया था।

“तब तो धन्य हैं तुम्हारी माता जी, एक दिन अवश्य मुलाकात करेंगे उनसे। लो चाय आ गयी और तुम्हारा दोस्त भी आ गया”। प्रधान जी के कहते कहते टीटू ने सबके सामने चाय रखी तो राजकुमार ने देखा कि राजीव भी आ चुका था।

“आओ बैठो राजीव, प्रधान जी बहुत महान व्यक्ति हैं। इन्होनें हमारी बात सुनने का फैसला किया है”। राजकुमार की इस आवाज़ को सुनकर राजीव कुछ समझ नहीं पाया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि दस मिनट के अंदर ही कार्यालय के माहौल में इतना परिवर्तन कैसे आ गया था।

“निश्चिंत होकर बैठ जाओ, पुत्तर जी। अगर तुम्हारा पक्ष सही है तो न्याय सेना के कार्यालय में तुम्हें इंसाफ अवश्य मिलेगा। सारा शहर जानता है कि वरुण शर्मा ने अपनी समझ में सदा न्याय का ही साथ दिया है”। प्रधान जी के इस पुरजोर स्वर और उनके आश्वासन भरे शब्दों को सुनते ही राजीव ने एक पल भी नहीं गंवाया और फौरन कुर्सी पर बैठ गया।

“अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं इस केस से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में आपको कुछ जानकारी दूं, प्रधान जी। इससे आपको इस मामले की सच्चाई जानने में आसानी होगी”। राजकुमार ने विनम्र स्वर में निवेदन किया।

“ऐसे नहीं, पुत्तर जी। अभी दूसरी पार्टी को भी बुला लेते हैं यहीं पर। फिर आमने सामने बैठ कर ही दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा”। कहते कहते ही प्रधान जी ने अपने मोबाइल फोन से किसी का नंबर डायल कर दिया था। राजकुमार को प्रधान जी का ये सुझाव बहुत अच्छा लगा था।

“ओये राजू पुत्तर, वो गुलाटी है न जिसे तू लेकर आया था हमारे पास। उसे लेकर फौरन दफ्तर पहुंच जा”। दूसरी ओर से किसी के फोन उठाते ही प्रधान जी ने कहा।

“शाम तक, अच्छा ठीक है फिर, कल सुबह ग्यारह बजे उसे लेकर दफतर पहुंच जाना”। कहते हुये प्रधान जी ने फोन डिस्कनैक्ट कर दिया।

“पुत्तर जी, न्याय सेना का जो पदाधिकारी गुलाटी को हमारे पास लेकर आया था, वो आज लुधियाना गया हुआ है। शाम तक आ जायेगा। आप लोग कल ग्यारह बजे दफतर आ जाओ, वहीं का वहीं निपटा देंगें ये मामला”। प्रधान जी ने राजकुमार की ओर देखते हुए उसी प्रकार स्नेह भरे स्वर में कहा।

“जी बिल्कुल ठीक है, प्रधान जी। बस आपसे एक निवेदन करना था”। राजकुमार ने विनम्र स्वर में एक बार फिर प्रधान जी की ओर देखते हुये कहा।

“बेझिझक होकर कहो पुत्तर जी, जो भी बात है”। प्रधान जी का स्वर आश्वासन से भरपूर था।

“इस मामले में थाना डिवीजन सात की पुलिस आपके हस्ताक्षेप के कारण बहुत दबाव में है। बड़ी मुश्किल से मैने किसी तरह उन्हें एक आध दिन इस मामले में कार्यवाही न करने के लिये मनाया था, ताकि आपसे बातचीत करके इस मामले को सुलझा लिया जाये। कल तक कहीं पुलिस इस मामले में राजीव के खिलाफ केस ही न दर्ज कर दे”। अपनी बात को पूरा करते हुए राजकुमार ने प्रश्नात्मक दृष्टि से प्रधान जी की ओर देखा।

“मैं समझ गया तुम क्या कहना चाहते हो, पुत्तर जी। लो अभी इसका हल भी कर देते हैं”। कहते कहते प्रधान जी ने एक बार फिर अपने मोबाइल से कोई नंबर डायल कर दिया।

“ओ की हाल है मेरे गुरविंद्र भाई……………… ओ बस ठीक………………… ओ मैं ताबेदार”। प्रधान जी दूसरी ओर से बात करने वाले के साथ बड़े मित्रवत भाव में बोल रहे थे। राजकुमार को पता था कि थाना डिवीजन सात के प्रभारी का नाम गुरविंद्र सिंह था।

“ओ बस एक छोटी सी बात कहनी थी आपसे। वो गुलाटी वाले मामले में जो मैने आपको फोन किया था न दूसरी पार्टी के खिलाफ कार्यवाही करने के लिये, उस मामले में अभी कोई कार्यवाही मत कीजियेगा। दूसरी पार्टी भी मेरे पास ही आ गयी है, यहीं दफतर में ही फैसला करवा देंगें इनका। ओ ठीक है जी, थैंक्यू”। कहने के साथ ही प्रधान जी ने फोन डिस्कनैक्ट कर दिया।

“लो पुत्तर जी, अब इस मामले में तुम्हारे दोस्त के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होगी। अब चाय पी लें, आराम से”। प्रधान जी इस बात पर सब मुस्कुरा दिये और अपना अपना कप उठा कर चाय पीने लगे।

“तुमने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया, पुत्तर जी। क्या करते हो?” प्रधान जी ने चाय की चुस्कियों के बीच एक बार फिर राजकुमार से स्नेह भरे स्वर में पूछा।

“जी, मैने नॉन मैडिकल्स में ग्रैजुएशन किया है और अब आगे कुछ परीक्षाओं की तैयारी कर रहा हूं। राजीव मेरे साथ ही कॉलेज में पढ़ता था”। राजकुमार ने प्रधान जी की ओर देखते हुये विनम्र स्वर में कहा।

“ओह तो कॉलेज की दोस्ती है, इसीलिये इसके कारण हमारे साथ भी लड़ने को तैयार हो गये थे”। प्रधान जी ने राजकुमार को छेड़ते हुये कहा। राजीव इस प्रकार राजकुमार की ओर देख रहा था जैसे इस लड़ाई वाली बात का अर्थ समझना चाहता हो।

“मैने आपके बारे में बहुत कुछ अच्छा सुना है प्रधान जी, और यहां आकर आपका चरित्र देख भी लिया। इसलिये आपके साथ किये गये अपने व्यवहार के लिये मैं क्षमा मांगता हूं”। राजकुमार ने एक बार फिर विनम्र स्वर में ही कहा।

“तुमने क्षमा मांगने वाला कोई काम नहीं किया, पुत्तर जी। तुमने केवल वही किया जो अपने दोस्त के पक्ष में होने पर तुम्हें करना चाहिये था। मेरा ध्यान शुरू से ही सारे वार्तालाप पर था। इस सारे प्रकरण के बीच केवल तुम ही थे जिसने एक क्षण के लिये भी अपना संयम नहीं खोया और बात को संभालने की कोशिश करते रहे। इस उम्र में ऐसा सयंम बहुत कम लोगों में देखने को मिलता है”। प्रधान जी ने एक बार फिर राजकुमार की तारीफ करते हुये कहा।

“जी, भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि युद्ध अंतिम विकल्प होना चाहिए और उससे पहले शांति का हर संभव प्रयास किया जाना चाहिये। इसलिये मैं पूरा प्रयास कर रहा था कि ये मामला शांतिपूर्ण ढ़ंग से ही निपट जाये”। राजकुमार ने प्रधान जी की ओर देखते हुये फिर उसी विनम्रता के साथ कहा।

“बिल्कुल ठीक बात है ये। एक अच्छा इंसान पहले शांति के सारे प्रयास करता है और फिर उसके बाद ही युद्ध का विकल्प चुनता है”। प्रधान जी ने राजकुमार की बात का समर्थन करते हुये कहा।

“प्रधान जी, अशोक शर्मा जी आये हैं मिलने”। टीटू के इन शब्दों ने बातचीत का सिलसिला तोड़ा तो प्रधान जी को ध्यान आया कि अशोक शर्मा ने आज किसी केस के सिलसिले में मिलने का समय लिया हुआ था।

“उन्हें फौरन अंदर भेजो”। प्रधान जी ने तत्परता से कहा।

“अब हमें जाने की आज्ञा दीजिये, प्रधान जी। कल दर्शन करते हैं आप के”। राजकुमार ने मौके की जरुरत को समझते हुये कहा।

“ठीक है पुत्तर जी, तो कल मिलते हैं फिर 11 बजे”। प्रधान जी ने उसी स्नेह भरे स्वर में कहा तो राजकुमार और राजीव उनको नमस्कार करने के बाद सबको अभिवादन करते हुये कार्यालय से बाहर चले गये। प्रधान जी के चेहरे के भाव स्पष्ट बता रहे थे कि वो अभी राजकुमार नाम के इस लड़के से और बातचीत करना चाहते थे।

“नमस्कार प्रधान जी”। अशोक शर्मा के इन शब्दों ने प्रधान जी का ध्यान खींचा तो उन्होंने देखा कि अशोक शर्मा कुछ और लोगों के साथ कार्यालय के भीतर प्रवेश कर चुके थे।

“आईये आईये अशोक जी, बैठिये”। कहते हुये प्रधान जी ने टीटू को सबके लिये चाय का प्रबंध करने का आदेश दिया।

 

हिमांशु शंगारी