संकटमोचक 02 अध्याय 27

Sankat Mochak 02
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सत्यजीत समाचार के संपादक हरजिंद्र सिंह अपने कार्यालय में बैठे हुये थे और रोज़ की तरह ही उनका दरबार सज चुका था। लगभग पांच बजे से लेकर देर शाम तक उनके पास आने वालों का तांता लगा रहता था जिसके कारण उनके कार्यालय में शहर के विभिन्न वर्गों के लोग देखे जा सकते थे इस समय के दौरान। उनसे मिलने आने वाले इन लोगों में आम आदमी से लेकर शहर और प्रदेश के बड़े अधिकारी तथा स्थानीय से लेकर प्रदेश एवम देश के राजनेता भी रहते थे।

बुद्धिजीवी होने के साथ साथ बहुत प्रभावशाली व्यक्तिव रखने वाले हरजिंदर सिंह को कला और कलाकारों से भी बहुत प्रेम था जिसके कारण विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित कलाकार अक्सर आते रहते थे उनके पास। गायकी की कला से विशेष रूप से बहुत लगाव था उनका और इसी कारण देश के बहुत से बड़े बड़े गायक उनके संपर्क में थे। अपने सामने बैठे किसी व्यक्ति की बात को सुन कर हंस रहे थे हरजिंद्र सिंह, जब प्रधान जी की आवाज़ ने उनका ध्यान खींचा।

“ओ मेरे भाजी जिन्दाबाद, ओ मेरे भाजी जिन्दाबाद”। अपने उसी जाने पहचाने नारे के साथ प्रधान जी ने हरजिंद्र सिंह के कार्यालय में प्रवेश किया। हरजिंद्र सिंह को जानने वाले अधिकतर लोग उन्हें प्रेम एवम आदर से भाजी ही कहते थे।

“आओ वरुण आओ, आज बड़ा मज़ेदार माहौल चल रहा है और तुम्हारे आने से ये माहौल और भी मज़ेदार हो जायेगा”। कहते हुये भाजी ने प्रधान जी और राजकुमार के अभिवादन का उत्तर देते हुये उन्हें बैठने का इशारा किया। प्रधान जी और राजकुमार उनके सामने लगी कुर्सियों पर बैठ गये, जहां पहले से ही शहर के 5-6 गणमान्य व्यक्ति बैठे थे जिन्होने प्रधान जी को अभिवादन किया था।

“हां तो सिंह साहिब, अब आपकी बारी है, कोई जोरदार चीज़ हो जाये आज”। भाजी के कहने के साथ ही प्रधान जी और राजकुमार ने अंदाज़ा लगा लिया था कि आज शायद सामने बैठे सब लोगों से कोई चुटकुला या मज़ेदार बात सुनाने के लिये कहा जा रहा है। भाजी बहुत जिंदादिल इंसान थे तथा बहुत व्यस्त रहने का बावजूद भी जीवन को जीने का और हंसने हंसाने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे वो। इसलिये उनके दरबार में अक्सर हंसी मजाक चलता रहता था और ठहाके गूंजते रहते थे।

“जी भाजी, एक बार एक ससुर अपने दामाद को डांट रहा होता है। ‘तुम्हें शर्म आनी चाहिए, रोज शराब पीते हो, शादी से पहले तो तुमने या तुम्हारे माता पिता ने नहीं बताया था कि तुम शराब पीते हो?’। दामाद ने भी तीखे व्यंग्य के साथ कहा, ‘जी बताया तो आपने भी नहीं था कि आपकी बेटी खून पीती है’…”। सिंह साहिब नाम के उस व्यक्ति ने एक चुटकुला सुनाते हुये कहा।

“हा हा हा………मजा आ गया सिंह साहिब। वरुण अब तुम्हारी बारी है”। कमरे में गूंज रहे ठहाकों के बीच में ही कहा भाजी ने प्रधान जी की ओर देखते हुये। भाजी के शब्द सुनते ही प्रधान जी कोई चुटकुला सोचने में लग गये थे।

“एक बार एक आदमी एक शोरूम पर जाकर एक टी वी का दाम पूछता है तो दुकान का मालिक उसे चिढ़ाने वाले अंदाज़ में कहता है, ‘हम जाहिलों को सामान नहीं बेचते, किसी और दुकान से खरीद लो’। इस बात से चिढ़ कर वो आदमी तय कर लेता है कि अब उसे टी वी तो इसी दुकान से लेना है। दूसरे दिन वो सूट बूट पहन कर उसी दुकान पर पहुंच कर टी वी का भाव पूछता है। दुकानदार फिर वही जवाब देता है, ‘मैने कहा था न कि हम जाहिलों को सामान नहीं बेचते, किसी और दुकान से खरीद लो’।

“उस आदमी की ज़िद अब और भी पक्की हो जाती है और दो तीन दिन के बाद पाश्चत्य कपड़े पहनकर वो इन दिनों के दौरान रटी हुयी अंग्रेज़ी की लाइन में पूछता है, ‘हाउ मच डस दिस टीवी कॉस्ट?’ दुकानदार जवाब देता है, ‘तुम फिर आ गये, मैने कहा था न हम जाहिलों को सामान नहीं बेचते?’ आदमी की हैरानी की कोई सीमा नहीं रहती और वो दुकानदार से पूछता है, ‘टीवी मत बेचिये बेशक, पर ये तो बताईये कि आप मुझे हर बार पहचान कैसे लेते हैं, जबकि मैं अपना पूरा हुलिया बदल कर आता हूं?’ दुकानदार मुस्कुराते हुये जवाब देता है”। कहते हुये प्रधान जी ने सस्पैंस बनाने के लिये दो पल का विराम दिया अपने शब्दों को और फिर बोले।

“वो इसलिये कि केवल तुम अकेले ही हो जो हर बार मेरी दुकान पर आकर माईक्रोवेव को टीवी बोलते हो”। प्रधान जी ने गहरी मुस्कुराहट के साथ कहा।

“हा हा हा…………हा हा हा………………वरुण ये वाला तो सबसे मजेदार था, इस बात पर तो आज पैप्सी कोला के बाद चाय भी बनती है, और साथ में बिस्किट भी”। जोरदार ठहाकों के बीच कहा भाजी ने। कमरे में बैठे सभी लोग प्रधान जी के इस चुटकले पर हंस रहे थे। एक कर्मचारी तब तक प्रधान जी और राजकुमार को पैप्सी कोला के गिलास दे चुका था।

“ओ मेरे भाजी जिन्दाबाद”। प्रधान जी ने एक बार फिर नारा लगाया और बड़ी तेजी से पैप्सी कोला गटक गये। लगभग दस मिनट के बाद प्रधान जी और राजकुमार भाजी के निजी केबिन में उनके साथ बैठे थे और टेबल पर चाय लग चुकी थी। भाजी को शायद पहले से ही पता था कि आज की बातचीत का विषय दूरदर्शन वाला मामला ही होगा, इसलिये उन्होंने कर्मचारी को चाय उनके निजी केबिन में ही लगाने के लिये कहा था।

“और सुनाओ वरुण, क्या चल रहा है आजकल?” भाजी ने बात शुरु करने के इरादे से कहा। प्रधान जी के साथ केबिन में बैठे राजकुमार को बहुत ध्यान से देखा था उन्होंने एक बार। इन चार महीनों में तीन बार आ चुका था राजकुमार प्रधान जी के साथ, भाजी से मिलने।

“बस भाजी वही दूरदर्शन वाला मामला चल रहा है। कुछ ही दिन बचे हैं प्रदर्शन में, इसलिये आपका आशिर्वाद लेने चला आया। वैसे पहले भी एक दो बार कोशिश की थी मैने, पर आप शायद कहीं व्यस्त थे”। प्रधान जी ने बातचीत को आगे बढ़ाते हुये कहा।

“पिछले दिनों शहर से बाहर रहा हूं मैं कई बार। वैसे ये मामला तुमने बहुत अच्छा पकड़ा है, कलाकारों के साथ बहुत ज़्यादती की है अधिकारियों ने पिछले कुछ सालों में। कोई कसर मत छोड़ना इस प्रदर्शन में, कलाकारों को बहुत राहत मिलेगी, इस मामले की जांच होने के बाद”। कहते हुये भाजी के चेहरे पर कला और कलाकारों के लिये सहानुभूति के भाव आ गये थे।

“आप चिंता मत कीजिये भाजी, इस बार बहुत जोरदार प्रदर्शन की तैयारी है हमारी। हज़ारों की तादाद में कार्यकर्ता पहुंचेगे दूरदर्शन के बाहर, प्रदर्शन वाले दिन”। प्रधान जी ने अपनी तैयारी से अवगत कराते हुये कहा भाजी को।

“ये तो बहुत अच्छी बात है, एक बात का ध्यान रखना वरुण। दूरदर्शन बहुत संवेदनशील संस्थान है और इसके अधिकारियों की पहुंच बहुत उपर तक है। किसी भी तरह का षड़यंत्र रच सकते हैं ये लोग, अपनी इस पहुंच के चलते। अगर किसी भी समय इस मामले में कोई समस्या आये पुलिस, प्रशासन या शासन की ओर से, तो फौरन चले आना मेरे पास”। बड़े ही अपनेपन के साथ कहा था भाजी ने।

“आपके रहते हुये तो मुझे वैसे भी किसी समस्या का कोई डर नहीं, भाजी। ऐसी कौन सी समस्या है जो हमारे भाजी का नाम सुनते ही खुद अपना हल नहीं ढूंढ लेती? मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक सब राजनेता आपके एक फोन पर ही हर काम कर देते हैं, भाजी।” प्रधान जी ने भाजी के अपनेपन से खुश होकर उनकी तारीफ करते हुये कहा।

“तारीफ करके सामने वाले को खुश कर देने की जबरदस्त कला है तुझमें वरुण, तू भी बहुत बड़ा कलाकार ही है। शायद इसीलिये कलाकारों के हक में लड़ाई लड़ रहा है”। भाजी ने सब कुछ समझकर प्रधान जी की ओर देखकर मुस्कुराते हुये कहा।

“और इतने बड़े मुकाम पर होने के बाद भी मुझ जैसे अदने लोगों के साथ इस तरह प्यार जता कर उन्हें जीत लेने की जबरदस्त कला है आपके अंदर, भाजी। उस हिसाब से तो…………………”। भाजी की तारीफ करते हुये प्रधान जी ने शरारत के साथ अपनी बात को अधूरा ही छोड़ते हुये कहा।

“उस हिसाब से तो मैं भी कलाकार ही हुआ। हा हा हा……………ये बात भी खूब कही तूने वरुण”। भाजी का जोरदार ठहाका गूंज उठा था कमरे में। इसके बाद लगभग पंद्रह मिनट तक विभिन्न विषयों पर बातचीत करते रहे भाजी और प्रधान जी, और राजकुमार बड़े ध्यान से उनकी बातें सुनता जा रहा था। बातचीत के बाद बड़े अपनेपन से विदा दी थी भाजी ने उन्हें।

लगभग तीस मिनट के बाद भाजी से विदा लेकर प्रधान जी और राजकुमार न्याय सेना के कार्यालय में पहुंचे ही थे कि राजकुमार के मोबाइल की घंटी बज उठी। स्क्रीन पर यूसुफ आज़ाद का नाम फ्लैश कर रहा था। राजकुमार ने प्रधान जी को आज़ाद का नाम दिखाते हुये फोन रिसीव किया।

“कहां है आप लोग?” बिना किसी औपचारिकता के और बड़ी तेजी के साथ कहा था दूसरी ओर से आज़ाद ने। उनकी आवाज़ में छिपी बैचेनी को एकदम से भांप गया था राजकुमार।

“कार्यालय में ही हैं, भाई साहिब। क्या बात है, आज आपकी आवाज़ में कुछ बैचेनी झलक रही है, सब ठीक तो है?” राजकुमार ने फौरन उत्तर देते हुए कहा।

“बात ही कुछ ऐसी है, आप लोग फौरन मेरे कार्यालय पहुंचिये। इस मामले से जुड़ी एक बहुत बड़ी डेवेल्पमैंट का पता चला है मुझे अभी अभी, फोन पर बात नहीं की जा सकती इस मामले में। बहुत संवेदनशील विषय है। आप जल्द से जल्द आ जाईये मेरे पास, प्रधान जी हैं न आपके साथ?”। एक बार फिर उसी बेचैन आवाज़ में कहा आज़ाद ने।

“बस पांच मिनट में पहुंच जाते हैं भाई साहिब, प्रधान जी मेरे साथ ही हैं। पर थोड़ा बहुत तो कुछ बताईये, आखिर क्या हो गया है ऐसा अचानक?” राजकुमार की उत्सुकुता एकदम से आसमान को छू रही थी जैसे।

“बहुत बड़ा षडयंत्र रचा है दूरदर्शन अधिकारियों ने आप लोगों के प्रदर्शन को विफल करने के लिये, और साथ ही साथ प्रधान जी पर हमला करने की योजना भी बनायी गयी है। इसीलिये कहा था, आप फौरन चले आईये, बाकी बातें मिलकर”। कहते हुये आज़ाद ने बिना किसी औपचारिकता के फोन डिस्क्नैक्ट कर दिया था तेजी से।

एक के बाद एक बम विस्फोट हो रहे थे राजकुमार के दिमाग में, जिनसे उठने वाला धुआं उसके सारे चेहरे पर फैलता जा रहा था। यही हाल साथ में बैठे प्रधान जी का भी था, जिन्होनें मोबाइल से कान लगा कर सारी बात सुन ली थी।

आखिर क्या था ये षड़यंत्र? कैसे करने वाले थे ये लोग उनके प्रदर्शन को विफल? कौन, कहां, कब और कैसे करने वाला था प्रधान जी पर हमला? ऐसे कई सवाल बहुत तेजी से एक के बाद एक बम फोड़ते जा रहे थे राजकुमार के मन में, और इन सभी सवालों का जवाब शायद एक ही आदमी के पास था, जिसका नाम था यूसुफ आज़ाद।

 

हिमांशु शंगारी