संकटमोचक 02 अध्याय 26

Sankat Mochak 02
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उसी दिन शाम के लगभग साढ़े चार बजे प्रधान जी न्याय सेना के कार्यालय में इस मामले से जुड़े कुछ पहलुओं पर राजकुमार के साथ विचार विमर्श कर रहे थे।

“पैसों की कमी की समस्या तो अपने हेतल भाई ने हल कर दी पुत्तर जी। और कौन कौन से काम बचते हैं इस मामले में करने वाले?” प्रधान जी ने राजकुमार की ओर देखते हुये कहा।

“मेरे ख्याल से कल सुबह हमें गाड़ियों का, खाने पीने की चीज़ों का और इस प्रदर्शन से जुड़ी बाकी आवश्यक चीज़ों का प्रबंध सुनिश्चित कर लेना चाहिये प्रधान जी। इससे बाद में हमें किसी प्रकार की परेशान नहीं होगी”। राजकुमार ने अपनी राय व्यक्त करते हुये कहा।

“तो ठीक है फिर, कल सुबह सबसे पहले यही काम करेंगे”। प्रधान जी के चेहरे से साफ था कि राजकुमार ने उनकी अपेक्षा के अनुसार ही जवाब दिया था। शायद ये प्रश्न उन्होंने राजकुमार की प्रबंधकीय समझ परखने के लिये ही किया था।

“और कल ही कल में हमें न्याय सेना के बचे हुये युनिट्स को भी प्रदर्शन के लिये तैयार रहने के लिये बोल देना चाहिये……………………” अधूरी ही रोक देनी पड़ी थी राजकुमार को अपनी बात। कार्यालय का दरवाजा खोलते हुये हरजीत राजू ने अंदर प्रवेश किया था।

“चिट्टी का फोन आया था अभी प्रधान जी, आपसे बात करना चाहता है। मैने कहा कि उसका मैसेज दे दूंगा आपको। सुबह भी एक बार फोन आया था उसका। क्या आदेश है इस बारे में?” आदरपूर्वक स्वर में कहा राजू ने।

“फिर कहीं फंस गया होगा और मदद के लिये फोन किया होगा। चलो करवा दो बात, तुम्हारा अच्छा दोस्त है फिर भी”। प्रधान जी ने कुछ सोचते हुये कहा।

“ठीक है प्रधान जी, मैं अभी करवाता हूं आपकी बात”। प्रसन्न होते हुये कहा राजू ने, और अपने मोबाइल से एक नंबर मिला दिया। राजकुमार इस सारे वार्तालाप को दिलचस्पी से सुन रहा था। पहली बार सुना था उसने चिट्टी नामक इस व्यक्ति का नाम।

“हां चिट्टी, प्रधान जी बात करेंगे तुमसे, ये लो बात करो”। दूसरी ओर से किसी के बोलते ही राजू ने फोन प्रधान जी को दे दिया।

“पैरी पौना प्रधान जी, चिट्टी बोल रहा हूं”। प्रधान जी के फोन पर आते ही कहा चिट्टी नाम के उस शख्स नें।

“ओ जीते रह मेरे चिट्टी पुत्तर, क्या हाल हैं तेरे, बड़े समय के बाद फोन किया इस बार, अपने प्रधान की याद नहीं आती तुझे कभी?” बड़े ही अपनेपन के साथ कहा था प्रधान जी ने। इसी अपनेपन के कारण सहज ही किसी के दिल में भी उतर जाते थे वो।

“जी ऐसी बात नहीं है प्रधान जी, आप बहुत वयस्त रहते हैं, इसलिये बेकार में आपको तंग करना ठीक नहीं समझता मैं। वैसे राजू से आपके बारे में बात होती रहती है अक्सर”। पूरे आदर के साथ कहा चिट्टी ने।

“और बताओ, अगर कोई काम हो तो?” प्रधान जी ने चिट्टी के फोन करने का उद्देश्य जानने के लिये कहा।

“काम तो है प्रधान जी, पर आपसे मिलकर ही बात करना चाहता हूं”। चिट्टी ने सीधा काम की बात पर ही आते हुये कहा।

“तो ठीक है फिर, कल सुबह 11 बजे दफ्तर आ जाओ, बैठ कर बात करेंगे आराम से”। प्रधान जी ने उसी अपनेपन के साथ कहा।

“जी दो निवेदन थे आपसे प्रधान जी, एक तो समय आज का ही दे दीजिये अगर हो सके तो। दूसरा मैं आपके घर पर मिलना चाहता हूं आपको, कार्यालय में नहीं। काम थोड़ा जल्दी करने वाला भी है और थोड़ा गोपनीय भी”। विनम्र स्वर के साथ कहा चिट्टी नें।

“ऐसी क्या एमरजैंसी आ गयी चिट्टी पुत्तर, सब ठीक तो है न?” प्रधान जी की आवाज़ में अपनापन और स्नेह और भी बढ़ गया था।

“जी आपकी कृपा से सब ठीक है प्रधान जी, बस एक आवश्यक और जल्दी करने वाला काम है। इसीलिये आपसे ये निवेदन किया है। मुझे पता है आपका समय बहुत कीमती है प्रधान जी, और बिना किसी जरूरी काम के इसे खराब करने के बारे में तो मैं सोच भी नहीं सकता”। एक बार फिर आदर और विनम्रता के साथ कहा था चिट्टी ने।

“तो ठीक है फिर चिट्टी पुत्तर, आज शाम आठ बजे मेरे घर पर ही आ जाओ”। प्रधान जी ने चिट्टी की आवश्यकता को समझते हुये कहा।

“जी बिल्कुल ठीक है प्रधान जी, मैं आज शाम आठ बजे राजू को साथ लेकर ही पहुंच जाऊंगा आपके घर। अच्छा अब आज्ञा दीजिये”। चिट्टी के कहने के बाद प्रधान जी ने औपचारिकता के बाद फोन डिस्कनैक्ट कर दिया था।

“ये चिट्टी कौन है, प्रधान जी?” राजू के बाहर जाने के तुरंत बाद ही कर दिया था राजकुमार ने ये सवाल।

“हा हा हा, मुझे पता था कि तेरे पेट में ये जानने के लिये जोर की गड़बड़ चल रही होगी। हर बात को जानने की इच्छा रहती है तु्झे। चिट्टी अपने राजू का जिगरी दोस्त है और अन्य कई युवा लड़कों की तरह ही लड़ाई झगड़े के कामों में लगा रहता है। कई बार मुसीबत में फंसने पर मुझसे सहायता मांग लेता है और मैं इसकी सहायता कर देता हूं, राजू का दोस्त होने के नाते”। प्रधान जी ने राजकुमार की जिज्ञासा शांत करते हुये कहा।

“आपकी ये बात मुझे अभी तक समझ नहीं आयी, प्रधान जी? आप खुद तो कोई गलत काम करते नहीं पर शरण में आने वाले कई लोगों के गलत काम भी करवा देते हैं आप?” राजकुमार के चेहरे पर इस सवाल का जवाब जानने के लिये गहरी उत्सुकुता थी।

“वो इसलिये पुत्तर जी, कि एक तो ये लड़के अभी छोटी उम्र के हैं, अधिक समझ नहीं है इनको। आगे चलकर कब ये ठीक रास्ता पकड़ लें कोई पता नहीं। दूसरी बात ये है कि लड़ाई झगड़े जैसे मामले में फंसने पर तो इन लोगों की मदद कर देता हूं मैं, किसी संगीन मामले में फंसने पर नहीं”। प्रधान जी ने राजकुमार को समझाते हुये कहा।

“और उस दिन आपने करतार की सिफारिश भी की थी, जुआ खेलते हुये पकड़े जाने पर?” राजकुमार को जैसे कुछ और भी याद आ गया था।

“जुआ खेलना भी वैसा ही काम है पुत्तर जी, और करतार भी चिट्टी की तरह ही युवा उम्र का है। इस उम्र में कई लड़के इस तरह के काम करने लग जाते हैं, जिनसे समाज का कम और इनका अपना नुकसान अधिक होता है। ऐसे युवाओं को प्यार से रास्ते पर लाने की कोशिश करनी चाहिये। अगर सब लोग इन्हें नफरत से ही देखेंगे तो ये लोग सभ्य समाज से पूरी तरह ही कट जाते हैं, और फिर पहले से भी अधिक बुरे काम करने लग जाते हैं”। एक पल सांस लेने के लिये रुके प्रधान जी, और फिर दोबारा शुरू हो गये।

“इसलिये मैं ऐसे युवाओं की सहायता कर देता हूं और साथ ही साथ उन्हें अच्छे रास्ते पर लगाने की कोशिश भी करता हूं। क्योंकि मैं उनकी सहायता कर देता हूं, वो मेरा आदर करते हैं और मेरी कही गयी अच्छी बातों को नज़र अंदाज़ नही करते। तुझे ये जानकर हैरानी होगी कि न्याय सेना के बहुत से युवा पदाधिकारी पहले ऐसे ही कामों में लगे रहते थे। मेरे समझाने पर इन लोगों ने वो सारे काम छोड़ कर अपनी उर्जा को न्याय सेना की सेवा में लगा दिया”। प्रधान जी ने अपनी बात पूरी करते हुये कहा।

“ये उर्जा वाली बात तो आपने बिल्कुल ठीक कही, प्रधान जी। वास्तव में इस तरह के युवाओं के पास सामान्य युवाओं की तुलना में कहीं अधिक उर्जा होती है, केवल उस उर्जा का सही दिशा में प्रयोग करने की कला नहीं आती इन्हें, इसलिये भटक जाते हैं”। राजकुमार ने प्रधान जी की बात के साथ सहमति जताते हुये कहा।

“और मैं इन्हें वो दिशा दिखाने की कोशिश करता हूं। तुझे ये जानकर हैरानी होगी पुत्तर, कि युवा उम्र में मैं भी पहले लडाई झगड़े वाले कामों में बहुत उलझा करता था। दोस्तों की सहायता करने के चक्कर में बहुत लोगों को पीटा है मैने। मुझे भी ऐसे ही मेरे गुरू ने मेरे अंदर छिपी प्रतिभा की पहचान करवाते हुये इसका प्रयोग सही दिशा में करने के लिये प्रेरित किया था, बहुत धीरे धीरे और बहुत प्यार से”।

“इसलिये जब इस तरह के युवा लड़के मेरे पास सहायता मांगने आते हैं तो मैं उन्हें नफरत से नहीं देखता बल्कि प्यार से उन्हें बदलने की कोशिश करता हूं, जैसे मेरे गुरु ने की थी। जब मैं बदल सकता हूं तो ये लोग क्यों नहीं? बहुत बड़ा सबक सिखाया था मेरे गुरु ने मुझे। ‘किसी पर दोष लगा कर नफरत तो कोई भी कर सकता है वरुण, पर जो बुरा काम करने वाले को भी रास्ते पर लाने की कोशिश करे, वही सच्चा समाज सुधारक है’। आज भी याद हैं मुझे अपने गुरु के वो शब्द”। कहते हुये प्रधान जी जैसे अतीत में खोकर भावुक हो गये थे।

“ओह, तो इसी लिये आप पहले हर मामले में विरोधी को सम्मान के साथ अपनी गलती मान लेने का मौका देते हैं। वैसे आपने इससे पहले अपने गुरु जी के बारे में कभी बात नहीं की, और अपनी जवानी का कोई किस्सा भी नहीं सुनाया।………………………… कोई मारा मारी वाली बात सुनाईये न, प्रधान जी। आप कैसे लोगों को पीटते थे, ये जानने की तीव्र इच्छा हो रही है मुझे?” राजकुमार ने गंभीर अदाज़ में शुरु की थी अपनी बात पर फिर अंत तक जाते जाते उसे शरारत में बदल दिया था।

“ओये खोते वो सब बाद में बताऊंगा, भूल गया क्या? भाजी से पांच बजे मिलने का समय लिया था?” प्रधान जी ने राजकुमार को नकली रोष से देखते हुये कहा।

“अरे सचमुच प्रधान जी, आपके इस रोचक किस्से के चक्कर में मैं भाजी से मुलाकात वाली बात तो भूल ही गया था”। कहते कहते राजकुमार ने अपनी कुर्सी से उठते हुये गाड़ी की चाबी उठा ली थी।

 

हिमांशु शंगारी