संकटमोचक 02 अध्याय 25

Sankat Mochak 02
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लगभग 45 वर्ष के हेतल विज की गिनती शहर के सबसे अमीर लोगों में होती थी और कहने वाले कहते थे कि उनके पास कितना धन है, इसकी गिनती खुद उन्हें भी नहीं थी। शहर के धन कुबेर कहे जाने वाले हेतल विज जितना अधिक अपने पैसे के लिये जाने जाते थे, उतना ही अधिक किसी न किसी बात के चलते चर्चा में रहने की अपनी आदत के कारण।

मध्यम से थोड़े लंबे कद के हेतल विज का व्यक्तित्व गजब का था और उनके व्यक्तित्व की पहली विशेषता थी उनका दिमाग। शहर के सबसे तेज़ चलने वाले दिमागों में से एक दिमाग था हेतल विज के पास और जोड़ तोड़ करने की अपार क्षमता। किसी भी प्रकार की स्थिति में अपने लिये फायदेमंद विकल्प निकाल लेना उनके लिये कोई विशेष मुश्किल काम नहीं था।

वाणी पर जोरदार पकड़ रखने वाले हेतल विज बातचीत की कला में दक्ष होने के कारण किसी भी परिस्थिति या व्यक्ति को इस कला के प्रयोग से अपने पक्ष में मोड़ेने मे सक्ष्म थे। उनकी वाणी में हालांकि कई बार हल्का या तीखा व्यंग्य होता था, किन्तु इस व्यंग्य को इतनी कलाकारी से मिलाते थे अपनी वाणी में हेतल विज, कि कोई तेज़ दिमाग वाला ही भांप पाता था उसे।

बड़े भोले मुंह के साथ दो या दो से अधिक अर्थों वाली बातें कह देने की कला में उनका कोई सानी नहीं था, जिसके चलते बहुत से लोग उनकी कई बातों का वास्तविक अर्थ समझ ही नहीं पाते थे। अपनी अनेक विशेषताओं के चलते और अपने अथक परिश्रम के कारण ही हेतल विज ने अपार धन कमाया था, और कई अन्य धनी लोगों की तरह बाप-दादा से नहीं मिला था उन्हें ये धन।

लेकिन इन सारी विशेषताओं के अलावा एक और विशेषता थी उनमें, जिसके कारण शहर में कई राजनेताओं से भी अधिक लोकप्रिय थे हेतल विज। ये विशेषता थी, किसी भी अच्छे कार्य के लिये सहायता मांगने आये किसी भी अच्छे संगठन की मदद करने की विशेषता। मां भगवती के बहुत बड़े भक्त थे हेतल विज, और धार्मिक कार्यों में बहुत बढ़ चढ़ कर योगदान देते थे।

बहुत महात्वाकांक्षी होने के कारण हेतल विज ने कुछ ही सालों में सफलता की सीढियों को बहुत तेजी से चढ़ा था। इस कारण शहर के कई अन्य धनी तथा प्रभावशाली लोग इनके काम करने के तरीके और इनकी कई आदतों को गलत मानते थे और इनमें से कई लोग इनकी पीठ के पीछे इनके बारे में बुरा बोलते थे। लेकिन एक बात को लेकर इन लोगों सहित शहर के सभी गणमान्य व्यक्ति सहमत थे और वो बात ये थी कि, किसी भी धार्मिक या सामाजिक कार्य में धन की आवश्यकता होने पर सबसे पहले और सबसे अधिक योगदान डालने के लिये हाज़िर हो जाते थे हेतल विज। उनकी यही आदत शहर में उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण थी।

मिशन चौक के पास स्थित अपने आलीशान घर में बैठे कुछ कारोबारी काम कर रहे थे हेतल विज, जब एक कर्मचारी ने आकर प्रधान जी के आने की सूचना दी। प्रधान जी को सीधा अंदर ही ले आने के लिये कहते हुये उन्होंने चाय का प्रबंध करने का आदेश भी दे दिया।

“ओ क्या हाल है मेरे हेतल भाई का?” बुलंद आवाज़ में कहे गये इन शब्दों को सुनते ही मुस्कुरा दिये थे हेतल विज। प्रधान जी उन्हें हेतल भाई कहकर ही बुलाते थे।

“आईये आईये प्रधान जी, शहर का सबसे बड़ा प्रधान आज मेरे गरीबखाने में कैसे आ गया?” अपनी आदत के अनुसार फौरन एक से अधिक अर्थों वाली इस बात के साथ स्वागत किया था प्रधान जी का, हेतल विज नें। उनके चेहरे पर छाये भोलेपन से बिल्कुल ऐसा लग रहा था कि जैसे वो सच ही बोल रहे हैं जबकि उनकी आवाज़ इस बात का संकेत दे रही थी कि वो प्रधान जी को छेड़ रहे हैं।

“सारा शहर आपकी गरीबी का राज़ जानने की कोशिश में जुटा हुआ है हेतल भाई, और आप हैं कि और गरीब होने के तरीके ढूंढते रहते हैं दिन प्रतिदिन”। प्रधान जी ने भी छिपे अर्थ वाली बात से ही जवाब दिया।

“हा हा हा, ये भी खूब कही आपने, आईये बैठिये”। हंसते हुये हेतल विज ने प्रधान जी के साथ आये राजकुमार को बहुत गौर से देखा था जैसे पहली बार देख रहे हों, हालांकि इससे पहले भी दो बार मिल चुके थे वो उससे।

“और सुनाईये प्रधान जी, बड़े छाये हुये हो आजकल अखबारों में। बहुत बड़ी बड़ी खबरें लगा रहीं हैं अखबारें आपके बारे में”। एक बार फिर दो अर्थी बात कह दी थी हेतल विज ने। राजकुमार समझ गया था कि उनका इशारा आज सुबह प्रधान जी को ब्लैकमेलर लिखने वाली खबर की ओर था, हालांकि उनके कहने के अंदाज़ से ये पता कर पाना आसान नहीं था।

“क्या करें हेतल भाई, पैसे की कमी को पूरा करने के लिये दूसरों को ब्लैकमेल करना ही पड़ता है”। हेतल विज की बात का दूसरा अर्थ भी समझ चुके थे प्रधान जी।

“यहां दूध का धुला कौन है जो दूसरे पर इल्ज़ाम लगाते हैं ये लोग? चलो छोड़ो इन बातों को और चाय पीते हैं”। चाय की ट्रे लेकर आ रहे कर्मचारी को देखते हुये कहा हेतल विज ने।

“और कैसे आना हुआ आज? सब ठीक ठाक तो है?” दो मिनट के बाद चाय की चुस्की लेते हुये कहा हेतल विज ने।

“आप तो जानते ही हैं इस दूरदर्शन वाले मामले को हेतल भाई, पांच दिन बाद बहुत बड़ा प्रदर्शन करना है हमें और इंतज़ाम अभी अधूरे हैं”। प्रधान जी ने मुस्कुराते हुये अपनी बात को यहीं तक कहकर छोड़ दिया।

“इसकी चिंता आप अपने इस गरीब भाई पर छोड़ दो और सेवा लगाओ। बताओ कितने पैसों की आवश्यकता है?” प्रधान जी की अधूरी बात का मतलब समझते हुये तुरंत ही कह दिया था हेतल विज ने, एक बार फिर अपने आप को गरीब कहते हुये, उसी दो अर्थों वाले अंदाज़ में। ‘सेवा लगाओ’ उनके तकिया कलाम जैसे ही था और सहायता मांगने वाले लगभग हर आदमी से यही कहते थे वो।

“अभी तो फिलहाल 25 हज़ार ही कम पड़ रहे हैं हेतल भाई, अगर इसमें से कुछ मदद हो जाती तो………”। एक बार फिर अपनी बात को बीच में ही छोड़ दिया था प्रधान जी ने।

“बस इतनी सी बात, एक मिनट में आया मैं, आप लोग चाय पीयो जब तक”। कहते हुये हेतल विज अपने बैडरूम की ओर गये और दो मिनट से भी कम समय में प्रधान जी के हाथ में पांच पांच सौ के कुछ नोट पकड़ा दिये।

“25 हज़ार हैं, और कोई जरुरत है तो हिचकिचाओ मत, सेवा लगाओ”। प्रधान जी को प्रोत्साहित करते हुये कहा हेतल विज नें।

“अभी तो इसके अलावा अपने को सिर्फ चाय और बिस्किटों की ज़रूरत थी, वो भी आपने पूरी कर दी है”। प्रधान जी ने प्रसन्न स्वर मे कहा और पैसे राजकुमार को पकड़ा दिये।

“लो पुत्तर जी, हो गयी अपनी सारी की सारी समस्या हल, देखा अपने हेतल भाई का दिल। एक मिनट से भी पहले सारे के सारे पैसे लाकर दे दिये। शहर में देखा है कोई ऐसा दिलवाला?” प्रधान जी ने हेतल विज की प्रशंसा के पुल बांधते हुये कहा।

“नहीं देखा प्रधान जी, तभी तो मां भगवती ने सबसे अधिक कृपा की है इनपर इस शहर में। इनके गले में सदा मां जगदम्बा और इनके घर के कोने कोने में मां लक्ष्मी रहती हैं”। राजकुमार ने भी हल्की मुस्कुराहट के साथ प्रधान जी की बात का समर्थन किया। हेतल विज सदा सोने की चेन में जड़ित मां जगदम्बा का सोने का एक लॉकेट धारण किये रहते थे।

“बातें बहुत अच्छी करता है आपका ये नया साथी प्रधान जी, आपके दूसरे साथियों से बहुत अलग है ये”। हेतल विज ने राजकुमार को ध्यान से देखते हुये कहा।

“वो कैसे हेतल भाई?” प्रधान जी ने मज़ा लेते हुये कहा।

“चेहरे के भावों पर बड़ा नियंत्रण है इसका, बड़ी से बड़ी बात को भी ऐसे सुनता रहता है जैसे कोई मतलब ही न हो इसे उस बात से। केवल उचित मौका देखकर ही बोलता है और सीधा निशाने पर मारता है अपनी बातों के तीरों को। ऐसे लोग बड़े खतरनाक होते हैं प्रधान जी, संभल के रहना”। गंभीर चेहरे के साथ अपनी बात शुरू की थी हेतल विज ने लेकिन आखिरी लाईन बोलने तक मुस्कुराने लगे थे। स्वभाव के अनुसार एक बार फिर एक से अधिक अर्थों वाली बात कर दी थी उन्होंने।

“हा हा हा, आपकी पारखी नज़र नें बिल्कुल ठीक पहचाना है इसे हेतल भाई, ये सचमुच बड़ा खतरनाक है। पर अपना तो पुत्तर है, खतरा तो अपने दुश्मनों के लिये बनता है ये”। प्रधान जी ने हंसते हुये कहा। राजकुमार के चेहरे पर हेतल विज की बातों को सुनकर मुस्कुराहट आ गयी थी।

“अच्छा अब एक काम की बात सुनिये, प्रधान जी”। हेतल विज ने एकदम से विषय बदलते हुये कहा।

“जी कहिये हेतल भाई”। प्रधान जी के साथ साथ राजकुमार भी सतर्क हो गया था।

“इस दूरदर्शन वाले मामले में बहुत ध्यान से चलना। अडवानी बहुत पुराना खिलाड़ी है ऐसे खेलों का, किसी भी स्तर तक गिर सकता है जीतने के लिये”। हेतल विज ने छिपे अर्थ वाली अपनी इस बात को इतना ही कहकर छोड़ दिया और प्रधान जी की ओर देखने लगे।

“मैं आपका इशारा समझ गया हेतल भाई, मैं इस बात का ध्यान रखूंगा”। प्रधान जी ने कहा और अपनी बची हुयी चाय पीने लगे।

बातचीत का सिलसिला कुछ देर तक चला, उसके बाद प्रधान जी और राजकुमार हेतल विज से विदा लेकर न्याय सेना के कार्यालय की ओर चल दिये।

“हेतल विज किस बात से सावधान करना चाहते थे हमें, प्रधान जी?” राजकुमार ने कुछ सोचते हुये कहा। गाड़ी न्याय सेना के कार्यालय की ओर दौड़ी जा रही थी।

“अपने से बहुत प्यार करते हैं हेतल भाई, इसलिये सावधान रहने के लिये बोल रहे थे। ऐसे लोगों से तो अपना वास्ता पड़ता ही रहता है। तू चिंता छोड़, समय आने पर देख लेंगे अडवानी के किसी भी दांव को”। प्रधान जी ने बेफिक्री के अंदाज़ में कहा।

“लो छोड़ दी फिर चिंता, अब बताईये आगे क्या करना है?” राजकुमार ने मुस्कुराते हुये कहा। उसका दिमाग अभी भी किसी जोड़ तोड़ में लगा हुआ था, हालांकि उसने अपने चेहरे को सामान्य बना लिया था अब।

“मेरे ख्याल से आज भाजी से मुलाकात की जाये, इस मामले में एक दो बार प्रयास करने के बाद भी अभी तक भाजी से मुलाकात नहीं हो पायी है हमारी”। प्रधान जी ने कुछ सोचते हुये कहा।

“फर्स्ट क्लास विचार है प्रधान जी, वैसे भी बड़े दिनों से मेरा दिल कर रहा है पैप्सी कोला पीने को”। राजकुमार के कहते ही मुस्कुरा दिये थे प्रधान जी। अपने से मिलने वालों को पैप्सी पिलाते थे भाजी अक्सर, और इस पेय को हमेशा पैप्सी कोला ही कहकर बुलाते थे वो।

“तो लो मैं अभी समय ले लेता हूं फिर”। कहने के साथ ही प्रधान जी ने अपने मोबाइल से सत्यजीत समाचार के कार्यालय का नंबर मिलाया और दूसरी ओर से फोन रिसीव किये जाने की प्रतीक्षा में लग गये।

“सत श्री अकाल अमरप्रीत जी, भाजी आज कार्यालय आयेंगे क्या?……………चार बजे आयेंगे……………मैं पांच बजे आ जाऊं मिलने फिर?…………………ओके जी ठीक है फिर, सत श्री अकाल”। प्रधान जी ने फोन डिस्कनैक्ट किया और फिर राजकुमार की ओर देखा।

“भाजी से पांच बजे मिलने का समय फिक्स हो गया है। मेरे ख्याल से अब कुछ खा लिया जाये, बहुत भूख लग आयी है। बटर चिकन खाया जाये आज फिर?”। खाने की बात करते करते प्रधान जी के चेहरे पर बड़े आनंदमयी भाव आ गये थे। तरह तरह के स्वादिष्ट व्यंजनों के शौकीन थे प्रधान जी, और बटर चिकन तो उनका सबसे फेवरिट था।

“मेरे ख्याल से हमें इस बात का बहुत ध्यान रखना चाहिये प्रधान जी, कि ये जानकारी किसी भी हाल में अडवानी के पास न पहुंच पाये”। राजकुमार के चेहरे पर एकदम से गंभीरता आ गयी थी, जैसे कुछ याद आ गया हो अचानक से।

“कौन सी जानकारी पुत्तर जी?” राजकुमार के अचानक बदल गये इस मूड ने प्रधान जी के मन में उत्सुकुता पैदा कर दी थी।

“यही कि जो काम आपने पच्चीस लाख में भी करने से मना कर दिया, उसे आप बटर चिकन की एक प्लेट में ही कर देते। अपना तो बहुत नुकसान हो जायेगा, प्रधान जी”। एक बार फिर तेजी से अपने चेहरे के भाव बदलते हुये शरारत के साथ कहा राजकुमार ने।

“ओये बड़ा बदमाश है तू कंजर, हेतल भाई ठीक ही कहते हैं, बड़ा खतरनाक है तू। कब एकदम से अपने चेहरे के भाव बदल कर क्या बात करदे, किसी को पता नहीं चलता”। प्रधान जी ने ठहाका लगाते हुये कहा।

“तो फिर खाना है बटर चिकन? अडवानी को कहूं बढ़िया सा बटर चिकन बनवाये आपके लिये?” राजकुमार अभी भी छेड़ रहा था प्रधान जी को।

“ओये मैं सब समझता हूं तेरी बदमाशियों को, आज तेरा खुद का कुछ और खाने का मन कर रहा होगा। इसीलिये बटर चिकन खाने के नुकसान गिनाता जा रहा है, बता क्या खाना है आज?” प्रधान जी इस बार शायद राजकुमार की इन बातों का मतलब समझ गये थे। किसी भी काम से किसी को रोकने के लिये अप्रत्यक्ष रूप से उसके नुकसान गिनवाने लग जाता था राजकुमार, जिससे सामने वाले पर उस काम को न करने के लिये मनोवैज्ञानिक दबाव बन जाये।

“मेरे ख्याल से आज अमृतसरी कुलचे खाये जायें प्रधान जी, बहुत देर हो गयी तंदूरी कुलचे खाये हुये”। अपना तीर निशाने पर लगता देखकर मुस्कुराते हुये कहा राजकुमार ने।

“ओये तो सीधा नहीं बोल सकता था कि आज बटर चिकन की बजाये अमृतसरी कुलचे खाते हैं? मेरे बटर चिकन की इतनी बुराई करने की क्या ज़रूरत थी?” प्रधान जी ने नकली क्रोध प्रदर्शित करते हुये कहा।

“इस शहर के ज़्यादातर महत्वपूर्ण लोग पहेलियों में ही बात करते हैं प्रधान जी, इसलिये मैं भी इस भाषा को सीखने की कोशिश कर रहा हूं”। राजकुमार की इस बात में छिपे गहरे अर्थ को फौरन भांप गये थे प्रधान जी। एक बार फिर बड़ी तेजी से अपनी बात को मज़ाक से फिलॉसफी में बदल दिया था उसने।

“ये बात तो तेरी ठीक है पुत्तर, यहां अधिकतर लोग पहेलियों की भाषा में ही बात करते हैं। वैसे तू भी कुछ कम नहीं, पूरा गिरगिट है, एक पल में ही रंग बदल लेता है अपना। चल अब गाड़ी फ्रैंडस सिनेमा के सामने वाली गली की ओर ले ले, अमृतसरी कुलचे ही खाते हैं आज”। प्रधान जी ने राजकुमार को छेड़ते हुये कहा। इस गली में बनने वाले तंदूरी कुलचे सारे शहर में प्रसिद्ध थे।

“अगर आप इतना कह रहे हैं प्रधान जी, तो चलिये आज कुलचे ही खा लेते हैं फिर”। राजकुमार ने एकबार फिर अपना अंदाज़ बदलते हुये इस प्रकार कहा जैसे कुलचे खाने का फैसला लेकर बहुत बड़ा अहसान कर रहा हो प्रधान जी पर। उसकी इस बात पर प्रधान जी एक बार फिर ठहाका लगा कर हंस दिये थे।

 

हिमांशु शंगारी