संकटमोचक 02 अध्याय 20

Sankat Mochak 02
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बंस राज बंस, पंजाबी गायकी के आसमान पर चमकते सितारों में से एक बहुत ही बुलंद सितारा। उनकी हालिया एलबम ‘मोरनी’ ने धूम मचा कर रखी हुयी थी सब जगह, और इसका हर एक गाना सुपरहिट हो चुका था। बंस की इस गायन प्रतिभा का कायल बॉलीवुड भी हो चुका था जिसके चलते कई हिंदी फिल्मों में भी गाने गा चुके थे वो, और ये सभी गाने भी सुपरहिट ही रहे थे। उनके हिंदी गाने ‘खोते खोते खो गया दिल……’ ने सारे देश में सफलता के झंडे गाड़ दिये थे। एक के बाद एक मिल रही इन सफलताओं के चलते बंस उस समय के सबसे सफल गायकों में से एक माने जाते थे।

जालंधर में राजेंद्र नगर स्थित अपने आलीशान घर में अभी अभी प्रधान जी का वैल्कम करके उन्हें ड्राईंग रूम में लेकर आये थे, बंस। हालांकि उनका पूरा नाम बंस राज बंस था, जानने वाले उन्हें बंस के नाम से ही बुलाते थे। प्रधान जी तो पहले भी कई बार आ चुके थे यहां, किन्तु पहली बार आने के कारण राजकुमार बाहर से सफेद रंग में रंगे इस घर की भव्यता का आनंद उठा रहा था। ड्राईंग रूम में बहुत सारी कलात्मतक कृतियां रखीं हुयीं थीं जिनकी ओर किसी का भी ध्यान सहज ही आकर्षित हो जाना स्वभाविक था।

“और सुनाईये प्रधान जी, क्या हाल है भाभी का और बाकी सब का?” कहते हुये प्रधान जी की आंखों में देखते हुये एक विशेष इशारा कर दिया था बंस ने, मानो वो राजकुमार के बारे में जानना चाहते हों। टेबल पर जूस और खाने का कुछ सामान आ चुका था।

“घर पर सब ठीक है बंस भाई और सब बहुत याद करते हैं आपको। आपके गाने सुनकर मन प्रसन्न हो जाता है सबका, और सब गर्व करते हैं आपकी इस सफलता पर। चलिये अब आपको राजकुमार से मिलवाता हूं”। बंस का इशारा समझते हुये कहा प्रधान जी ने और अपना जूस का गिलास उठा लिया।

“ये है अपना पुत्तर राजकुमार, न्याय सेना का नया महासचिव। गजब का दिमाग है इसका और हर किसी के दिल या दिमाग में अपनी जगह बनाने की कला आती है इसे। केवल चार महीने ही हुये हैं इसे न्याय सेना में आये हुये, पर न केवल संगठन में सबका चहेता बन गया है बल्कि आपकी भाभी और बच्चों पर भी जादू कर दिया है इसने। रानी बहुत पसंद करती है इसे और बच्चे तो इसे देखते ही खुश हो जाते हैं”। प्रधान जी ने राजकुमार का परिचय देते हुये कहा।

“जब प्रधान जी ने इतनी तारीफ की है तुम्हारी छोटे भाई, तो फिर जरूर तुम इस तारीफ के काबिल होगे। तुमसे मिलकर बहुत खुशी हुयी। इस नाचीज़ को बंस राज बंस कहते हैं, एक अदना सा गायक हूं”। बंस ने अपने ही अंदाज़ में राजकुमार को संबोधन करते हुये कहा।

“आपके जैसा अदना गायक तो इस समय सारे देश में कोई नहीं है, बंस भाई। मैं आपका बहुत बड़ा फैन हूं, आपकी हालिया एलबम ‘मोरनी’ के सारे गाने बहुत अच्छे लगते हैं मुझे। विशेष रूप से उसका वो ‘प्यार भरे खत’ वाला गाना मेरा फेवरिट है”। राजकुमार ने बंस की प्रशंसा करते हुये कहा। उसके चेहरे पर बंस राज बंस जैसे बड़े गायक से रुबरु मिलने की खुशी साफ देखी जा सकती थी।

“वो गाना ही क्यों?” थोड़ी उत्सुकुता आ गयी थी बंस की आवाज़ में।

“वो इसलिये बंस भाई, कि मुझे लगता है वो गाना निजी रूप से उस एलबम में आपका सबसे चहेता गाना है। उस गाने को गाते समय आपकी आवाज़ जितनी गुम गयी लगती है उसमें, किसी और गाने में नहीं गुमी उस तरह से। ऐसा लगता है वो गाना आपने लोगों के लिये नहीं बल्कि अपने लिये गाया है, इसी कारण उसमें जो असर छोड़ा है आपने, वो बाकी सब गानों की तुलना में अधिक लगा मुझे”। राजकुमार ने बंस की बात का जवाब देते हुये कहा।

“बिल्कुल ठीक समझा है तुमने छोटे भाई, वो गाना वास्तव में मेरा सबसे पसंदीदा गाना है सारी एलबम में। उसे गाते समय बहुत भावुक हो गया था मैं, कुछ पुरानी यादों के साथ जुड़ता है वो गाना और इसलिये मेरे दिल के बहुत करीब है। कला की बहुत अच्छी समझ रखते हो, क्या काम करते हो तुम छोटे भाई?” राजकुमार की बात से प्रभावित नज़र आ रहे थे बंस।

“मैने कहा था न बंस भाई, लोगों के दिल या दिमाग में जगह बनाने की कला आती है इसे। पूरा गिरगिट है ये कंजर, सामने वाले के हिसाब से बदल जाता है। बच्चों के साथ बच्चा बन जाता है, औरतों के साथ औरत बन जाता है, मेरे साथ महासचिव और देखिये अब आपके सामने कलाकार बन गया है। दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं इसका कला से, पूरा बदमाश है ये”। प्रधान जी ने हंसते हुये हस्ताक्षेप किया बातचीत के बीच में।

“चाहे आपको या खुद इसे भी न पता हो प्रधान जी, पर राजकुमार का कला से कोई गहरा रिश्ता जरूर है। इतनी गहरी बात केवल कोई कलाकार ही नोट कर सकता है। गिने चुने कुछ लोगों ने ही कही है ये बात मुझे, और वो सारे ही सीधे रूप से कला के साथ जुड़े हुये हैं”। बंस ने प्रधान जी की बात का जवाब देते हुये कहा।

“लो पुत्तर जी, तुम्हारे भविष्य का फैसला तो कर दिया बंस भाई ने। आगे चलकर कलाकार बनोगे और खूब मौज करोगे”। प्रधान जी ने राजकुमार को छेड़ते हुये कहा।

“फिलहाल तो आपकी मौज लगी हुयी है, प्रधान जी”। राजकुमार ने शरारत के साथ प्रधान जी की ओर देखते हुये कहा, जिनके एक हाथ में जूस का गिलास और दूसरे हाथ में काजू पकडे हुये थे। उसकी इस बात का मतलब समझते ही सब हंस दिये थे। बातचीत का सिलसिला एक बार फिर शुरु हो गया था।

“ये तो सचमुच बड़े मजेदार किस्से सुनाये आपने अपने विदेश दौरे के बंस भाई, मज़ा आ गया सुनकर”। लगभग आधे घंटे के बाद हंसते हुये कह रहे थे प्रधान जी।

“इन किस्सों के अलावा एक और भी बात करनी थी आपसे, प्रधान जी?” बंस ने अपने स्वर में कुछ गंभीरता लाते हुये कहा।

“खुल के कहो जो भी कहना है, बंस भाई”। प्रधान जी ने बंस के स्वर में आयी गंभीरता को भांपते हुये कहा।

“दूरदर्शन के निदेशक सुरेश अडवानी के साथ मेरे बहुत अच्छे संबंध हैं। लगभग एक सप्ताह पहले विदेश में ही उसका फोन आया था और उसने मुझे आपसे दूरदर्शन वाले मामले में बात करने के लिये कहा था। आप दोनों के साथ ही घनिष्ठ संबंध होने के कारण मैं मना नहीं कर पाया और उससे कह दिया कि मैं वापिस आकर बात करूंगा आपसे”। बंस ने बिना किसी प्रकार का झूठ बोलते हुये सीधे वही बात की जो प्रधान जी को पहले से ही पता थी।

“तो रोका किसने है बंस भाई, करो बात। क्या चाहता है अडवानी?” प्रधान जी ने हल्की मुस्कुराहट के साथ कहा।

“पहले तो उसने ये प्रस्ताव रखा था कि मैं आपको ये सारा मामला छोड़ देने के लिये कहूं। इस पर मैने ये कहते हुये इंकार कर दिया कि एक बार अगर आप कोई मामला हाथ में ले लें तो फिर उसे नहीं छोड़ते। इस पर उसने एक दूसरा प्रस्ताव रख दिया”। बात को बीच में ही रोक दिया था बंस ने, प्रधान जी का मूड भांपने के लिये।

“और क्या है वो दूसरा प्रस्ताव?” प्रधान जी एक बार फिर मुस्कुरा रहे थे। ऐसी स्थिति में बंस ने प्रधान जी को अक्सर जोश में आ जाते हुये देखा था, इसलिये आज उनका इस प्रकार मुस्कुराते रहना उनकी समझ में नहीं आ रहा था।

“अडवानी ने निवेदन किया है कि आप दूरदर्शन में भ्रष्टाचार होने की अपनी शिकायत उसे सौंप दें और जांच की मांग करें। वो उस शिकायत पर कार्यवाही करते हुये बहुत से अधिकारियों को दोषी करार देते हुये दंडित कर देगा, जिससे आपकी शान बन जायेगी और उसकी इज़्ज़त भी बच जायेगी”। बंस ने एक बार फिर सीधे शब्दों में ही कहा।

“यानि कि चोरों के सरदार को ही कोतवाल बना दें और उसे बाकी के चोरों को सज़ा देने के लिये कहें। मानना पड़ेगा बंस भाई, बहुत दूर की सोची है अडवानी ने। बड़ा खिलाड़ी लगता है वो, ऐसी तरकीब ढ़ूंढ़ के लाया है जिससे सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे”। बंस की आशा के विपरीत प्रधान जी एक बार फिर मुस्कुरा रहे थे। उनकी मुस्कुराहट में इस बार हल्का किंतु स्पष्ट व्यंग्य भी था। राजकुमार बड़े ध्यान से इस सारे वार्तालाप को सुन रहा था।

“तो क्या विचार है आपका? मैने उसे सीधे तौर से कह दिया था कि छोटा भाई होने के नाते मैं उसका प्रस्ताव दे दूंगा आपको, बाकी उसे मानना या न मानना आप ही के हाथ में रहेगा”। बंस ने बड़े आदर भरे स्वर में कहा।

“मेरा जवाब जानने से पहले एक बात का उत्तर दो, बंस भाई। जस्सी ने जो इल्ज़ाम दूरदर्शन के अधिकारियों पर लगायें हैं, तुम्हारे ख्याल से वो सच हैं या झूठ?” प्रधान जी ने बड़ा नाज़ुक सवाल पूछ लिया था बंस से, जैसे उसको किसी दिशा में लेकर जाना चाहते हों।

“आप जानते हैं प्रधान जी कि मैं आपको बड़े भाई की तरह मानता हूं और आज तक आपसे झूठ नहीं बोला मैने। इसलिये आज भी नहीं बोलूंगा। जस्सी का लगाया हुआ एक एक इल्ज़ाम सच है प्रधान जी”। शब्दों का बहुत संभाल कर इस्तेमाल किया था बंस ने, सवाल की नाज़ुकता को समझते हुये। उन्हें पता था कि इस सवाल का गलत जवाब देने से सीधा उनके और प्रधान जी के बरसों पुराने रिश्ते में दरार आ सकती है।

“तो फिर क्या करना चाहिये तुम्हारे इस भाई को? अपने कलाकार भाईयों को लूटने वाले इन भ्रष्ट अधिकारियों से समझौता कर लूं या फिर इन्हें इनके अंजाम तक पहुंचाने का प्रयास करूं?” प्रधान जी ने फैसला जैसे बंस के जमीर पर ही छोड़ दिया था।

बंस का जवाब जानने के लिये राजकुमार उत्सुक हो रहा था। इस मामले मे सिफारिश डालने वाले किसी भी व्यक्ति को प्रधान जी ने इतना आदर और हक नहीं दिया था। स्पष्ट था कि बंस से प्रधान जी का रिश्ता किसी एक विशेष मामले की तुलना में बहुत बड़ा था और वो उन्हें सीधे मना करके इस रिश्ते को शर्मिंदा नहीं करना चाहते थे।

“ये कहकर तो आपने इस छोटे भाई का मान रख लिया, प्रधान जी। जब आपने इतना सम्मान देते हुये फैसले के लिये मेरी राय मांगी है तो मैं भी इस सम्मान का पूरा मान रखूंगा। मैं एक गायक हूं और मेरी तुलना में इस तरह के मामलों को हैंडल करने की कहीं अधिक प्रतिभा है आपके अंदर। इसलिये आपको जो सही लगे, वो कीजिये इस मामले में। मेरे प्यार का कोई दबाव नहीं है आप पर, और आपका फैसला चाहे जो भी हो, मेरे सिर माथे पर होगा”। कहते कहते भावुक हो गया थे बंस। राजकुमार उनके चेहरे के भावों से इस प्यार की गहरायी मापने की कोशिश कर रहा था।

“तो ठीक है फिर बंस भाई, कह देना अडवानी से कि न्याय सेना इस मामले में कोई समझौता नहीं करेगी। अंत तक लड़ेंगे हम इस भ्रष्टाचार के खिलाफ”। पहली बार बंस ने प्रधान जी के चेहरे पर वो जोश देखा था जिसे देखने के लिये वो कब से प्रतीक्षा कर रहे थे।

“बिल्कुल ऐसे ही बोल दूंगा प्रधान जी, बस आपसे एक बात और कहनी थी”। बंस ने इस तरह की मुद्रा बना ली जैसे कुछ तोल मोल चल रही हो उनके अंदर।

“खुल के कहो बंस भाई, जो भी बात है”। प्रधान जी ने तुरंत कहा।

“मेरे ख्याल से ये लड़ाई अब तेज़ होने वाली है, आप लोग संभल कर चलियेगा। बहुत उपर तक पहुंच है इन लोगों की और बहुत साधन भी हैं इनके पास, इसलिये किसी भी स्तर तक जा सकते हैं ये लोग। मुझे पता है आप किसी चीज़ से डरते नहीं, और मैने ये बात आपको केवल आने वाली स्थिति से आगाह करने के लिये कही है, जिससे आप संभल कर चलें”। बंस ने एक बार फिर शब्दों का चुनाव बहुत संभाल कर किया था।

“तुम्हारी इस प्यार भरी सलाह का बहुत शुक्रिया बंस भाई, और मैं इसका पूरा ध्यान रखूंगा”। प्रधान जी ने प्रेम भरे स्वर में कहा।

“तो आईये अब इन बातों का सिलसिला खत्म करते हैं और खाना खाते हैं। आपकी पसंद का सामान बनवाया है मैने, और खाने के समय आपको अपने विदेश दौर के और भी रोचक किस्से सुनाता हूं”। माहौल को हल्का करने के लिये कहा बंस ने और सब खाने की टेबल की ओर चल दिये, जहां खाना पहले से ही उनका इंतज़ार कर रहा था।

लगभग एक घंटे के बाद प्रधान जी और राजकुमार बंस से विदा ले रहे थे। खाने के दौरान देश विदेश के प्रसिद्ध लोगों के साथ हुये अनुभवों को बताते रहे थे बंस।

हिमांशु शंगारी