संकटमोचक 02 अध्याय 19

Sankat Mochak 02
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इस घटना के एक सप्ताह बाद, सुबह के लगभग साढ़े दस बजे। प्रधान जी और राजकुमार न्याय सेना के कार्यालय में बैठे बातचीत कर रहे थे।

“लगभग आठ दिन बीत गये हैं पुत्तर जी, और पहले दिन के बाद कोई विशेष हरकत नहीं हुयी इस मामले में। बस शहर के आठ दस प्रभावशाली लोगों की सिफारिश ही आयी है, दूरदर्शन अधिकारियों का लिहाज करने के लिये”। बातचीत का मुद्दा एक बार फिर दूरदर्शन वाला मामला ही था।

“मेरे ख्याल से कुछ ऐसा है जिसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं ये लोग, इसीलिये कोई विशेष गतिविधि नहीं हो रही इनकी ओर से। आज़ाद भाई से मेरी बात हुयी थी इस बारे में, उनका भी यही विचार है प्रधान जी”। राजकुमार ने कुछ सोचते हुये कहा।

“पर क्या है ऐसा विशेष, पुत्तर जी?” प्रधान जी भी कहते हुये कोई अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहे थे।

“वो तो अभी न मुझे पता है न आज़ाद भाई को। बस एक अंदाज़ा है कि किसी ने कोई बड़ा आश्वासन दिया है शायद इनको इस मामले में, जिसके कारण चुप करके बैठ गये हैं। क्योंकि सिफारिशें अब भी आ रहीं हैं, निश्चित रूप से ही उनको अपने सिर पर तलवार अभी भी लटकती नज़र आ रही है। शायद किसी से कोई बड़ी बातचीत चल रही है इनकी, जिसका परिणाम निकलने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, और साथ ही साथ इस मामले को सिफारिशों के माध्यम से सुलझाने की कोशिश भी कर रहे हैं”। राजकुमार ने अनुमान लगाते हुये कहा।

कुछ कहने से पहले ही रुक जाना पड़ा था प्रधान जी को, कारण था उनके मोबाइल फोन की बज रही घंटी और उसपर फ्लैश कर रहा बंस राज बंस का नाम। प्रधान जी ने राजकुमार को फोन के पास आ जाने का संकेत दिया और फोन रिसीव कर लिया।

“नमस्कार प्रधान जी, क्या हाल हैं मेरे बड़े भाई के?” दूसरी ओर से बंस राज बंस की ही आवाज़ आयी थी।

“बिल्कुल ठीक है बंस भाई, कहां रहते हो आजकल? इतने दिनों से न कोई फोन और न ही कोई मुलाकात”। प्रधान जी ने प्रेम भरे स्वर में शिकायत करते हुये कहा। बंस राज बंस के साथ बहुत पुराने और विशेष संबंध थे प्रधान जी के।

“दो महीने के लिये विदेश दौरे पर था प्रधान जी, कल रात ही पहुंचा हूं और आज सुबह ही फोन कर दिया आपको”। बंस के इस जवाब ने अनिल खन्ना की बात की पुष्टि कर दी थी।

“और तुम्हारी आवाज़ सुनते ही दिल गार्डन गार्डन हो गया है मेरा, सचमुच जादू है तुम्हारी आवाज़ में बंस भाई। और सुनाओ, कैसा रहा विदेश दौरा?” प्रधान जी ने बात को जारी रखने के लिये कहा।

“बड़ी दिलचस्प बातें हुयीं इस विदेश दौरे में प्रधान जी, मिलकर बताऊंगा आपको। वैसे आज दोपहर क्या कर रहे हैं आप?” बंस ने प्रेम भरे स्वर में पूछा।

“कुछ विशेष नहीं, वही रोज़मर्रा के काम। कोई प्रोग्राम बनाना है क्या?” प्रधान जी ने उत्सुकुता के साथ पूछा।

“तो फिर आज दोपहर का खाना मेरे साथ मेरे घर पर ही खाईये, इसी बहाने मुलाकात भी हो जायेगी”। हंसते हुये कहा बंस राज बंस ने।

“तो ठीक है फिर, एक बजे के करीब मिलते हैं घर पर ही”। प्रधान जी ने कहा और औपचारिकता पूरी करने के बाद फोन डिस्कनैकट करते हुये राजकुमार की ओर देखा जो अपनी आदत के अनुसार एक बार फिर किसी जोड़ तोड़ में लग गया था।

“क्या सोच रहे हो, पुत्तर जी?” प्रधान जी ने राजकुमार की विचार श्रृंख्ला तोड़ते हुये कहा।

“यही कि बंस ने आपको फोन करके खाने पर क्यों बुलाया है?” राजकुमार के स्वर में रहस्य था।

“हर चीज़ पर शक मत किया कर कंजर, वो बुलाता ही रहता है मुझे खाने पर। बहुत अच्छे संबंध हैं मेरे उसके साथ”। प्रधान जी ने राजकुमार को छेड़ते हुये कहा।

“शक करने के लिये ही तो आपने मुझे साथ रखा है प्रधान जी, और मैं तो अपना काम ही कर रहा हूं। आपको याद है अनिल खन्ना ने कहा था कि उसने विजय बहल को ये बताया था कि बंस के संबंध हैं आपके साथ?” राजकुमार अभी भी किसी सोच में डूबा हुआ था।

“हां कहा तो था………तो क्या तू ये कहना चाहता है कि बंस ने मुझे दूरदर्शन वाले मामले में बातचीत करने के लिये बुलाया है?” प्रधान जी के चेहरे पर राजकुमार की बात का मतलब समझ कर कुछ हैरानी आ गयी थी।

“पक्का तो नहीं कह सकता प्रधान जी, पर ऐसा लगता जरूर है मुझे। शायद बंस का विदेश से वापिस आना ही वो कारण हो जिसके चलते दूरदर्शन के अधिकारी चुप बैठे हों। शायद बंस ने उन्हें आश्वासन दिया हो कि वो इस मामले में आपको मना लेगा, क्योंकि उसके बहुत अच्छे संबंध हैं आपके साथ?” राजकुमार की सोच के घोड़े अभी भी सरपट दौड़ रहे थे।

“तेरा ये शायद सच तो हो सकता है, पर बंस अच्छी तरह से जानता है मुझे। उसे पता है कि एक बार किसी भ्रष्टाचारी के खिलाफ खड़ा हो जाने पर मैं किसी भी हालत में पीछे नहीं हटता”। प्रधान जी के इस उत्तर ने राजकुमार की सोच और गहरी कर दी थी।

“अगर आप आज्ञा दें तो मैं आज़ाद भाई से बात करूं इस मामले में, शायद वो कोई नयी बात बता दें?” राजकुमार ने किसी नतीजे पर पहुंचते हुये कहा।

“मेरे ख्याल से इसकी आवश्यकता नहीं है, पर फिर भी अगर तू बात करना चाहता है तो कोई हर्ज भी नहीं है”। प्रधान जी इतना कहते कहते ही राजकुमार ने अपने मोबाइल से आज़ाद का नंबर मिला दिया था, जैसे उनकी आज्ञा की प्रतीक्षा ही कर रहा हो।

“इतने दिन से न कोई फोन और न कोई मुलाकात, ऐसे थोड़े ही दोस्ती मज़बूत होती है”। फोन उठाते ही बिना किसी औपचारिकता के शिकायत कर दी थी आज़ाद ने।

“कुछ विशेष था ही नहीं भाई साहिब, इसलिये आपको तंग करना ठीक नहीं समझा”। राजकुमार ने सफाई देते हुये कहा।

“मतलब कि आज कुछ विशेष है, तो फिर जल्दी बताईये”। आज़ाद एक बार फिर राजकुमार की बात से उसके फोन करने के कारण का अंदाज़ा लगा चुके थे।

“बंस राज बंस को जानते हैं क्या आप?” राजकुमार ने आज़ाद की ओर पहेली फेंकते हुये कहा।

“उन्हें कौन नहीं जानता, पंजाबी के सबसे सफल गायकों में से एक हैं, बॉलीवुड तक धूम मचा दी है उन्होनें। पर आप ये क्यों पूछ रहे हैं, कहीं दूरदर्शन वाले मामले में तो नहीं…………?”। आज़ाद ने जैसे खुद ही अपनी बात का जवाब दिया और कुछ सोचने लग गये थे।

“बिल्कुल यही बात है भाई साहिब, अभी फोन करके प्रधान जी से मिलने का समय लिया है उन्होंने। बहुत अच्छे संबंध हैं उनके, प्रधान जी के साथ। मैं केवल ये जानना चाहता हूं कि कहीं इस मुलाकात के पीछे दूरदर्शन वाला मुद्दा तो नहीं?” राजकुमार ने अपनी शंका को सामने रखते हुये कहा।

“बिल्कुल हो सकता है, दूरदर्शन के निदेशक सुरेश अडवानी के साथ बहुत अच्छे संबंध हैं बंस के। ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि प्रधान जी को बुलाया जाये और इस बारे में चर्चा न हो। इसीलिये बुलाया होगा, आप इसी हिसाब से तैयारी करके जाईयेगा। अच्छा, अब रखता हूं”। आज़ाद के इस खुलासे ने राजकुमार के साथ साथ प्रधान जी की उत्सुकुता भी बढ़ा दी थी।

“देखा प्रधान जी, आज़ाद भाई नें भी मेरी बात की पुष्टि की है। अब इस मुलाकात के दौरान ऐसी किसी स्थिति के लिये तैयार होकर जाईयेगा आप”। राजकुमार ने मुस्कुराते हुये कहा।

“तू भी मेरे साथ ही चलेगा बंस से मिलने और बातचीत के दौरान जहां तुझे बोलने लायक कुछ लगे, बिना मुझसे पूछे बोल देना”। प्रधान जी ने तुरंत ही प्रतिक्रिया दी, राजकुमार की बात पर।

“मेरा जाना क्या ठीक रहेगा प्रधान जी, बंस ने आपको दोस्ती वाले अंदाज़ में निजी तौर से खाने पर बुलाया है? ऐसे में मेरे जाने से आप लोगों को असुविधा हो सकती है, अपनी कोई निजी बातें करने में”। राजकुमार ने शंका प्रकट करते हुये कहा।

“अब तू भी मेरे निजी दायरे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है पुत्तर जी, इसलिये तेरे सामने किसी भी तरह की निजी बात करने में कोई समस्या नहीं है मुझे। तू भी साथ ही चलेगा मेरे”। प्रधान जी ने राजकुमार को जैसे आदेश दिया हो। प्रधान जी के इस प्यार और सम्मान ने कुछ पल के लिये राजकुमार को भावुक कर दिया था।

 

हिमांशु शंगारी