संकटमोचक 02 अध्याय 18

Sankat Mochak 02
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उसी दिन लगभग चार बजे प्रधान जी और राजकुमार न्याय सेना के कार्यलय में बैठे विचार विमर्श कर रहे थे।

“लगता है बहुत बड़े घपले कर रखे हैं इन लोगों ने दूरदर्शन में, जो इतनी जल्दी योगेश दत्त ने फोन करके समय मांग लिया है मिलने का”। प्रधान जी राजकुमार की ओर देखते हुये मुस्कुरा रहे थे।

“अखबारों ने खबरें भी तो बहुत बड़ी लगाईं हैं, प्रधान जी। इससे अधिकारियों को अंदाज़ा हो गया होगा कि ये मामला तूल पकड़ने वाला है जिसके कारण उन्होंने इस मामले को समय रहते ही दबाने के लिये योगेश दत्त से संपर्क किया होगा। पर क्या आपको पूरा विश्वास है कि योगेश दत्त इसी मामले में बात करना चाहता है? उसने तो केवल मिलने की इच्छा जतायी है फोन पर, और आपके हां करने पर कहा है कि कुछ ही देर में पहुंच रहा है हमारे कार्यालय में”। राजकुमार को योगेश दत्त के बारे में कुछ खास जानकारी नहीं थी जिसके कारण उसने प्रधान जी से ये सवाल पूछा था।

“तुम जानते नहीं योगेश दत्त को, एक नंबर का चालू आदमी है। कहने को तो एक राजनैतिक पार्टी में स्थानीय स्तर का नेता है, पर उसका असल काम बड़े बड़े अधिकारियों के साथ मिलकर सौदेबाजी करना ही है। बिना मतलब कभी नहीं मिलता किसी से, और न ही आज हमसे मिलने आ रहा होगा। देखना, आते ही दो मिनट भी गंवाये बिना सौदेबाजी करनी शुरू कर देगा। हाई प्रोफाइल दलाल है ये योगेश दत्त”। प्रधान जी की बात पूरी होते होते राजकुमार को समझ आ चुका था कि पांच मिनट पहले फोन करने वाले योगेश दत्त की असलीयत क्या है।

“आपके विचार से किस तरह की सौदेबाजी करने की कोशिश करेगा वो?” कहते कहते राजकुमार का दिमाग सक्रिय हो चुका था।

“अपनी चिकनी चुपड़ी बातों में फंसा कर हमे या तो इस केस से हट जाने के लिये कहेगा, या फिर कोई लिहाज़ मांग लेगा कुछ खास अधिकारियों के लिये। बदले में पैसा या दूरदर्शन पर समय समय पर संगठन के कारनामों को प्रमोट करने का लालच देगा। गिने चुने तीर ही रखता है अपने तरकश में और उन्ही का प्रयोग करने में माहिर है वो”। प्रधान जी ने हंसते हुये कहा।

“तो क्या सोचा है आपने, अगर पैसे का लालच दिया उसने तो क्या जवाब देंगें आप?” राजकुमार के चेहरे पर वही जानी पहचानी मुस्कुराहट आ गयी थी, ये सवाल पूछते पूछते।

“ओये क्या मतलब है तेरा कंजर, तुझे पता नहीं चला इतने महीनों में अभी तक। जैसे ही पैसे की बात करेगा, उसे चुपचाप भाग जाने के लिये बोल दूंगा। वरुण शर्मा ने न तो आज तक सौदा किया है अपने ईमान का, और न ही कभी करेगा”। जोश में आकर कहते हुये प्रधान जी राजकुमार की मुस्कुराहट को देखकर सोच में पड़ गये थे। उन्हें पता था कि ये मुस्कुराहट राजकुमार के चेहरे पर तभी आती है, जब किसी बड़ी शैतानी को अंजाम दे रहा होता है वो।

“मत बेचिये अपना ईमान, पर उसकी बोली लगवाने में क्या हर्ज़ है प्रधान जी?” राजकुमार की मुस्कुराहट और गहरी हो गयी थी।

“तू और तेरी ये पहेलियां, दोनों ही मेरी समझ से बाहर हैं। अब जल्दी बोल क्या कहना चाहता है?” मुस्कुराते हुये प्रधान जी राजकुमार की योजना जानने के लिये उत्सुक हो गये थे।

“यही कि जब योगेश दत्त आपके ईमान की बोली लगाये तो उसे एक दम से मना मत कीजियेगा। इस अंदाज़ में सोचकर मना कीजियेगा जैसे आपको लग रहा हो कि वो कम बोली लगा रहा है। मुझे देखना है कि कहां तक बोली लगाता है वो आपके ईमान की”। कहने के बाद चुप हो गया था राजकुमार, पर मुस्कुराहट वैसे ही कायम थी।

“ओये मुझे क्या नौटंकी समझा है तूने जो मैं नाटक करूं तेरा दिल बहलाने के लिये। सीधे सीधे बोल क्या शैतानी आयी है तेरे दिमाग में?” प्रधान जी ने आंखें निकालते हुये कहा, बनावटी क्रोध के साथ।

“इससे हमें दो फायदे होंगे। एक तो हमें ये पता चल जायेगा कि अधिक से अधिक कितना पैसा ऑफर कर सकता है वो इस मामले में। जितना अधिक पैसा, उतना ही बड़ा घपला और उतनी ही बड़ी घबराहट। मतलब ये कि इससे हमें मामले की गहरायी और अफसरों की घबराहट, दोनों का ही पता चल जायेगा, जो आगे की रणनीति बनाने में हमारे काम आयेंगें”। राजकुमार की आंखें चमक रहीं थीं।

“नंबर दो, आपके इस प्रकार मना करने से उन्हें ये मैसेज जायेगा कि शायद पैसा कम था, इसलिये हमने ऑफर नहीं उठाया उनका। अपनी जान बचाने के लिये और अधिक पैसा देने की बात सोच सकते हैं वो लोग, जिससे फिर हमें दो फायदे होंगें। एक तो दूरदर्शन अधिकारियों का ध्यान बंटा रहेगा कि ये विकल्प खुला है उनके सामने, जिससे दूसरे रास्तों पर उतनी एकाग्रता के साथ काम नहीं कर पायेंगे वो, यानि ध्यान बंटा रहेगा उनका। पैसे का ऑफर बड़ा करने की स्थिति में इन लोगों में आपसी मनमुटाव भी हो सकता है, जिसका लाभ भी हमें ही मिलेगा”। अपनी बात पूरी करते हुये कहा राजकुमार ने।

“कोई जरुरी तो नहीं कि उनमें मनमुटाव हो?” प्रधान जी का प्रश्न छोटा मगर उत्तर में उनकी रूचि कहीं बड़ी लग रही थी।

“जरूरी तो नहीं प्रधान जी, पर बहुत संभावना है ऐसा होने की। आम तौर पर हम किसी डिपार्टमैंट के किसी एक अधिकारी के भ्रष्टाचार को निशाना बनाते हैं, पर इस बार मामला अलग तरह का है। एक अधिकारी अपनी जान बचाने के लिये जितना भी पैसा खर्च कर सकता है और खर्च करना चाहता है, वैसा प्रयास करता है। क्योंकि कोई दूसरा नहीं हैं इस खर्च को बांटने वाला, विवाद होने का सवाल ही नहीं पैदा होता”। कहकर चुप हो गया था राजकुमार।

“और इस मामले में क्योंकि कई अधिकारी शामिल हैं, ये खर्चा हिस्सों में बंटेगा। इसलिये कोई अधिकारी वो हिस्सा देने को मानेगा और कोई नहीं मानेगा। मैं तेरी बात समझ गया शैतान, दूर की सोचता है तू”। प्रधान जी ने राजकुमार की बात को पूरा करते हुये कहा।

“आज की सौदेबाजी के लिये तो योगेश दत्त को केवल उतना ही पैसा ऑफर करने के अधिकार दिये गये होंगें प्रधान जी, जो सब अधिकारी आसानी से बांट सकें। यानि की पैसे के खर्च के बंटवारे पर सहमति होने के बाद ही भेजा जा रहा होगा योगेश दत्त को हमारे पास। किन्तु भविष्य में अधिक या बहुत अधिक पैसे का मामला आने पर कोई अधिकारी मानेगा और कोई नहीं। ऐसी स्थिति में फूट तो पड़ेगी ही, जिसका लाभ हमें मिलेगा”। राजकुमार ने स्थिति को पूरी तरह से स्पष्ट करने के लिये कहा।

“उत्तम विचार है पुत्तर जी, चलो फिर आज ये तमाशा भी करके देखते हैं”। कहते कहते हंस दिये थे प्रधान जी।

लगभग पांच मिनट बाद टीटू ने बताया कि योगेश दत्त मिलने आये हैं तो उसे चाय का प्रबंध करने के लिये कहकर प्रधान जी ने योगेश दत्त को अंदर बुला लिया।

“शहर के सबसे बड़े संगठन और शहर के सबसे बड़े प्रधान को योगेश दत्त का सलाम”। पहली ही बात चापलूसी के साथ शुरू की थी, योगेश दत्त ने।

“क्या बात है योगेश जी, आज बड़ी तारीफ हो रही है?” मामला क्या है?” प्रधान जी ने योगेश दत्त को उकसाने वाले अंदाज़ में कहा।

“मामला क्या होना है प्रधान जी, कल की प्रैस कांफ्रैंस के बाद हड़कंप मचा हुआ है दूरदर्शन के अंदर। सब अधिकारी अपनी अपनी जान छुड़ाने का रास्ता ढूंढ रहे हैं”। पूरी चाटुकारिता के अंदाज़ में कहा योगेश दत्त नें।

“तो आप बता देते न कोई रास्ता, योगेश जी। सारे शहर में अफसरों को रास्ते बताने में आपसे अच्छा कोई है भला?” प्रधान जी ने योगेश दत्त को छेड़ते हुये कहा।

“अपना तो उद्देश्य ही पूरे जगत का कल्याण है, प्रधान जी। अगर दो लड़ने वाले पक्षों के बीच में आपसी रजामंदी से इस प्रकार सुलह करवा दी जाये जिससे दोनों का लाभ हो, तो लड़ाई से कहीं अच्छी है ऐसी सुलह”। मक्कार अंदाज़ में मुस्कुराते हुये कहा योगेश दत्त ने।

“आपकी ये बात सुनने में तो ठीक ही लगती है, योगेश जी”। एक बार फिर प्रोत्साहित किया प्रधान जी ने योगेश दत्त को।

“केवल सुनने में ही नहीं प्रधान जी, करने में भी बहुत व्यवहारिक है। अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं एक ऐसी खुशखबरी सुना सकता हूं जिससे आपका बहुत लाभ हो सकता है”। फिर उसी मक्कारी के साथ कहा योगेश दत्त ने।

“आप पहले चाय लीजिये और फिर आराम से कहिये जो कहना है”। प्रधान जी ने टेबल पर आ चुकी चाय की ओर इशारा करते हुये कहा।

“मैं तो केवल ये कहना चाहता हूं प्रधान जी, कि दूरदर्शन अधिकारी बहुत घबराये हुये हैं और अपनी जान बचाने के लिये कुछ भी करने को तैयार हैं”। चाय की चुस्की लेते हुये तेजी से कहा योगेश दत्त ने।

“और क्या है इस कुछ भी का मतलब, योगेश जी?” प्रधान जी जैसे सब समझ कर भी अंजान बन रहे थे।

“आप तो सब समझते ही हैं, प्रधान जी”। कहते हुये योगेश दत्त ने आंखों ही आंखों में प्रधान जी को राजकुमार की कमरे में उपस्थिति का अहसास दिलाया।

“इसकी चिंता मत करो योगेश जी, ये तो अपना पुत्तर है। खुल के कहो जो कहना चाहते हो”। प्रधान जी ने योगेश दत्त का इशारा समझते हुये कहा। राजकुमार ने अपना चेहरा इस तरह सपाट बना रखा था जैसे इस सबमें कोई रूचि ही न हो उसकी।

“बहुत पैसा दे सकते हैं ये दूरदर्शन अधिकारी, प्रधान जी”। योगेश दत्त ने चारा डालते हुये कहा।

“कितना पैसा दे सकते हैं अपनी जान बचाने के लिये ये लोग, योगेश जी?” प्रधान जी ने झूठी उत्सुकुता दर्शाते हुये कहा।

“दस से पंद्रह लाख तो आराम से दे देंगें, बाकी आप कहो तो ज़्यादा की मांग भी की जा सकती है”। योगेश दत्त खुलकर सौदेबाजी पर आ गया था।

“आप तो जानते ही हैं कितना समय और प्रयास लगा है न्याय सेना को इस मुकाम पर लाने में। दस पंद्रह लाख के लिये क्या इस सब को दांव पर लगा देना ठीक होगा, योगेश जी?” प्रधान जी ने भी अपना चारा फेंकते हुये कहा।

“और अगर ये रकम पच्चीस लाख हो जाये तो, मुश्किल तो होगा पर मना सकता हूं मैं उन्हें इस रकम के लिये भी?” आंखें इस प्रकार चमक रहीं थीं योगेश दत्त की, जैसे शिकार को अपने जाल में फंसते देखकर शिकारी की आंखें चमकती हैं।

“पच्चीस लाख रकम तो खासी है, पर मेरे ख्याल में हमें इस मामले में जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिये योगेश जी। कुछ दिन इंतज़ार करके तेल और तेल की धार देखते हैं, फिर कोई फैसला लेते हैं”। अपने मतलब की सूचना मिलते ही प्रधान जी ने एकदम से किसी गुब्बारे की तरह हवा निकाल दी थी योगेश दत्त के मंसूबों की।

“हे हे हे, कोई बात नहीं प्रधान जी, आप जितना समय चाहे ले लीजिये। बस एक विनती है आपके इस छोटे भाई की। जब भी आपका विचार बने इस मामले में, सबसे पहला फोन मुझे ही कीजियेगा। दो घंटे में सब कुछ फिक्स करवा दूंगा”। अपनी बात न बनते देख एक और चारा फेंका योगेश दत्त ने।

“ये वादा रहा योगेश जी, इस मामले में जब भी ये रास्ता लेना होगा, आप ही को फोन किया जायेगा”। प्रधान जी ने इस तरह का मुंह बनाते हुये कहा जैसे अभी भी पैसा लेने या न लेने के बारे में सोच रहे हों।

“ये तो आपने एहसान कर दिया मुझपर, प्रधान जी। अच्छा अब जाने की इजाज़त दीजिये”। कहते कहते ही योगेश दत्त ने एक बड़े घूंट में खत्म कर दी अपनी चाय, और उठकर खड़ा हो गया। उसके चेहरे पर चापलूसी के भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे।

“तो ठीक है योगेश जी, फिर मिलते हैं”। प्रधान जी के इतना कहते ही योगेश दत्त कमान से निकले हुये तीर की तरह कार्यालय से बाहर चला गया।

“है न दिलचस्प किरदार, पुत्तर जी”। योगेश दत्त के जाते ही प्रधान जी राजकुमार की ओर देखकर मुस्कुराये।

“पूरा व्यापारी है प्रधान जी, आते ही काम की बात शुरू कर दी और काम की बात खत्म होते ही उठकर चला गया। जैसा आपने कहा था बिल्कुल वैसा ही है”। कहता कहता राजकुमार तेजी से कुछ सोचता जा रहा था।

“तो क्या नतीजा निकाला, पुत्तर जी। पच्चीस लाख रुपये बहुत होते हैं, कोई बहुत ही बड़ा मामला लगता है”। प्रधान जी ने कुछ सोचते हुये कहा।

“आपका अनुमान बिल्कुल ठीक है प्रधान जी, ये मामला बहुत बड़ा है। पहली ही मुलाकात में पच्चीस लाख देने को मान गया। मेरे ख्याल से अगर इन्हें हमारे पास पड़े सूबुतों का भी पता चल जाये तो पचास लाख से एक करोड़ देने को भी मान जायेंगे। इतने पैसे देने का अर्थ केवल एक ही है कि बहुत बड़े घपले करते हैं और बहुत कमाई है इन लोगों की”। राजकुमार ने प्रधान जी की बात का समर्थन करते हुये कहा।

“तो अब आगे क्या करना………………………………” अधूरे ही रह गये थे प्रधान जी के शब्द, और कारण था उनके मोबाइल फोन की बज रही घंटी।

“अनिल खन्ना का फोन है”। कहते हुए प्रधान जी ने फोन रिसीव किया और अनिल खन्ना से बात करने लगे।

“तुम्हें बुलाया है, आज ही, एक मिनट होल्ड करो अनिल जी”। कहते हुये प्रधान जी ने राजकुमार की ओर देखा जो शायद उनके बीच होने वाली बातचीत का अंदाज़ा लगा रहा था।

“दूरदर्शन के एक बड़े अधिकारी ने अनिल खन्ना से आकर मिलने के लिये कहा है उसके कार्यालय में। थोड़ा घबराया हुआ है और पूछ रहा है क्या करना है?” प्रधान जी के कहते कहते ही राजकुमार तेजी से जोड़ तोड़ करने लग गया था।

“अगर आपकी इजाज़त हो तो मैं कुछ बात करना चाहता हूं, अनिल खन्ना से”। राजकुमार ने कुछ सोचते हुये कहा।

“जरूर करो, पुत्तर जी”। कहने के साथ ही प्रधान जी ने अनिल खन्ना को राजकुमार से बात करने के लिये कहा और फोन राजकुमार को दे दिया।

“घबराने की कोई जरूरत नहीं है अनिल जी, बस मेरे कुछ सवालों का जवाब दीजिये। किसने बुलाया है आपको?” राजकुमार ने अनिल खन्ना को हिम्मत बंधाने के साथ ही दाग़ दिया था अपना पहला सवाल।

“जी, दूरदर्शन के चीफ प्रोग्राम प्रोडूयसर विजय बहल ने बुलाया है। अभी कुछ देर पहले ही फोन आया था और अपने कार्यालय में शीघ्र से शीघ्र मिलने के लिये कहा है मुझे”। तेजी से उत्तर दिया अनिल खन्ना ने, कुछ घबरायी हुयी आवाज़ में।

“क्या पहले भी बुलाया है इसने कभी आपको?” राजकुमार का अगला प्रश्न तैयार था।

“जी बहुत बार, बल्कि प्रोग्राम प्रोडयूसर होने के कारण अक्सर यही बुलाता है मुझे”। अनिल खन्ना ने तुरंत जवाब दिया।

“आम तौर पर कब बुलाता है ये आपको?” उत्तर सुनते ही अगला प्रश्न कर दिया था राजकुमार ने।

“केवल दो ही सूरतों में बुलाता है, या तो कोई नया प्रोग्राम शुरू करना हो जिसमें मेरे लिये कोई चांस हो, या फिर पहले से ही कोई ऐसा प्रोग्राम चल रहा हो जिसमें मेरा भी रोल हो”। एक सैकेंड से भी कम समय सोचने के बाद जवाब दिया अनिल खन्ना ने।

“क्या अभी ऐसा कोई प्रोग्राम चल रहा है, जिसमें आपका रोल हो?” एक और प्रश्न आ गया था फौरन ही, राजकुमार की ओर से।

“जी पिछले दो महीने से किसी प्रोग्राम में काम नहीं किया मैने”। कुछ सोचते हुये कहा अनिल खन्ना ने।

“हम्म्म्म्म…………………फिर तो तय है अनिल जी, कि उसने आपको इसी मामले में बुलाया है”। राजकुमार की इस बात ने प्रधान जी की उत्सुकुता और अनिल खन्ना की परेशानी, दोनों ही बढ़ा दीं थीं।

“तो क्या आपका मतलब है, इन्हें पता चल चुका है, मगर कैसे?” घबराये हुये स्वर में पूछा अनिल खन्ना ने।

“इस कैसे का जवाब तो नहीं हैं मेरे पास अभी, पर आपकी समस्या का समाधान जरूर है, ध्यान से सुनिये। अगर वो आपसे पूछे कि क्या आप प्रधान जी को जानते हैं, तो कहियेगा कि बहुत वर्षों से आपके संबंध हैं उनके साथ। अगर वो ये पूछे कि क्या आप हाल ही में उनसे मिलने उनके कार्यालय गये थे और क्यों गये थे, तो कहियेगा कि प्रधान जी ने फोन करके बुलाया था और मेरे वहां जाने पर दूरदर्शन में फैले भ्रष्टाचार के बारे में मुझे कुछ जानकारी होने की बात पूछी थी, जिससे मैने इन्कार कर दिया”। राजकुमार की बात पूरी होते होते प्रधान जी सबकुछ समझ कर प्रशंसा की दृष्टि से राजकुमार की ओर देख रहे थे।

“जी समझ गया, बहुत अच्छे जवाब बताये हैं आपने”। कहते हुये अनिल खन्ना अब कुछ संभल गया लगता था।

“लीजिये अब प्रधान जी से बात कीजिये”। कहते हुए राजकुमार ने फोन प्रधान जी को पकड़ा दिया था।

“अनिल जी, इस मुलाकात के बाद फोन करके बताईयेगा और हां, अब के बाद इस मामले में फोन राजकुमार के मोबाइल पर ही कीजियेगा। मेरे साथ में न होने पर आप इस मामले में कोई भी बात राजकुमार से कर सकते हैं”। कहने के साथ ही दूसरी ओर से अनिल खन्ना का अभिवादन सुनने के बाद फोन डिस्कनैक्ट कर दिया प्रधान जी ने।

“इतनी जल्दी कैसे पता चल गया इन लोगों को कि अनिल खन्ना हमारे साथ मिला हुआ है?” प्रधान जी ने आश्चर्य भरे अंदाज़ में राजकुमार की ओर देखते हुये कहा।

“मेरे ख्याल से इन्हें अभी केवल ये पता चला है कि अनिल खन्ना हमसे मिलने आया था, शायद इससे अधिक कुछ नहीं। इसलिये वो उससे पूछताछ करके चैक करना चाहते हैं कि वो हमसे मिला हुआ है या नहीं। अगर उन्हें पक्का यकीन होता कि वो हमारे साथ मिला हुआ है तो फिर उसे बुलाने का कोई मतलब नहीं रहा जाता, वो केवल चैक करना चाहते हैं इसे। पुराना प्रोग्राम कोई है नहीं अनिल खन्ना के पास और नया प्रोग्राम शुरू करने की तो ये लोग सोच भी नहीं सकते इस स्थिति में। मतलब इसी काम से बुलाया है”। राजकुमार ने अपनी बात को तोलते हुये कहा।

“हां तेरी ये बात भी ठीक है। तो क्या इसीलिये तूने उसे मेरे साथ संबंध होने की और दफतर आने की बात मान जाने के लिये कहा था?” प्रधान जी ने जैसे सबकुछ समझते हुये भी पुष्टि करने के इरादे से पूछा।

“बिल्कुल यही कारण था, प्रधान जी। एक बात तो पक्की है कि उन्हें ये पता है कि अनिल खन्ना हमारे पास आया था। ये बात भी पता करनी मुश्किल नहीं होगी कि उसके आपके साथ पुराने संबंध हैं। इसीलिये मैने उसे इन दोनों बातों का जवाब हां में देने के लिये कहा था जिससे उन्हें उसके सच्चा होने का यकीन हो जाये”। राजकुमार ने प्रधान जी के विचार का समर्थन करते हुये कहा।

“और उसी यकीन के चलते वो लोग उसका ये झूठ भी मान लें कि वो हमारे पास नहीं आया था बल्कि हमने बुलाया था”। प्रधान जी को अब सब कुछ साफ साफ समझ आ गया था।

“बिल्कुल प्रधान जी, ये बात तो केवल आप और अनिल खन्ना ही जानते हैं कि किसने किसको बुलाया था। कार्यालय में हम लोगों की क्या बात हुयी थी, इसे भी केवल हम तीन लोग ही जानते हैं। इसका अर्थ ये कि इन दोनों बातों को झूठ साबित नहीं कर पायेंगे वो लोग”। राजकुमार का दिमाग लगातार जोड़ तोड़ करने में लगा हुआ था।

“कुछ ज़्यादा ही घबरा गये लगते हैं ये लोग, जो एक साथ कई मोर्चे खोल दिये हैं”। प्रधान जी को शायद इस खेल में मज़ा आना शुरू हो गया था।

“मेरे ख्याल से अडवानी ने आज मीटिंग बुलायी होगी इस मामले में, और अपने अधिकारियों को चुने हुये कामों पर लगाया होगा। इसका अर्थ कि दूसरी ओर से भी खेल योजना बना कर खेला जा रहा है। विजय बहल ने अनिल खन्ना को फोन किया है, इसका अर्थ वो अवश्य होगा इस मीटिंग में। आपके विचार में योगेश दत्त के सबसे गहरे संबंध किसके साथ हैं दूरदर्शन में, प्रधान जी?” राजकुमार ने प्रधान जी की ओर देखकर कुछ हिसाब लगाते हुये कहा।

“ये तो मुझे भी नहीं पता, पुत्तर जी। दूरदर्शन से कभी कम ही वास्ता पड़ा है मेरा”। कहते हुये प्रधान जी किसी सोच में पड़ गये थे।

“लेकिन मेरे पास एक आदमी है जिसे पता हो सकता है, लगता है अब अपने नये दोस्तों को आज़माने का समय आ गया है”। कहते कहते राजकुमार प्रधान जी की ओर देखकर मुस्कुराया और अपने मोबाइल से एक नंबर डायल कर दिया।

“नमस्कार भाई साहिब, कैसे हैं आप?” राजकुमार के इतना कहते ही प्रधान जी को समझ गये कि राजकुमार ने यूसुफ आज़ाद को फोन लगाया है।

“मैं बिल्कुल ठीक हूं, आप सुनाईये। आज तो खूब छापा है सब अखबारों ने न्याय सेना की प्रैस कांफ्रैंस को। दूरदर्शन के अंदर भूचाल आया हुआ है। अभी तक सिफारिश नहीं आयी कोई आप लोगों को, इस मामले से हटने की?” दूसरी ओर यूसुफ आज़ाद ही थे जो राजकुमार को छेड़ रहे थे।

“सिफारिश के साथ साथ पैसा भी आया था, पर फिलहाल हमने लेने से मना कर दिया है, भाई साहिब। एक बात पूछनी थी आपसे, क्या आप योगेश दत्त को जानते हैं?” राजकुमार ने काम की बात पर आते हुये कहा।

“बिल्कुल जानते हैं, भ्रष्ट अधिकारियों का दलाल है। दूरदर्शन में भी मनजिन्द्र जौहल के साथ……………………। ओह तो ये बात है, आपके पास भेजा गया था इसे”। आज़ाद ने जैसे अपनी ही कोई पहेली हल कर ली थी और राजकुमार के लिये एक पहेली खड़ी कर दी थी।

“क्या बात है भाई साहिब, मुझे भी बताईये न। और हां, आपकी बात बिल्कुल ठीक है, अभी अभी उठकर गया है योगेश दत्त। सौदेबाजी करने आया था”। राजकुमार की उत्सुकुता बढ़ गयी थी।

“दूरदर्शन से मेरे एक सूत्र ने खबर दी है कि आज सुबह अडवानी ने तीन बड़े अधिकारियों के साथ मीटिंग की है, जिनके नाम विजय बहल, मनजिंदर जौहल और सुरिंदर सिंह हैं। मीटिंग के बाद से ही ये सारे अधिकारी रोज़मर्रा के कामों से हटकर कुछ अलग ही कर रहे हैं। दोपहर के समय योगेश दत्त गया था मनजिंद्र जौहल से मिलने………” अपनी बात को अधूरा ही छोड़ दिया था आज़ाद ने।

“और उसी मुलाकात में कहा गया होगा इसे हमसे सौदेबाजी करने के लिये। तो सुरिंदर सिंह भी शामिल है इस मामले में”। राजकुमार ने भी अपनी पहेली को हल करते हुये कहा।

“सुरिंदर सिंह भी शामिल है? इसका मतलब आपको पहले ही पता चल चुका है कि विजय बहल भी शामिल है इस मामले में?” आज़ाद के इतना पूछते ही राजकुमार समझ चुका था कि उसने केवल सुरिंदर सिंह का ही नाम लिया था, विजय बहल का नहीं। आज़ाद जैसे तेज़ दिमाग वाले व्यक्ति को समझने में देर नहीं लगी कि विजय बहल के नाम पर कोई हैरानी नहीं हुयी उसे, जिसका मतलब उसे पहले ही पता था उसके बारे में।

“आपका अंदाज़ा बिल्कुल ठीक है भाई साहिब, विजय बहल ने इस मामले में कुछ कलाकारों से संपर्क किया है। उन्हीं में से एक कलाकार ने हमें बताया है”। राजकुमार ने आज़ाद के अनुमान की पुष्टि करते हुये कहा।

“तो फिर सुरिंदर सिंह को भी जरूर दिया गया होगा कोई मिशन, और खुद अडवानी भी लगा होगा किसी मिशन पर। इस खेल में मज़ा आने वाला है। आप और हम शायद इसे अकेले अकेले खेल कर आसानी से नहीं जीत पायेंगे, इसलिये हर महत्वपूर्ण सूचना को एक दूसरे के साथ शेयर करना ही उचित होगा। क्या कहते हैं आप?” आज़ाद ने अपना प्रस्ताव रखते हुये कहा।

“जी बिल्कुल ठीक है आपकी बात, आगे से यही होगा। जिसके पास भी कुछ महत्वपूर्ण होगा इस मामले में, वो दूसरे को बता देगा”। राजकुमार ने फौरन आज़ाद की बात का समर्थन किया।

“तो ठीक है, फोन रखता हूं अब”। कहने के साथ ही बिना किसी विशेष औपचारिकता के फोन काट दिया आज़ाद ने।

“अडवानी के अलावा तीन और अधिकारी लगे हुये हैं इस काम पर, प्रधान जी। इनके नाम हैं विजय बहल, मनजिंद्र जौहल और सुरिंदर सिंह। योगेश दत्त के साथ मनजिंद्र जौहल डील कर रहा है”। राजकुमार ने प्रधान जी की ओर देखते हुये कहा।

“ये आज़ाद तो बड़े काम के आदमी लगते हैं, पुत्तर जी। इस मामले पर बड़ी पैनी नज़र बना कर रखी हुयी है उन्होंने”। प्रधान जी ने यूसुफ आज़ाद की तारीफ करते हुये कहा।

“आपने बिल्कुल ठीक कहा प्रधान जी, उन्होंने इस मामले में हर महत्वपूर्ण सूचना शेयर करने का प्रस्ताव रखा था जिसे मैने स्वीकार कर लिया है”। कहते हुये राजकुमार ने प्रधान जी की ओर अपने इस फैसले के सही होने की पुष्टि करने के इरादे से देखा।

“ये बहुत अच्छा किया तुमने पुत्तर जी, आज़ाद जैसा साथी मिलने से इस मामले में हमारा काम कहीं आसान हो जायेगा। उनसे समय समय पर बात करते रहना इस मामले में”। प्रधान जी ने प्रसन्नता के साथ कहा।

“अब क्या प्रोग्राम है, प्रधान जी?” राजकुमार ने प्रधान जी की ओर देखते हुये कहा।

“फिलहाल तो अनिल खन्ना के फोन का इंतज़ार करते हैं, फिर आगे का प्रोग्राम तय करेंगे। तब तक कुछ खाने के लिये मंगवा लेते हैं। आज कोई चाईनीस स्नैकस मंगवाते हैं फिर, बड़े दिन हो गये खाये हुये। क्या कहते हो, पुत्तर जी?” प्रधान जी के मुंह में कहते कहते ही पानी आना शुरू हो गया था।

“उत्तम विचार है प्रधान जी, मैं अभी इंतजाम करवाता हूं”। कहते हुये मुस्कुरा दिया था राजकुमार, प्रधान जी के चेहरे के भाव देखकर। जीवन का पूरा मज़ा लेने में विश्वास रखते थे प्रधान जी और हर पल को पूरी तरह से जीने की कला में माहिर थे। राजकुमार ने इन चार महीनों में प्रधान जी को कभी उदास नहीं देखा था, हर समय हंसने और मौज करने का कोई न कोई कारण ढ़ूंढ ही लेते थे। गंभीर से गंभीर समय को भी हल्का बना देने की अदभुत कला थी उनमें। स्नैकस आर्डर करते हुये राजकुमार का मन इन्हीं बातों में खोया हुआ था।

लगभग दो घंटे बाद राजकुमार के मोबाइल की घंटी बजी और स्क्रीन पर अनिल खन्ना का नाम फ्लैश हुआ। फोन के दूसरी ओर से अनिल खन्ना के बोलने की पुष्टि करने के बाद राजकुमार ने फोन प्रधान जी को दे दिया।

“नमस्कार प्रधान जी, आप लोगों का अंदाज़ा बिल्कुल ठीक था। इन लोगों को कहीं से पता चल गया है कि मैं आपसे मिलने आया था। लगभग वही सवाल पूछे थे जो आप लोगों ने बताये थे और मैने वही उत्तर दिये जो मुझे समझाये गये थे। उन्हें केवल शक था मुझ पर, इसीलिये मुझसे मिलकर किसी नतीजे पर पहुंचना चाहते थे। मेरे ख्याल से मेरे जवाबों से संतुष्ट था विजय बहल”। अनिल खन्ना ने प्रसन्न स्वर में कहा।

“और कोई खास सवाल पूछा उसने?” प्रधान जी ने अनिल खन्ना की बात सुनने के बाद कहा। प्रधान जी के संकेत पर राजकुमार ने भी अपना कान फोन से चिपका दिया था जिससे वो भी सारी बात सुन सके।

“जी बस ये पूछा था कि मेरे अलावा और कौन कौन से कलाकार जानते हैं आपको? मैने कह दिया कि इस शहर के छोटे से छोटे कलाकार से लेकर बंस राज बंस तक सबके संबंध हैं आपके साथ”। अनिल खन्ना ने प्रधान जी की बात का जवाब दिया।

“अरे अच्छा याद दिलाया, बंस भाई कहां रहता है आजकल? बड़ी देर से कोई बात नहीं हुयी उससे”। प्रधान जी ने जैसे कुछ याद करते हुये कहा।

“जी विदेश दौरे पर गये हुये हैं आजकल वो, शायद अगले हफ्ते आ जायेंगे”। अनिल खन्ना ने फौरन जवाब दिया प्रधान जी के सवाल का।

“और कुछ विशेष नोट किया हो आपने इस मुलाकात में?” प्रधान जी ने वापिस काम की बात पर आते हुये कहा।

“जी बस कुछ परेशान और सतर्क लग रहा था वो। मेरे चेहरे को इस तरह से देखता रहा सारा समय, जैसे लगातार कुछ पढ़ने की कोशिश कर रहा हो”। अनिल खन्ना ने कुछ पल सोचने के बाद कहा।

“करने दीजिये उसे कोशिश, कलाकारों के चेहरे को पढ़ना कोई आसान काम थोड़े ही है”। प्रधान जी ने विनोदी स्वर में कहा और फिर औपचारिक बातचीत के बाद फोन डिस्कनैक्ट कर दिया।

“तुम्हारी बात ठीक थी पुत्तर जी, उन्हें केवल संदेह ही था अनिल खन्ना पर”। प्रधान जी के स्वर ने कार्यालय में दो पल के लिये छा गयी चुप्पी को तोड़ा।

“अभी भी पूरी तरह से मिटा नहीं होगा ये संदेह, प्रधान जी। इसलिये अब हमें इस मामले में अनिल खन्ना से तभी मिलना चाहिये जब बहुत आवश्यकता हो”। राजकुमार फिर से जोड़ तोड़ करने में लग गया था।

“तेरी ये बात भी ठीक ही लगती है। चल अब चलते हैं, अनिल खन्ना के फोन का इंतज़ार करते करते पहले ही लेट हो गये हैं”। प्रधान जी इतना कहते ही राजकुमार ने गाड़ी की चाबी उठायी और दोनों कार्यालय से बाहर निकल गये। जाते जाते टीटू को कार्यालय बंद करने का आदेश दे दिया था प्रधान जी ने।

 

हिमांशु शंगारी