संकटमोचक 02 अध्याय 16

Sankat Mochak 02
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दूसरे दिन सुबह लगभग 11:30 बजे न्याय सेना का कार्यालय पत्रकारों से भरा हुआ था और प्रधान जी, राजकुमार, डॉक्टर पुनीत, जगतप्रताप जग्गू तथा हरजीत राजू के अतिरिक्त संगठन के अन्य महत्वपूर्ण पदाधिकारी भी मौज़ूद थे कार्यालय में।

“लगभग सारे पत्रकार भाई आ चुके हैं, शुरू की जाये प्रैस कांफ्रैंस फिर?” प्रधान जी ने जैसे मुद्दे की बात शुरू करने के लिये कहा।

“बिल्कुल शुरू की जाये प्रधान जी, भाईयों के साथ साथ अब तो पत्रकार बहिनें भी आ चुकीं हैं”। शिव वर्मा के इस विनोदी स्वर नें प्रधान जी को एहसास दिलाया कि कार्यलय में उपस्थित दो महिला पत्रकारों को संबोधन करना तो भूल ही गये थे वो। शिव वर्मा की इस बात पर जहां प्रधान जी कुछ झेंप गये थे, राजकुमार मुस्कुरा कर शिव वर्मा की ओर देख रहा था।

शिव वर्मा की आयु लगभग 30 वर्ष के करीब थी और सत्यजीत समाचार के न्यूज़ रिपोर्टर थे वो। युवा आयु में ही अच्छा नाम कमा लिया था शिव ने और विशेष रूप से अपनी निर्भीक और बेबाक पत्रकारिता के लिये जाने जाते थे वो। किसी के बारे में भी अच्छा या बुरा लिखते समय सीमाओं में बंधना पसंद नहीं था उन्हें। इस कारण अपनी खबरों के माध्यम से या तो वे संबंधित व्यक्ति को पहाड़ की चोटी पर या फिर सीधा कुयें के तल में पहुंचा देते थे। उनके इस बेबाक अंदाज़ के कारण अधिकारियों और राजनेताओं में एक प्रकार का खौफ रहता था, उन्हें और उनकी खबरों को लेकर।

“आपकी बात बिल्कुल ठीक है शिव जी, अपनी पत्रकार बहनों से भी मैं आज्ञा चाहूंगा इस प्रैस कांफ्रैंस को शुरू करने की”। प्रधान जी ने मुस्कुराते हुये कहा और फिर महिला पत्रकारों की सहमति पाने के बाद मुद्दे की बात पर आ गये।

“जैसा कि आप सब लोग जानते ही हैं, दो दिन पहले अखबारों में मशहूर पंजाबी गायक जसकरण जस्सी का बयान छपा था कि जालंधर दूरदर्शन में भ्रष्टाचार व्यापत है और कलाकारों से गाना गाने के एवज में पैसा मांगा जाता है। न्याय सेना इस प्रैस कांफ्रैंस के माध्यम से ये संदेश देना चाहती है सूचना एवम प्रसारण मंत्रालय को, कि दूरदर्शन में फैले भ्रष्टाचार की शीघ्र से शीघ्र जांच हो”। प्रधान जी ने बात शुरु करते हुये कहा।

“केवल जस्सी का बयान ही आधार है आपकी इस जांच करवाने की मांग का, या फिर कोई और कारण भी है प्रधान जी?” प्रश्न की दिशा में देखा प्रधान जी ने तो पाया कि अर्जुन कुमार मुस्कुरा रहे थे उनकी ओर देखकर।

अर्जुन कुमार अमर प्रकाश के उन गिने चुने पत्रकारों में से एक थे जिन्हें जालंधर से ही चुना गया था। अर्जुन इससे पहले अन्य कई अखबारों के लिये काम कर चुके थे और उनकी योग्यता को देखते हुये ही अमर प्रकाश ने उन्हें अपने समूह में शामिल किया था। वाणी से अक्सर सौम्य रहने वाले अर्जुन वास्तव में बहुत शातिर थे और उन्हें क्रोध में बहुत कम ही देखा जाता था। जिस व्यक्ति के खिलाफ कुछ बहुत बुरा भी लिखते थे, खबर छपने से पहले उसे भनक तक नहीं लगने देते थे कि उसका क्या अंजाम होने वाला है। शिव वर्मा और अर्जुन कुमार की कार्यशैली में ये एक बहुत बड़ा अंतर था।

शिव वर्मा जिसके खिलाफ लिखते थे, उसे अक्सर पहले ही आगाह कर देते थे कि कल के अखबार में अपना हश्र देख लेना। दूसरी ओर अर्जुन कुमार संबंधित व्यक्ति को अंत तक पता नहीं चलने देते थे कि उसके बारे में अच्छा छपने वाला है या बुरा। शायद उनकी इसी पत्ते छिपा कर खेलने की आदत ने ही यूसुफ आज़ाद को आकर्षित किया था उनकी ओर, और उन्हीं की सिफारश पर अमर प्रकाश ने शामिल किया था अर्जुन को अपने समूह में।

“अवश्य ही और भी कारण हैं, अर्जुन जी। जस्सी के अलावा कुछ और कलाकारों ने भी निजी रूप से हमें मिलकर शिकायत की है कि उनसे दूरदर्शन के कार्यक्रमों में काम करने के लिये पैसा मांगा जाता है”। प्रधान जी ने अर्जुन कुमार की ओर देखते हुये ऐसी मुस्कुराहट के साथ कहा जैसे जानते हों कि अब अर्जुन का अगला प्रश्न क्या होगा।

“क्या आप उनमें से कुछ कलाकारों के नाम बता सकते हैं हमें?” आशा के अनुरूप फौरन ही दाग दिया था अपना अगला प्रश्न अर्जुन कुमार ने।

“इस समय तो नहीं लेकिन ठीक समय आने पर जरूर बता दिये जायेंगे आप लोगों को उनके नाम। इस मामले में शिकायत लेकर आने वाले सभी कलाकारों ने अपना नाम गोपनीय रखने की रिक्वैस्ट की है”। प्रधान जी का उत्तर पहले ही तैयार था।

“केवल कलाकारों की शिकायत तो नहीं लगती आपकी इस मुस्कान के पीछे, प्रधान जी। कुछ और भी अवश्य है इस मामले से जुड़ा हुआ”। अश्विन सिड़ाना के मुंह से निकले थे ये अल्फाज़, जिन्होंनें एकदम से सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया था।

अश्विन सिडाना वरिष्ठ पत्राकार का दर्जा रखते थे पंजाब ग्लोरी में और अपनी इंटैलिजैंस के लिये विशेष रूप से जाने जाते थे। सौम्य वाणी के स्वामी अश्विन अधिक बात करना या अधिक प्रश्न पूछना पसंद नहीं करते थे, बल्कि दूसरे पत्रकारों के पूछे गये प्रश्नों का उत्तर देने वाले व्यक्ति के भावों को पढ़ना उनका शौक था। अधिकतर प्रैस कांफैंसों में एक या दो प्रश्न ही पूछते थे अश्विन, लेकिन ये एक या दो प्रश्न बाकी सब लोगों के प्रश्नों पर अक्सर भारी पड़ जाते थे।

“आपका अनुमान कभी गलत हुआ है अश्विन जी, जो आज होगा। वास्तव में दूरदर्शन में फैला भ्रष्टाचार का ये तंत्र कलाकारों से पैसे मांगने से कहीं बड़ा है। दूरदर्शन के भ्रष्ट अधिकारी पिछले कुछ सालों से महंगी मशीनों को खराब बता कर बेच रहे हैं और नयीं मशीनों की खरीद फरोख्त में भारी घपला किया जा रहा है”। प्रधान जी ने मुस्कुराते हुये अश्विन सिडाना की बात का जवाब दिया। उन्होंने जानबूझ कर ये बात छिपा ली थी कि असल में तो पुरानी मशीनें हीं काम कर रहीं हैं, नयीं तो खरीदीं हीं नहीं जातीं।

“कोई सुबूत है आपके पास, इस आरोप के पक्ष में?” सवाल एक बार फिर अर्जुन की ओर से आया था।

“हमारा काम शक होने पर केवल आरोप लगाना और जांच की मांग करना है, सुबूत ढूंढना तो जांच ऐजेंसियों का काम है, अर्जुन जी”। प्रधान जी ने बड़ी चतुराई से उत्तर दिया अर्जुन के सवाल का।

“शक होने पर आरोप लगाना, तो फिर अवश्य ही आपके पास इस शक की कोई पुख्ता वज़ह तो होगी। क्या हम वो वज़ह जान सकते हैं?” प्रधान जी का उत्तर पूरा होते होते ही अगला सवाल निकल गया था अर्जुन के मुंह से। प्रधान जी के ही शब्दों को पकड़ कर उनमें से एक और सवाल निकाल लिया था उसने। राजकुमार बड़ी दिलचस्पी और रोमांच के साथ देख रहा थे ये सब कुछ, जो उसके लिये एकदम नया अनुभव था। पत्रकारों के बाल की खाल निकालने के स्वभाव के बारे में उसने बहुत कुछ सुना था इन चार महीनों में, पर इसका प्रत्यक्ष प्रमाण आज ही मिला था उसे।

“वजह अवश्य है अर्जुन जी, दूरदर्शन के अंदर से ही पुख्ता सूचना मिली है हमें कि नयीं मशीनों की खरीद के समय भारी घपला किया जाता है। इसलिये इस मामले की जांच अवश्य होनी चाहिये”। प्रधान जी का जवाब एक बार फिर तैयार था।

“कितना समय देंगे आप इस जांच के लिये सूचना एवम प्रसारण मंत्रालय को प्रधान जी, और उस समय के भीतर जांच न होने पर क्या कदम उठायेगा आपका संगठन?” शिव वर्मा ने लोहार वाली चोट मारते हुये कहा। उन्हें बातों को खींचने और गोल गोल घुमाने की बजाये कम शब्दों में मुद्दे को निपटा देना पसंद था, अपने बेबाक स्वभाव की वज़ह से। इसलिये उन्होंने शायद बाकी पत्रकारों के सवालों के लंबे सिलसिले को खत्म करने के इरादे से निर्णायक प्रश्न पूछ लिया था।

“न्याय सेना इस जांच के लिये पंद्रह दिन का समय देती है सूचना एवम प्रसारण मंत्रालय को, और निवेदन करती है कि इस मामले की जांच शीघ्र से शीघ्र करवायी जाये। पंद्रह दिन में जांच न होने पर अगले दिन यानि कि आज से सोलहवें दिन न्याय सेना एक विशाल प्रदर्शन करेगी जालंधर दूरदर्शन के बाहर”। प्रधान जी की आवाज़ में जोश और उर्जा की मात्रा बढ़ गयी थी इस बार।

“फिर तो ये मामला रोचक बनने वाला है प्रधान जी, क्योंकि पंद्रह दिन के अंदर इस मामले की जांच होने की कोई संभावना कम ही नज़र आ रही है मुझे तो। आप तैयारी करनी शुरु कर दीजिये प्रदर्शन की”। एक बार फिर बोल दिये थे, मुस्कुराते हुये अर्जुन कुमार।

“न्याय सेना तो हर समय तैयार ही रहती है अर्जुन जी, किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी का सामना करने के लिये। बस आप सब भाईयों का सहयोग चाहिये इस लड़ाई को लड़ने के लिये और जीतने के लिये, क्योंकि आप लोगों के सहयोग के बिना तो ये लड़ाई जीती नहीं जा सकती”। प्रधान जी के स्वर में वही जोश और उर्जा बनी हुयी थी।

“ये ठीक बात नहीं है, प्रधान जी। आप बहनों को एक बार फिर नज़र अंदाज़ कर रहे हैं”। बनावटी क्रोध के बीच ये बात कही थी हरप्रीत कौर ने, जो अंग्रेजी के अखबार इंडियन स्कसैस की पत्रकार थीं। उनकी इस बात पर सब पत्रकार हंस दिये थे और प्रधान जी झेंप कर चुप कर गये थे, जैसे कोई उत्तर न सूझ रहा हो इस सवाल का।

“सहायता तो केवल भाईयों से ही मांगनी पड़ती है, हरप्रीत जी। मातायें और बहनें तो शुरु से ही बिना मांगे ही सहायता करती आयीं हैं बेटों और भाईयों की इस देश में। शायद इसीलिये प्रधान जी बार बार बहनों को संबोधित करना भूल जाते हैं, कि बहनों से सहायता मिलने में तो कोई शक है ही नहीं”। प्रधान जी को कोई जवाब न सूझता देखकर पहली बार बीच में बोला था मुस्कुराते हुये राजकुमार, बात को संभालने के लिये।

“तो क्या आप ये कहना चाहते हैं कि भाईयों के सहायता करने पर शक है आपको?” नोंक झोंक से मज़ा लेने की अपनी आदत के चलते कहा अर्जुन कुमार ने, जिसकी तेज़ निगाहें अब राजकुमार के चेहरे पर जम चुकीं थी। राजकुमार की बात से प्रभावित हरप्रीत कौर भी उसी की ओर देख रही थी।

“शक की तो कोई गुंजाईश ही नहीं है अर्जुन जी, बस एक फर्क की बात कही है मैने। क्या आप मेरी इस बात से सहमत नहीं हैं कि किसी भी मामले में भाई या मित्र मांगने पर आपकी सहायता अवश्य करते हैं, जबकि बहनें या मातायें आपके मांगने से पहले ही हाज़िर हो जातीं हैं, सहायता के लिये?” राजकुमार ने बड़ी चतुरायी से अर्जुन कुमार का प्रश्न उन्हीं की ओर निर्देशित कर दिया था।

“आपका ये नया महासचिव तो खूब है प्रधान जी, पत्रकारों से ही सवाल पूछ रहा है”। राजकुमार के प्रश्न की गहरायी भांपते हुये बिना उसका उत्तर देते हुये कहा अर्जुन ने। वो जानते थे कि इस प्रश्न का किसी के भी पक्ष में उत्तर देना उन्हें विवाद में फंसा सकता है। उनकी आंखों में प्रशंसा के भाव साफ दिखायी दे रहे थे। राजकुमार को पहले भी कई बार मिल चुके थे वो प्रधान जी के साथ, पर उसे बोलते हुये बहुत कम ही देखा था उन्होंने। अक्सर चुपचाप रहकर सारी बातें सुनता और नोट करता रहता था वो।

“इतने बड़े कांप्लिमैंट के बाद अब कोई भाई सहायता करे न करे प्रधान जी, बहनों को तो करनी ही पड़ेगी। हम इस मामले में पूरी तरह से आपके साथ हैं। वैसे आपने इनका परिचय नहीं करवाया, प्रधान जी?” कहती हुईं हरप्रीत कौर राजकुमार से प्रभवित नज़र आ रहीं थीं और यही हाल कुछ और पत्रकारों का भी था।

“तो अब करवा देते हैं, हरप्रीत जी। ये हैं न्याय सेना के नये महासचिव राजकुमार। इनकी युवा उम्र पर मत जाईयेगा, बहुत प्रतिभाशाली हैं ये। उच्च शिक्षा प्राप्त है और हिन्दी, पंजाबी तथा अंग्रेज़ी भाषाओं का बहुत अच्छा ज्ञान है इन्हें। बहुत इंटैलिजैंट हैं और वाणी पर इनकी मज़बूत पकड़ का एक नमूना तो आप सब देख ही चुके हैं”। प्रधान जी ने राजकुमार की तारीफ करते हुये कहा।

“लगता है आपका संगठन अब बहुत आगे जाने वाला है प्रधान जी, युवा और शिक्षित लोगों की गिनती बढ़ती जा रही है न्याय सेना में”। एक बार फिर अर्जुन कुमार के मुंह से ही निकले थे ये शब्द।

“अवश्य आगे जायेगा अर्जुन जी, अगर ऐसे ही सहयोग मिलता रहा आप सभी पत्रकार भाईयों का। ……………………… और बहनों का भी”। इस बार लगभग भूलते भूलते याद आ गया था प्रधान जी को कि बहनों का नाम भी बोलना है। इसीलिये बात को पूरा करने के बाद उन्होंने उनका नाम भी शामिल कर दिया था उसमें जल्दी से। उनकी इस बात पर सब हंस दिये थे।

 

हिमांशु शंगारी