संकटमोचक अध्याय 34

Sankat Mochak
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प्रधान अंकल कह रहे थे कि आप लोगों की बहुत सी कहानियां है, पापा। कोई और कहानी सुनाओ न। अगले दिन गाड़ी में बैठा हनी राजकुमार से कह रहा था। गाड़ी तेज गति से चंडीगढ़ की ओर दौड़ी जा रही थी।

आज नहीं बेटा, फिर कभी। पर सुनाऊंगा जरूर, तुम्हारे प्रधान अंकल की बहुत सी और कहानियां सुनाऊंगा तुम्हे। राजकुमार ने प्रेम भरे स्वर में हनी से कहा और अपनी सीट की बैक से सिर लगा कर आंखे बंद कर लीं। उसके चेहरे पर बार बार एक अजीब सी खुशी के भाव आ रहे थे। चंद्रिका समझ चुकी थी कि राजकुमार का मन अभी भी प्रधान जी के ख्यालों में ही खोया हुआ है।

गाड़ी निरंतर अपनी मंज़िल की ओर भागती जा रही थी।

 

दास्तान जारी रहेगी।

 

अगले भाग में पढ़िये

भारत के सूचना और प्रसारण मंत्री तरुण जेतली दिल्ली स्थित अपने आफिस में बैठे हुये बड़े ध्यान से अपने सामने पड़े हुये कुछ पेपर्स को देख रहे थे।

तरुण जेतली सत्ताधारी पार्टी के बहुत जाने माने नेता थे और माननीय प्रधानमंत्री के बहुत खास लोगों में से एक थे। उनकी गिनती देश के बहुत इंटेलिजेंट और इंटेलैक्चुअल नेताओं में होती थी।

ये मामला तो बहुत बड़ा लगता है। बड़ी हैरानी वाली बात है कि अभी तक इस मामले की उचित जानकारी नहीं थी मुझे। पेपर्स को ध्यान से देखने के बाद तरुण जेतली ने सामने देखते हुये कहा।

हैरानी तो हमें भी इसी बात की है सर, क्योंकि हमारे हिसाब से तो आपको इस मामले की पूरी जानकारी होनी चाहिये थी। सामने लगीं दो कुर्सियों में से एक कुर्सी पर बैठे हुये प्रधान जी ने भेद भरे अंदाज़ में कहा।

व्हाट डू यू मीन, आर यू सेयिंग आई एम इनवॉल्वड़ इन दिस करप्शन…………… इंगलिश में चिल्ला पड़े थे तरुण जेतली।

जस्ट हैव अ लुक एट दीस डॉक्यूमैंटस सर, बिफोर यू रीच ऐनी कॉनक्लूज़न्स। धाराप्रवाह इंगलिश में बोले गये ये शब्द निकले थे प्रधान जी के साथ वाली कुर्सी पर बैठे राजकुमार के मुंह से। कहने के साथ ही एक नयीं फाईल रख दी थी उसने तरुण जेतली के टेबल पर और उसमें से कुछ पेपर्स दिखाने के साथ साथ ही कुछ बताने लग गया था उन्हें।

फाईल में लगे पेपर्स को देखते हुये तरुण जेतली के चेहरे पर चिंता और क्रोध के भाव गहरे होते जा रहे थे और अभी आधी फाईल ही देखी थी उन्होनें कि अपना फोन उठाया और जोर से चिल्ला पड़े।

सैंड द सी ई ओ इन माय रुम ऐट वन्स। ( मुख्य अधिकारी को तुरंत मेरे कमरे में भेजो )

तरुण जेतली के चेहरे पर क्रोध और बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी जबकि उनके सामने बैठे प्रधान जी और राजकुमार के चेहरों पर विजयी मुस्कुराहट आनी शुरु हो गयी थी।

हिमांशु शंगारी