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“इस प्रदर्शन को रोकने के लिये बहुत पैसा ऑफर किया गया, बहुत दबाव बनाया गया और बहुत सी साजिशें भी की गयीं। लेकिन जैसा कि आप सब लोग जानते ही हैं, वरुण शर्मा ने न्याय के पक्ष में लड़ते समय न तो कभी भी किसी लालच या दबाव के सामने सिर झुकाया है और न ही कभी किसी साजिश से डर कर अपना एक भी कदम पीछे हटाया है”। सिंह की तरह गर्ज रहे थे प्रधान जी, और उनके दायें हाथ खड़े राजकुमार की नज़रें बहुत तेजी से आसपास की स्थिति का जायज़ा ले रहीं थीं। उनके बायें हाथ खडा राजू भी ऐसा ही कर रहा था और इन तीनों के आस पास मज़बूत शरीरों वाले आठ दस लड़के एक दम सतर्क मुद्रा में खड़े थे, मानों अंगरक्षक का काम करे हों।
दूरदर्शन के मुख्य गेट के बाहर ही खड़े संबोधित कर रहे थे प्रधान जी, हज़ारों की संख्या में उमड़ आने वाले लोगों के उस समूह को, जो आस पास के सारे इलाके में बिखरा नज़र आ रहा था। बड़ी संख्या में तैनात पुलिस कर्मचारी इस प्रकार मुस्तैद दिखाई दे रहे थे जैसे कोई विशेष निर्देश दिये गयें हों उन्हें, इस प्रदर्शन में होने वाली किसी दुर्घटना को रोकने के लिये। संबंधित थाना के प्रभारी सहित कई अन्य पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे प्रदर्शन स्थल पर, और इन सब अधिकारियों का संचालन करे रहे थे एस पी सिटी वन रमन दुग्गल, जो स्वयम मौजूद थे मौके पर।
“सुखविंद्र, वरुण की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखना है हमें, अगर इस प्रदर्शन में किसी ने उसपर हमला कर दिया तो बहुत बड़ी मुसीबत खड़ी हो जायेगी इस शहर में। वरुण के प्रभाव को तो तुम जानते ही हो, आधा शहर जला देंगे उसके समर्थक। इसलिये बहुत सतर्क रहना है हमें”। रमन दुग्गल के चेहरे पर चिंता के गहरे भाव थे।
सुखविंद्र सिंह स्पैशल ऑप्रेशनस को अंजाम देने वाला पुलिस का एक बहुत कुशल इंस्पैक्टर होने के साथ साथ रमन दुग्गल का विश्वसनीय भी था, जिसके चलते इस काम के लिये स्पैशल डयूटी पर बुलाया गया था उसे।
“आप निश्चिंत रहिये सर, पुलिस पूरी मुस्तैदी के साथ अपना काम कर रही है। सिविल कपड़ों में किसी भी स्थिति से निपटने में सक्षम पुलिस के दस कमांडो भीड़ में बिल्कुल आगे ही खड़े कर दिये हैं मैने। ऐसी किसी भी स्थिति के पैदा होते ही किसी के कुछ भी समझने से पहले ही प्रधान जी कवर कर लेंगे ये कमांडोज़”। सुखविंद्र ने पूरी मुस्तैदी के साथ जवाब दिया।
इन सारी बातों से अंजान, प्रदर्शन स्थल पर आये हुये हज़ारों लोग प्रधान जी के क्रांतिकारी भाषण का आनंद ले रहे थे। इन्हीं लोगों के बीच में खड़ा एक पगड़ीधारी युवक अपनी जैकेट की अंदर की जेब में हाथ डालकर कुछ निकालने ही वाला था कि अपनी पीठ पर हल्की चुभन का एहसास हुआ उसे।
“ये आज पगड़ी किस खुशी में पहन कर आया है काले, वैसे तो बड़े हीरो जैसे बाल बना के घूमता रहता है तू?” सुनते ही पहचान गया था काला नाम का वह युवक कि ये आवाज़ जगतप्रताप जग्गू की थी।
“वो……बस……वो………जग्गू भाई”। कोई जवाब नहीं सूझ रहा था काले को। इतनी देर में उसने ये भी भांप लिया था की उसे सब ओर से जग्गू के जांबाज़ लड़ाकों ने इस तरह घेर रखा था कि न तो वो भाग सकता था और न ही अकेला उनसे लड़ सकता था।
“तेरी इतनी जुर्रत काले, कि तू जग्गू के रहते प्रधान जी पर हमला करने की सोच सके? भूल गया वो पुराने दिन?” अंदर तक कांप गया था काला, और इसके दो कारण थे। पहला कारण था जग्गू की ज्वालामुखी के लावे से भी अधिक जलती हुयी आवाज़, और दूसरा कारण थी वो शीत लहर जो उसकी पीठ में तेज होती जा रही चुभन के कारण उसके शरीर में दौड़ गयी थी। काला समझ गया था कि ये चुभन जग्गू के उसी प्रसिद्ध छुरे की है जिसका इस्तेमाल कभी वो लोगों का पेट फाड़ने के लिये करता था, और अब प्रधान जी की रक्षा के लिये।
“माफ कर दो जग्गू भाई, गलती हो गयी, अंग्रेज़ भाई का हुक्म था”। भेड़ के उस बच्चे की तरह मिमया उठा था काला, जिसके गले तक पहुंच चुके हों शेर के दांत।
“तेरे इस अंग्रज़ भाई को तो मैं बाद में देख लूंगा, फिलहाल तू ये बता कि और कितने लोग आये हैं तेरे साथ और कहां कहां खड़े हैं ये लोग? ज़रा सा भी झूठ बोला तो ये छुरा तेरी पीठ को फाड़ता हुआ तेरे पेट के सामने की तरफ से नज़र आयेगा तुझे। इसलिये जल्दी बोल काले, ज़्यादा वक्त नहीं है मेरे पास”। ज्वालामुखी का लावा बनकर घुसती जा रही थी काले के कानों में जग्गू की खौलती हुयी आवाज़। उसकी पीठ पर जग्गू के छुरे का दबाव इतना बढ़ गया था कि कभी भी घुस सकता था उसके शरीर में।
अपने सामने थोड़ी ही दूर भाषण दे रहे प्रधान जी में भगवान शिव का महाकाल रूप साक्षात दिखाई दे रहा था उसे, और जग्गू की आवाज़ में यमराज का मृत्यु नाद सुनायी दे रहा था काले को।
हिमांशु शंगारी