संकटमोचक 02 अध्याय 11

Sankat Mochak 02
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राजेश क्रांतिदूत, सह संपादक दैनिक प्रसारण। इनकी मानसिक क्षमताओं का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि जानकारों के दायरे में इन्हें चाणक्य के नाम से संबोधित किया जाता था। जबरदस्त दिमाग, किसी भी स्थिति का तेजी से विशलेषण करने की क्षमता और जोड़ तोड़ करने की कला में तो महारत हासिल थी इन्हें।

दैनिक प्रसारण को जालंधर में आये अभी कुछ ही महीने हुये थे और क्रांतिदूत को सह संपादक के रूप में नियुक्त किया गया था। क्रांतिकारी सोच और सदा कुछ नया करने का प्रयास करते रहने के कारण इन्हें क्रांतिदूत का नाम दिया था इनके जानकारों ने, और इस नाम को फिर इन्होंने अपना तक्कलुस बना लिया था।

शहर के हर महत्वपूर्ण व्यक्ति की ताकत और कमज़ोरियों का पूरा हिसाब रहता था इनके पास, और मौका आने पर इस जानकारी से लाभ उठाते थे क्रांतिदूत। किसी भी प्रकार की स्थिति में अपने चेहरे पर कोई विशेष भाव नहीं आने देते थे क्रांतिदूत, ताकि इनका चेहरा पढ़ा न जा सके। सामान्य से कुछ बड़ी आंखें स्कैनर का काम करतीं थीं और सामने वाले के दिल के अंदर तक घुस जातीं थी, इनके काम की जानकारी निकाल लाने के लिये।

उस समय अपने कार्यालय में ही बैठे हुये कुछ पेपर्स को देख रहे थे क्रांतिदूत, जब एक कर्मचारी ने बताया कि प्रधान जी मिलना चाहते हैं। उन्हें अंदर भेजने के साथ साथ चाय का प्रबंध करने के लिये भी कहा क्रांतिदूत ने। प्रधान जी उनके बहुत पुराने मित्र थे और उनसे क्रांतिदूत का विशेष लगाव था।

“ओ मेरे पंडित जी की जय हो”। चंद ही पलों में प्रधान जी का जाना पहचाना स्वर सुनायी दिया तो क्रांतिदूत मुस्कुराये बिना न रह सके। प्रधान जी के साथ साथ ही राजकुमार भी भीतर प्रवेश कर चुका था।

“आईये प्रधान जी, बैठिये”। कहते कहते क्रांतिदूत राजकुमार को बहुत गहरी दृष्टि से देख रहे थे। किसी भी नये व्यक्ति पर जल्दी विश्वास नहीं करते थे क्रांतिदूत और बहुत गहरायी से अध्ययन करते थे उसका। राजकुमार हालांकि पहले भी दो बार आ चुका था प्रधान जी के साथ, पर फिर भी उसे शंका की दृष्टि से ही देखते थे क्रांतिदूत।

“और सुनाईये प्रधान जी, सब ठीक ठाक है, क्या चल रहा है आजकल?” क्रांतिदूत ने बिना एक पल गंवाये काम की बात पर आते हुये कहा, औपचारिकताओं में अधिक समय लगाना पसंद नहीं था उन्हें।

“सब ठीक है आपके राज में मेरे पंडित जी, बस एक नया काम पकड़ा है, इसलिये सबसे पहले आपका आशिर्वाद लेने चले आये”। प्रधान जी ने क्रांतिदूत की खुशामद करते हुये कहा। इन चार महीनों में राजकुमार जान चुका था कि किसी की तारीफ करके अपना काम निकलवा लेने की कला में माहिर थे, प्रधान जी।

“कोई बड़ा ही काम लगता है प्रधान जी, जो प्रैस कांफ्रैंस करने से भी पहले ही मिलने आ गये आप। इसका अर्थ सामने कोई बड़ा खिलाड़ी है और आप लड़ाई लड़ने से पहले अपनी ताकत बढ़ा लेना चाहते हैं”। क्रांतिदूत ने सपाट चेहरे के साथ कहा, हालांकि उनकी आंखों की चमक ये बता रही थी कि उन्होंने प्रधान जी का भेद जान लिया है।

“ओ आप तो जानी जान हैं मेरे पंडित जी, इसीलिये तो आपको चाणक्य पंड़ित कहते हैं सब। मामला सचमुच में बड़ा है इस बार। जालंधर दूरदर्शन में फैले कई प्रकार के भ्रष्टाचार से जुड़ा है ये मामला, और न्याय सेना ने इसे अपने हाथ में लेने का फैसला कर लिया है”। प्रधान जी ने क्रांतिदूत की प्रशंसा करते हुये कहा। क्रांतिदूत की मानसिक क्षमता से बहुत प्रभावित होता था राजकुमार, और बड़े ध्यान से नोट करता रहता था उनके हर एक हाव भाव को।

“ओह तो ये मामला है, जस्सी के कल छपे बयान के बाद बहुत बवाल मचा हुआ है इस मामले में। इस मामले को तूल देने का बिल्कुल सही समय चुना है आपने, अखबारें खुद इस मामले में नया मसाला ढूंढ रहीं हैं। जस्सी ने बात की क्या आपसे?” क्रांतिदूत एक बार फिर बात की जड़ के आस पास पहुंच गये थे।

“बस कुछ ऐसा ही समझ लीजिये आप”। प्रधान जी ने अपने स्वभाव के विपरीत छोटा सा उत्तर देते हुये धीमे से मुस्कुराते हुये कहा।

“क्या बात है प्रधान जी, कोई विशेष ही बात लग रही है इस मामले में जो मुझसे भी छिपायी जा रही है। ऐसा कौन सा बारूद लग गया आपके हाथ जो किसी को दिखाना नहीं चाहते आप, विस्फोट करने से पहले”। क्रांतिदूत की नज़र एक बार फिर प्रधान जी के चेहरे के रास्ते उनके दिल तक घुस गयी थी। एकदम सटीक अनुमान लगा लिया था उन्होंने। राजकुमार रोमांचित होकर क्रांतिदूत की ओर देखे जा रहा था, जिनके चेहरे पर अब भी कोई विशेष भाव नहीं थे पर आंखों में अदभुत चमक और होंठों पर भेद भरी मुस्कान थी।

“ऐसा कुछ नहीं है मेरे पंड़ित जी, बस कुछ कलाकारों ने शिकायत की है और अपना नाम न बताने का निवेदन भी किया है, इसलिये किसी का नाम नहीं ले रहा मैं”। प्रधान जी ने झेंपते हुये कहा और फिर कुछ न सूझता देखकर टेबल पर आ चुकी चाय की चुस्कियां लेने लगे जल्दी जल्दी से। राजकुमार समझ गया था कि इस मनोवैज्ञानिक खेल में क्रांतिदूत ने प्रधान जी को असहज कर दिया था।

“चलिये छोड़ दिया आपको, नहीं पूछता किसी का नाम। बस केवल इतना बता दीजिये कि अगर दैनिक प्रसारण आपकी खुल कर सहायता करे इस मामले में तो हमारी नाक तो नहीं कटेगी बाद में? मेरा मतलब है कि पुख्ता सुबूत हैं न आपके पास दूरदर्शन के खिलाफ?”। क्रांतिदूत ने एक बार फिर ठीक जगह पर चोट की थी और साथ में ही ये संकेत भी दे दिया था कि दैनिक प्रसारण इस मामले में न्याय सेना का साथ देने के लिये तैयार है।

“उसकी आप चिंता मत कीजिये, बिल्कुल भी। एकदम ठोक बजा कर पकड़ा है ये मामला हमने”। एक दम जोश में भरकर कहा प्रधान जी ने। चाय का कप अभी भी उनके हाथ में ही था।

“कुछ बहुत बड़ा हाथ लग गया है आपके, जो इतने जोश में हैं, प्रधान जी। तो ठीक है फिर, आप डट कर कीजिये ये लड़ाई, दैनिक प्रसारण आपके साथ है”। एक बार फिर से प्रधान जी को छेड़ते हुये कहा, क्रातिदूत ने।

“फिर तो आप देखते जाईये, क्या हाल करते हैं हम दूरदर्शन के भ्रष्ट अधिकारियों का”। प्रधान जी क्रांतिदूत के इस आश्वासन पर प्रसन्न हो गये थे एकदम से।

“इस मामले में आपके काम करने का तरीका कुछ बदला बदला सा लग रहा है, प्रधान जी। खुलकर खेलने की बजाये आप इस बार पत्ते छिपा कर खेलना चाहते हैं। ये किसका असर हो गया है आपके उपर?” कहते कहते क्रांतिदूत ने अपनी दृष्टि राजकुमार के चेहरे पर लगा दी थी।

“चलो पुत्तर जी, अब यहां से खिसक चलें, इससे पहले कि पंडित जी की दिव्य दृष्टि तुम्हारे दिल के भेद निकालने शुरू कर दे”। क्रांतिदूत का इशारा समझ कर हंसते हुये कहा प्रधान जी ने, और कुर्सी से उठकर खड़े हो गये, खाली कप टेबल पर रखते हुये।

“आपका ये नया साथी कुछ अलग है, प्रधान जी। इसका चेहरा पढ़ना इतना आसान नहीं, चेहरे के भाव छिपाने की कला आती है इसे”। क्रांतिदूत ने हल्की मुस्कुराहट के साथ राजकुमार के चेहरे पर ही नज़र जमाये हुये कहा।

“फिर तो इसका मुझपर असर नहीं, आपका इसपर असर हो गया है पंडित जी, क्योंकि इस कला के सबसे बड़े उस्ताद तो आप ही हैं”। प्रधान जी के इतना कहते ही सब हंस दिये। राजकुमार अभी भी क्रांतिदूत की पैनी दृष्टि को अपने चेहरे पर महसूस कर रहा था और अपने आप को सामान्य रखने की पूरी चेष्टा कर रहा था।

 

हिमांशु शंगारी