दूसरे अध्याय पढ़ने के लिये यहां क्लिक कीजिये।
दोपहर का खाना खाने के पश्चात प्रधान जी और राजकुमार एक बार फिर अपने कार्यालय में बैठे थे।
हां तो पुत्तर जी, शुरू करें आगे का कार्यक्रम। प्रधान जी ने माहौल की चुप्पी को तोड़ा।
बिल्कुल प्रधान जी। सबसे पहले भाजी और बाऊ जी से मिल लेते हैं। राजकुमार ने कहा।
उत्तम विचार है, युवराज। चलो पहले बाऊ जी को फोन कर लेते हैं। कहते हुये प्रधान जी ने अपने मोबाइल से एक नंबर डायल किया तो दूसरी तरफ से ऑपरेटर की आवाज़ आयी।
पंजाब ग्लोरी के ऑफिस से बोल रहा हूं, कहिये मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूं।
जांलधर में छपने वाले उस समय के सबसे बड़े दो अखबारों में से एक था पंजाब ग्लोरी। हालांकि अब जालंधर में दैनिक प्रसारण और अमर प्रकाश जैसे राष्ट्रीय अखबारों का प्रकाशन भी होना शुरू हो गया था, परन्तु आज भी पंजाब ग्लोरी और सत्यजीत समाचार की पकड़ पंजाब के लोगों के दिल और दिमाग में किसी भी अन्य अखबार की तुलना में बहुत अधिक थी।
अजय कुमार था पंजाब ग्लोरी के मुख्य संपादक का नाम, पर कोई उनका नाम नहीं लेता था। सब आदर से उन्हें बाऊ जी कहते थे। पंजाब के क्षेत्र में बहुत आदर प्राप्त था उन्हें, और प्रदेश के ही नहीं बल्कि देश के बड़े से बड़े नेता, यहां तक कि प्रधानमंत्री भी इनके पास समय समय पर आते रहते थे।
पंजाब ग्लोरी का अपना एक विशेष अंदाज़ था और पंजाब में एक समय पर माहौल खराब हो जाने पर इस समाचार पत्र ने बहुत विशेष भूमिका निभाई थी, इस माहौल को नियंत्रित करने में। इसी कारण पुलिस, प्रशासन और जनता के एक बहुत बड़े वर्ग में इस समाचार पत्र को बहुत सम्मान प्राप्त था और इस अखबार के मुख्य संपादक के रूप मे कार्यरत अजय कुमार पंजाब के क्षेत्र में एक अति विशेष दर्जा रखते थे।
इनके दो बेटे थे, आकाश और सुमित। हालांकि दोनों ही अखबार के काम में इनका हाथ बंटाते थे, परंतु आकाश कुमार की भूमिका अजय कुमार के बाद अखबार में सबसे महत्वपूर्ण थी।
आकाश कुमार को हालांकि अखबार के संपादक के रूप में कार्य संभाले हुये कुछ वर्ष ही हुये थे पर इस थोड़े से समय में ही उन्होने अपनी योग्यता को सिद्ध कर दिया था। अखबार की बहुत अच्छी समझ के साथ साथ वे पंजाब के सामाजिक, राजनैतिक और प्रशासनिक समीकरणों को भी बहुत अच्छे से समझते थे जिसके कारण उनके पास आने वालों का तांता लगा ही रहता था।
श्रीमान जी मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूं। एक बार फिर दूसरी तरफ से आवाज़ आयी।
बाऊ जी बैठे हैं, मैं प्रधान बोल रहा हूं।
नमस्कार प्रधान जी, बाऊ जी किसी कार्य से शहर से बाहर हैं। दो तीन दिन तक आ जायेंगे। उधर से जवाब आया।
और आकाश जी ?…… प्रधान जी के स्वर में प्रश्न चिन्ह था।
जी वो शहर में हीं किसी कार्यक्रम पर गये हैं। दो तीन घंटे में आ जायेंगे। ऑपरेटर ने कहा।
ठीक है, फिर शाम को दर्शन करते हैं आकाश जी के, धन्यवाद। अपने विशेष अंदाज़ में ऑपरेटर को धन्यवाद कहने के बाद प्रधान जी ने कॉल काट दी।
बाऊ जी शहर से बाहर हैं और आकाश जी शाम तक आयेंगे। चलो अब देखते हैं भाजी बैठे हैं क्या। प्रधान जी ने राजकुमार से बिना किसी उत्तर की अपेक्षा के कहा।
आधे मिनट के बाद प्रधान जी की आवाज़ कमरे में फिर गूंज़ी।
भाजी बैठे हैं क्या, मैं प्रधान बोल रहा हूं।
नमस्कार प्रधान जी, भाजी कार्यालय आ चुके हैं और शाम तक यहीं रहेंगे। दूसरी तरफ से आवाज़ आयी।
तो ठीक है फिर, थोड़ी देर में उनके दर्शन करने के लिये आ रहे हैं हम, धन्यवाद। कहने के साथ ही प्रधान जी ने कॉल काट दी।
भाजी बैठे हैं पुत्तर जी, चलो उनके पास चलते हैं। प्रधान जी की आवाज़ सुनकर राजकुमार ने अभी गाड़ी की चाबी उठाई ही थी कि प्रधान जी का मोबाइल बजने लगा।
हैलो………प्रधान जी ने कॉल रिसीव करके अपने जाने पहचाने अंदाज़ में कहा।
दूसरी ओर से कुछ कहा गया जिसके बदले में राजकुमार को प्रधान जी की आवाज़ फिर सुनने को मिली।
ओ जीते रहो मेरे जोरावर, आज कैसे फोन किया, सब ठीक ठाक है न। प्रधान जी के इन शब्दों को सुनते ही राजकुमार को समझते देर नहीं लगी कि दूसरी ओर से भार्गव कैंप वाला जोरावर बोल रहा है।
जोरावर का ज़िक्र फोन पर आते ही राजकुमार का दिमाग सक्रिय हो गया था और वो प्रधान जी के बिलकुल पास जाकर खड़ा हो गया जिससे उसे दूसरी ओर की बात भी सुन सके।
प्रधान जी और जोरावर की सारी बातचीत को राजकुमार बड़े ध्यान से सुन रहा था और साथ ही साथ उसका दिमाग कुछ हिसाब भी लगाता जा रहा था।
जब तक प्रधान जी ने जोरावर की जान फोन पर ही निकाल देने के बाद कॉल डिस्कनेकट की, राजकुमार दोबारा कुर्सी पर बैठ कर कुछ सोचने में लगा हुआ था।
सुन लिया पुत्तर जी, अब ये कल के जन्मे गुंडे भी हमें धमकी देने लग पड़े हैं। प्रधान जी के स्वर में छिपी शरारत साफ झलक रही थी।
क्या सोच रहे हो पुत्तर जी, राजकुमार को किसी उधेड़बुन में उलझा देखकर प्रधान जी ने पूछा। वे जानते थे कि राजकुमार जब भी ऐसी गहरी मुद्रा में होता है, किसी बात का विशलेषण कर रहा होता है।
जोरावर की इस कॉल का क्या मतलब निकाला आपने प्रधान जी। राजकुमार के स्वर में जैसे एक पहेली थी।
मतलब क्या निकालना पुत्तर जी, गुंडा है और उसका काम ही है लोगों को धमकी देना। हरपाल सिंह ने पैसे दिये होंगे जो मुझे फोन किया उसने। प्रधान जी ने राजकुमार को समझाने वाले शब्दों में कहा।
नहीं प्रधान जी, इस फोन के इसके अलावा भी कई और महत्वपूर्ण मतलब निकलते हैं। जरा ध्यान से गौर कीजिए और बताईये। राजकुमार ने प्रधान जी को छेड़ने वाले अंदाज़ में कहा।
ओये कंजर, तेरे दिमाग में फिर से कोई शैतानी आ गयी लगती है। तुझे पता है कि तेरा ये प्रधान एक बार शेर के साथ भी दो दो हाथ तो कर सकता है, पर दिमाग की ये पहेलियां सुलझाना मेरे बस की बात नहीं। ये काम तो तेरे ही हिस्से का है। अब देर मत कर और जल्दी से शुरू हो जा। मेरे मन सुनने को बेताब हो रहा है। प्रधान जी ने उतावले स्वर में कहा।
तो सुनिये प्रधान जी, जोरावर ने आपसे बात करते हुये जब भी हरपाल सिंह का नाम लिया तो उसके साथ आदरसूचक शब्द लगे थे। राजकुमार ने शुरू किया।
हां लगे तो थे। प्रधान जी ने कुछ न समझने वाले अंदाज़ में कहा।
जोरावर जैसे बदमाश किसी के लिये आदरसूचक शब्द तभी इस्तेमाल करते हैं जब या तो उस व्यक्ति से बात कर रहे हों, या फिर वो व्यक्ति उनके पास खड़ा हो। राजकुमार ने मुस्कुराहट के साथ कहा।
इसका मतलब हरपाल सिंह जोरावर के पास ही खड़ा था। प्रधान जी जैसे एक दम से समझ गये।
मोबाइल फोन पर जोरावर की आवाज़ कहीं दूर से आ रही लगती थी, जिसका अर्थ है कि फोन स्पीकर पर था और हरपाल सिंह आप दोनों की एक एक बात सुन रहा था। राजकुमार का कथन जारी था।
ओ ये बात तो तूने बिल्कुल ठीक कही है पुत्तर। मैने भी नोट किया था कि जोरावर की आवाज़ फोन को स्पीकर पर डाल देने वाले अंदाज़ में आ रही थी। प्रधान जी ने जोड़ा।
अब एक और पहलू पर गौर कीजिये। आज सुबह साढ़े दस बजे हम एस एस पी सौरव कुमार से मिले थे और उसके लगभग 6 घंटे बाद ही आपको जोरावर का फोन आ गया। राजकुमार कहता जा रहा था।
सुबह से पहले किसी को नहीं पता था कि हम इस केस में चमन शर्मा की मदद कर रहे हैं और 6 घंटे के अंदर ही जोरावर का फोन आ जाना, इसका अर्थ है…………………… राजकुमार बोलते बोलते रुक गया और प्रधान जी की ओर देखकर मुस्कुराने लगा।
ओये क्या अर्थ है इसका कंजरा, जल्दी से बोल। प्रधान जी ने राजकुमार को प्यार से डांटते हुये कहा।
इसके कई अर्थ हैं प्रधान जी, पहला अर्थ ये है कि ये सूचना एस एस पी कार्यालय से हरपाल सिंह को दी गयी है। राजकुमार ने बात को जारी करते हुये कहा।
पर ये भी तो हो सकता है कि थाना प्रभारी राजेंद्र सिंह ने ये बात हरपाल सिंह को बतायी हो। प्रधान जी ने राजकुमार को टोका।
नहीं प्रधान जी, ये नहीं हो सकता, क्योंकि राजेंद्र सिंह को सौरव कुमार ने फोन पर ये बात नहीं बताई थी कि चमन शर्मा के साथ हम उनके ऑफिस आये हैं। राजकुमार ने जैसे प्रधान जी की शंका का निवारण किया हो।
हां ये बात भी ठीक है, तो फिर क्या स्वयम सौरव कुमार ने ये बात हरपाल सिंह को बतायी होगी। प्रधान जी की आवाज़ में फिर उतावलापन था।
ये बात तो सोची भी नहीं जा सकती प्रधान जी। सौरव कुमार एक नेक व्यक्ति हैं और हरपाल सिंह जैसे व्यक्ति को वे कभी भी पसंद नहीं कर सकते, उसके साथ काम करने की बात तो दूर रही। राजकुमार ने खुलासा किया।
तो फिर बचा कौन, सिर खुजाते हुये प्रधान जी ने राजकुमार की ओर देखा।
अवश्य ही एस एस पी कार्यालय का कोई कर्मचारी हरपाल सिंह से मिला हुआ है जिसने हमें चमन शर्मा के साथ उनके कार्यालय जाते हुये देखकर हरपाल सिंह को सूचना दे दी होगी। राजकुमार एक बार फिर शुरू हो गया।
अरे हां, ये भी तो संभव है। प्रधान जी ने कहते हुये एक बार फिर राजकुमार की ओर देखा।
क्योंकि सौरव कुमार ने थानी प्रभारी से शाम तक रिपोर्ट करने को कहा है, जाहिर सी बात है कि थाने में हड़कंप मच गया होगा। वहां से भी एक सूचना हरपाल सिंह को मिल गयी होगी कि कार्यवाही करने के सख्त निर्देश आये हैं। और इतना समझदार तो हरपाल सिंह जरुर होगा जो ये अंदाज़ा लगे सके कि ये सारा दबाव हमारे कारण ही बना है। राजकुमार कहता गया।
ओ कमाल कर दिया तूने………………प्रधान जी को अपनी बात बीच में ही रोक देनी पड़ी।
मेरी बात अभी पूरी नहीं हुयी है प्रधान जी। राजकुमार ने प्रधान जी की बात काटते हुये कहा।
हरपाल सिंह जैसा प्रभावशाली व्यक्ति जोरावर के पास भार्गव कैंप जैसे इलाके में तो जाने से रहा, जिसका अर्थ ये है कि उसने जोरावर को अपने पास बुलाया होगा, क्योंकि फोन पर दोनों एक साथ थे। इससे ये साबित होता है कि ये सूचना हरपाल सिंह को हमारे एस एस पी से मिलने के बाद बहुत जल्दी ही मिल गयी थी, क्योंकि ये सारी कार्यवाही बहुत कम समय में हुई है। राजकुमार ने बात को विराम दिया।
ह्म्म्म्म्म्म्म्म्………… प्रधान जी ने एक लंबी हुंकार भरी।
अभी इस प्रकरण के और भी अर्थ बचे हैं, प्रधान जी। राजकुमार ने एक बार फिर से पहेली डाल दी।
अब क्या बच गया है शैतान। प्रधान जी ने राजकुमार को छेड़ते हुये कहा।
नंबर एक, हरपाल सिंह हमारा नाम इस केस से जुड़ने के बारे में जानकर हड़बड़ा गया है। ये हमारे लिये बहुत अच्छा है क्योंकि इससे ये साबित होता है कि उसे आपका भय है, और उसका ये भय ही उसे ले डूबेगा। राजकुमार फिर से शुरू हो गया था।
नंबर दो, इस पर भी हरपाल सिंह इस मामले में हार मानने को तैयार नहीं है जिसके चलते उसने आपको इस केस से हटाने के लिये अपना पहला हथियार जोरावर सिंह के रूप में चलाया है।
ये बात अलग है कि उसका ये हथियार फेल हो गया। मुस्कुराते हुये प्रधान जी ने कहा।
फेल नहीं हुआ प्रधान जी, उल्टा पड़ गया। हरपाल सिंह ने भी फोन पर आपका सिंह नाद सुना होगा और जोरावर को मिमयाते हुये भी देखा होगा। इसका मतलब ये निकला कि उसे ये समझ आ गया होगा कि गुंडों के दम पर वो हमसे जीत नहीं सकता। एक ही सांस में बोल गया राजकुमार।
ऐसे लोगों के पास मनमानी करने के लिये तीन हथियार ही होते हैं, गुंडे, पैसा और राजनैतिक प्रभाव। इसमें से उसका एक हथियार तो हमारे मामले में ठुस्स हो गया। बच गये दो हथियार, पैसा और राजनैतिक प्रभाव। राजकुमार ने बात को रोकते हुये प्रधान जी की ओर फिर पहेली वाली मुद्रा में देखा।
ओहो… तो इसका अर्थ है कि अब वो इन दोनों हथियारों का इस्तेमाल करेगा। प्रधान जी ने एकदम से सब समझ आ जाने वाले लहजे में कहा।
ओ जीते रहो मेरे प्रधान जी। राजकुमार ने भी इस बार प्रधान जी के अंदाज़ की नकल की, और फिर से शुरु हो गया।
पैसे से इस मामले में उसका काम बनने वाला नहीं है, तो बच गया केवल राजनैतिक दबाव। इसका अर्थ ये है कि उसका अगला हथियार अब राजनैतिक दबाव होगा जो अब सीधे तौर से एस एस पी सौरव कुमार को झेलना पड़ेगा। उसका फिर ये मतलब निकला कि कल जब हम सौरव कुमार के पास जायेंगे तो वे हमें टालने की कोशिश कर सकते हैं। राजकुमार ने अपनी बात पूरी की।
तो इसका अर्थ सौरव कुमार कल इस काम को करने से पीछे हटने के संकेत दे सकते हैं। प्रधान जी ने एक और संभावना व्यक्त की।
बिल्कुल नहीं प्रधान जी, सौरव कुमार एक कुशल अधिकारी हैं। वो जानते हैं कि आपको सीधे रूप से मना कर देने का अर्थ सारे शहर की पुलिस के गले मुसीबत डालना होगा, और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक होने के नाते उस सारी मुसीबत का नैतिक दायित्व उन्हे ही झेलना पड़ेगा। राजकुमार एक बार फिर रुक कर कुछ सोचने लगा।
अरे हां, ये बात भी ठीक है। तो फिर तुम्हारे ख्याल से कल सौरव कुमार की प्रतिक्रिया क्या रहेगी। प्रधान जी ने पूछा।
मुझे लगता है कि कल वो किसी प्रकार और समय मांगेंगे। इससे उन्हें दो लाभ होंगे। कुछ सोचते हुये राजकुमार ने कहा।
और क्या होंगे वो दो लाभ। प्रधान जी को अब मज़ा आने लगा था।
एक तो उन्हें अगली रणनीति बनाने के लिये समय मिल जायेगा, दूसरा वही पुराना राजनैतिक पैंतरा। जिस काम को मना न कर सको, उसे ठंडे बस्ते में डाल दो, जो सदा से इस देश के कई राजनेता करते आये हैं। राजकुमार ने बात पूरी की।
ओ तेरे बच्चे जीयें, एक दम ठीक बात पकड़ ली है तूने। मुझे लगता है कल सौरव कुमार यही करेंगे।
और यहीं से हमारा असली काम शुरू होगा। राजकुमार का स्वर एक बार फिर प्रधान जी के कानों में पड़ा।
और क्या होगा वो असली काम। प्रधान जी ने चुटकी लेते हुये पूछा।
हमें समय की एक सीमा निर्धारित करनी होगी और उससे अधिक समय मांगने पर सौरव कुमार को मना करना होगा। इससे हमें दो लाभ होंगे। एक तो उनपर दबाब बना रहेगा और दूसरा वो समझ जायेंगे कि हमने उनकी चाल को समझ कर बदले में अपनी चाल चल दी है। राजकुमार फिर मुस्कुरा रहा था।
तो कितना समय देना चाहिये हमें, पुत्तर जी। प्रधान जी भी अब मुस्कुरा रहे थे क्योंकि उन्हें पता चल गया था कि राजकुमार के मन में सारी रणनीति बन चुकी है।
मेरे ख्याल से तीन दिन। ये समय बहुत अधिक भी नहीं है, और अगर हमें मोर्चा लगाना पड़ता है तो कम से कम इतना समय हमें तैयारी करने में भी लग जायेगा। राजकुमार का जवाब था।
और सात दिन क्यों नहीं, पुत्तर जी। प्रधान जी ने इस बार सबकुछ समझते हुये भी राजकुमार को छेड़ने वाले अंदाज़ में पूछा।
आपसे ही सीखा है प्रधान जी, हर लड़ाई सबसे अधिक मनोवैज्ञानिक स्तर पर लड़ी जाती है। केवल तीन दिन देने का अर्थ होगा कि हम इस मामले में किसी भी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं हैं, और किसी भी समय आक्रमण करने की मुद्रा में हैं। यानि की इस मामले में हम आर पार की लड़ाई लड़ने के मूड में हैं। इससे विरोधी पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनता है। राजकुमार ने परिक्षा के किसी प्रश्न का उत्तर देने वाले स्वर में कहा।
तेरी इसी बात ने मुझे तेरा कायल कर दिया है, मेरे बेटे। इतने कम समय में ही मेरा सिखाया हुआ एक एक पैंतरा तूने इस तरह से घोंट लिया है, जो सालों से मेरे साथ काम कर रहे मेरे कई साथी भी नहीं कर सके। गर्व से कहते हुये प्रधान जी ने राजकुमार को गले लगा लिया।
सब आपकी ही छत्रछाया का परिणाम है प्रधान जी। राजकुमार ने मुस्कुराते हुये कहा।
तो फिर तय रहा, कल इस मामले में किसी भी हाल में हम सौरव कुमार को तीन दिन से अधिक समय नहीं देंगे। प्रधान जी ने जैसे फैसला सुनाया हो।
और मेरे ख्याल से अब हमें भाजी की ओर चलना चाहिये। राजकुमार ने फिर शरारत के साथ कहा।
अरे, वो तो मैं इस सारे चक्कर में भूल ही गया था। चलो चलो जल्दी से। कहते कहते प्रधान जी कार्यालय के दरवाजे की ओर कदम बढ़ा चुके थे।
हिमांशु शंगारी